Bihar Board class 10 Hindi chapter 4 solutions are available here. This is our free expert guide that provides you with complete question answers of chapter 4 – “नाखून क्यों बढ़ते हैं”.
बिहार बोर्ड कक्षा 10 हिंदी पाठ्यपुस्तक का चौथा अध्याय “नाखून क्यों बढ़ते हैं” एक रोचक और विचारोत्तेजक निबंध है। यह पाठ एक सामान्य से प्रश्न से शुरू होकर मानव विकास, संस्कृति और नैतिकता के गहरे विषयों को छूता है। लेखक ने नाखूनों के बढ़ने के सरल से प्रश्न को लेकर मानव इतिहास, सभ्यता के विकास, और मनुष्य की आंतरिक प्रवृत्तियों पर एक गहन चिंतन प्रस्तुत किया है। यहाँ हमने आपको नाखून क्यों बढ़ते हैं Question Answer भी उपलब्ध करवाएं हैं।

Bihar Board Class 10 Hindi Chapter 4 Solutions
Contents
Subject | Hindi |
Class | 10th |
Chapter | 4. नाखून क्यों बढ़ते हैं |
Author | हजारी प्रसाद द्विवेदी |
Board | Bihar Board |
Bihar Board Class 10 Hindi Chapter 4 Question Answer
प्रश्न 1: नाखून क्यों बढ़ते हैं? यह प्रश्न लेखक के आगे कैसे उपस्थित हुआ?
उत्तर: नाखून क्यों बढ़ते हैं? यह प्रश्न लेखक के आगे उनकी बेटी ने पूछा था। एक दिन उसकी बेटी ने उसे यह सवाल किया, जिसने लेखक को इस विषय पर गहराई से सोचने पर मजबूर कर दिया।
प्रश्न 2: बढ़ते नाखूनों द्वारा प्रकृति मनुष्य को क्या याद दिलाती है?
उत्तर: बढ़ते नाखून हमें हमारे प्राचीन काल की याद दिलाते हैं, जब मनुष्य वनमानुष की तरह जंगलों में रहता था। उस समय नाखून उसकी आत्मरक्षा और शिकार के मुख्य हथियार होते थे। आज भी नाखूनों का बढ़ना इस बात का संकेत है कि हमारे भीतर पशुता की कुछ निशानियाँ अब भी मौजूद हैं। प्रकृति हमें यह याद दिलाती है कि भले ही हम आधुनिक हो गए हों, लेकिन हमारे भीतर के प्राचीन गुण अभी भी जीवित हैं।
प्रश्न 3: लेखक द्वारा नाखूनों को अस्त्र के रूप में देखना कहाँ तक संगत है?
उत्तर: प्राचीन काल में, जब मनुष्य जंगली जीवन जीता था, नाखून उसकी आत्मरक्षा के मुख्य अस्त्र थे। वे वनमानुष की तरह अपने नाखूनों से शिकार करता और अपने दुश्मनों से बचता था। आज के आधुनिक युग में, हम विभिन्न हथियारों का उपयोग करते हैं और नाखूनों की वह भूमिका समाप्त हो चुकी है। इसलिए, नाखूनों को अस्त्र के रूप में देखना प्राचीन समय के लिए तो उपयुक्त है, लेकिन वर्तमान समय में यह तर्कसंगत नहीं है।
प्रश्न 4: मनुष्य बार-बार नाखूनों को क्यों काटता है?
उत्तर: मनुष्य निरंतर सभ्य बनने की कोशिश करता रहा है। प्रारंभिक काल में नाखून उसके अस्त्र होते थे, लेकिन जैसे-जैसे मानव सभ्यता विकसित हुई, उसने नाखूनों को काटना और उन्हें संवारना शुरू कर दिया। नाखूनों को काटकर वह पशुत्व से मुक्ति पाने और अधिक सभ्य दिखने की कोशिश करता है। आजकल नाखून काटना सौंदर्य और स्वच्छता का प्रतीक बन गया है।
प्रश्न 5: सुकुमार विनोदों के लिए नाखून को उपयोग में लाना मनुष्य ने कैसे शुरू किया? लेखक ने इस संबंध में क्या बताया है?
