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बिहार बोर्ड की कक्षा 9 की हिंदी पाठ्यपुस्तक में शामिल “पलक पाँवड़े” एक सुंदर और भावपूर्ण कविता है, जो प्रसिद्ध कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित है। यह कविता प्रकृति के मनोहारी दृश्यों का वर्णन करते हुए किसी प्रिय व्यक्ति के आगमन की प्रतीक्षा को दर्शाती है। कवि ने सूर्योदय, चिड़ियों की चहचहाहट, ओस की बूंदों, हरे-भरे पेड़ों, खिले हुए फूलों और सुगंधित हवाओं के माध्यम से एक आनंदमय वातावरण का चित्रण किया है।
Bihar Board Class 9 Hindi Padya Chapter 4 Solutions
Subject | Hindi |
Class | 9th |
Chapter | 4. पलक पाँवड़े |
Author | अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरीऔध’ |
Board | Bihar Board |
Bihar Board Class 9 Hindi Padya Chapter 4 Question Answer
प्रश्न 1: कवि को भोर क्यों भा रहा है?
उत्तर: भारत स्वाधीन हो चुका है और यह स्वाधीनता का प्रथम सूर्योदय है, इसलिए कवि को भोर अच्छा लग रहा है और मन को भा रहा है। कवि आजादी के इस पावन भोर पर अत्यंत प्रसन्न है और इस सुंदरता से उसका हृदय पुलकित हो रहा है। इस भोर की पावन बेला में कवि का मन उल्लासित है। समस्त जनता भी प्रसन्नता का अनुभव कर रही है। सारा राष्ट्र आज चिरप्रसन्न होकर इस आनंदमय सुहावन भोर के अवसर पर अपने-आपको धन्य मान रहा है।
प्रश्न 2: ‘रोली भरी थाली’ का क्या आशय है?
उत्तर: प्रकृति के मनोहारी रूप का कवि अपनी कविता में चित्रण कर रहा है। जब प्रात:काल में सूरज पूरब दिशा में उगता है, तब आकाश लालिमामय हो जाता है और ऐसा प्रतीत होता है कि आकाश रूपी थाली में रोली भरी हुई है। यहाँ कवि ने प्रतीकात्मक प्रयोग कर प्रात:कालीन सूर्योदय की सुषमा और आकाश का चित्र प्रस्तुत किया है। इस प्रकार, कवि ने छायावादी भावनाओं को प्रकट करते हुए प्रात:कालीन दृश्य का सुंदर वर्णन किया है। कवि ने प्रकृति-वर्णन में अपनी काव्य प्रतिभा का परिचय दिया है।
प्रश्न 3: कवि को प्रकृति में हो रहे परिवर्तन किस रूप में अर्थपूर्ण जान पड़ते हैं?
उत्तर: प्रस्तुत कविता में महाकवि ‘हरिऔध’ जी ने प्रकृति के माध्यम से जीवन में हो रहे परिवर्तन की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है। कवि भोर के समय आसमान में पसरी लालिमा से बहुत प्रसन्न है। सूरज की लाली से आकाश ने रोली से भरी हुई थाली का स्वरूप ग्रहण कर लिया है। पेड़ों पर पक्षियों के कलरव से मन प्रसन्न हो उठता है। ओस से युक्त पत्तियाँ मोती सदृश दृष्टिगत हो रही हैं। हरे-भरे पेड़, खिले फूल, अधखिली कलियाँ और भौंरों का उमंग में सुध-बुध खो देना आदि दृश्य अत्यंत अर्थपूर्ण और सुंदर भाव प्रदर्शित कर रहे हैं। हवा मंद-मंद गति से बह रही है, जिससे सर्वत्र मलय-बयार की महक फैली हुई है। झील, तालाब और नदियों का जल प्रातः की सूर्य किरणों के कारण सुनहरी चादर जैसा प्रतीत होता है। भारत का हर कोना सज-धजकर स्वर्ग की बराबरी कर रहा है। कवि इस चहल-पहल से उत्साहित होकर नए विहार और नवजागरण की प्रतीक्षा कर रहा है। कवि की आँखें उस पावन दर्शन के लिए पथरा गई हैं, लेकिन वह नए सूरज की वंदना के लिए तत्पर है।
प्रश्न 4: हवा के कौन-कौन से कार्य-व्यापार कविता में बताए गए हैं?
उत्तर: प्रस्तुत काव्य-पाठ में महाकवि ‘हरिऔध’ ने हवा के माध्यम से अनेक कार्य-व्यापार को चित्रित किया है। हवाएँ मंद-मंद गति से बह रही हैं और रुक-रुककर बहते हुए पूरे वातावरण को सुगंधित कर रही हैं। हवा की महक से सारा वातावरण खुशबूदार हो गया है। इस प्रकार, कवि ने हवा के विभिन्न कार्य-व्यापार का वर्णन करते हुए अपनी काव्य प्रतिभा का सुंदर परिचय दिया है।
प्रश्न 5: सुनहरी चादरें कहाँ बिछी हुई हैं और क्यों?
