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बिहार बोर्ड की कक्षा 9 की हिंदी पाठ्यपुस्तक में शामिल “समुद्र” कविता प्रसिद्ध उड़िया साहित्यकार सीताकांत महापात्र द्वारा रचित एक गहन और प्रतीकात्मक रचना है। इस कविता में कवि ने समुद्र को समाज का प्रतीक मानकर एक विचारोत्तेजक संदेश दिया है। वे समुद्र के माध्यम से समाज की विशालता, उदारता और उसकी निःस्वार्थ प्रकृति को दर्शाते हैं, साथ ही उपभोक्तावादी संस्कृति पर कटाक्ष करते हैं।

Bihar Board Class 9 Hindi Padya Chapter 11 Solutions
Subject | Hindi |
Class | 9th |
Chapter | 11. समुद्र |
Author | सीताकांत महापात्र |
Board | Bihar Board |
Bihar Board class 9 Hindi Padya chapter 11 Question Answer
प्रश्न 1. समुद्र ‘अबूझ भाषा’ में क्या कहता रहता है?
उत्तर- समुद्र ‘अबूझ भाषा’ में मनुष्य से कहता है कि उसका कुछ नहीं घटता। वह अनंत संसाधनों का भंडार है, जिसमें से मनुष्य अपनी आवश्यकता अनुसार जितना चाहे ले सकता है। समुद्र की उदारता और विराटता इसे दर्शाती है कि मनुष्य के द्वारा उपयोग किए जाने पर भी उसका कुछ नहीं घटता। समुद्र के पास इतने संसाधन हैं कि वह अपने अस्तित्व में कोई कमी नहीं महसूस करता। यहाँ समुद्र के माध्यम से कवि ने प्रकृति की विशालता और उसकी उदारता को उजागर किया है। समुद्र अपने मौन रूप में मनुष्य के विकास और जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रकृति और मानव के बीच के संबंधों को इस कविता में बहुत ही संवेदनशील तरीके से प्रस्तुत किया गया है।
प्रश्न 2. समुद्र में देने का भाव प्रबल है। कवि समुद्र के माध्यम से क्या कहना चाहता है?
उत्तर- ‘समुद्र’ कविता में कवि ने समुद्र की विशालता और उसकी उदारता पर जोर दिया है। समुद्र अनंत संसाधनों का भंडार है और सृष्टि के सृजन में हमेशा से सहायक रहा है। मनुष्य ने समुद्र के संसाधनों का उपयोग अपने हित में किया है, चाहे वह घोंघे, केंकड़े या अन्य समुद्री जीवों से बने बटन, औजार, या सजावटी वस्तुएँ हों। समुद्र अपने विशाल गर्भ में इन सब को संजोए रहता है और मनुष्य के उपयोग से उसकी क्षमता कम नहीं होती। सूर्य समुद्र का पानी सोखकर भी अपनी प्यास नहीं बुझा पाता और समुद्र का जल भी कम नहीं होता। कवि यह कहना चाहता है कि समुद्र की तुलना में मानव की देने की क्षमता बहुत छोटी है। मानव ने अपनी यायावरी प्रवृत्ति के कारण समुद्र से बहुत कुछ लिया है, परंतु समुद्र ने कभी कोई शिकायत नहीं की। समुद्र ने हमेशा मनुष्य के पद-चिन्हों को मिटाकर उसकी अस्थिरता को समेटा है। कवि ने सागर की इन विशेषताओं के माध्यम से सृष्टि-सृजन और संहार के बीच के संतुलन को चित्रित किया है।
प्रश्न 3. निम्नांकित पंक्तियों का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
“सोता रहँगा छोटे से फ्रेम में बँधा
गर्जन-तर्जन, मेरा नाच गीत उद्वेलन
कुछ भी नहीं होगा।”
