Bihar Board class 10 Hindi chapter 7 solutions are available here. This is our free expert guide that provides you with complete question answers of chapter 7 – “परंपरा का मूल्यांकन”.
बिहार बोर्ड कक्षा 10 हिंदी पाठ्यपुस्तक का सातवाँ अध्याय ‘परंपरा का मूल्यांकन’ साहित्य और समाज के बीच के गहरे संबंध पर प्रकाश डालता है। यह अध्याय साहित्यिक परंपरा के महत्व, उसके मूल्यांकन की आवश्यकता, और समाज पर उसके प्रभाव को समझाता है। लेखक यहाँ साहित्य की स्थायी प्रकृति, उसकी सामाजिक भूमिका, और भारतीय संदर्भ में उसके विशेष महत्व पर जोर देते हैं। यहाँ हमने आपको परंपरा का मूल्यांकन Question Answer भी उपलब्ध करवाएं हैं।
Bihar Board Class 10 Hindi Chapter 7 Solutions
Contents
Subject | Hindi |
Class | 10th |
Chapter | 7. परंपरा का मूल्यांकन |
Author | रामविलास शर्मा |
Board | Bihar Board |
Bihar Board Class 10 Hindi Chapter 7 Question Answer
प्रश्न 1. परंपरा का ज्ञान किनके लिए सबसे ज्यादा आवश्यक है और क्यों ?
उत्तर- साहित्य में नवीनता लाने वाले रचनाकारों के लिए परंपरा का ज्ञान सबसे आवश्यक है। यह ज्ञान उन्हें वर्तमान साहित्य की सीमाओं और संभावनाओं को समझने में मदद करता है। परंपरा की समझ से वे पुराने विचारों को नए तरीके से प्रस्तुत कर सकते हैं और साहित्य को नई दिशा दे सकते हैं। यह ज्ञान उन्हें अतीत से सीखने और भविष्य के लिए नवीन साहित्य रचने में सक्षम बनाता है।
प्रश्न 2. परंपरा के मूल्यांकन में साहित्य के वर्गीय आधार का विवेक लेखक क्यों महत्त्वपूर्ण मानता है ?
उत्तर- लेखक साहित्य के वर्गीय आधार को महत्वपूर्ण मानता है क्योंकि यह समाज के विभिन्न वर्गों के दृष्टिकोण को समझने में मदद करता है। यह साहित्य के सामाजिक प्रभाव और उसकी प्रासंगिकता को समझने का आधार प्रदान करता है। वर्गीय आधार पर साहित्य का मूल्यांकन करने से यह समझ आता है कि कौन सा साहित्य किस वर्ग के हितों को प्रतिबिंबित करता है और वर्तमान समय में उसकी उपयोगिता क्या है।
प्रश्न 3. साहित्य का कौन-सा पक्ष अपेक्षाकृत स्थायी होना है ? इस संबंध में लेखक की राय स्पष्ट करें।
उत्तर- लेखक के अनुसार, साहित्य का वह पक्ष अपेक्षाकृत स्थायी होता है जो मानवीय भावनाओं और अनुभवों से जुड़ा होता है। यह पक्ष मनुष्य की मूलभूत संवेदनाओं, जैसे प्रेम, दुख, आनंद, को व्यक्त करता है। ये भावनाएँ समय के साथ कम बदलती हैं और इसलिए साहित्य का यह पहलू लंबे समय तक प्रासंगिक रहता है। लेखक मानता है कि साहित्य केवल विचारधारा नहीं है, बल्कि मानवीय अनुभूतियों का प्रतिबिंब भी है।
प्रश्न 4. “साहित्य में विकास प्रक्रिया उसी तरह सम्पन्न नहीं होती जैसे समाज में ‘लेखक का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- लेखक का आशय है कि साहित्य का विकास समाज के विकास से भिन्न होता है। समाज में विकास एक क्रमिक प्रक्रिया होती है, जहाँ नई व्यवस्थाएँ पुरानी व्यवस्थाओं को प्रतिस्थापित करती हैं। परंतु साहित्य में, पुराने और नए साहित्य का महत्व समान रूप से बना रहता है। उदाहरण के लिए, आधुनिक कवि का साहित्य पुराने कवि के साहित्य से बेहतर नहीं माना जा सकता। साहित्य में नवीनता आती है, लेकिन पुराना साहित्य अपना मूल्य नहीं खोता।
प्रश्न 5. लेखक मानव चेतना को आर्थिक संबंधों से प्रभावित मानते हुए भी उसकी स्वाधीनता किन दृष्टांतों द्वारा प्रमाणित करता है ?
