Bihar Board Class 9 Hindi Padya Chapter 8 Solutions – मेरा ईश्वर

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बिहार बोर्ड की कक्षा 9 की हिंदी पाठ्यपुस्तक में शामिल “मेरा ईश्वर” एक गहन और विचारोत्तेजक कविता है। इस कविता में कवि ने परंपरागत धार्मिक मान्यताओं और व्यक्तिगत विचारों के बीच के संघर्ष को बड़ी सूक्ष्मता से प्रस्तुत किया है। कवि यहाँ ईश्वर और देवताओं की नाराजगी के माध्यम से समाज में प्रचलित धार्मिक रूढ़ियों पर प्रश्न उठाता है।

Bihar Board Class 9 Hindi Padya Chapter 8

Bihar Board Class 9 Hindi Padya Chapter 8 Solutions

SubjectHindi
Class9th
Chapter8. मेरा ईश्वर
Authorलीलाधर जगूड़ी
BoardBihar Board

Bihar Board Class 9 Hindi Padya Chapter 8 Question Answer

प्रश्न 1. मेरा ईश्वर मुझसे नाराज है। कवि ऐसा क्यों कहता है?

उत्तर- लीलाधर जगूड़ी की कविता ‘मेरा ईश्वर’ में कवि ने ईश्वर को एक प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया है, जो समाज के शक्तिशाली और शोषक वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। कवि का कहना है कि ईश्वर उससे नाराज है क्योंकि उसने अपने जीवन की बागडोर स्वयं अपने हाथों में लेने का निर्णय लिया है। वह अब भाग्य या ईश्वर की दया पर निर्भर नहीं रहना चाहता, बल्कि अपने कर्म और श्रम के माध्यम से अपना भाग्य बदलने का संकल्प लेता है। इस प्रकार, कवि समाज के शोषक वर्ग की मनमानी को चुनौती देता है और आम आदमी की वेदना एवं संघर्ष को व्यक्त करता है। कवि ईश्वर या शक्तिशाली वर्ग की नाराजगी को अपने स्वाभिमान और स्वतंत्रता की कीमत के रूप में देखता है, जो उसके लिए अधिक महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 2. कवि ने क्यों दुखी न रहने की ठान ली है?

उत्तर- कवि ने दुखी न रहने की ठान ली है क्योंकि वह अब अपने जीवन में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाना चाहता है। वह ईश्वर या किसी अन्य बाहरी शक्ति पर निर्भर रहने के बजाय अपने भीतर के पौरुष और आत्मबल को जगाने का निर्णय लेता है। कवि का मानना है कि अपने कर्म और श्रम पर विश्वास करके ही वह समाज में व्याप्त शोषण और अन्याय से मुक्ति पा सकता है। वह न केवल स्वयं के लिए, बल्कि समाज के आम आदमी को भी जागृत करना चाहता है, ताकि वे अपने अधिकारों के लिए खड़े हो सकें। कवि का दृढ़ विश्वास है कि संकल्प और कर्मठता से ही दुख दूर किया जा सकता है और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है। इस प्रकार, कवि स्वयं और समाज के लिए एक बेहतर भविष्य की कल्पना करता है, जो केवल निरंतर प्रयास और संघर्ष से ही साकार हो सकती है।

प्रश्न 3. कवि ईश्वर के अस्तित्व पर क्यों प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है?

उत्तर- कवि ईश्वर के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है क्योंकि वह मनुष्य की स्वयं की क्षमताओं और कर्म पर अधिक विश्वास करता है। उसका मानना है कि व्यक्ति स्वयं अपने भाग्य का निर्माता है, न कि कोई बाहरी शक्ति। कवि समाज में प्रचलित अंधविश्वास और भाग्यवाद का विरोध करते हुए लोगों को प्रेरित करना चाहता है कि वे अपनी समस्याओं के लिए ईश्वर को दोष देने के बजाय स्वयं प्रयास करें। उसका दृढ़ विश्वास है कि केवल श्रम और दृढ़ संकल्प से ही जीवन में सफलता प्राप्त की जा सकती है। साथ ही, कवि समाज के शोषक वर्ग (जो यहाँ ईश्वर का प्रतीक है) की सत्ता को चुनौती देता है और लोगों को जागृत करना चाहता है ताकि वे अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर सकें। इस प्रकार, कवि ईश्वर के अस्तित्व पर प्रश्न उठाकर वास्तव में मनुष्य की अंतर्निहित शक्तियों और स्वाधीनता पर बल देता है, जो सामाजिक परिवर्तन और व्यक्तिगत विकास के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 4. कवि दुख को ही ईश्वर की नाराजगी का कारण वयों बताता है?

