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बिहार बोर्ड की कक्षा 9 की हिंदी पाठ्यपुस्तक में शामिल “मैं नीर भरी दुःख की बदली” एक गहन और भावपूर्ण कविता है, जो प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित है। यह कविता उनके संग्रह ‘यामा’ से ली गई है। इस कविता में महादेवी जी ने स्वयं को एक दुःख भरी बादल के रूप में चित्रित किया है, जो अपने अंदर करुणा का जल भरे हुए है। वे इस दुःख को एक मूल्यवान अनुभव के रूप में प्रस्तुत करती हैं, जो न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि दूसरों के लिए भी सांत्वना और सहानुभूति का स्रोत बनता है।

Bihar Board Class 9 Hindi Padya Chapter 5 Solutions
Subject | Hindi |
Class | 9th |
Chapter | 5. मै नीर भरी दुःख की बदली |
Author | महादेवी वर्मा |
Board | Bihar Board |
Bihar Board Class 9 Hindi Padya Chapter 5 Question Answer
प्रश्न 1. महादेवी अपने को ‘नीर भरी दुख की बदली’ क्यों कहती हैं?
उत्तर- महादेवी वर्मा अपने जीवन में अनेकों पीड़ा और दुखों का सामना करती रही हैं। उनकी वेदना केवल उनकी व्यक्तिगत नहीं, बल्कि समूचे विश्व की वेदना का प्रतिबिंब है। वे अपनी इस गहन वेदना को ‘नीर भरी दुख की बदली’ के रूप में व्यक्त करती हैं। जिस प्रकार बदली जल कणों से भरी होती है, उसी प्रकार महादेवी का हृदय भी दुखों से भरा है। वे कहती हैं कि उनकी पीड़ा व्यापक है, जिसमें लौकिक और अलौकिक दोनों प्रकार की वेदनाएँ समाहित हैं। महादेवी की कविताओं में यह वेदना बार-बार प्रकट होती है, जिससे उनके मन की गहराई और संवेदनशीलता का पता चलता है। प्रकृति के माध्यम से अपनी इस पीड़ा को व्यक्त करते हुए, वे अपनी भावनाओं को शब्दों में ढालती हैं और इसे सार्वजनीन बना देती हैं। उनकी काव्य प्रतिभा के माध्यम से उनकी व्यक्तिगत वेदना, विश्व की वेदना बन जाती है।
प्रश्न 2. निम्नांकित पंक्तियों का भाव स्पष्ट करें:
(क) मैं क्षितिज-भृकुटी पर घिर धूमिल,
चिंता का भार बनी अविरल,
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव-जीवन अंकुर बन निकली।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ महादेवी वर्मा की ‘यामा’ काव्य कृति से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री ने जीवन की चिंता और पीड़ा को दर्शाया है। वे कहती हैं कि उनका जीवन चिंता के बादलों से घिरा हुआ है, जैसे क्षितिज पर धूमिल बादल छाए रहते हैं। यह चिंता लगातार बनी रहती है और उन्हें कष्ट देती है। लेकिन जब रज-कण (धूल) पर जल-कण (बूंदें) बरसती हैं, तो उनमें से नया जीवन अंकुरित हो उठता है। इसका अर्थ है कि वेदना और पीड़ा के बीच भी, जब प्रकृति की कृपा होती है, तो नया जीवन और नई आशाएं जन्म लेती हैं। कवयित्री यहाँ यह कहना चाहती हैं कि दुख और चिंता के बावजूद, जीवन में हमेशा नई शुरुआत की संभावना बनी रहती है। यह पंक्तियाँ हमें यह संदेश देती हैं कि जीवन में समस्याएं और दुख तो आते हैं, लेकिन उनसे उबर कर नया जीवन शुरू करना संभव है।
(ख) सुधि मेरे आगम की जग में
सुख की सिरहन हो अंत खिली!
