Bihar Board Class 9 Hindi Padya Chapter 3 Solutions – गुरु गोविंद सिंह के पद

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बिहार बोर्ड की कक्षा 9 की हिंदी पाठ्यपुस्तक में शामिल “गुरु गोविंद सिंह के पद” एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यह अध्याय सिख धर्म के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी की रचनाओं पर आधारित है। इसमें दो पद शामिल हैं जो मानवता की एकता और ईश्वर की सर्वव्यापकता का संदेश देते हैं। पहला पद सभी धर्मों और जातियों की समानता पर प्रकाश डालता है, जबकि दूसरा पद प्रकृति के उदाहरणों के माध्यम से ईश्वर की एकता को समझाता है।

Bihar Board Class 9 Hindi Padya Chapter 3

Bihar Board Class 9 Hindi Padya Chapter 3 Solutions

SubjectHindi
Class9th
Chapter3. गुरु गोविंद सिंह के पद
Authorगुरु गोविंद सिंह
BoardBihar Board

Bihar Board Class 9 Hindi Padya Chapter 3 Question Answer

प्रश्न 1: ईश्वर ने मनुष्य को सर्वोत्तम कृति के रूप में रचा है। कवि के अनुसार मनुष्य वस्तुतः एक ही ईश्वर की संतान है, उसे खेमों में बाँटना उचित नहीं है। इस क्रम में उन्होंने किन उदाहरणों का प्रयोग किया है?

उत्तर: कवि गुरु गोविन्द सिंह जी ने अपने विचारों को काव्य के माध्यम से व्यक्त करते हुए मनुष्य और ईश्वर के बीच के अटूट संबंधों को दर्शाया है। उन्होंने बताया कि सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं और उन्हें विभाजित करना उचित नहीं है।

“एक ही सेव सब ही को गुरुदेव एक, एक ही सरुप सबे, एकै जोत जानबो।
तैसे विश्वरूप ते अभूत भूत प्रगट होई,
ताही ते उपह सबै ताही मैं समाहिंगे।”

इन पंक्तियों में कवि ने बताया है कि सभी प्राणियों की उत्पत्ति एक ही परमात्मा से हुई है। ईश्वर का स्वरूप और महत्ता एक ही है और सबकी ज्योति उसी की प्रकट होती है। उन्होंने समझाया कि सभी जीव उसी ईश्वर से उत्पन्न हुए हैं और अंततः उसी में विलीन हो जाते हैं।

इस प्रकार, गुरु गोविन्द सिंह जी ने यह संदेश दिया है कि सभी मनुष्यों का एक ही स्रोत है और उन्हें जाति, धर्म या किसी अन्य भेदभाव में बांटना अनुचित है।

प्रश्न 2: कवि ने मानवीय संवेदना को मनुष्यता के किस डोर में बाँधे रखने की बात कही है?

उत्तर: गुरु गोविन्द सिंह जी ने अपनी कविताओं में मानवीय संवेदना और एकता को बल देने की बात कही है। उन्होंने बताया कि मनुष्य की पहचान उसकी मानवता में है, न कि उसकी जाति या धर्म में।

“हिंदू तुरक कोऊ राफजी इमाम साफी,
मानस की जात सबै, एकै पहचान बो।
करता करीम सोई राजक रहीम ओई,
दूलरोन भेद कोई भूल भ्रम मानबो।”

इन पंक्तियों में कवि ने स्पष्ट किया है कि चाहे कोई हिंदू हो या मुसलमान, कोई राफजी हो या इमाम, सबकी पहचान एक ही है। उन्होंने बताया कि ईश्वर सभी का समान रूप से सृजन करता है और सबके प्रति न्याय करता है।

कवि ने यह भी कहा कि भगवान ही सब कुछ करता है और उसी की प्रेरणा से सब कार्य संपन्न होते हैं।