उत्तर- ‘मेरा ईश्वर’ कविता में कवि दुख को ईश्वर की नाराजगी का कारण बताते हुए दो महत्वपूर्ण विचारों को प्रस्तुत करता है। पहला, वह परंपरागत भाग्यवादी सोच को चुनौती देता है जो दुख को ईश्वरीय नाराजगी का परिणाम मानती है। दूसरा, वह ‘ईश्वर’ शब्द का प्रयोग समाज के शक्तिशाली वर्ग के प्रतीक के रूप में करता है, जो अपने स्वार्थ के लिए आम लोगों को दुख देता है।

कवि इस विचार को खारिज करता है कि दुख किसी दैवीय शक्ति की देन है। इसके बजाय, वह समाज की विषम व्यवस्था को दुख का मूल कारण मानता है। वह लोगों को जागृत करना चाहता है ताकि वे अपने दुख के लिए भाग्य या ईश्वर को दोष देने के बजाय, उसके वास्तविक कारणों को समझें और उनसे लड़ें।
इस प्रकार, कवि एक ओर पारंपरिक धार्मिक मान्यताओं पर प्रश्न उठाता है, तो दूसरी ओर समाज की विषमताओं और शोषण के खिलाफ आवाज उठाने का आह्वान करता है। वह चाहता है कि लोग अपने भाग्य के निर्माता स्वयं बनें और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष करें।

प्रश्न 5. आशय स्पष्ट करें:-

(क) मेरे देवता मुझसे नाराज हैं
क्योंकि जो जरूरी नहीं है
मैंने त्यागने की कसम खा ली है।

उत्तर- इन पंक्तियों में कवि एक क्रांतिकारी विचार प्रस्तुत करता है। वह परंपरागत धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं को चुनौती देता है, जो व्यक्ति को निष्क्रिय और पराधीन बनाती हैं।

‘देवता’ यहाँ न केवल धार्मिक संदर्भ में है, बल्कि उन सभी शक्तियों का प्रतीक है जो व्यक्ति को स्वतंत्र और स्वावलंबी होने से रोकती हैं। कवि का कहना है कि उसने अपने जीवन से अनावश्यक बातों को त्यागने का निर्णय लिया है, जिसमें अंधविश्वास, निष्क्रियता और पराधीनता शामिल हैं।
वह भाग्यवाद को त्यागकर कर्मवाद को अपनाता है। उसका मानना है कि व्यक्ति को अपने भाग्य का निर्माता स्वयं बनना चाहिए, न कि किसी बाहरी शक्ति पर निर्भर रहना चाहिए। यह त्याग उसे समाज के शोषक वर्ग से भी मुक्त करता है, जो लोगों को अपने अधीन रखना चाहता है।
इस प्रकार, ये पंक्तियाँ व्यक्तिगत स्वतंत्रता, आत्मनिर्भरता और सामाजिक परिवर्तन का आह्वान करती हैं। कवि लोगों को जागृत करना चाहता है ताकि वे अपने अधिकारों के लिए खड़े हो सकें और एक न्यायपूर्ण समाज का निर्माण कर सकें।

(ख) पर सुख भी तो कोई नहीं है मेरे पास
सिवा इसके की दुखी न रहने की ठान ली है।

उत्तर- लीलाधर जगूड़ी की ‘मेरा ईश्वर’ कविता की ये पंक्तियाँ मानवीय संकल्प और आत्मशक्ति का प्रतीक हैं। कवि यहाँ एक महत्वपूर्ण जीवन दर्शन प्रस्तुत करता है। वह स्वीकार करता है कि उसके पास कोई भौतिक सुख नहीं है, लेकिन उसने दुखी न रहने का दृढ़ निश्चय कर लिया है।

यह कथन व्यक्ति की आंतरिक शक्ति और मनोबल को दर्शाता है। कवि का मानना है कि सुख-दुख की अनुभूति हमारी मानसिक स्थिति पर निर्भर करती है, न कि बाहरी परिस्थितियों पर। वह भाग्य या परिस्थितियों के आगे झुकने के बजाय, अपने दृष्टिकोण को बदलने का चुनाव करता है।
यह विचार आधुनिक मनोविज्ञान के सिद्धांतों से भी मेल खाता है, जो कहता है कि हमारी मानसिक स्थिति हमारे जीवन की गुणवत्ता को निर्धारित करती है। कवि यहाँ युवाओं को एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए आत्मविश्वास और सकारात्मक दृष्टिकोण आवश्यक है।
इस प्रकार, ये पंक्तियाँ आत्मनिर्भरता, दृढ़ संकल्प और सकारात्मक सोच के महत्व को रेखांकित करती हैं।

(ग) मेरी परेशानियाँ और मेरे दुख ही ईश्वर का आधार क्यों हों?