उत्तर- इन पंक्तियों में महादेवी वर्मा अपने जन्म और उसके प्रभाव को व्यक्त कर रही हैं। वे कहती हैं कि उनके आने की स्मृति जग में सुख की अनुभूति लाती है, लेकिन इस सुख में एक हल्की सिहरन भी छिपी होती है। यह सिहरन इसलिए होती है क्योंकि महादेवी जी का जन्म एक कन्या के रूप में हुआ था, जो उस समय के समाज में एक विषादपूर्ण बात मानी जाती थी। कवयित्री यहाँ अपने अस्तित्व के महत्व और उसके प्रभाव को रेखांकित कर रही हैं। वे कहती हैं कि उनके जन्म की याद सुखद तो है, लेकिन उसमें एक गहरी उदासी भी समाहित है। यह पंक्तियाँ जीवन की वास्तविकता को प्रकट करती हैं, जिसमें सुख और दुख दोनों का संगम होता है। महादेवी वर्मा ने इन पंक्तियों के माध्यम से यह बताने की कोशिश की है कि जीवन में सुख और दुख हमेशा साथ-साथ चलते हैं।
प्रश्न 3. ‘क्रंदन में आहत विश्व हँसा’ से कवयित्री का क्या तात्पर्य है?
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियों में महादेवी वर्मा ने विश्व की पीड़ा और करुणा का वर्णन किया है। वे कहती हैं कि यह विश्व करुण क्रंदन से भरा हुआ है, लोग दुख और यातना से पीड़ित हैं, लेकिन इन आहों और रुदन में भी एक अद्भुत हंसी छिपी होती है। इसका तात्पर्य यह है कि विश्व की पीड़ा में भी एक प्रकार का आनंद होता है, जो केवल वे ही समझ सकते हैं जो इस पीड़ा को सहते हैं। महादेवी जी का मानना है कि इस जीवन की सभी दुख और कष्टों के बीच भी एक गहरी संतुष्टि और खुशी छिपी होती है। उनकी दृष्टि में, पीड़ा और आनंद दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। वे कहती हैं कि उनके जीवन की व्यक्तिगत वेदना समूचे विश्व की वेदना का प्रतीक है, और यह पीड़ा हमें जीवन की गहराई और यथार्थता का बोध कराती है। इस प्रकार, महादेवी वर्मा ने अपनी व्यक्तिगत पीड़ा को सार्वभौमिक वेदना के रूप में प्रस्तुत किया है, जो हमें जीवन के सत्य और उसके अनुभवों का अद्भुत दृष्टिकोण प्रदान करता है।
प्रश्न 4. कवयित्री किसे मलिन नहीं करने की बात करती हैं?
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ महादेवी वर्मा द्वारा रचित काव्य पाठ ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री ने अपने पवित्र मनोभावों को प्रकट किया है। उन्होंने कहा है कि उन्होंने अपने जीवन के पथ को मलिन नहीं होने दिया, अर्थात् उन्होंने अपने जीवन को सदैव शुद्ध और पवित्र बनाए रखा। कवयित्री का मानना है कि जिस पथ पर वे चली हैं, वह सत्य, प्रेम और भक्ति का मार्ग है। इस पथ पर चलते हुए उन्होंने कभी भी अपने सिद्धांतों और आदर्शों से समझौता नहीं किया।
कवयित्री की यह इच्छा है कि वह जिस राह पर चले, वह स्वच्छ और निर्मल हो। उन्होंने इस पंक्ति के माध्यम से अपनी आंतरिक भावना को व्यक्त किया है, जिसमें वे कहती हैं कि उनकी आंतरिक आकांक्षा है कि वे ब्रह्म से जुड़ने के मार्ग पर ही चलें। यही मार्ग मलिन नहीं है और इसी मार्ग पर चलकर वे जीवन की सच्चाई और प्रेम की वास्तविकता को समझ सकती हैं। इस प्रकार, महादेवी वर्मा ने अपने पवित्र और निर्मल जीवन का संदेश दिया है और यह दिखाया है कि एक सच्चे जीवन की राह पर चलकर ही हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
प्रश्न 5. सप्रसंग व्याख्या करें:
“विस्तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना
परिचय इतना इतिहास यही।
उमड़ी कल थी मिट आज चली।”
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ महादेवी वर्मा द्वारा रचित ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ काव्य पाठ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री ने अपने जीवन की नश्वरता और अस्थायित्व को दर्शाया है। वे कहती हैं कि इस विस्तृत आकाश के किसी भी कोने में उनका कोई स्थायी स्थान नहीं है। उनके जीवन का इतिहास यही है कि वे कल थीं और आज मिट गईं।
