Bihar Board Class 9 Hindi Padya Chapter 1 Solutions – रैदास के पद

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रैदास के पद भारत के प्रसिद्ध संत कवि रैदास द्वारा रचित भक्ति काव्य का एक अद्भुत उदाहरण है। बिहार बोर्ड की कक्षा 9 की हिंदी पाठ्यपुस्तक में शामिल यह अध्याय छात्रों को भक्ति काल के महान कवि रैदास के विचारों और काव्य से परिचित कराता है। इस अध्याय में रैदास के दो पद शामिल हैं जो भगवान के प्रति भक्त के प्रेम और समर्पण को दर्शाते हैं। पहला पद भक्त और भगवान के बीच के अटूट रिश्ते को सुंदर उपमाओं के माध्यम से व्यक्त करता है, जबकि दूसरा पद भगवान की महिमा और उनकी करुणा का वर्णन करता है।

Bihar Board Class 9 Hindi Padya Chapter 1

Bihar Board Class 9 Hindi Padya Chapter 1 Solutions

SubjectHindi
Class9th
Chapter1. रैदास के पद
Authorरैदास
BoardBihar Board

Bihar Board Class 9 Hindi Padya Chapter 1 Question Answer

प्रश्न 1: रैदास ईश्वर की कैसी भक्ति करते हैं?

उत्तर: रैदास जी निर्गुण भक्ति करते हैं और बाहरी आडंबर को महत्व नहीं देते। वे मानते हैं कि ईश्वर की सच्ची पूजा मन की निर्मलता और सादगी से होती है। उनके अनुसार, फल-फूल और जल चढ़ाने की बजाय ईश्वर की भक्ति अंतर्मन से करनी चाहिए।

प्रश्न 2: कवि ने ‘अब कैसे छूटै राम राम रट लागी’ क्यों कहा है?

उत्तर: रैदास जी कहते हैं कि राम नाम की रट उनके जीवन का हिस्सा बन गई है। वे बताते हैं कि राम की भक्ति इतनी गहरी हो गई है कि अब इससे मुक्ति संभव नहीं है। उनके अनुसार, उनका सारा जीवन राममय हो चुका है।

प्रश्न 3: कवि ने भगवान और भक्त की तुलना किन-किन चीजों से की?

उत्तर: रैदास जी भगवान को चंदन, बादल, दीपक, मोती और स्वामी के रूप में देखते हैं। वहीं, भक्त को पानी, मोर, बाती, धागा और दास के रूप में समझाते हैं। इस प्रकार, उन्होंने भगवान और भक्त की महिमा का तुलनात्मक वर्णन किया है।

प्रश्न 4: कवि ने अपने ईश्वर को किन-किन नामों से पुकारा है?

उत्तर: रैदास जी अपने ईश्वर को चंदन, बादल, दीपक, मोती और स्वामी के नाम से पुकारते हैं। इन नामों के माध्यम से वे ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण का भाव प्रकट करते हैं, जो निर्मल और निश्छल है।

प्रश्न 5: कविता का केन्द्रीय भाव क्या है?

उत्तर: महाकवि रैदास जी की कविताओं में निर्गुण ईश्वर भक्ति की सुंदर झलक मिलती है। वे आडंबरहीन और निर्मल भक्ति में विश्वास रखते हैं, जो बाहरी दिखावे से परे है। रैदास जी का मानना है कि सच्ची भक्ति अंतर्मन की पवित्रता से ही होती है, न कि फल-फूल और जल चढ़ाने से। उन्होंने प्रतीकात्मक भाषा का प्रयोग करके ईश्वर और भक्त के बीच के पवित्र संबंधों को बखूबी दर्शाया है। उनके लिए ईश्वर किसी मंदिर या मस्जिद में नहीं, बल्कि हर हाल में उनके अंतस में ही विद्यमान है।

प्रश्न 6: “मलयागिरि बेधियो भुअंगा। विष अमृत दोऊ एकै संगा।” इस पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।

