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बिहार बोर्ड कक्षा 10 हिंदी पाठ्यपुस्तक का चौथा अध्याय ‘स्वदेशी’ प्रेमधन की रचना है, जो उनके संग्रह ‘प्रेमधन सर्वस्व’ से ली गई है। इस कविता में कवि ने स्वदेशी भावना और भारतीय संस्कृति के महत्व को दोहों के माध्यम से प्रस्तुत किया है। यह रचना नवजागरण काल की है, जिसमें कवि ने पाश्चात्य सभ्यता के बढ़ते प्रभाव और भारतीय मूल्यों के क्षरण पर चिंता व्यक्त की है।

Bihar Board Class 10 Hindi Padya Chapter 4 Solutions
Contents
Subject | Hindi |
Class | 10th |
Chapter | 4. स्वदेशी |
Author | प्रेमघन |
Board | Bihar Board |
Bihar Board Class 10 Hindi Padya Chapter 4 Question Answer
प्रश्न 1: कविता के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: किसी भी रचना का शीर्षक उसकी मुख्य भावधारा को प्रतिबिंबित करता है। कविता ‘स्वदेशी’ का शीर्षक बिल्कुल उपयुक्त है क्योंकि यह पराधीन भारत की दुर्दशा और लोगों की सोच को दर्शाता है। अंग्रेजी वस्तुओं को फैशन मानकर लोग स्वदेशी वस्तुओं को तुच्छ समझते हैं। रहन-सहन, खान-पान आदि सभी पाश्चात्य देशों का ही अनुकरण करते हैं। भारतीय संस्कृति और स्वदेशी वस्तुओं की अवहेलना होती है, जिससे स्पष्ट होता है कि यह शीर्षक कविता के भाव और संदेश को सही तरह से प्रस्तुत करता है। इस प्रकार, ‘स्वदेशी’ शीर्षक कविता के विषयवस्तु को पूर्णतः सार्थक बनाता है।
प्रश्न 2: कवि को भारत में भारतीयता क्यों नहीं दिखाई पड़ती?
उत्तर: कवि को भारत में भारतीयता नहीं दिखाई पड़ती क्योंकि यहाँ के लोग विदेशी रंग में रंगे हैं। खान-पान, बोल-चाल, हाट-बाजार आदि सभी मानवीय क्रिया-कलापों में अंग्रेजीयत का बोल-बाला है। पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव इतना अधिक है कि भारत का पारंपरिक पहनावा, रहन-सहन, खान-पान कहीं दिखाई नहीं देता। हिंदू, मुसलमान, ग्रामीण, शहरी, व्यापार या राजनीति, सभी में अंग्रेजी रीति-रिवाजों का पालन हो रहा है। भारतीय भाषा, संस्कृति और सभ्यता धूमिल हो गई है। इसीलिए कवि कहते हैं कि भारत में भारतीयता नहीं दिखाई देती।
प्रश्न 3: कवि समाज के किस वर्ग की आलोचना करता है और क्यों?
उत्तर: कवि उस समाज की आलोचना करता है जो अंग्रेजी बोलने में शान समझता है और विदेशी ठाट-बाट को अपनाता है। ये लोग भारतीय संस्कृति को तुच्छ मानते हैं और पाश्चात्य संस्कृति को अपनाकर गर्वित होते हैं। वे हिंदुस्तान का नाम लेने में संकोच करते हैं और हिन्दुस्तानी कहलाना हीनता की बात समझते हैं। अपनी मूल संस्कृति को भूलकर विदेशी सभ्यता को अपनाना देशहित के विरुद्ध है। इस प्रचलन को बढ़ावा देने वाले वर्ग की कवि आलोचना करते हैं क्योंकि यह देश को पुनः अपरोक्ष रूप से विदेशी दासता के बंधन में बाँधने की ओर अग्रसर कर रहा है।
प्रश्न 4: कवि नगर, बाजार और अर्थव्यवस्था पर क्या टिप्पणी करता है?