उत्तर- इन पंक्तियों में कवि समुद्र की जीवंतता और उसकी विशालता को एक छोटे फ्रेम में सीमित करने की असंभवता को व्यक्त कर रहा है। समुद्र का चित्र छोटे फ्रेम में बाँधकर रखने से उसकी असली महत्ता और जीवंतता दिखाई नहीं देगी। फ्रेम में बँधा समुद्र सिर्फ एक स्थिर चित्र होगा, जिसमें न उसकी गर्जन-तर्जन सुनाई देगी, न उसका नृत्य और गीत दिखाई देगा। समुद्र की असली सुंदरता उसके प्राकृतिक स्वरूप में है, जहाँ उसकी हलचल, उसकी गर्जना और उसकी लहरों का नृत्य मनुष्य को आकर्षित करता है। कवि इस पंक्ति के माध्यम से यह कहना चाहता है कि वास्तविकता और प्रकृति के जीवंत अनुभव का कोई मुकाबला नहीं है।
प्रश्न 4. ‘नन्हें-नन्हें सहस्र गड्ढों के लिए/भला इतनी पृथ्वी पाओगे कहाँ’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- कवि सीताराम महापात्र इन पंक्तियों के माध्यम से समुद्र की विशालता और गहराई का वर्णन कर रहे हैं। समुद्र के गर्भ में असंख्य जीव-जन्तु और संसाधन होते हैं, जिनका स्थान धरती पर नहीं मिल सकता। समुद्र की तुलना में धरती की सीमाएँ छोटी हैं। अगर हम समुद्र के केंकड़े या अन्य जीवों को रखने के लिए हजारों गड्ढे बनाना चाहें, तो भी यह धरती पर्याप्त नहीं होगी। यहाँ कवि समुद्र की विराटता और उसकी गहराई को दर्शाना चाहते हैं। समुद्र की उपयोगिता और उसकी महत्ता को मनुष्य के सामने प्रस्तुत किया गया है। कवि समुद्र और धरती की तुलना करके यह दिखाते हैं कि समुद्र का महत्व और उसकी विशालता किसी भी अन्य प्राकृतिक संसाधन से अधिक है।
प्रश्न 5. कविता में “चिर-तृषित’ कौन है?
उत्तर- ‘समुद्र’ कविता में कवि सीताराम महापात्र ने “चिर-तृषित” शब्द का उपयोग सूर्य के लिए किया है। सूर्य सदैव सागर के जल को सोखता रहता है, फिर भी उसकी प्यास कभी नहीं बुझती। यहाँ सूर्य प्रतीक रूप में मानव का प्रतिनिधित्व करता है। मानव भी सदियों से प्रकृति के संसाधनों का उपयोग अपनी आवश्यकताओं के लिए करता आ रहा है, फिर भी उसकी इच्छाएँ कभी समाप्त नहीं होतीं। वह हमेशा और अधिक पाने की चाह में रहता है। कवि के अनुसार, मानव की यह अतृप्त भूख और प्यास उसे कभी संतुष्ट नहीं होने देती। मानव की यही चिर-तृषा उसे सदैव बेचैन और असंतुष्ट बनाकर रखती है।
प्रश्न 6. सप्रसंग व्याख्या करें:-
(क) उन पद-चिन्हों को,
लीप-पोतकर मिटाना ही तो है काम मेरा
तुम्हारी आतुर वापसी को
अपने स्वभाव सुलभ
अस्थिर आलोड़न में
मिला लेना ही तो है काम मेरा।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘समुद्र’ काव्य पाठ से ली गई हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग समुद्र और मानव के बीच के संबंधों से जुड़ा हुआ है। कवि सीताराम महापात्र कहते हैं कि समुद्र का काम है मानव के पद-चिन्हों को मिटाना और उसे अपनी लहरों में समाहित कर लेना। मनुष्य की आतुर वापसी को समुद्र अपने अस्थिर लहरों में सुलभता से मिला लेता है। कवि यहाँ समुद्र को एक साक्षी के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं, जिसने मानव सभ्यता के उत्थान और पतन को देखा है। समुद्र ने अनेक सभ्यताओं को अपने अंदर समाहित किया है, उन्हें मिटाया है, और फिर नई सभ्यताओं को जन्म लेते देखा है। इन पंक्तियों में कवि ने सागर के माध्यम से यह दिखाया है कि मानव जीवन निरंतर सृजन और संहार के बीच चलता रहता है, और समुद्र इसका स्थायी साक्षी है।
(ख)क्या चाहते हो ले जाना घोंघे?