उत्तर: लेखक ने बताया है कि मानव ने अपने नाखूनों को संवारने और उन्हें कलात्मक रूप देने की प्रक्रिया बहुत पहले ही शुरू कर दी थी। वात्स्यायन के कामसूत्र से पता चलता है कि लगभग दो हजार वर्ष पहले भारतीय लोग अपने नाखूनों को विभिन्न आकृतियों में संवारते थे। यह प्रक्रिया न केवल मनोरंजन का साधन थी, बल्कि यह सौंदर्य का प्रतीक भी थी। त्रिकोण, वर्तुलाकार, चंद्राकार आदि विभिन्न आकृतियों के नाखून उन दिनों लोकप्रिय थे।
प्रश्न 6: नख बढ़ाना और उन्हें काटना कैसे मनुष्य की सहजात वृत्तियाँ हैं? इनका क्या अभिप्राय है?
उत्तर: नख बढ़ाना और उन्हें काटना मनुष्य की सहजात वृत्तियाँ हैं, जो हमारे प्राचीन पशु जीवन की स्मृतियों को संजोए रखती हैं। नख बढ़ना हमें यह याद दिलाता है कि हमारे पूर्वज नाखूनों का उपयोग अस्त्र के रूप में करते थे। नख काटना हमें यह बताता है कि हम अब पशुता से आगे बढ़ चुके हैं और सभ्य बन गए हैं। यह क्रिया हमें यह एहसास दिलाती है कि मनुष्य अपने भीतर की पशु प्रवृत्तियों को नियंत्रित करके एक सभ्य समाज का निर्माण करता है।
प्रश्न 7: लेखक क्यों पूछता है कि मनुष्य किस ओर बढ़ रहा है, पशुता की ओर या मनुष्यता की ओर? स्पष्ट करें।
उत्तर: लेखक के मन में यह प्रश्न इसलिए उठता है क्योंकि वह देखता है कि आधुनिक समाज में हिंसा और विनाश के साधनों का बढ़ता उपयोग हो रहा है। मनुष्य बंदूक, बम और अन्य विनाशकारी हथियारों का निर्माण और उपयोग कर रहा है, जो पशुता की निशानी है। दूसरी ओर, मनुष्य की सहानुभूति, प्रेम, और सहयोग जैसे गुण उसे मनुष्यता की ओर बढ़ाते हैं। लेखक इस अंतर्द्वंद्व को स्पष्ट करने के लिए यह प्रश्न उठाता है ताकि लोग सोच सकें कि वे किस दिशा में बढ़ रहे हैं। पशुता की ओर बढ़ने का मतलब है हिंसा और विनाश, जबकि मनुष्यता की ओर बढ़ने का मतलब है प्रेम और शांति।
प्रश्न 8: देश की आजादी के लिए प्रयुक्त किन शब्दों की अर्थ मीमांसा लेखक करता है और लेखक के निष्कर्ष क्या हैं?
उत्तर: लेखक देश की आजादी के लिए ‘इंडिपेन्डेन्स’ और ‘स्वाधीनता’ शब्दों की अर्थ मीमांसा करता है। ‘इंडिपेन्डेन्स’ का मतलब है किसी की अधीनता से मुक्त होना, जबकि ‘स्वाधीनता’ का मतलब है अपने ही अधीन रहना। लेखक का निष्कर्ष है कि ‘स्वाधीनता’ का अर्थ केवल बाहरी स्वतंत्रता नहीं, बल्कि आत्म-नियंत्रण और आत्म-बंधन भी है। यह हमें सिखाता है कि सच्ची स्वतंत्रता तभी प्राप्त होती है जब हम अपने आचरण और कर्मों में संयम और जिम्मेदारी दिखाते हैं।
प्रश्न 9: लेखक ने किस प्रसंग में कहा है कि बंदरिया मनुष्य का आदर्श नहीं बन सकती? लेखक का अभिप्राय स्पष्ट करें।
उत्तर: लेखक ने यह प्रसंग तब कहा जब वह बता रहा था कि पुराने रीति-रिवाज और परंपराएँ हमेशा उपयुक्त नहीं होतीं। बंदरिया अपने बच्चे को गोद में दबाकर रखने की आदत रखती है, जो मनुष्य के लिए अनुकरणीय नहीं हो सकता। लेखक का अभिप्राय यह है कि हमें अपनी पुरानी आदतों और परंपराओं की समीक्षा करनी चाहिए और जो उपयोगी न हो उसे छोड़ देना चाहिए। सभी पुराने रीति-रिवाज अच्छे नहीं होते, और हमें वही अपनाना चाहिए जो हमारे लिए लाभकारी हो।
प्रश्न 10: ‘स्वाधीनता’ शब्द की सार्थकता लेखक क्या बताता है?
