Bihar Board Class 10 Hindi Chapter 8 Solutions – जित-जित मैं निरखत हूँ

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बिहार बोर्ड कक्षा 10 हिंदी पाठ्यपुस्तक का आठवाँ अध्याय “जित-जित मैं निरखत हूँ” भारतीय शास्त्रीय नृत्य के महान कलाकार पंडित बिरजू महाराज के जीवन और कला यात्रा पर आधारित है। यह पाठ एक साक्षात्कार के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसमें बिरजू महाराज अपने बचपन, परिवार, संघर्षों और कला के प्रति समर्पण के बारे में बताते हैं। उनके जीवन की कहानी एक प्रेरणादायक उदाहरण है कि कैसे कठिन परिस्थितियों में भी अपनी कला और लगन के बल पर सफलता प्राप्त की जा सकती है। यहाँ हमने आपको जित-जित मैं निरखत हूँ Question Answer भी उपलब्ध करवाएं हैं।

Bihar Board class 10 Hindi chapter 8

Bihar Board Class 10 Hindi Chapter 8 Solutions

SubjectHindi
Class10th
Chapter8. जित-जित मैं निरखत हूँ
Authorपंडित बिरजू महाराज (साक्षात्कार)
BoardBihar Board

Bihar Board Class 10 Hindi Chapter 8 Question Answer

प्रश्न 1. लखनऊ और रामपुर से बिरजू महाराज का क्या संबंध है ?

उत्तर- बिरजू महाराज का जन्म लखनऊ में हुआ था, जो उत्तर प्रदेश की राजधानी और कथक नृत्य का एक प्रमुख केंद्र है। रामपुर से उनका गहरा संबंध था, क्योंकि वे वहाँ काफी समय तक रहे और उनकी बहनों का जन्म भी रामपुर में हुआ था। रामपुर में ही उन्होंने अपने नृत्य कौशल को निखारा और नवाब के दरबार में प्रदर्शन किया।

प्रश्न 2. रामपुर के नवाब की नौकरी छुटने पर हनुमान जी को प्रसाद क्यों चढ़ाया ?

उत्तर- रामपुर के नवाब की नौकरी छूटने पर हनुमान जी को प्रसाद इसलिए चढ़ाया गया क्योंकि यह नौकरी परिवार के लिए एक बोझ थी। बिरजू महाराज छह साल की उम्र से ही नवाब के यहाँ नाचते थे, जिससे उनकी माँ परेशान थीं। उनके पिता हनुमान जी से नौकरी छूटने की प्रार्थना करते थे। जब नौकरी छूटी, तो उन्होंने राहत महसूस की और आभार स्वरूप हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाया।

प्रश्न 3. नृत्य की शिक्षा के लिए पहले-पहल बिरजू महाराज किस संस्था से जुड़े और वहाँ किनके सम्पर्क में आए ?

उत्तर- बिरजू महाराज ने अपनी औपचारिक नृत्य शिक्षा दिल्ली में निर्मला जी के स्कूल ‘हिंदुस्तानी डांस म्यूजिक’ से शुरू की। यह संस्था उनके नृत्य कौशल को निखारने में महत्वपूर्ण साबित हुई। वहाँ उन्हें कपिला वात्स्यायन और लीला कृपलानी जैसी प्रसिद्ध हस्तियों के साथ काम करने का अवसर मिला, जिन्होंने उनके कलात्मक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रश्न 4. किनके साथ नाचते हुए बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार मिला?

उत्तर- बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार कलकत्ता (अब कोलकाता) में मिला। इस प्रदर्शन में उन्होंने अपने चाचा शम्भू महाराज और पिता (बाबूजी) के साथ नृत्य किया था। यह पुरस्कार उनके परिवार की नृत्य परंपरा और बिरजू महाराज की प्रतिभा का प्रमाण था, जो उनके भविष्य की सफलता का संकेत था।

प्रश्न 5. बिरजू महाराज के गुरु कौन थे ? उनका संक्षिप्त परिचय दें।

उत्तर- बिरजू महाराज के प्रमुख गुरु उनके पिता (बाबूजी) थे। वे एक कुशल नर्तक और शिक्षक थे, जिन्होंने बिरजू को कथक की बारीकियाँ सिखाईं। बाबूजी स्वभाव से शांत और धैर्यवान थे, जो अपने दुःख को कभी व्यक्त नहीं करते थे। उन्हें कला से गहरा प्रेम था। दुर्भाग्य से, जब बिरजू महाराज साढ़े नौ साल के थे, तब उनके बाबूजी की मृत्यु हो गई। इस छोटी सी अवधि में ही उन्होंने बिरजू को नृत्य की मजबूत नींव दी।

प्रश्न 6. बिरजू महाराज ने नृत्य की शिक्षा किसे और कब देने शुरू की?