उत्तर: महाकवि रैदास जी ने इस पंक्ति में विष और अमृत के एक साथ वास करने का भाव प्रकट किया है। उन्होंने बताया है कि मलयागिरि पर्वत पर चंदन के वृक्षों के बीच विषधर सर्प भी रहते हैं, लेकिन दोनों की प्रकृति और कर्म में कोई बाधा नहीं होती। यह ईश्वर की महिमा है कि विष और अमृत एक साथ रह सकते हैं। इसी प्रकार, रैदास जी भी अपने मन में राग-द्वेष रूपी विष के बावजूद ईश्वर की भक्ति में तल्लीन रहते हैं। इस पंक्ति के माध्यम से ईश्वर की महिमा और भक्ति की महत्ता को दर्शाया गया है, जहां रैदास मानते हैं कि बिना ईश्वर भक्ति के मनुष्य की मुक्ति संभव नहीं है।

निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए:

(क) जाकी अंग-अंग बास समानी

उत्तर: इस पंक्ति में रैदास जी प्रभु की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि हे प्रभु! तुम चंदन हो और मैं पानी हूँ। तुम्हारे चंदन रूपी भक्ति के साथ मिलने से मेरा समस्त अस्तित्व पवित्र और सुगंधित हो जाता है। जैसे चंदन की महक से वातावरण सुगंधित हो उठता है, वैसे ही तुम्हारी भक्ति से मेरा जीवन भी पवित्र और सार्थक हो जाता है। इस प्रकार, ईश्वर भक्ति की महिमा अपरम्पार है और बिना भक्ति के जीवन निरर्थक हो जाता है।

(ख) जैसे चितवत चंद चकोरा

उत्तर: इस पंक्ति में रैदास जी ने भक्ति की तीव्रता को दर्शाने के लिए चकोर और चंद्रमा की तुलना की है। वे कहते हैं कि हे प्रभु! जैसे चकोर चंद्रमा को अपलक निहारता रहता है, वैसे ही मैं भी आपकी छवि को मन ही मन निरंतर निहारता रहता हूँ। यह दर्शाता है कि मेरी भक्ति चकोर की तरह एकाग्र और अडिग है।

(ग) थनहर दूध जो बछरू जुठारी

उत्तर: इस पंक्ति में रैदास जी ने ईश्वर और भक्त के संबंध की तुलना गाय और बछड़े के आत्मीय संबंध से की है। कवि कहते हैं कि जैसे बछड़ा गाय के थन से दूध पीता है और थन को जूठा कर देता है, फिर भी गाय का दूध शुद्ध और निर्मल रहता है। उसी प्रकार, भगवान और भक्त का संबंध भी पवित्र और अटूट है, जिसमें भक्त की अशुद्धता और गलतियाँ भी माफ हो जाती हैं। रैदास जी के अनुसार, भक्ति में डूबे भक्त की भूलें क्षम्य होती हैं और यह संबंध आत्मीयता और समर्पण पर आधारित होता है।

प्रश्न 8: रैदास अपने स्वामी राम की पूजा में कैसी असमर्थता जाहिर करते हैं?

उत्तर: रैदास जी का हृदय पवित्र और दोषरहित है, और वे पूरी तरह से ईश्वर भक्ति में डूबे हुए हैं। वे भगवान राम से कहते हैं कि वे उनकी पूजा में आडंबरपूर्ण वस्त्र और फल-फूल नहीं चढ़ा सकते। इसका कारण यह है कि रैदास जी सांसारिक वस्त्र और वस्तुएं जुटाने में असमर्थ हैं। उनका मानना है कि सच्ची पूजा बाहरी आडंबर से नहीं, बल्कि शुद्ध मन और सच्ची भक्ति से होती है। इसलिए वे अपनी असमर्थता व्यक्त करते हुए ईश्वर के प्रति अपनी गहरी आस्था और समर्पण का प्रदर्शन करते हैं।

प्रश्न 9: कवि अपने मन को चकोर के मन की भाँति क्यों कहते हैं?