उत्तर: लेखक के अनुसार, ‘स्वाधीनता’ का अर्थ है अपने ही अधीन रहना, जिसमें ‘स्व’ का बंधन होता है। यह हमें आत्म-नियंत्रण और आत्म-संयम का पाठ पढ़ाती है। लेखक बताता है कि सच्ची स्वाधीनता वह है जो हमें अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों का पालन करते हुए दूसरों के कल्याण के लिए काम करने की प्रेरणा दे। यह स्वाधीनता हमें अपने और समाज के विकास की दिशा में आगे बढ़ने में सहायक होती है।
प्रश्न 11: निबंध में लेखक ने किस बूढ़े का जिक्र किया है? लेखक की दृष्टि में बूढ़े के कथनों की सार्थकता क्या है?
उत्तर: लेखक ने एक बूढ़े का जिक्र किया है जो अपनी पूरी जिंदगी का अनुभव कुछ शब्दों में व्यक्त करता है। बूढ़ा कहता है, “बाहर नहीं भीतर की ओर देखो। हिंसा को मन से दूर करो, मिथ्या को हटाओ, क्रोध और द्वेष को दूर करो, लोक के लिए कष्ट सहो, आराम की बात मत सोचो, प्रेम की बात सोचो, आत्म-तोषण की बात सोचो, काम करने की बात सोचो।” लेखक की दृष्टि में बूढ़े के ये कथन पूरी तरह सार्थक हैं क्योंकि वे मनुष्य को सच्ची शांति और संतोष की ओर ले जाते हैं।
प्रश्न 12: मनुष्य की पूँछ की तरह उसके नाखून भी एक दिन झड़ जाएँगे। प्राणिशास्त्रियों के इस अनुमान से लेखक के मन में कैसी आशा जगती है?
उत्तर: प्राणिशास्त्रियों का अनुमान है कि एक दिन मनुष्य के नाखून भी उसी तरह झड़ जाएँगे जैसे उसकी पूँछ झड़ गई थी। इस अनुमान से लेखक के मन में यह आशा जगती है कि भविष्य में मनुष्य पूरी तरह से पशुता को त्याग देगा। नाखूनों का झड़ना यह संकेत देगा कि मनुष्य अपनी आदिम प्रवृत्तियों से पूरी तरह मुक्त होकर एक अधिक सभ्य और मानवीय जीवन की ओर बढ़ जाएगा।
प्रश्न 13: ‘सफलता’ और ‘चरितार्थता’ शब्दों में लेखक अर्थ की भिन्नता किस प्रकार प्रतिपादित करता है?
उत्तर: लेखक के अनुसार, ‘सफलता’ और ‘चरितार्थता’ में अंतर है। ‘सफलता’ का मतलब है बाहरी साधनों और उपलब्धियों से प्राप्त की गई उपलब्धि। लेकिन ‘चरितार्थता’ का अर्थ है प्रेम, मैत्री, और सभी के कल्याण के लिए अपने को समर्पित करना। नाखूनों को काट देना भी ‘स्व’-निर्धारित आत्म-बंधन का फल है, जो हमें सच्ची चरितार्थता की ओर ले जाता है। लेखक बताता है कि चरितार्थता बाहरी सफलता से अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आत्मा की पूर्णता और मानवीय मूल्यों पर आधारित होती है।
प्रश्न 14. व्याख्या करें
(क) काट दीजिए, वे चुपचाप दंड स्वीकार कर लेंगे पर निर्लज्ज अपराधी की भाँति फिर छूटते ही सेंध पर हाजिर।
व्याख्या:
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ से ली गई हैं। लेखक की बेटी के नाखून बढ़ने के सवाल पर लेखक विचार करने लगता है। इस विचार के बीच यह पंक्ति उभरकर आती है जो नाखून और अपराधी की तुलना करती है। लेखक का मानना है कि जैसे नाखून काटने पर भी बार-बार बढ़ते रहते हैं, वैसे ही निर्लज्ज अपराधी सजा स्वीकार करने के बाद भी अपनी अपराध की आदत नहीं छोड़ते। यह पंक्ति मनुष्य की पाशविक प्रवृत्तियों को उजागर करती है जो बार-बार सुधार के प्रयासों के बावजूद बदलती नहीं हैं। लेखक ने इस तुलना से यह बताने का प्रयास किया है कि जैसे नाखून बार-बार बढ़ते हैं, वैसे ही मनुष्य की विनाशकारी प्रवृत्तियाँ भी बार-बार उभरती रहती हैं।