उत्तर- लेखक कई ऐतिहासिक उदाहरणों द्वारा मानव चेतना की स्वाधीनता को प्रमाणित करता है। वह बताता है कि समान आर्थिक परिस्थितियों में भी अलग-अलग स्थानों पर साहित्य और कला का विकास अलग-अलग तरह से हुआ। जैसे, एथेंस और अमेरिका दोनों में गुलामी थी, लेकिन एथेंस ने संस्कृति को समृद्ध किया। इसी तरह, पूंजीवादी विकास यूरोप के कई देशों में हुआ, लेकिन महान कलाकार जैसे लियोनार्दो दा विंची केवल इटली में पैदा हुए। ये उदाहरण दर्शाते हैं कि आर्थिक परिस्थितियाँ मानव चेतना को प्रभावित करती हैं, लेकिन पूरी तरह निर्धारित नहीं करतीं।
प्रश्न 6. साहित्य के निर्माण प्रतिभा की भूमिका स्वीकार करते हुए लेखक किन खतरों से अगाह करता है?
उत्तर- लेखक साहित्य निर्माण में प्रतिभा की महत्वपूर्ण भूमिका स्वीकार करते हुए कुछ सावधानियों की ओर ध्यान दिलाता है। वह कहता है कि प्रतिभाशाली लेखकों की रचनाओं को भी दोषमुक्त नहीं माना जा सकता। उनकी कृतियों में भी कमियाँ हो सकती हैं। लेखक चेतावनी देता है कि महान रचनाकारों को अंतिम मानकर साहित्य के विकास को सीमित नहीं करना चाहिए। उनके बाद भी नए विचारों और रचनाओं के लिए स्थान होना चाहिए।
प्रश्न 7. राजनीतिक मूल्यों से साहित्य के मूल्य अधिक स्थायी कैसे होते हैं?
उत्तर- साहित्य के मूल्य राजनीतिक मूल्यों से अधिक स्थायी होते हैं क्योंकि वे मानवीय भावनाओं और अनुभवों को व्यक्त करते हैं। राजनीतिक व्यवस्थाएँ बदलती हैं, लेकिन साहित्य की प्रासंगिकता बनी रहती है। उदाहरण के लिए, रोमन साम्राज्य का पतन हो गया, लेकिन वर्जिल की कविताएँ आज भी प्रासंगिक हैं। इसी तरह, ब्रिटिश साम्राज्य समाप्त हो गया, लेकिन शेक्सपियर और मिल्टन की रचनाएँ आज भी पढ़ी और सराही जाती हैं। साहित्य समय के साथ और अधिक लोगों तक पहुँचता है, जबकि राजनीतिक मूल्य अक्सर काल के साथ खो जाते हैं।
प्रश्न 8. जातीय अस्मिता का लेखक किस प्रसंग में उल्लेख करता है और उसका क्या महत्त्व बताता है ?
उत्तर- लेखक जातीय अस्मिता का उल्लेख साहित्यिक विकास के संदर्भ में करता है। वह बताता है कि जब समाज एक व्यवस्था से दूसरी में बदलता है, तब भी जातीय अस्मिता बनी रहती है। यह अस्मिता इतिहास और सांस्कृतिक परंपरा पर आधारित होती है। लेखक इसे साहित्यिक परंपरा के ज्ञान का वाहक मानता है। जातीय अस्मिता का महत्व इस बात में है कि यह एक समुदाय की विशिष्ट पहचान और उसकी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखती है।
प्रश्न 9. जातीय और राष्ट्रीय अस्मिताओं के स्वरूप का अंतर करते हुए लेखक दोनों में क्या समानता बताता है ?
उत्तर- लेखक जातीय और राष्ट्रीय अस्मिताओं में यह समानता बताता है कि दोनों ही संकट के समय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जब राष्ट्र खतरे में होता है, तब राष्ट्रीय अस्मिता जागृत होती है और साहित्य परंपरा का ज्ञान राष्ट्रीय भावना को मजबूत करता है। उदाहरण के लिए, जब हिटलर ने सोवियत संघ पर आक्रमण किया, तब रूसी लोगों ने अपनी साहित्यिक परंपरा का स्मरण किया, जो उनकी राष्ट्रीय एकता का स्रोत बना। लेखक यह भी कहता है कि नई सामाजिक व्यवस्थाओं में भी जातीय अस्मिता बनी रहती है और मजबूत होती है।
प्रश्न 10. बहुजातीय राष्ट्र की हैसियत से कोई भी देश भारत का मुकाबला क्यों नहीं कर सकता?