उत्तर: प्रस्तुत काव्य-पाठ में कवि ने प्रकृति-सौंदर्य का सुंदर चित्रण किया है। जब प्रात:कालीन सूर्य की किरणें झील, तालाब और नदियों के जल पर पड़ती हैं, तब जल सुनहरी चादर जैसा प्रतीत होता है। कवि ने अपनी सुंदर काव्य पंक्तियों में यह दृश्य प्रस्तुत किया है। सूर्य की किरणों के कारण जल का स्वरूप सुनहला दिखाई पड़ता है, जिससे लगता है कि जल पर सुनहरी चादर बिछी हुई है। इस प्रकार, कवि ने प्रकृति की अद्भुत सुषमा का मनोहारी चित्रण किया है।
प्रश्न 6: प्रकृति स्वर्ग की बराबरी कैसे करती है?
उत्तर: प्रस्तुत काव्य-पाठ में महाकवि ‘हरिऔध’ जी ने प्रकृति-चित्रण द्वारा धरती के रूप-सौंदर्य को स्वर्ग के समान बताया है। चारों तरफ हरियाली व्याप्त है। फूलों से सजी हरी-भरी पत्तियों से लताएँ धरती की सुषमा को बढ़ा रही हैं। झील, तालाब और नदियों का जल सुनहली चादर जैसा प्रतीत हो रहा है। हर जगह प्रकृति की निराली छटा बिखरी हुई है। प्राकृतिक सुषमा के बीच जनसमुदाय ठाट-बाट का अनुभव कर रहा है। इस दृश्य में भारत-भूखंड सज-धजकर स्वर्ग की बराबरी कर रहा है। प्राकृतिक सुंदरता से जल और थल मनोहारी रूप धारण कर रहे हैं, जो सबके मन को भा रहे हैं और सुंदर लग रहे हैं।
प्रश्न 7: कवि को ऐसा लगता है कि सभी प्राकृतिक व्यापारों के प्रकट होने के पीछे कोई गूढ़ अभिप्राय है। यह गूढ़ अभिप्राय क्या हो सकता है? आप क्या सोचते है? अपने विचार लिखें।
उत्तर: प्रस्तुत काव्य-पाठ “पलक पाँवड़े” में महाकवि ‘हरिऔध’ ने प्राकृतिक व्यापारों का गूढ़ अभिप्राय प्रकट करने का प्रयास किया है। यह गूढ़ रहस्य भारत की आजादी का है। भारत के प्रथम स्वाधीन सूर्योदय पर कवि ने इस कविता की रचना करते हुए प्राकृतिक सुषमा को सूक्ष्म रूप में प्रकट किया है। कवि का हृदय अत्यंत प्रसन्न है और वह आजादी के इस पावन अवसर पर अपने मन की प्रसन्नता को प्रकट कर रहा है।
स्वाधीनता प्राप्ति के बाद सारा राष्ट्र उमंग और जोश में अपनी सुध-बुध खो बैठा है, यानी पूरे भारत में प्रसन्नता ही प्रसन्नता दिखाई पड़ती है। इस प्रकार, प्रकृति के मनोहारी रूपों का चित्रण करते हुए कवि ने न केवल अपने मन की, बल्कि पूरे राष्ट्र के मन की अभिलाषा को व्यक्त किया है। कवि ने समग्र भारतीय जनता की खुशियों को प्रकृति के रूपों में चित्रित करते हुए अपने मन में छिपे भावों को अभिव्यक्ति दी है।
प्रश्न 8: कवि को किसकी उत्कंठित प्रतीक्षा है? इस पर विचार कीजिए।
उत्तर: महाकवि ‘हरिऔध’ जी स्वाधीनता के पावन अवसर की प्रतीक्षा में आतुर होकर अगवानी कर रहे हैं। कवि की हार्दिक इच्छा है कि हमारा भारत स्वतंत्र हो, सार्वभौम सत्ता से संपन्न हो। नवजागरण का शंखनाद हो, नयी चेतना और नए विहान का नया सूरज इस पावन धरती पर उतरे और हम सभी उसकी हृदय से वंदना करें, पूजा करें, अभ्यर्थना करें। पथ में कुमकुम बिखेर कर अपलक भाव से अगवानी करें। इन पंक्तियों में कवि ने अपने हृदय के उत्कट भाव को प्रकट किया है।
“देखते-राह थक गईं आँखों,
क्या हुआ क्यों तुम्हें न पाते हैं।
आ अगर आज आ रहा है तू,
हम पलक पाँवड़े बिछाते हैं।”
इन पंक्तियों में कवि की उत्कट भावना छिपी हुई है। वह भाव है स्वाधीन भारत के प्रथम प्रहर का, जिसकी अगवानी में कवि प्रतीक्षारत है और व्यग्र भाव से उसकी बाट देख रहा है। यह पावन अवसर कवि के लिए सबसे सुखकारी है।