(ख) मैं मनुष्य के नाखून की ओर देखता हूँ तो कभी-कभी निराश हो जाता हूँ।
व्याख्या:
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ से ली गई हैं। लेखक ने इन पंक्तियों में मनुष्य की बर्बरता और हिंसक प्रवृत्तियों को नाखून के माध्यम से व्यक्त किया है। नाखून को देखकर लेखक को कभी-कभी निराशा होती है क्योंकि यह उसे मनुष्य की आदिम और विनाशकारी प्रवृत्तियों की याद दिलाता है। उदाहरण के तौर पर, हिरोशिमा पर बम गिराने जैसी घटनाएँ मानवता की बर्बरता को उजागर करती हैं। यह पंक्ति मनुष्य की अमानवीयता, हिंसा, और अदूरदर्शिता को दर्शाती है, जिससे लेखक को निराशा होती है। लेखक यह बताना चाहता है कि मनुष्य की यह बर्बरता उसकी प्रगति और सभ्यता के बावजूद पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है।
(ग) कमबख्त नाखून बढ़ते हैं तो बढ़ें, मनुष्य उन्हें बढ़ने नहीं देगा।
व्याख्या:
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में लेखक द्विवेदीजी यह बताना चाहते हैं कि भले ही नाखून बार-बार बढ़ते हैं, परंतु मनुष्य उन्हें बढ़ने नहीं देगा। लेखक का कहना है कि आज का मनुष्य सभ्य, संवेदनशील और बुद्धिजीवी हो गया है। वह नरसंहार और विनाश के भयानक परिणामों से अवगत है। हिरोशिमा के महाविनाश ने उसे जागरूक बना दिया है। इसलिए, वह अपनी विनाशकारी प्रवृत्तियों को नियंत्रित कर, सृजनात्मकता की ओर अग्रसर हो रहा है। यह पंक्ति इस बात का प्रतीक है कि मनुष्य अब अपनी पाशविक प्रवृत्तियों को नियंत्रित कर, मानव मूल्यों और शांति की ओर बढ़ना चाहता है। वह नाखूनों की तरह अपनी विनाशकारी प्रवृत्तियों को बढ़ने नहीं देगा और उन्हें काटता रहेगा।
प्रश्न 15: लेखक की दृष्टि में हमारी संस्कृति की बड़ी भारी विशेषता क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: लेखक की दृष्टि में हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता अपने आप पर अपने द्वारा लगाए गए बंधन में निहित है। भारतीय चित्त अनधीनता के बजाय स्वाधीनता के रूप में सोचता है। यह हमारी संस्कृति का ही प्रभाव है कि हम स्वतंत्रता को अपने अंदर की अनुशासन और आत्म-संयम के माध्यम से समझते हैं। भारतीय संस्कृति के दीर्घकालीन संस्कारों ने हमें यह सिखाया है कि स्व के बंधन को आसानी से नहीं छोड़ा जा सकता है। यह विशेषता हमें अपनी परंपराओं और मूल्यों से जोड़े रखती है और हमें नैतिक और सामाजिक रूप से मजबूत बनाती है। इस प्रकार, लेखक का मानना है कि हमारी संस्कृति का आत्म-नियंत्रण और स्व-अनुशासन ही हमारी सबसे बड़ी विशेषता है।
प्रश्न 16: मैं मनुष्य के नाखून की ओर देखता हूँ तो कभी-कभी निराश हो जाता हूँ। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ से उद्धृत है। इस अंश में प्रख्यात निबंधकार हजारी प्रसाद द्विवेदी ने नाखूनों के माध्यम से मनुष्य की सभ्यता और संस्कृति की विकास यात्रा को उजागर किया है। नाखूनों को बार-बार काटने के बावजूद उनके पुनः बढ़ने की प्रवृत्ति को लेखक ने मनुष्य की पाशविकता और बर्बरता के प्रतीक के रूप में देखा है। यह पंक्ति लाक्षणिक दृष्टि से लिखी गई है, जिसमें लेखक अपनी निराशा व्यक्त करते हैं कि सभ्यता के विकास के बावजूद मनुष्य की प्राचीन बर्बरता समाप्त नहीं हुई है। हिरोशिमा जैसी घटनाएँ मनुष्य की पाशविक प्रवृत्ति का उदाहरण हैं। लेखक इस बात से निराश होते हैं कि मनुष्य की यह बर्बरता अभी भी जीवित है और बार-बार उभरती रहती है, जैसे नाखून बार-बार बढ़ते रहते हैं।