उत्तर- बिरजू महाराज ने लगभग 1956 के आसपास रश्मि जी को नृत्य की शिक्षा देनी शुरू की। उस समय महाराज एक ऐसे शिष्य की तलाश में थे, जो उनकी कला को आगे बढ़ा सके। रश्मि जी को उन्होंने अपनी कला का उपयुक्त वाहक समझा और उन्हें शिक्षा देने का निर्णय लिया। यह महाराज के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जहाँ वे एक कलाकार से गुरु की भूमिका में प्रवेश कर रहे थे।

प्रश्न 7. बिरजू महाराज के जीवन में सबसे दुःखद, समय कब आया ? उससे संबंधित प्रसंग का वर्णन कीजिए।

उत्तर- बिरजू महाराज के जीवन का सबसे दुःखद समय उनके पिता की मृत्यु के समय आया। उस समय वे केवल साढ़े नौ साल के थे और परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। पिता के अंतिम संस्कार के लिए भी पैसे नहीं थे। इस कठिन परिस्थिति में, बिरजू महाराज ने दस दिनों के भीतर दो नृत्य कार्यक्रम किए और 500 रुपये जुटाए। इस पैसे से उन्होंने पिता का दसवाँ और तेरहवाँ संस्कार किया। यह घटना उनके जीवन की कठोर वास्तविकता और कला के प्रति समर्पण को दर्शाती है।

प्रश्न 8. शंभू महाराज के साथ बिरजू महाराज के संबंध में प्रकाश डालिए।

उत्तर- शंभू महाराज बिरजू महाराज के चाचा और गुरु थे। बचपन से ही शंभू महाराज ने बिरजू को नृत्य की शिक्षा दी। भारतीय कला केंद्र में दोनों एक साथ काम करते थे, जहाँ बिरजू ने शंभू महाराज के सहायक के रूप में अपनी कला को निखारा। शंभू महाराज के मार्गदर्शन ने बिरजू महाराज के कलात्मक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रश्न 9. कलकत्ते के दर्शकों की प्रशंसा का बिरजू महाराज के नर्तक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर- कलकत्ता में एक सम्मेलन में बिरजू महाराज के प्रदर्शन ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस प्रदर्शन की व्यापक सराहना हुई और अखबारों में इसकी चर्चा छा गई। यह घटना उनके करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। इसके बाद से उनकी ख्याति बढ़ती गई और वे निरंतर प्रगति करते रहे।

प्रश्न 10. संगीत भारती में बिरजू महाराज की दिनचर्या क्या थी?

उत्तर- संगीत भारती में बिरजू महाराज 250 रुपये मासिक वेतन पर कार्यरत थे। वे दरियागंज में रहते थे और प्रतिदिन बस नंबर 5 या 9 से संगीत भारती पहुँचते थे। हालाँकि, वहाँ उन्हें प्रदर्शन के पर्याप्त अवसर नहीं मिलते थे। अंततः, इस स्थिति से निराश होकर उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी।

प्रश्न 11. बिरजू महाराज कौन-कौन से वाद्य बजाते थे।

उत्तर- बिरजू महाराज कई वाद्य यंत्रों में निपुण थे। वे सितार, गिटार, हारमोनियम, बाँसुरी, तबला और सरोद बजाने में दक्ष थे। यह उनकी बहुमुखी प्रतिभा का प्रमाण है।

प्रश्न 12. अपने विवाह के बारे में बिरजू महाराज क्या बताते हैं ?

उत्तर- बिरजू महाराज का विवाह 18 वर्ष की आयु में हुआ, जिसे वे अपनी गलती मानते थे। उनके पिता की मृत्यु के बाद माँ ने घबराकर जल्दबाजी में शादी करवा दी। महाराज मानते थे कि इतनी कम उम्र में विवाह ने उनके करियर को प्रभावित किया और उन्हें नौकरी करने पर मजबूर किया।

प्रश्न 13. बिरजू महाराज की अपने शागिर्दो के बारे में क्या राय है?