क्या बनाओगे ले जाकर? ।
कमीज के बटन
नाड़ा काटने के औजार।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘समुद्र’ काव्य पाठ से उद्धृत की गई हैं। इन पंक्तियों में कवि सीताराम महापात्र ने समुद्र के जीव-जंतुओं के माध्यम से मानवीय स्वार्थ और उपभोक्तावादी प्रवृत्ति पर तीखा प्रहार किया है। कवि समुद्र के माध्यम से मनुष्य से पूछते हैं कि वह घोंघों का क्या करेगा? क्या वह उन्हें बटन या नाड़ा काटने के औजार के रूप में उपयोग करेगा? यहाँ कवि यह दिखाना चाहते हैं कि मानव अपने स्वार्थ में अंधा हो गया है और जीवों की जीवंतता का सम्मान नहीं करता। घोंघे को मारकर उससे वस्तुएँ बनाना मानव की क्रूरता को दर्शाता है। कवि यह भी बताते हैं कि घोंघे की स्वच्छंदता, उसके जीवन का आनंद, और उसकी प्राकृतिक सुंदरता को मारकर हासिल नहीं किया जा सकता। इस प्रकार, कवि ने मानव को सचेत किया है कि वह प्रकृति और जीव-जंतुओं के साथ दुर्व्यवहार न करे और उनकी उपयोगिता और सुंदरता को समझे।
प्रश्न 7. समुद्र मनुष्य से प्रश्न करता है। इस तरह के प्रश्न के पीछे मनुष्य की उपभोक्तावादी प्रवृत्ति का पता चलता है। आप इससे कहाँ तक सहमत हैं। इस पर अपने विचार प्रकट करें।
उत्तर- समुद्र के माध्यम से कवि सीताराम महापात्र मनुष्य की उपभोक्तावादी प्रवृत्ति की ओर इशारा करते हैं। समुद्र, अपनी विशालता और उदारता के बावजूद, यह प्रश्न करता है कि मनुष्य कब तक उसके संसाधनों का शोषण करता रहेगा। समुद्र मानव को अपने संसाधनों का उपयोग करने की छूट देता है, फिर भी उसकी अनंत चाहतें बनी रहती हैं। यह मनुष्य की स्वार्थी और उपभोक्तावादी प्रकृति को दर्शाता है।
कवि ने इस कविता में यह संदेश देने का प्रयास किया है कि समुद्र की तरह प्रकृति भी मानव को बहुत कुछ देती है, लेकिन मानव उसकी कद्र नहीं करता। समुद्र के जीव-जंतु, उसकी प्राकृतिक सुंदरता और संसाधन, सब कुछ मनुष्य के लिए हैं, पर मनुष्य इन्हें केवल अपने लाभ के लिए उपयोग करता है।
इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए और उसके संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करना चाहिए, न कि केवल अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए।
प्रश्न 8. कविता के अनुसार मनुष्य और समुद्र की प्रकृति में क्या अंतर है?
उत्तर- कविता “समुद्र” में मनुष्य और समुद्र की प्रकृति के बीच कई अंतर स्पष्ट होते हैं। समुद्र अपनी विशालता, उदारता और अक्षय भंडार के कारण हमेशा मनुष्य के लिए उपयोगी रहा है। वह बिना किसी संकोच के अपने संसाधनों को मनुष्य के लिए उपलब्ध कराता है। समुद्र के गर्भ में कई जीव-जंतु, रत्न और अन्य उपयोगी वस्तुएँ होती हैं, जिन्हें वह मानव के लाभ के लिए समर्पित करता है।
दूसरी ओर, मनुष्य स्वार्थी और उपभोक्तावादी है। वह समुद्र के संसाधनों का अंधाधुंध उपयोग करता है और कभी संतुष्ट नहीं होता। मनुष्य की इच्छाएँ और लालसाएँ कभी खत्म नहीं होतीं। कवि इस बात पर जोर देते हैं कि मनुष्य को समुद्र से केवल लेना ही आता है, जबकि समुद्र देने में कभी पीछे नहीं रहता।
इस प्रकार, समुद्र की प्रकृति दानवीर और उदार है, जबकि मनुष्य की प्रकृति स्वार्थी और उपभोक्तावादी है।
प्रश्न 9. कविता के माध्यम से आपको क्या संदेश मिला है?
उत्तर- कविता “समुद्र” के माध्यम से कवि सीताराम महापात्र हमें प्रकृति और मानव के बीच के संबंधों पर एक महत्वपूर्ण संदेश देते हैं। समुद्र अपनी उदारता, विशालता और अक्षय भंडार से मनुष्य के लिए हमेशा उपयोगी रहा है। यह कविता हमें यह सिखाती है कि हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए और उसके संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करना चाहिए।
समुद्र मानव को बिना किसी संकोच के अपने संसाधनों का उपयोग करने की अनुमति देता है, लेकिन मनुष्य अपनी उपभोक्तावादी प्रवृत्ति के कारण हमेशा और अधिक चाहता है। इस कविता से हमें यह संदेश मिलता है कि हमें प्रकृति के संसाधनों का अधिकतम सदुपयोग करना चाहिए, लेकिन उसके साथ ही उसकी रक्षा और संरक्षण का भी ध्यान रखना चाहिए।
कवि ने समुद्र के माध्यम से यह दिखाया है कि प्रकृति कितनी उदार और विशाल है, और हमें उसकी इस उदारता का सम्मान करना चाहिए और उसका सही उपयोग करना चाहिए।
प्रश्न 10. ‘किन्तु मेरी रेत पर जिस तरह दिखते हैं। उस तरह कभी नहीं दिखेंगे।’ पंक्तियों के माध्यम से कवि का क्या आशय है?