प्रश्न 17: ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ का सारांश प्रस्तुत करें।
उत्तर: ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ एक गद्य पाठ है जिसमें लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी ने नाखूनों के बढ़ने की प्राकृतिक प्रक्रिया के माध्यम से मनुष्य की बर्बरता और पाशविक प्रवृत्तियों का विश्लेषण किया है। लेखक की बेटी के सवाल “नाखून क्यों बढ़ते हैं?” के उत्तर में लेखक ने मनुष्य की प्राचीन आदिम प्रवृत्तियों पर विचार किया है। उन्होंने बताया कि जैसे नाखून बार-बार काटने पर भी बढ़ते रहते हैं, वैसे ही मनुष्य की विनाशकारी प्रवृत्तियाँ भी बार-बार उभरती रहती हैं। लेखक ने यह भी दर्शाया कि सभ्यता के विकास के बावजूद मनुष्य की पाशविकता समाप्त नहीं हुई है और वह अभी भी हिंसा और विनाश की ओर प्रवृत्त होता है। लेखक ने अपने चिंतन के माध्यम से यह संदेश देने का प्रयास किया है कि मनुष्य को अपनी विनाशकारी प्रवृत्तियों को नियंत्रित कर सृजनात्मकता की ओर बढ़ना चाहिए।
Bihar Board Class 10 Hindi Chapter 4 भाषा की बात
प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों के वचन बदलें l
उत्तर-
- अल्पज्ञ – अल्पज्ञों
- प्रतिद्वंद्वियों – प्रतिद्वंद्वी
- हड्डि – हड्डियाँ
- मुनि – मुनियों
- अवशेष – अवशेष
- वृतियों – वृत्ति
- उत्तराधिकार- उत्तराधिकारियों
- बंदरिया – बंदर
प्रश्न 2. वाक्य-प्रयोग द्वारा निम्नलिखित शब्दों के लिंग-निर्णय करें l
उत्तर-
- बंदूक – बंदूक छूट गया।
- घाट – घाट साफ है।
- सतह – सतह चिकना है।
- अनुसधित्सा- अनुसंधिसा की इच्छा है।
- भंडार – भंडार खाली है।
- खोज – खोज पुराना है।
- अंग – अंग कट गया।
- वस्तु – वस्तु अच्छा है।
प्रश्न 3. निम्नलिखित वाक्यों में क्रिया की काल रचना स्पष्ट करें।
(क) उन दिनों उसे जूझना पड़ता था। – भूतकाल
(ख) मनुष्य और आगे बढ़ा – भूतकाल
(ग) यह सबको मालूम है। – वर्तमान कार्ल
(घ) वह तो बढ़ती ही जा रही है। – वर्तमान काल
(ङ) मनुष्य उन्हें बढ़ने नहीं देगा। – भविष्य काल
प्रश्न 4. ‘अस्त्र-शस्त्रों का बढ़ने देना मनुष्य की अपनी इच्छा की निशानी है और उनकी बाढ़ को रोकना मनुष्यत्व का तकाजा है। इस वाक्य में आए विभक्ति चिन्हों के प्रकार बताएँ।
उत्तर-
- शस्त्रों का – षष्ठी विभक्ति
- मनुष्य की – षष्ठी विभक्ति
- इच्छा की – षष्ठी विभक्ति
- उनकी – षष्ठी विभक्ति
- बाढ़ को – द्वितीया विभक्ति
- मनुष्यत्व का- षष्ठी विभक्ति।
प्रश्न 5. स्वतंत्रता, स्वराज्य जैसे शब्दों की तरह ‘स्व’ लगाकर पाँच शब्द बनाइए।
उत्तर- स्वधर्म, स्वदेश, स्वभाव, स्वप्रेरणा, स्वइच्छा।
प्रश्न 6. निम्नलिखित के विलोम शब्द लिखें l
उत्तर-
- पशुता – मनुष्यतां
- घृणा – प्रेम
- अभ्यास – अनभ्यास
- मारणास्त्र – तारणस्त्र
- ग्रहण – उग्रास
- मूढ – ज्ञानी
- अनुवर्तिता – परवर्तिता
- सत्याचरण – असत्याचरण