UP Board Class 7 Hindi Manjari Chapter 17 – “वरदान माँगूंगा नहीं” complete solutions are shared here. Below we have covered all the question answers of this chapter for free.
इस कविता में कवि केवाभमान और आमवास के पारंपरिक आदर्शों का परिचय दिया गया है। वे व्यक्तिगत उन्नति और समृद्धि के लिए अपने आत्म-सम्मान को नहीं बेचने की महत्वाकांक्षा रखते हैं। उनका कहना है कि वे धन, सुख, या सम्मान के लिए भिखारी नहीं बनेंगे, बल्कि उन्हें आत्म-सम्मान और समर्पण की ऊँचाई पर चलना चाहिए। ह कविता साहस, समर्थ, और आत्म-समर्पण की महत्वपूर्ण भावनाओं को स्पष्ट करती है।
UP Board Class 7 Hindi Manjari Chapter 17 Solutions
Subject | Hindi (Manjari) |
Class | 7th |
Chapter | 17. वरदान माँगूंगा नहीं |
Author | |
Board | UP Board |
कुछ करने को-
प्रश्न 1:
हम बहता जल पीने वाले,
मर जायेंगे भूखे-प्यासे।
कहीं भली है कटक निबौरी,
कनक कटोरी की मैदा से।
उपर्युक्त कविता भी शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी की ही है। दोनों कविताओं में क्या समानता तथा क्या अन्तर है? लिखिए।
उत्तर :
दोनों कविताओं में समानता यह है कि इनमें कवि का आत्मगौरव, स्वाभिमान और स्वतंत्रता की भावना मुखरित हुई है। कवि किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहता और अपने बल पर जीवन जीना चाहता है।
हालांकि, दोनों कविताओं में थोड़ा अंतर भी है। “वरदान मांगूंगा नहीं” में कवि किसी से कोई वरदान या उपहार लेने से इनकार करता है, क्योंकि वह अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करना चाहता। वहीं दूसरी कविता में कवि सांसारिक बंधनों और भौतिक वस्तुओं से मुक्त होकर स्वतंत्र जीवन जीना चाहता है।
प्रश्न 2: “जीवन महासंग्राम है” के समान भाव की कुछ सूक्तियां एकत्र करके लिखिए।
उत्तर :
“जीवन महासंग्राम है” के समान भाव की कुछ सूक्तियां निम्नलिखित हैं:
(क) जीवन एक युद्ध है।
(ख) जीवन एक लगातार संघर्ष है।
(ग) जीवन एक बड़ी चुनौती है।
(घ) जीवन एक अनवरत प्रयास है।
(ङ) जीवन एक लंबी लड़ाई है।
इन सूक्तियों का आशय यही है कि जीवन में सफलता पाने के लिए हमें निरंतर प्रयास करते रहना पड़ता है और विभिन्न बाधाओं से लड़ना पड़ता है।
विचार और कल्पना
प्रश्न 1: कवि दया की भीख नहीं लेना चाहता, इस संबंध में आपके क्या विचार हैं? लिखिए।
उत्तर : कवि का दया की भीख न लेने का रवैया उसके आत्मगौरव और स्वाभिमान को दर्शाता है। कवि किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहता और न ही किसी की कृपा या दया पर जीवन जीना चाहता है। वह अपनी ताकत और मेहनत से जीवन जीना चाहता है। यह दृष्टिकोण बहुत प्रशंसनीय है क्योंकि इससे व्यक्ति में आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन की भावना पैदा होती है। साथ ही, दया या कृपा लेने से व्यक्ति का आत्मसम्मान भी ठेस नहीं पहुंचती। इसलिए कवि का यह रवैया सराहनीय है।
प्रश्न 2: “यह भी सही, वह भी सही” का प्रयोग किन परिस्थितियों के लिए किया गया है?