उत्तर: कवि के अनुसार, आज के नगरों में स्वदेशी की झलक बिल्कुल नहीं दिखती। नगरीय व्यवस्था, रहन-सहन सब पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण कर रहे हैं। बाजार में विदेशी वस्तुएँ ही दिखाई देती हैं और लोग उन्हें ही खरीदना पसंद करते हैं। इससे विदेशी कंपनियाँ लाभान्वित हो रही हैं और स्वदेशी वस्तुओं का बाजार-मूल्य कम हो गया है। ऐसी स्थिति देश की आर्थिक स्थिति पर कुप्रभाव डाल रही है। सर्वत्र विदेशीपन का बोल-बाला होना हमारी कमजोरी को उजागर करता है।
प्रश्न 5: नेताओं के बारे में कवि की क्या राय है?
उत्तर: कवि का मानना है कि आज के नेता भी स्वदेशी वेश-भूषा और बोल-चाल से परहेज करने लगे हैं। वे अपने देश की सभ्यता और संस्कृति को बढ़ावा देने के बजाय पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित हो रहे हैं। कवि कहते हैं कि जो नेता अपनी धोती नहीं सँभाल सकते, वे देश की व्यवस्था को कैसे सँभालेंगे। ऐसे नेता, जिनमें स्वदेशी भावना नहीं है और जो अपनी मिट्टी से दूर होते जा रहे हैं, उनसे देश सेवा की अपेक्षा नहीं की जा सकती। कवि के अनुसार, ऐसे नेताओं से देशहित की उम्मीद करना व्यर्थ है।
प्रश्न 6: कवि ने डफाली किसे कहा है और क्यों?
उत्तर: कवि उन लोगों को डफाली कहता है जो पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति के दास बन गए हैं। ये लोग विदेशी रीति-रिवाजों का अनुकरण करते हैं और अंग्रेजी की झूठी प्रशंसा में लगे रहते हैं। ये लोग पाश्चात्य संस्कृति की गाथा गाते हैं और डफाली की तरह अंग्रेजी सभ्यता का राग अलापते हैं। कवि इस प्रकार के लोगों की आलोचना करता है क्योंकि वे अपने देश की संस्कृति और सभ्यता को भूलकर विदेशी सभ्यता को अपनाते हैं।
प्रश्न 7: व्याख्या करें
(क) मनुज भारती देखि कोउ, सकत नहीं पहिचान।
उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति ‘स्वदेशी’ पद से उद्धत है, जो हिन्दी साहित्य की पाठ्य-पुस्तक में शामिल है। इसमें कवि ‘प्रेमघन’ ने व्यक्त किया है कि आजकल भारतीय लोग अपनी संस्कृति और भारतीयता से अलग हो गए हैं। उन्होंने अंग्रेजी संस्कृति के बहुत समीप जाकर विदेशीता को अपना लिया है, जिसके कारण वे अपनी पहचान खो बैठे हैं। वे अंग्रेजी भाषा, वेश-भूषा और आचरण में पूरी तरह से अंगीकार कर लिया हैं, जिससे उनकी भारतीय पहचान में कमी आ गई है।
(ख) अंग्रेजी रूचि, गृह, सकल वस्तु देस विपरीत।
उत्तर: इस पंक्ति में कवि ‘प्रेमघन’ जी ने स्पष्ट किया है कि आजकल भारतीय समाज ने स्वदेशीता को त्याग दिया है। उन्होंने विदेशी भाषा, रीति-रिवाजों को अपना लिया है और सभी कार्यों में अंग्रेजीयत का प्रचलन किया है। भारतीय संस्कृति और स्वभाव को बदलकर उन्होंने अपनी पहचान में विदेशीता को अधिक प्राथमिकता दी है, जिससे समाज का स्वदेशीता के प्रति सामर्थ्य कम हो गया है।
प्रश्न 8. आपके मत से स्वदेशी की भावना किस दोहे में सबसे अधिक प्रभावशाली है ? स्पष्ट करें।