इस प्रकार, गुरु गोविन्द सिंह जी ने बताया कि सभी मनुष्यों की जाति एक है और उन्हें किसी भी प्रकार के भेदभाव या भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए। मानवता की डोर में बंधकर ही मनुष्य अपनी सच्ची पहचान प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 3: गुरुगोविंद सिंह के इन भक्ति पदों के माध्यम से सामाजिक कलह और भेदभाव को कम किया जा सकता है? पठित पद से उदाहरण देकर समझाएँ।

उत्तर:
“हिन्दू तुरक कोऊ राफजी इमाम साफी,
मानस की जात सबै एकै पहचान बो।”

इन पंक्तियों में गुरु गोविन्द सिंह जी ने साफ रूप से दर्शाया है कि ईश्वर सभी मनुष्यों का पिता है और सबकी एक ही पहचान होनी चाहिए। यहां विभिन्न जाति, धर्म और समाज के भेदभावों को दूर कर एकता और समानता की प्रेरणा दी गई है।

“एक ही सेव सबही को गुरुदेव एक,
एक ही सरुप सबै, एकै जोत जानबो।”

इस पंक्ति में भी कवि ने ईश्वर की एकता को बयान किया है। सभी मनुष्य एक ही प्रभु की सेवा के योग्य हैं, और वे सभी एक ही प्रकार से समान हैं। इससे समाज में विभाजन को दूर करने की समझ प्राप्त होती है।

“तैसे विश्वरूप ते अभूत भूत प्रगट होइ,
ताही ते उपज सबै ताही में समाहिंगे।”

इस पंक्ति में गुरु गोविन्द सिंह जी ने बताया है कि सभी मनुष्य ईश्वर के अंश हैं और उनमें एकता स्थापित करने की प्रेरणा दी है। सबकी उत्पत्ति एक ही स्थान से हुई है और सभी ईश्वर में ही लीन हो जाते हैं। इससे समाज में भेदभाव को दूर कर एकता को बढ़ावा दिया गया है।

भाव स्पष्ट करें

(क) “तैसे विस्वरूप ते अभूत भूत प्रगट होइ, ताही ते उपज सबै ताही में समाहिंगे।”

उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियाँ गुरु गोविन्द सिंह जी की कविता से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि ने ईश्वर के सर्वशक्तिमान स्वरूप की व्याख्या करते हुए यह संदेश दिया है कि सभी जीव और वस्तुएँ ईश्वर का अंश हैं। आत्मा, जो परमात्मा का ही अंश है, उसी से सभी सृष्टि की उत्पत्ति होती है और अंत में वही सबको अपने में समाहित कर लेता है। कवि ने भौतिक जगत की नश्वरता और ईश्वरीय सत्ता की महत्ता को रेखांकित किया है। इस प्रकार, गुरु गोविन्द सिंह जी ने संसार के झूठे आडंबरों को निरर्थक बताते हुए ईश्वर की सत्ता को सर्वोपरि सिद्ध किया है। सभी जीव एक ही परमात्मा के अंश हैं और अंततः उसी में विलीन हो जाते हैं।

(ख) “एक ही सेव सबही को गुरुदेव एक, एक ही सरूप सबै, एकै जोत जानबो।”

उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियाँ गुरु गोविन्द सिंह जी द्वारा लिखित कविता से ली गई हैं। इन पंक्तियों में गुरुजी ने ईश्वरीय सत्ता की महानता और विराटता को दर्शाया है। कवि कहते हैं कि सेवा के योग्य और गुरु सभी के लिए एक ही हैं। सभी का स्वरूप एक ही है और सभी एक ही ज्योति से प्रकाशित हैं। समाज में विभिन्न भेदभावों के बावजूद, सभी मनुष्यों की मूलभूत एकता की बात की गई है। इस प्रकार, गुरु गोविन्द सिंह जी ने मानव मात्र की एकता और ईश्वर की एकता को स्थापित किया है। इन पंक्तियों में ईश्वर की विराटता और महानता का गुणगान करते हुए, कवि ने यह संदेश दिया है कि सभी जीव एक ही ईश्वरीय ज्योति से प्रकट हुए हैं और उसी में समाहित हो जाते हैं।

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