Bihar Board Class 7 Hindi Chapter 18 Solutions – सोनाहुएनत्सांग की भारत यात्रा

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इस पाठ में प्रसिद्ध चीनी यात्री हुएनत्सांग (वेनसांग) के भारत आगमन और यहां के अनुभवों का वर्णन किया गया है। 7वीं शताब्दी के प्रारंभ में वेनसांग ने भगवान बुद्ध के जन्मस्थान भारत की यात्रा की थी। यह पाठ उनके द्वारा लिखित यात्रा विवरणों पर आधारित है। इसमें उनके चीन से भारत आने के कठिन मार्ग, नालंदा विश्वविद्यालय की विशालता एवं शिक्षा पद्धति, ऋषि-मुनियों के बारे में उनके अनुभव तथा श्रीलंका की यात्रा आदि के विषय में बताया गया है।

Bihar Board Class 7 Hindi Chapter 18

Bihar Board Class 7 Hindi Chapter 18 Solutions

SubjectHindi
Class7th
Chapter18. सोनाहुएनत्सांग की भारत यात्रा
Authorबेलिंदर और  हरिंदर धनौआ
BoardBihar Board

पाठ से –

प्रश्न 1. हुएनत्सांग भारत क्यों आना चाहते थे?

उत्तर: हुएनत्सांग भारत आना चाहते थे क्योंकि उन्हें भगवान बुद्ध की जन्मभूमि का दर्शन करना था और साथ ही नालंदा विश्वविद्यालय में रहकर वहाँ के प्रसिद्ध पंडितों और गुरुओं से शिक्षा प्राप्त करना था। उन्हें भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का अध्ययन करने का गहरा उत्साह था। वह चाहते थे कि वे भारत में बौद्ध धर्म के गहरे रहस्यों को समझें और अपने देश चीन में धार्मिक एवं सांस्कृतिक लाभ पहुंचा सकें।

प्रश्न 2. भारत आने में हुएनत्सांग को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?

उत्तर: हुएनत्सांग को भारत आने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा:

  1. उन्हें चीन की सरकार से भारत जाने की अनुमति नहीं मिली, इसलिए उन्हें गुप्त रूप से यात्रा करनी पड़ी।
  2. उन्हें खतरनाक नदियों, पर्वतों और रेगिस्तानों को पार करना पड़ा, जिससे उन्हें कई बार जान का खतरा भी उठाना पड़ा।
  3. वे लंबे समय तक भूखे-प्यासे रहे और कठिन परिस्थितियों में यात्रा करते रहे।
  4. कई बार उन्हें डाकुओं से भी सामना करना पड़ा, जो उनकी सम्पत्ति छीनने की कोशिश करते थे।
  5. उन्हें भाषा और संस्कृति के अंतर से भी जूझना पड़ा, क्योंकि वह चीनी भाषी थे और भारत में संस्कृत का प्रचलन था।

इन कठिनाइयों को झेलते हुए भी हुएनत्सांग ने उत्साह और दृढ़ता के साथ अपनी यात्रा पूरी की।

प्रश्न 3. हुएनत्सांग और शीलभद्र के मिलन का वर्णन कीजिए।

उत्तर: जब हुएनत्सांग नालंदा विश्वविद्यालय पहुंचे, तो वहां के प्रसिद्ध प्रधानाचार्य शीलभद्र से मिलने के लिए 20 भिक्षुओं ने पहले उन्हें विभिन्न प्रकार की जानकारी दी। तब हुएनत्सांग को शीलभद्र के सामने लाया गया।

हुएनत्सांग शीलभद्र के चरणों पर झुककर उनके चरणों का चुंबन किया और भूमि पर सिर रखकर नम्रतापूर्वक बोले, “मैंने आपके निर्देशन में शिक्षा ग्रहण करने के लिए चीन से यहां तक की यात्रा की। मैं प्रार्थना करता हूं कि आप मुझे अपना शिष्य बनाएं।”

इस पर शीलभद्र की आंखें भर आईं और उन्होंने बताया कि उन्हें एक स्वप्न में तीन देवताएं आए थे, जिन्होंने उन्हें बताया कि एक चीनी भिक्षु उनका शिष्य बनकर ज्ञान प्राप्त करना चाहता है, इसलिए उन्हें उसे भली-भांति शिक्षित करना चाहिए। इस प्रकार शीलभद्र ने हुएनत्सांग को अपना शिष्य स्वीकार कर लिया।

प्रश्न 4. नालंदा का वर्णन हुएनसांग ने किन शब्दों में किया है ?