उत्तर : “यह भी सही, वह भी सही” का प्रयोग इस बात को दर्शाने के लिए किया गया है कि जीवन में विजय और पराजय दोनों स्वाभाविक हैं। जीवन एक संघर्ष है और इस संघर्ष में कभी हम जीतते हैं तो कभी हारते हैं। जीत को सही और हार को भी सही नहीं कहा जा सकता क्योंकि दोनों स्थितियां अस्थायी होती हैं। एक सफल व्यक्ति के साथ असफलता आ सकती है और असफल व्यक्ति भी एक दिन सफलता हासिल कर सकता है। इसलिए हमें न तो जीत में अत्यधिक उछल जाना चाहिए और न ही हार में निराश होना चाहिए। जीवन का सही रवैया यही है कि संघर्ष करते रहना और अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना।
प्रश्न 3: कविता के मूल भाव को ध्यान में रखते हुए बताइए कि इसका शीर्षक “वरदान मांगूंगा नहीं” क्यों रखा गया होगा तथा इस कविता के क्या-क्या शीर्षक हो सकते हैं?
उत्तर : कविता का मूल भाव कवि के आत्मगौरव, स्वाभिमान और स्वतंत्रता की भावना को दर्शाता है। कवि किसी से भीख या वरदान मांगकर जीना नहीं चाहता। वह अपनी मेहनत और संघर्ष से ही जीवन जीना चाहता है। इसी कारण कविता का शीर्षक “वरदान मांगूंगा नहीं” रखा गया होगा।
इस कविता के कुछ अन्य संभावित शीर्षक हो सकते हैं:
- आत्मगौरव
- स्वाभिमान की डगर
- मेरा संघर्ष, मेरा जीवन
- स्वतंत्रता का गीत
- मैं नहीं झुकूंगा
ये शीर्षक भी कविता के मूल भाव को व्यक्त करते हैं कि कवि किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहता और अपनी शक्ति पर विश्वास रखता है।
कविता से
प्रश्न 1: निम्नलिखित पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) “कवि तिल-तिल मिट जाने के बाद भी किस बात के लिए तैयार नहीं हैं?”
उत्तर : इस पंक्ति में कवि कह रहा है कि जीवन के संघर्षों में चाहे उनका शरीर धीरे-धीरे क्षीण होता जाए, लेकिन वे किसी से दया या कृपा मांगने के लिए तैयार नहीं हैं। कवि का आत्मगौरव इतना ऊंचा है कि वे जीवन भर संघर्ष करते रहेंगे, लेकिन अपनी गरिमा को नहीं छोड़ेंगे। वे अपनी मेहनत और लगन से ही जीना चाहते हैं, दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहते।
(ख) “लघुता ने अब मेरी छुओ, तुम हो महान बने रहो।”
उत्तर : इस पंक्ति में कवि संघर्ष और कठिनाइयों को संबोधित कर रहा है। वह कह रहा है कि चाहे उसे जितनी भी छोटी-छोटी बाधाएं या विपदाएं आएं, वह उन्हें स्वीकार करने को तैयार है। कवि अपनी छोटी स्थिति को स्वीकार करता है, लेकिन संघर्ष को महान मानता है। इसका अर्थ है कि वह जीवन की चुनौतियों से लड़ेगा और उन्हें महत्व देगा, क्योंकि उन्हीं चुनौतियों से उसकी परीक्षा होगी।
(ग) “कुछ भी करो कर्तव्य पथ से किन्तु भागूंगा नहीं।”
उत्तर : इस पंक्ति में कवि अपने कर्तव्य और नैतिक मार्ग से विचलित नहीं होने की प्रतिज्ञा लेता है। वह कहता है कि चाहे उसके साथ कुछ भी किया जाए, चाहे उसे कितनी ही पीड़ा दी जाए या शाप दिए जाएं, लेकिन वह अपने कर्तव्य पथ से कभी नहीं भागेगा। कवि का संकल्प दृढ़ है कि वह नैतिक और सही मार्ग पर चलता रहेगा, चाहे उसे किसी भी तरह की बाधा का सामना करना पड़े।
इन पंक्तियों से कवि के स्वाभिमान, आत्मगौरव और कर्तव्यनिष्ठा की भावना झलकती है। वह किसी भी हालत में आत्मसम्मान को नहीं छोड़ना चाहता और नैतिक मूल्यों का पालन करना चाहता है।
प्रश्न 2: निम्नलिखित पंक्तियों को उनके सही अर्थ से मिलाइये (मिलाकर)
उत्तर:
(क) क्या हार में क्या जीत में किंचित नहीं भयभीत मैं । | हार हो या जीत, मैं जरा भी भयभीत नहीं । |
(ख) मैं विश्व की संपत्ति चाहूँगा नहीं। | मैं संसार की सम्पदा की कामना नहीं करूँगा । |
(ग) यह हार एक विराम है, जीवन महासंग्राम है। | जीवन स्वयं ही महा संघर्ष है इसमें हार को क्षणिक विश्राम के रूप में लेना चाहिए। |
प्रश्न 3: कविता में जीवन को महासंग्राम क्यों कहा गया है?