उत्तर- भारत की बहुजातीय विशेषता अन्य देशों से अलग है क्योंकि यहाँ की राष्ट्रीयता किसी एक जाति के प्रभुत्व पर नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक एकता पर आधारित है। भारत में विभिन्न जातियाँ और संस्कृतियाँ सदियों से साथ-साथ रही हैं, जिससे एक अनूठी सांस्कृतिक विरासत का निर्माण हुआ है। यहाँ साहित्य परंपरा का मूल्यांकन विशेष महत्व रखता है। कवियों और साहित्यकारों ने देश के सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो अन्य देशों में इस स्तर पर नहीं देखी जाती।
प्रश्न 11. भारत की बहुजातीयता मुख्यत: संस्कृति और इतिहास की देन है। कैसे?
उत्तर- भारत की बहुजातीयता संस्कृति और इतिहास पर आधारित है। महाकाव्य जैसे रामायण और महाभारत ने विभिन्न जातियों को एक साझा सांस्कृतिक धरोहर प्रदान की। भारतीय इतिहास में कभी भी एक जाति का दूसरी पर पूर्ण प्रभुत्व नहीं रहा, बल्कि विभिन्न संस्कृतियों का सह-अस्तित्व रहा। कवियों और लेखकों ने विभिन्न जातियों की विशिष्टताओं को समेटते हुए एक समृद्ध साहित्यिक परंपरा का निर्माण किया। यह सांस्कृतिक विविधता और ऐतिहासिक एकता भारत की बहुजातीय पहचान का आधार है।
प्रश्न 12. किस तरह समाजवाद हमारी राष्ट्रीय आवश्यकता है ? इस प्रसंग में लेखक के विचारों पर प्रकाश डालें।
उत्तर- लेखक मानता है कि समाजवाद भारत की राष्ट्रीय आवश्यकता है। उनके अनुसार, समाजवादी व्यवस्था में देश के संसाधनों का बेहतर उपयोग होता है, जबकि पूंजीवादी व्यवस्था में शक्ति का अपव्यय होता है। लेखक उदाहरण देता है कि समाजवादी व्यवस्था अपनाने के बाद कई छोटे-बड़े देश अधिक शक्तिशाली हुए हैं। वे मानते हैं कि समाजवादी देशों में प्रगति की गति पूंजीवादी देशों से तेज है। लेखक का मानना है कि भारत की राष्ट्रीय क्षमता का पूर्ण विकास समाजवादी व्यवस्था में ही संभव है।
प्रश्न 13. निबंध का समापन करते हुए लेखक कैसा स्वप्न देखता है ? उसके साकार करने में परंपरा की क्या भूमिका हो सकती है ? विचार करें।
उत्तर- लेखक भारत के लिए एक साक्षर और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध भविष्य का स्वप्न देखता है। वे चाहते हैं कि अधिक से अधिक लोग साक्षर हों और साहित्य पढ़ने का अवसर पाएं। इससे महान ग्रंथों के नए पाठक बनेंगे और सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ेगा। लेखक की कल्पना है कि भाषाई सीमाएं टूटेंगी और विभिन्न भाषाओं का साहित्य पूरे देश की संपत्ति बनेगा। इस स्वप्न को साकार करने में परंपरा महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। परंपरागत साहित्य लोगों को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ेगा और साथ ही नए विचारों के लिए प्रेरित करेगा।
प्रश्न 14. साहित्य सापेक्ष रूप में स्वाधीन होता है। इस मत को प्रमाणित करने के लिए लेखक ने कौन-से तर्क और प्रमाण उपस्थित किए हैं?