उत्तर: हुएनत्सांग ने नालंदा विश्वविद्यालय का वर्णन इन शब्दों में किया है:

नालंदा के मठ के चारों ओर ईंटों की दीवारें थीं और एक द्वार महाविद्यालय के रास्ते में खुलता था। वहाँ आठ बड़े कक्ष थे, जो कलात्मक और बुर्जी से सुसज्जित थे। वेधशालाएं सुबह के कुहासे में छिप जाती थीं और ऊपरी कमरे बादलों में खोए से प्रतीत होते थे।

मठ के खिड़कियों से झांककर लगता था कि हवा के साथ मिलकर बादल नई-नई आकृतियां बनाते थे। वृक्षों के पत्तों पर सूरज और चांद की रश्मियां झिलमिलाती थीं। तालाबों में नील कमल खिलते और रक्ताभ कनक पुष्प झूमते थे। आम के कुंजों से मधुर खुशबू वायु में तैरती रहती थी।

बाहरी सभी आंगनों में चार मंजिलें कक्ष पुजारियों के लिए थे, जो अजगर के आकार के बने थे। लाल-मूंगे खम्भों पर बेल-बूटे उकरे थे और जगह-जगर रोशनदान बने थे। फर्श इतनी चमकदार ईंटों की बनी थी कि वह स्थान अत्यंत रमणीय लगता था।

पाठ से आगे –

प्रश्न 1. निम्नलिखित अंश “हुएनत्सांग” के किस पक्ष को दर्शाता

“जब तक मैं बद्ध के देश में नहीं पहुँच जाता. मैं कभी चीन की तरफ मुड़कर भी नहीं देखूगा । ऐसा करने में यदि रास्ते में मेरी मृत्यु हो जाय तो उसकी चिन्ता नहीं।”

उत्तर: उपरोक्त अंश में हुएनत्सांग के दृढ़ संकल्प और भगवान बुद्ध के प्रति उनकी अटूट श्रद्धा का पक्ष प्रदर्शित होता है। यह वाक्य उनके भगवान बुद्ध के देश भारत जाने के दृढ़ संकल्प को दर्शाता है। वह कहते हैं कि वे भारत, बुद्ध की जन्मभूमि पहुंचने तक कभी भी चीन की ओर नहीं देखेंगे। यहां तक कि अगर रास्ते में उनकी मृत्यु भी हो जाए, तो भी उन्हें इस बात की चिंता नहीं है। इससे स्पष्ट होता है कि हुएनत्सांग भगवान बुद्ध के प्रति अत्यंत समर्पित और दृढ़ संकल्पी व्यक्ति थे।

प्रश्न 2. आप अपने आस-पास के धार्मिक, ऐतिहासिक स्थल पर जाइए और उसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर: हमारे आस-पास का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल जयमंगलागढ़ है। यह राजा जयमंगल सिंह का प्राचीन किला था, जो चारों ओर से गहरी और चौड़ी खाई से घिरा हुआ है, जिसे आज कांवर झील के नाम से जाना जाता है।

इस किले की सुरक्षा के लिए झील के बाहर ऊंचे-ऊंचे टीले बनाए गए थे, जो आज भी ‘देता टीला’ के नाम से विख्यात हैं। झील में जगह-जगह कमल के फूल खिले हुए हैं और यह पक्षियों का एक अभयारण्य है, जहां पर्यटक नौका विहार का आनंद उठाते हैं।

किले के बीच में एक भव्य चीनी मंदिर है, जिसमें वहां की आराध्य देवी ‘माँ जयमंगला’ की अद्भुत मूर्ति स्थापित है। यह मंदिर भारतीय वास्तुकला का एक नमूना है। भारत सरकार ने इस स्थान की खुदाई करवाई, जिसमें प्राचीन शिल्प कला की कई विशेषताएं प्राप्त हुई हैं।

इस प्रकार जयमंगलागढ़ एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है, जो इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है।

व्याकरण –

प्रश्न 1. कारक और उनके साथ लगने वाले चिह्न (विभक्ति) इस प्रकार हैं –

कारकविभक्ति
कर्त्ताने,
कर्मको
करणसे, के द्वारा, द्वारा
सम्प्रदानको, के लिए
आपादांनसे
सम्बन्धका, के, की
अधिकरणमें, पर
सम्बोधनहे, अरे, रे, अहो

उपरोक्त विभक्तियों का प्रयोग करते हुए एक-एक वाक्य बनाइए।

उत्तर:
(i) कर्ता (ने) मैंने देखा।
कर्ता (०)–राम रावण को मारा।

(ii) कर्म – (को) मदन श्याम को पीटा ।
कर्म (०) मदन घर गया।

(iii) करण (से)-वह डण्डा से चलता है।
करण (द्वारा, के द्वारा)-राम रावण को बाण के द्वारा मारा।
राम द्वारा रावण मारा गया।

(iv) सम्प्रदान (को)-मैंने भिखारी को वस्त्र दिया।
सम्प्रदान (के लिए)-पिता. पुत्र के लिए फल लाया ।

(v) आपादान (से)-मदन छत से गिर गया।

(vi) सम्बन्ध (का, के, की) रमेश की गाय चर रही है। .
रमेश का भाई यहाँ पढ़ता है।
रमेश के पिता यहाँ पढ़ाते हैं।

(vii) अधिकरण (में, पे, पर)—वह स्कूल में पढ़ता है। –
(पे) तेरे दर पे आया हैं।
(पर) वृक्ष पर कौवा बोलता है।
सम्बोधन (हे, अरे, रे) हे ! श्याम यहाँ आओ। अरे! भाई तुम कहाँ हो।

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