उत्तर: रैदास जी अपने मन को चकोर के मन के समान बताते हैं क्योंकि जैसे चकोर चंद्रमा को अपलक निहारता रहता है, वैसे ही वे भी अपनी भक्ति में तल्लीन रहते हैं। रैदास जी की भक्ति में वही एकाग्रता और एकनिष्ठता है जो चकोर के चंद्रमा के प्रति होती है। चकोर के लिए चंद्रमा प्रिय होता है, उसी प्रकार रैदास जी के लिए राम प्रिय हैं। इस तुलना के माध्यम से कवि ने अपनी भक्ति की गहराई और सच्चाई को दर्शाया है।

प्रश्न 10: रैदास के राम का परिचय दीजिए।

उत्तर: रैदास जी ने राम का परिचय एक निर्गुण, आडंबर रहित और निर्मल स्वरूप के रूप में दिया है। उनके राम चंदन के समान पवित्र, आकाश में छाए बादल के समान विशाल, दीपक के समान प्रकाशमय, मोती के समान कीमती और स्वामी के समान पूजनीय हैं। रैदास जी ने इन प्रतीकों के माध्यम से राम के करुणामय और महिमामय स्वरूप का वर्णन किया है। उन्होंने राम के प्रति अपनी अटूट और निष्कलुष भक्ति का परिचय दिया है, जो निर्मल और एकनिष्ठ है।

प्रश्न 11: “मन ही पूजा मन ही धूप। मन ही सेऊँ सहज सरूप।” का भाव स्पष्ट करें।

उत्तर: महाकवि रैदास ने इन पंक्तियों में ईश्वर भक्ति की महिमा का वर्णन किया है। रैदास जी के अनुसार सच्ची ईश्वर भक्ति अन्तर्मन से की जाती है, न कि बाहरी आडंबरों से। वे कहते हैं कि पूजा और धूप दोनों ही मन से की जानी चाहिए, जिससे ईश्वर का सहज और शुद्ध स्वरूप प्रकट हो। उनका यह कहना है कि मूर्तिपूजा और तीर्थयात्रा में भक्ति का सार नहीं है, बल्कि सच्ची भक्ति तो अपने मन की शुद्धता और सच्चाई में होती है। इस प्रकार, रैदास जी आंतरिक भावनाओं और शुद्ध मन से की गई भक्ति को ही सच्ची पूजा मानते हैं।

प्रश्न 12: रैदास की भक्ति भावना का परिचय दीजिए।

उत्तर: महाकवि रैदास सच्चे ईश्वर के उपासक थे और दुनिया के आडंबरों में विश्वास नहीं करते थे। उनकी भक्ति बाहरी दिखावे से रहित और आंतरिक शुद्धता पर आधारित थी। वे मूर्तिपूजा और तीर्थयात्राओं को अनावश्यक मानते थे और आपसी भाईचारे, करुणा और सेवा में विश्वास रखते थे। रैदास जी निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे और उन्होंने अपनी कविताओं में निर्गुण राम की महिमा का वर्णन किया है। उनके अनुसार सच्ची भक्ति में न कोई आडंबर होता है और न ही किसी प्रकार की दिखावट, बल्कि यह मनसा-वाचा-कर्मणा, पवित्रता और निष्कलुषता पर आधारित होती है।