उत्तर- बिरजू महाराज अपने शिष्यों पर गर्व करते थे। उन्होंने रश्मि वाजपेयी को ‘शाश्वती’ की उपाधि दी थी। अन्य प्रमुख शिष्यों में वैरोनिक, फिलिप, मेक्लीन, टॉक, तीरथ प्रताप प्रदीप और दुर्गा शामिल थे। महाराज अपने शिष्यों की प्रगति और उनके प्रगतिशील दृष्टिकोण की सराहना करते थे।

प्रश्न 14. व्याख्या करें

(क) पांच सौ रुपए देकर मैंने गण्डा बंधवाया।

व्याख्या- यह कथन बिरजू महाराज द्वारा अपने गुरु-शिष्य संबंध का वर्णन करता है। बिरजू महाराज के पिता, जो उनके प्रथम गुरु थे, ने गुरु-दक्षिणा के रूप में 500 रुपये मांगे। यह राशि बिरजू महाराज ने दो प्रदर्शनों से अर्जित की। गंडा बांधना एक पारंपरिक रीति है जो शिष्य को गुरु के प्रति समर्पण दर्शाती है। इस घटना से गुरु-शिष्य परंपरा की पवित्रता और महत्व का पता चलता है। यह दर्शाता है कि कला की शिक्षा में पारिवारिक संबंधों से ऊपर गुरु-शिष्य का संबंध होता है।

(ख) मैं कोई चीज चुराता नहीं हूँ कि अपने बेटे के लिए ये रखना है, उसको सिखाना है।

व्याख्या- यह कथन बिरजू महाराज की शिक्षण नीति और नैतिक मूल्यों को दर्शाता है। वे अपने सभी शिष्यों को, चाहे वे उनके बेटे हों या अन्य, समान रूप से और पूरी ईमानदारी से सिखाते थे। “चुराना” शब्द का प्रयोग यहाँ किसी कला या तकनीक को छिपाने या रोक कर रखने के संदर्भ में किया गया है। महाराज का मानना था कि कला सबके लिए समान रूप से उपलब्ध होनी चाहिए। यह उनकी निष्पक्षता, उदारता और कला के प्रति समर्पण को दर्शाता है।

(ग) मैं तो बेचारा उसका असिस्टेंट हूँ। उस नाचने वाले कार

व्याख्या- यह कथन बिरजू महाराज की विनम्रता और कला के प्रति उनके दृष्टिकोण को प्रकट करता है। वे स्वयं को नृत्य का केवल एक माध्यम मानते थे। “उस नाचने वाले” से तात्पर्य नृत्य की कला से है, जिसे वे सर्वोच्च मानते थे। महाराज का मानना था कि लोग उनकी कला से प्रेम करते हैं, न कि उनसे व्यक्तिगत रूप से। यह दृष्टिकोण उनकी कला के प्रति गहन समर्पण और अहंकार से मुक्त होने की भावना को दर्शाता है। वे मानते थे कि कलाकार से बड़ी कला होती है।

प्रश्न 15. विग्ज महाराज अपना सबसे बड़ा जज किसको मानते थे?

उत्तर- बिरजू महाराज अपनी माँ को अपना सबसे बड़ा आलोचक मानते थे। वे अपने प्रदर्शन के बाद अपनी माँ से अपनी कमियों और अच्छाइयों के बारे में पूछते थे। उनकी माँ बिरजू महाराज के प्रदर्शन की तुलना उनके पिता (बिरजू महाराज के प्रथम गुरु) से करती थीं और सुधार के लिए सुझाव देती थीं। यह आलोचना बिरजू महाराज के कौशल को निखारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी। उनकी माँ की ईमानदार प्रतिक्रिया उनके लिए अत्यंत मूल्यवान थी।

प्रश्न 16. पुराने और आज के नर्तकों के बीच बिरजू महाराज क्या फर्क पाते हैं ?

उत्तर- बिरजू महाराज पुराने और आधुनिक नर्तकों के बीच कई अंतर देखते थे। पुराने नर्तक कला को शौक के रूप में देखते थे और सीमित संसाधनों के बावजूद उत्साह से प्रदर्शन करते थे। वे छोटी जगहों में, बिना आधुनिक सुविधाओं के भी बेपरवाह होकर अपनी कला का प्रदर्शन करते थे। इसके विपरीत, आधुनिक नर्तक अधिक सुविधा-संपन्न हैं लेकिन छोटी-छोटी कमियों पर ध्यान देते हैं। बिरजू महाराज का मानना था कि आज के कलाकार मंच की तकनीकी पहलुओं पर अधिक ध्यान देते हैं, जबकि पुराने कलाकार कला के प्रति समर्पण और जुनून पर अधिक केंद्रित थे।

प्रश्न 17. पांच सौ रुपए देकर गण्डा बंधवाने का क्या अर्थ है?