इन पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री ने इस संसार की अस्थिरता और अनित्यत्व को दर्शाया है। उनका कहना है कि यह संसार नश्वर है और इसमें किसी का भी कोई स्थायी स्थान नहीं है। इसी प्रकार, महादेवी जी का जीवन भी क्षणभंगुर है और वे इसे स्वीकार करती हैं। उन्होंने अपने जीवन की नश्वरता को सहजता से स्वीकार किया है और इसे अपने काव्य में व्यक्त किया है।
इन पंक्तियों में कवयित्री ने यह संदेश दिया है कि इस संसार में स्थायी कुछ भी नहीं है। यहाँ सब कुछ अस्थायी और क्षणभंगुर है। हमें इस सच्चाई को स्वीकार कर अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए सुकर्मों और सत्कर्मों का पालन करना चाहिए। इस प्रकार, महादेवी वर्मा ने अपने जीवन के सत्य को अपने काव्य में व्यक्त किया है और हमें इस सत्य का सामना करने की प्रेरणा दी है।
प्रश्न 6. ‘नयनों में दीपक से जलते में ‘दीपक’ का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ महादेवी वर्मा द्वारा रचित ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ काव्य पाठ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में ‘दीपक’ का प्रयोग कवयित्री ने स्वयं के लिए किया है। जिस प्रकार दीपक निरंतर जलता रहता है और अपनी रोशनी से अंधकार को दूर करता है, लेकिन उसकी जलने की पीड़ा को कोई नहीं जानता, उसी प्रकार महादेवी वर्मा का जीवन भी निरंतर जलता रहा है।
कवयित्री कहती हैं कि उनके नयनों में दीपक की भाँति जलने की पीड़ा है, जिसे दुनिया नहीं समझ पाती। यह दीपक उनकी आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतीक है, जो उनके जीवन में निरंतर जलते रहे हैं। इस दीपक का जलना उनके जीवन की तड़प, बेचैनी और पीड़ा को दर्शाता है।
महादेवी वर्मा की प्रेम साधना और उनके प्रियतम की प्रतीक्षा की भावना इस दीपक के माध्यम से प्रकट होती है। उनकी आँखों में इस दीपक के जलने से उनके जीवन की वेदना और आशा की प्रतीक्षा का भाव प्रकट होता है। इस प्रकार, ‘दीपक’ का प्रयोग कवयित्री ने अपने जीवन की पीड़ा और आशाओं के प्रतीक के रूप में किया है।
प्रश्न 7. कविता के अनुसार कवयित्री अपना परिचय किस रूप में दे रही हैं?
उत्तर- कवयित्री महादेवी वर्मा ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ काव्य में अपने जीवन को एक दुख भरी बदली के रूप में प्रस्तुत करती हैं। वे कहती हैं कि उनका जीवन हमेशा वेदना और पीड़ा से भरा रहा है, जैसे कि एक बादल जल की बूँदों से भरा होता है। उन्होंने अपने जीवन की तुलना उस बादल से की है जो दुख और वेदना से भरपूर है, लेकिन फिर भी संसार के लिए उपयोगी है।
महादेवी वर्मा का मानना है कि उनके जीवन का उद्देश्य दूसरों के दुखों को दूर करना और उन्हें राहत पहुँचाना है। उन्होंने अपने जीवन को एक साधना के रूप में देखा है, जिसमें वे अपने व्यक्तिगत दुखों को सहते हुए भी दूसरों के जीवन में खुशियाँ लाने की कोशिश करती हैं। उनका यह परिचय उनके जीवन की महानता और उनके काव्य की गहराई को दर्शाता है।
कवयित्री का कहना है कि उन्होंने अपने जीवन के हर क्षण को सार्थक बनाने की कोशिश की है। वे अपने जीवन को एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करती हैं, जिसमें उन्होंने अपनी पीड़ा और वेदना को सहते हुए भी कभी अपने सिद्धांतों और आदर्शों से समझौता नहीं किया। उनके जीवन का यह परिचय हमें प्रेरणा देता है कि हम भी अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना करें और अपने लक्ष्य की ओर निरंतर अग्रसर रहें।