उत्तर: कविता में जीवन को महासंग्राम कहा गया है क्योंकि इसमें कठिनाइयों पर संघर्षरत रहकर उन पर विजय प्राप्त करने का भाव होता है।
भाषा की बात
प्रश्न 1: इस कविता में एक पंक्ति है ‘‘क्या हार में क्या जीत में” इसमें एक ही पंक्ति में ‘हार’ और ‘जीत’ दो परस्पर विलोम शब्द आए हैं। आप भी कुछ ऐसी पंक्तियाँ बनाइए जिनमें दो परस्पर विलोम शब्द एक साथ आए हों, जैसे- क्या सुख में क्या दुःख में।
उत्तर:
(1) क्या खुशी में क्या गम में।
(2) क्या ऊपर में क्या नीचे में।
(3) क्या आगे में क्या पीछे में।
(4) क्या लेने में क्या देने में।।
(5) क्या रहने में क्या जाने में।
(6) क्या अन्दर में क्या बाहर में।
प्रश्न 2: पाठ में आए तुकान्त शब्द छाँटकर उनका अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए l
उत्तर:
(1) शुद्ध भाषा में विराम चिहनों का धयान रखना चाहिए।
(2) जीवन एक महासंग्राम है।
(3) महाभारत युद्ध में पांडवों की जीत हुई।
(4) कायर रणक्षेत्र से भयभीत होकर भाग जाते हैं।
(5) भूमध्य रेखा पर सारे वर्ष ताप उच्च होता है।
(6) अशिक्षित रहना एक अभिशाप है।
प्रश्न 3:
जन = लोग। (जन-जन की आवाज है – हम सब एक हैं।)
जान = प्राण। ( क्या बताऊँ, वह हमेशा मेरी जान के पीछे पड़ा रहता है।)
ऊपर के शब्दों (जन-जान) में केवल एक मात्रा के हेर-फेर से उनके उच्चारण और अर्थ दोनों ही बदल गए हैं। नीचे कुछ शब्द-युग्म दिए जा रहे हैं, उनका अर्थ स्पष्ट करते हुए अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए तथा ऐसे पाँच शब्द-युग्म आप भी ढूंढिए।
सुत-सूत, नीर-नी, मन-मान, कुल-कूल, क्रम-कर्म
उत्तर:
सुत (पुत्र) – लव-कुश राम के सुत थे।
सूत (धागा) – रेशम का सूत बहुत पतला होता है।
तन (शरीर) – तन स्वच्छ रखना चाहिए।
तान (आने की लय) – तानसेन का तान बहुत अच्छा था।
मन (इन्छा, विचार, भाव) – प्रत्येक व्यक्ति को अपने मन पर नियन्त्रण रखना चाहिए।
मान (अम्मान) – हमें अपने से बड़ों का मान करना चाहिए।
कुल (वंश, खानदान) – सीता सूर्य-कुल की पुत्रवधू थीं।
कूल (कनारा) – नदी का कूल बहुत चौड़ा है।
नम (गला) – बारिश से धरती नम हो जाती है।
नाम (यश) – रामायण में राम नाम का गुणगान है।
प्रश्न 4: तिल-तिल मिटूगा पर दया की भीख नहीं लूंगा, क्योंकि
(1) जीवन एक विराम है।
(2) जीवन महासंग्राम है।
(3) जीवन बहुत अल्प है।
(4) जीवन में बहुत आराम है।
प्रश्न 5: स्मृति सुखद प्रहरों के लिए क्या नहीं चाहँगा ?
(1) विश्व की सम्पत्ति।
(2) खण्डहर।
(3) दीर्घायु।
(4) कर्तव्य
प्रश्न 6: किन-किन परिस्थितियों में कवि अपने कर्तव्य-पथ से हटना नहीं चाहता है?
(1) हृदय को ताप एवं अभिशाप प्राप्त होने पर।
(2) भयर्भत होने पर।
(3) धमकाने पर।
(4) प्रताडित होने पर।