प्रश्न 13: पठित पाठ के आधार पर निर्गुण भक्ति की विशेषताएँ बताइए।

उत्तर: संत कवि रैदास ने अपनी कविताओं में निर्गुण भक्ति की विशेषताओं को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया है। उनका कहना है कि ईश्वर की सच्ची पूजा बाहरी दिखावे या सामग्रियों से नहीं की जा सकती। ईश्वर किसी मंदिर या मस्जिद में नहीं वास करता, बल्कि हर मनुष्य के शुद्ध हृदय में रहता है। सच्ची भक्ति आंतरिक शुद्धता और एकनिष्ठता पर आधारित होती है। रैदास जी के अनुसार कर्मकांड और मूर्तिपूजा से ईश्वर प्रसन्न नहीं होते, बल्कि मन की एकाग्रता और सच्चाई से की गई भक्ति ही सच्ची भक्ति है। निर्गुण भक्ति में ईश्वर की महिमा, करुणा और उनकी सर्वव्यापकता का वर्णन होता है, जो हर जन के अंतस में वास करते हैं।

प्रश्न 14: ‘जाकी जोति बरै दिन राती’ को स्पष्ट करें।

उत्तर: इन पंक्तियों में संत कवि रैदास ने ईश्वर की महिमा का गुणगान किया है। वे कहते हैं कि ईश्वर की ज्योति दिन-रात जलती रहती है, जिससे सारा जगत प्रकाशित होता है। ईश्वर की ज्योति अखंड और अनवरत है, जो सदैव जलती रहती है। इसका गूढ़ भाव यह है कि सारा संसार ईश्वर के प्रकाश से ही जीवंत है और बिना ईश्वर की कृपा के सबकुछ अस्तित्वहीन है। ईश्वर की ज्योति ही सच्ची शक्ति और जीवन का स्रोत है, जो हर जीव और चर-अचर को प्रकाशित करती है। इस प्रकार, कवि ने ईश्वर की महिमा और सर्वव्यापकता का वर्णन किया है।

प्रश्न 15: भक्त कवि ने अपने आराध्य के समक्ष अपने आपको दीनहीन माना है। क्यों?

उत्तर: महाकवि रैदास ने अपनी कविताओं में ईश्वर के समक्ष स्वयं को दीनहीन माना है क्योंकि वे सच्चे और विनम्र भक्त हैं। उनका मानना है कि ईश्वर के समक्ष मनुष्य का अस्तित्व तुच्छ और अज्ञानी है। रैदास जी के अनुसार, प्रभु श्रीराम ही उनके सच्चे स्वामी हैं और उनके सिवा कोई दूसरा सहारा नहीं है। उनकी विनयशीलता और नम्रता उनकी कविताओं में स्पष्ट दिखाई देती है। उन्होंने ईश्वर के प्रति अपने समर्पण और भक्ति को ‘प्रभुजी तुम चंदन हम पानी’ और ‘तुम घन वन हम मोरा’ जैसी पंक्तियों के माध्यम से व्यक्त किया है। उनकी भक्ति निश्छल, निर्मल और लोभ-मोह से मुक्त है, जो उन्हें सच्चा भक्त और महामानव बनाती है।

प्रश्न 16: ‘पूजा अरच न जानूँ तेरी’। कहने के बावजूद कवि अपनी प्रार्थना क्षमा-याचना के रूप में करते हैं। क्यों?

उत्तर: संत कवि रैदास की प्रकृति निर्मल और निश्छल है, और वे ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति में कहीं भी ढोंग या बनावटीपन नहीं रखते। वे कहते हैं कि वे पूजा-अर्चना की विधियाँ नहीं जानते और तंत्र-मंत्र से अनभिज्ञ हैं, परंतु उनका मन शुद्ध और सच्चा है। रैदास जी की भक्ति बाहरी दिखावे से रहित है और वे केवल अपने शुद्ध मन से ईश्वर की आराधना करते हैं। वे अपने को दीनहीन मानते हुए ईश्वर से क्षमा-याचना करते हैं क्योंकि वे मानते हैं कि सच्ची भक्ति मन की पवित्रता में होती है। इस प्रकार, कवि ने अपने विनम्र और निष्कलुष भाव से ईश्वर की महिमा का बखान करते हुए सच्ची भक्ति की महत्ता को दर्शाया है।

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