उत्तर- इस पंक्ति में कवि लीलाधर जगूड़ी परंपरागत धार्मिक मान्यताओं और सामाजिक व्यवस्था पर गहरा प्रश्न उठाते हैं। वे इस विचार को चुनौती देते हैं कि मनुष्य के दुख और परेशानियाँ ईश्वर की इच्छा या उनकी नाराजगी का परिणाम हैं।

कवि का मानना है कि यह सोच मनुष्य को निष्क्रिय और पराधीन बनाती है। वे लोगों को जागृत करना चाहते हैं कि वे अपनी समस्याओं के लिए ईश्वर या भाग्य को दोष देने के बजाय, उनके वास्तविक कारणों को समझें और उनसे लड़ें।
इस पंक्ति में ‘ईश्वर’ शब्द का प्रयोग केवल धार्मिक संदर्भ में नहीं, बल्कि समाज के शक्तिशाली वर्ग के प्रतीक के रूप में भी किया गया है। कवि सामाजिक असमानता और शोषण पर भी प्रकाश डालते हैं, जो अक्सर लोगों के दुख का कारण बनते हैं।
कवि लोगों को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनने का आह्वान करते हैं। वे चाहते हैं कि लोग अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं खोजें और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष करें।
इस प्रकार, यह पंक्ति न केवल धार्मिक अंधविश्वासों पर प्रश्न उठाती है, बल्कि सामाजिक-आर्थिक असमानताओं के खिलाफ एक आवाज भी बनती है। यह युवाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने और एक न्यायपूर्ण समाज के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करती है।

प्रश्न 6. कविता का केन्द्रीय भाव स्पष्ट करें।

उत्तर- ‘मेरा ईश्वर’ कविता का केंद्रीय भाव आधुनिक समाज में व्यक्ति की स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता पर बल देना है। कवि लीलाधर जगूड़ी ने इस कविता के माध्यम से समाज के प्रभुत्वशाली वर्ग की आलोचना की है, जो आम आदमी के विकास में बाधक बनता है।

कवि का मानना है कि व्यक्ति को अपने भाग्य का निर्माता स्वयं बनना चाहिए, न कि किसी बाहरी शक्ति या ईश्वर पर निर्भर रहना चाहिए। वे लोगों को प्रेरित करते हैं कि वे अपने आत्मबल पर विश्वास करें और जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए दृढ़ संकल्प लें।
कविता में यह संदेश दिया गया है कि व्यक्ति को अपने दुखों और परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए स्वयं प्रयास करना चाहिए। कवि का मानना है कि जब व्यक्ति अपनी क्षमताओं को पहचानता है और उनका उपयोग करता है, तो प्रकृति भी उसकी सहायता करती है।
अंत में, कविता यह संदेश देती है कि व्यक्ति को अपने कर्म, श्रम और आत्मविश्वास पर भरोसा करना चाहिए। यही मार्ग है जिससे वह अपने जीवन को बेहतर बना सकता है और समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है।

प्रश्न 7. कविता में सुख, दुख और ईश्वर के बीच क्या संबंध बताया गया है?

उत्तर- ‘मेरा ईश्वर’ कविता में सुख, दुख और ईश्वर के बीच एक जटिल संबंध दर्शाया गया है। कवि लीलाधर जगूड़ी ने इस संबंध को समाज की वास्तविकता के संदर्भ में प्रस्तुत किया है।

कविता में ईश्वर को प्रभुत्वशाली वर्ग का प्रतीक माना गया है। कवि का मानना है कि आम आदमी अपने दुखों और परेशानियों के लिए इस ‘ईश्वर’ या प्रभुत्वशाली वर्ग पर निर्भर रहता है, जो उसके विकास में बाधक बनता है।
कवि यह संदेश देते हैं कि व्यक्ति को अपने सुख-दुख का कारण स्वयं को मानना चाहिए, न कि किसी बाहरी शक्ति को। वे कहते हैं कि दुख और परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए व्यक्ति को स्वयं प्रयास करना चाहिए।
कविता में यह भी बताया गया है कि सुख की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को अपनी बुरी आदतों को त्यागना होगा और कर्मठ बनना होगा। कवि का मानना है कि जब व्यक्ति भाग्यवाद छोड़कर कर्मवादी बनेगा, तभी वह वास्तविक सुख प्राप्त कर सकेगा।
अंत में, कविता यह संदेश देती है कि व्यक्ति को अपने आत्मबल पर विश्वास करना चाहिए और अपने जीवन को सुधारने के लिए दृढ़ संकल्प लेना चाहिए। यही मार्ग है जिससे वह सुख प्राप्त कर सकता है और दुखों से मुक्ति पा सकता है।

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