उत्तर- लेखक साहित्य की सापेक्ष स्वाधीनता को सिद्ध करने के लिए कई तर्क देता है। वे कहते हैं कि हालांकि आर्थिक परिस्थितियां मनुष्य की चेतना को प्रभावित करती हैं, लेकिन पूरी तरह निर्धारित नहीं करतीं। वे इसे प्रमाणित करने के लिए ऐतिहासिक उदाहरण देते हैं, जैसे एथेंस और अमेरिका में गुलामी थी, लेकिन एथेंस ने यूरोप को प्रभावित किया। इसी तरह, पूंजीवादी विकास पूरे यूरोप में हुआ, लेकिन महान कलाकार जैसे लियोनार्डो दा विंची केवल इटली में पैदा हुए। लेखक का मानना है कि प्रतिभाशाली व्यक्तियों की भूमिका महत्वपूर्ण है, लेकिन साहित्य उन तक ही सीमित नहीं है। साहित्य में हमेशा नए विचारों और रचनाओं के लिए स्थान रहता है, जो इसकी सापेक्ष स्वाधीनता को दर्शाता है।
व्याख्या करें
विभाजित बंगाल से विभाजित पंजाब की तुलना कीजिए, तो ज्ञात हो जाएगा कि साहित्य की परंपरा का ज्ञान कहाँ ज्यादा है, कहाँ कम है और इस न्यूनाधिक ज्ञान के सामाजिक परिणाम क्या होते हैं।
व्याख्या- लेखक यहाँ साहित्यिक परंपरा के महत्व और उसके सामाजिक प्रभाव पर प्रकाश डालते हैं। वे विभाजित बंगाल और पंजाब का उदाहरण देकर इस बात को समझाते हैं।
बंगाल के संदर्भ में, लेखक का मानना है कि पूर्वी और पश्चिमी बंगाल के लोगों में अपनी साहित्यिक परंपरा का गहरा ज्ञान है। इस कारण, राजनीतिक विभाजन के बावजूद, बंगाली लोग सांस्कृतिक रूप से एकजुट हैं। वे अपनी साझा साहित्यिक विरासत के माध्यम से अपनी सामूहिक पहचान को बनाए रखते हैं।
दूसरी ओर, पंजाब के विभाजन में, लेखक संकेत करते हैं कि वहाँ साहित्यिक परंपरा का ज्ञान कम है। इसका परिणाम यह हुआ कि विभाजन के बाद दोनों ओर के पंजाबी लोगों के बीच सांस्कृतिक संबंध कमजोर हो गए।
लेखक का तर्क है कि जहाँ साहित्यिक परंपरा का ज्ञान अधिक होता है, वहाँ लोगों की सामूहिक पहचान मजबूत रहती है। यह ज्ञान उन्हें अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़े रखता है और राजनीतिक सीमाओं के बावजूद एकता की भावना को बनाए रखता है।
अंत में, लेखक यह संदेश देते हैं कि किसी भी समाज के लिए अपनी साहित्यिक और सांस्कृतिक परंपरा को जानना और उसे संरक्षित रखना बहुत महत्वपूर्ण है। यह न केवल उनकी पहचान को बनाए रखता है, बल्कि समाज को एकजुट और मजबूत भी बनाता है।
Bihar Board Class 10 Hindi Chapter 7 भाषा की बात
प्रश्न 1. पाठ से दस अविकारी शब्द चुनिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर-
इसका = इसका अर्थ बड़ा है।
यह = यह सुन्दर है।
ये = ये मनुष्य अच्छे हैं।
ऐसी = ऐसी कला श्रेष्ठ है।
इसीलिए = इसीलिए मोहन खेलता है।
कुछ = कुछ पुस्तक लाओ।
आजकल = आजकल व्यक्ति की पूजा होती है।
काफी = काफी निन्दा की जाती है।
किन्तु = किन्तु मदन व्यक्तिपूज्य का प्रचार करते हैं।
इसमें = इसमें अच्छी कविता का संग्रह है।
प्रश्न 2. निम्नांकित पदों में विशेष्य का परिवर्तन कीजिए.
उत्तर- बुनियादी परिवर्तन = बुनियादी सुधार
मूर्त ज्ञान = मूर्तरूप
अभ्युदयशीलवर्ग = अभ्युदयशील समाज
समाजवादी व्यवस्था = समाजवादी लोग
श्रमिक जनता = श्रमिक शिक्षक
प्रगतिशील आलोचना = प्रगतिशील लेखक
अद्वितीय भूमिका = अद्वितीय उदाहरण
राजनीतिक मूल्य = राजनीतिक ज्ञाना
प्रश्न 3. पाठ से संज्ञा के भेदों के चार-चार उदाहरण चुनें।
उत्तर- जातिवाचक संज्ञा = मनुष्य, साहित्य, इन्द्रिय, भाषा।
व्यक्तिवाचक संज्ञा = शेक्सपियर, अमरीका, रूस, इंग्लैंड
समूहवाचक संज्ञा = समाज, वर्ग, कारखाना, जनसमुदाय।
भाववाचक संज्ञा = भावनाएँ, स्वाधीनता, कलात्मक, सर्वोच्चय।
द्रव्यवाचक संज्ञा = लकड़ी, चावल, पानी, दूध।