उत्तर- मेरे विचार से दोहे संख्या 9 (नौ) में स्वदेशी की भावना सबसे अधिक प्रभावशाली है। इस दोहे में प्रेमधन सर्वस्व ‘प्रेमघन’ ने भारतीय संस्कृति और सभ्यता के मूल्यों को सराहा है। वह विदेशी संस्कृति की जगह भारतीय संस्कृति को प्राथमिकता देने की आह्वान करते हैं। आज के समय में, जब विदेशी भाषा, वस्त्र और आचार-विचार हमारे समाज में प्रवेश कर चुके हैं, यह दोहा हमें याद दिलाता है कि हमें अपनी संस्कृति को बचाने और बढ़ावा देने की आवश्यकता है। हमें अपने राष्ट्रीय और सांस्कृतिक अधिकारों को समझने और समर्थन करने की आवश्यकता है, ताकि हम अपने देश को मानवता के उच्चतम मानकों पर उठा सकें।
प्रश्न 9. स्वदेशी कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर- ‘स्वदेशी’ कविता में प्रेमधन सर्वस्व ‘प्रेमघन’ ने भारतीयता के महत्व को प्रमोट किया है। उन्होंने इस दोहे में उजागर किया है कि विदेशी रूप, भाषा और विचारधारा के बदलते समय में हमें अपनी भारतीय पहचान बनाए रखने की आवश्यकता है। वे यह स्पष्ट करते हैं कि हमारी भारतीय संस्कृति और धरोहर हमारी पहचान का अहम हिस्सा है, जिसे हमें समर्थन और संरक्षण देना चाहिए। इस दोहे में उन्होंने विदेशीकरण के खिलाफ एक सकारात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है, जो हमें स्वदेशी मानवता के मूल्यों की महत्वपूर्णता समझाता है।
प्रश्न 10. ‘स्वदेशी’ के दोहे राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत हैं। कैसे ? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर- ‘स्वदेशी’ के दोहे में प्रेमधन सर्वस्व ‘प्रेमघन’ ने राष्ट्रीय भावना को मजबूती से प्रस्तुत किया है। वे देश के स्वाभिमान और स्वतंत्रता के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को सामाजिक सुधार के लिए आवाहन करते हैं। उनके द्वारा प्रस्तुत इस दोहे में हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपनी भारतीय संस्कृति, भाषा, और परंपराओं का सम्मान करना चाहिए। वे विदेशी भावनाओं और व्यवहारों से हमें अलग रहने की प्रेरणा देते हैं, ताकि हम अपने राष्ट्रीय गर्व को बनाए रख सकें। इस दोहे के माध्यम से वे राष्ट्रभक्ति और स्वदेशी प्रेरणा को संवेदनशीलता से संदेशित करते हैं, जो हमें एकता और समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।
भाषा की बात
प्रश्न 1. निम्नांकित शब्दों से विशेषण बनाएँ-
रूचि, देस, नगर, प्रबंध, ख्याल, दासता, झूठ, प्रशंसा।
उत्तर-
- रूचि – रूच
- देरू – देसी
- नगर – नागरिक
- प्रबंध – प्रबंधित
- ख्याल – ख्याली
- दारूता – दारू
- झूठ – झठा
प्रश्न 2. निम्नांकित शब्दों का लिंग-निर्णय करते हुए वाक्य बनाएँ l
चाल-चलना; खामख्याली, खुशामद, माल, वस्तु, वाहन, रीत, हाट, दारूवृति, बानका
उत्तर-
- चाल-चलन – उसकी चाल-चलन ठीक नहीं है।
- खामख्याली – खामख्याली, झूठी होती है।
- खुशामद – खुशामद अच्छी चीज नहीं है।
- माल – माल छूट गया।
- वस्तु – वस्तु अच्छी है। वाहन
- वाहन – वाहन नया है।
- रीत – रीत उसकी रीत नई है।
- हाट – शाम का हाट लग गया।
- दारूवृति – उसकी दासवृत्ति अच्छी है।
- बानक – उका बानक अच्छा है।
प्रश्न 3. कविता से संज्ञा पदों का चुनाव करें और उनके प्रकार भी बताएं।
उत्तर-
- वस्तु – जातिवाचक
- नर – जातिवाचक
- भारतीयता – भाववाचक
- भारत – व्यक्तिवाचक संज्ञा
- मनुज – जातिवाचक संज्ञा
- भारती – व्यक्तिवाचक
- चाल-चलन – भाववाचक
- देश – जातिवाचक
- विदेश – जातिवाचक
- बरून – जातिवाचक
- गृह – जातिवाचक
- हिन्दुस्तानी – जातिवाचक
- नगर – जातिवाचक
- हाटन – जातिवाचक
- धोनी – जातिवाचक
- खुशामद – भाववाचक