प्रश्न 8. ‘मेरा न कभी अपना होना’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियों में महादेवी वर्मा ने इस लौकिक जगत की नश्वरता के बारे में ध्यान आकृष्ट करते हुए अपने व्यक्तिगत जीवन पर भी प्रकाश डाला है। महादेवी वर्मा कहती हैं कि इस विस्तृत संसार में उनका अपना कोई नहीं है। इस विराट जगत के किसी भी कोने में उनका कुछ नहीं है और न उनका अपना कोई है। इसका सूक्ष्म भाव यह है कि यह संसार नश्वर है और इसमें किसी का भी कोई स्थायी स्थान नहीं है।
महादेवी वर्मा का मानना है कि यह संसार माया बंधन से युक्त है और कोई भी किसी का नहीं है। सबको एक न एक दिन मर जाना है और इस जीवन की अस्थिरता को समझते हुए हमें अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए सुकर्मों का पालन करना चाहिए।
इन पंक्तियों में महादेवी वर्मा ने अपने जीवन की नश्वरता और क्षणभंगुरता की ओर सबका ध्यान आकृष्ट किया है। उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन-कर्म को विश्व के जीवन-धर्म से जोड़कर अपनी कविताओं में वर्णन किया है। यह संदेश हमें प्रेरित करता है कि हम अपने जीवन में सदैव सुकर्म और सत्कर्म की राह पर चलें और अपने जीवन को सार्थक बनाएं।
प्रश्न 9. कवयित्री ने अपने जीवन में आँसू को अभिव्यक्ति का महत्वपूर्ण साधन माना है। कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- प्रस्तुत काव्य पाठ में महादेवी वर्मा ने आँसू को अपनी भावनाओं को प्रकट करने का महत्वपूर्ण साधन माना है। उनके अनुसार, आँसू व्यक्ति की आंतरिक पीड़ा और वेदना का स्पष्ट संकेत होते हैं। आँसू बहने से यह स्पष्ट होता है कि भीतर कोई गहरी पीड़ा छिपी हुई है।
महादेवी जी की कविता में आँसू का महत्व स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। वे कहती हैं कि आँसू व्यक्ति की आत्मा की गहराई से निकलते हैं और उसकी संवेदनाओं को प्रकट करते हैं। उनकी कविता “क्रंदन में आहत विश्व हँमा, पलकों में निर्झरिणी मचली” में भी आँसू की महत्ता को दर्शाया गया है।
आँसू व्यक्ति के दुख और वेदना को अभिव्यक्त करने का सबसे सशक्त माध्यम होते हैं। महादेवी जी ने अपने जीवन की पीड़ा और वेदना को आँसू के माध्यम से व्यक्त किया है। उनका मानना है कि आँसू न केवल व्यक्ति की पीड़ा को प्रकट करते हैं बल्कि उसे एक नई दृष्टि और संवेदना भी प्रदान करते हैं। इस प्रकार, महादेवी वर्मा ने आँसू को अपने जीवन का महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति का साधन माना है।
प्रश्न 10. इस कविता में ‘दुख’ और ‘आँसू’ कहाँ-कहाँ, किन-किन रूपों में आते हैं? उनकी सार्थकता क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- प्रस्तुत काव्य-पाठ में कवयित्री महादेवी वर्मा ने दुख और आँसू को विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया है। उन्होंने अपनी कविता में दुख और आँसू के विभिन्न पहलुओं को बड़े ही प्रभावशाली ढंग से चित्रित किया है।
कविता की पंक्ति “स्पंदन में चिर निस्पंद” में दुख की गहराई को व्यक्त किया गया है। इसी प्रकार “क्रंदन में आहत विश्व” पंक्ति में कवयित्री ने अपनी मनोव्यथा और विश्व की व्यथा को दर्शाया है। यहाँ उन्होंने आँसू और दुख के वैश्विक स्वरूप को प्रस्तुत किया है।
कवयित्री की पंक्ति “नयनों में दीपक से जलते” में आँसू की जलन और तड़पन को दर्शाया गया है। यहाँ आँसू की जलन और पीड़ा को दीपक की तरह जलते हुए चित्रित किया गया है।
पंक्ति “रज-कण पर जल-कण हो बरसी” में आँसू को बारिश के रूप में चित्रित किया गया है। इस प्रकार कवयित्री ने दुख और आँसू को विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया है।
कविता के माध्यम से महादेवी वर्मा ने दुख और आँसू की सार्थकता को भी स्पष्ट किया है। उनके अनुसार, दुख और आँसू व्यक्ति की आंतरिक पीड़ा को प्रकट करते हैं और उसे एक नई दृष्टि और संवेदना प्रदान करते हैं। इस प्रकार, महादेवी वर्मा ने दुख और आँसू को अपने काव्य में महत्वपूर्ण स्थान दिया है और उन्हें विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया है।