उत्तर- इन पंक्तियों के माध्यम से कवि सीताराम महापात्र समुद्र के छोटे जीव-जंतुओं की जीवंतता और स्वाभाविकता पर प्रकाश डालते हैं। समुद्र अपने भीतर पल रहे इन जीवों के महत्व को समझाता है और मनुष्य को चेतावनी देता है कि इन जीवों को उनकी प्राकृतिक अवस्था से हटाकर उपयोग करने से उनकी वास्तविक सुंदरता और जीवंतता खो जाएगी।
कवि का यह कहना है कि समुद्र के जीव-जंतु अपनी स्वाभाविकता और प्राकृतिक माहौल में ही सबसे सुंदर और जीवंत दिखते हैं। मनुष्य इन्हें पकड़कर अपने स्वार्थ के लिए उपयोग करता है, लेकिन इनका वास्तविक सौंदर्य और उपयोगिता उनकी जीवंत अवस्था में ही है।
कवि इस बात पर जोर देते हैं कि हमें प्रकृति के जीव-जंतुओं को उनकी प्राकृतिक अवस्था में ही रहने देना चाहिए और उनका सही तरीके से सम्मान और संरक्षण करना चाहिए।
प्रश्न 11. “जितना चाहो ले जाओ/फिर भी रहेगी बची देने की अभिलाषा’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर- इस पंक्ति से कवि सीताराम महापात्र समुद्र की असीम उदारता और उसकी अक्षय संपदा की ओर इशारा करते हैं। समुद्र मनुष्य को यह कहता है कि वह जितना चाहें, उतना उसके संसाधनों का उपयोग कर सकते हैं, फिर भी उसकी देने की अभिलाषा कभी खत्म नहीं होगी।
यह पंक्ति समुद्र के असीम भंडार और उसकी उदारता का प्रतीक है। समुद्र के पास इतने संसाधन हैं कि वह बिना किसी कमी के मनुष्य की जरूरतों को पूरा कर सकता है।
इस पंक्ति के माध्यम से कवि यह संदेश देते हैं कि समाज और प्रकृति हमेशा मनुष्य के विकास में सहायक रहे हैं। लेकिन मनुष्य को भी यह समझना चाहिए कि वह इन संसाधनों का सही और संतुलित उपयोग करे। प्रकृति हमेशा उदार और दानवीर होती है, परंतु हमें उसकी इस उदारता का सम्मान करना चाहिए और उसका सही तरीके से उपयोग करना चाहिए।
प्रश्न 12. इस कविता के माध्यम से समुद्र के बारे में क्या जानकारी मिलती है?
उत्तर- कविता “समुद्र” के माध्यम से हमें समुद्र की विशालता, उदारता और उसकी महत्ता के बारे में गहन जानकारी मिलती है। कवि सीताराम महापात्र समुद्र को एक दानवीर और उदार प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
समुद्र अपनी असीम संपदा और संसाधनों को मानव के उपयोग के लिए खुला रखता है। उसके गर्भ में रत्नों का भंडार और अनगिनत जीव-जंतु हैं, जो किसी न किसी रूप में मानव के लिए लाभकारी हैं। समुद्र अपनी मौन भाषा में मानव को संदेश देता है कि वह उसके संसाधनों का जितना भी उपयोग करना चाहे, कर सकता है, फिर भी उसकी देने की अभिलाषा कभी खत्म नहीं होगी।
कवि समुद्र के छोटे जीव-जंतुओं की उपयोगिता पर भी प्रकाश डालते हैं। समुद्र की रेत पर जीवित घोंघे और अन्य जीव-जंतु अपने स्वाभाविक रूप में अधिक सुंदर और उपयोगी होते हैं, जबकि मृत रूप में उनका वास्तविक सौंदर्य खो जाता है।
इस प्रकार, कविता “समुद्र” के माध्यम से हमें समुद्र की उदारता, विशालता और मानव के लिए उसकी अनंत उपयोगिता के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।