उत्तर- “पांच सौ रुपए देकर गण्डा बंधवाना” गुरु-शिष्य परंपरा में एक महत्वपूर्ण रीति को दर्शाता है। बिरजू महाराज के पिता, जो उनके प्रथम गुरु भी थे, ने यह रीति निभाई। गण्डा बांधना शिष्य को गुरु द्वारा स्वीकार करने का प्रतीक है। 500 रुपये गुरु-दक्षिणा के रूप में दिए गए, जो बिरजू महाराज ने अपने दो प्रदर्शनों से कमाए थे। यह रीति गुरु-शिष्य संबंध की पवित्रता, शिष्य का समर्पण और गुरु का आशीर्वाद दर्शाती है। यह घटना दिखाती है कि कला की शिक्षा में पारिवारिक संबंधों से ऊपर गुरु-शिष्य का संबंध होता है।

Bihar Board Class 10 Hindi Chapter 8 भाषा की बात

प्रश्न 1. काल रचना स्पष्ट करें

(क) ये शायद 43 की बात रही होगी।

उत्तर- 1943 ई की।

(ख) यह हाल अभी भी है।

उत्तर- 1943 ई की।

(ग) उस उम्र में न जाने क्या नाचा रहा होऊँगा।

उत्तर- 5 वर्ष की उम्र में (43 ई. में)

(घ) अब पचास रुपये में रिक्शे पर खर्च करता तो क्या बचता, और ट्यूशन में नागा हो तो पैसा अलग काट लेते थे।

उत्तर- 1948 ई. में।

(ङ) पचास रुपए में काम करके किसी तरह पढ़ता रहा मैं।

उत्तर- 1948 ई।

प्रश्न 2. चौदह साल की उम्र में, जब मैं वापस लखनऊ आया फेल होकर, तब कपिला जी अचानक लखनऊ पहुंची मालूम करने कि लड़का जो है वह कुछ करता भी है या आवारा या गिटकट हो गया, वह है कहाँ।

उत्तर- चौदह साल की उम्र में फेल होकर लखनऊ आया कपिला जी अचानकं लखनऊ आकर पता किया कि लड़का क्या कर रहा है।

(ख) वह तीन साल मैं खूब रियाज किया, मतलब यही सोचकर कि यही टाइम है अमर कुछ बढ़ना है तो अंधेरा करा किया करके करता था जब बाद में थक जाऊँ मैं तो जो भी साज हाथ आए कभी सितार, कभी गिटार, कभी हारमोनियम लेकर बजाऊं मतलब रिलैक्स होने के लिए।

उत्तर- अंधेरा कमरा करके तीन साल मैं खूब रियाज किया और थक जाने पर सितार, गिटार, हारमोनियम रिलेक्स के लिए बजाता।

प्रश्न 3. पाठ से ऐसे दस वाक्यों का चयन कीजिए जिससे यह साबित होता हो कि ये वाक्य आमने-सामने बैठे व्यक्तियों के बीच की बातचीत के हैं, लिखित भाषा के नहीं।

उत्तर- (क) जन्म मेरा लखनऊ के जफरीन अस्पताल में 1938, 4 फरवरी, शुक्रवार, सुबह 8 बजे।
(ख) आपको मंच का कुछ अनुभव या संस्मरण बचपन के हैं।
(ग) आपको आगे बढ़ाने में अम्मा जी का बहुत बड़ा हाथ है।
(घ) अपने शार्गिों के बारे में बताएँ।
(ङ) अब तुम हो इतने अर्से से।
(च) शाश्वती लगी हुई है।
(छ) लड़कों में कृष्णमोहन, राममोहन को उतना ध्यान नहीं है।
(ज) आपको संगीत नाटक अकादेमी अवार्ड कब मिला। (अ) केशवभाई और मैं साथ ही रहते थे।
(अ) शागिर्द मैं बाबूजी का हूँ।

प्रश्न 4. निम्नलिखित वाक्यों से अव्यय का चुनाव करें।

(क) जब अंडा कहकर पूछे तो नहीं खाता था, पर जब मूंग की दाल कहें तो बड़े मजे से खा लेता था।

उत्तर- जब, तो, पर, तो आदि।

(ख) एक सीताराम बागला करके लड़का था अमीर घर का।

उत्तर- एक करके।

(ग) बिलकुल पैसा नहीं था घर में कि उनका दसवाँ किया जा सके।

उत्तर- बिलकुल, जा आदि।

(घ) फिर जब एक साल हो गया तो कहने लगे कि अब तुम परमानेंट हो गए।

उत्तर- फिर, जब, एक, तो, अब आदि।

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