Bihar Board Class 10 Hindi Padya Chapter 1 Solutions – राम बिनु बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै

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बिहार बोर्ड कक्षा 10 हिंदी की पाठ्यपुस्तक का पहला अध्याय ‘राम बिनु बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै’ गुरु नानक देव जी के दो पदों पर आधारित है। इस अध्याय में गुरु नानक देव जी के जीवन दर्शन और उनके विचारों को सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है। पहला पद राम नाम के महत्व पर प्रकाश डालता है, जबकि दूसरा पद जीवन में संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की शिक्षा देता है।

Bihar Board class 10 Hindi Padya chapter 1

Bihar Board Class 10 Hindi Padya Chapter 1 Solutions

SubjectHindi
Class10th
Chapter1. राम बिनु बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै
Authorगुरुनानक
BoardBihar Board

Bihar Board Class 10 Hindi Padya Chapter 1 Question Answer

प्रश्न 1: कवि किसके बिना जगत् में यह जन्म व्यर्थ मानता है?

उत्तर: कवि का मानना है कि राम-नाम के बिना यह जन्म व्यर्थ है। उनके अनुसार, राम-नाम के बिना जीवन केवल दुख और विषाद से भरा होता है। राम-नाम ही जीवन को सार्थक और सुखमय बनाता है।

प्रश्न 2: वाणी कब विष के समान हो जाती है?

उत्तर: वाणी विष के समान तब हो जाती है जब उसमें राम-नाम का अभाव हो और वह सिर्फ बाहरी आडंबर में लिप्त हो। ऐसी वाणी केवल काम, क्रोध और अहंकार से भरी होती है और जीवन को विषमय बना देती है।

प्रश्न 3: नाम-कीर्तन के आगे कवि किन कर्मों की व्यर्थता सिद्ध करता है?

उत्तर: कवि कहते हैं कि पुस्तक पाठ, व्याकरण का ज्ञान, तीर्थ-भ्रमण, जटा बढ़ाना, तन में भस्म लगाना और नग्न रूप में घूमना जैसे कर्म भगवान के नाम-कीर्तन के सामने व्यर्थ हैं। उनके अनुसार, केवल भगवत् नाम-कीर्तन ही सच्ची साधना है।

प्रश्न 4: प्रथम पद के आधार पर बताएं कि कवि ने अपने युग में धर्म-साधना के कैसे-कैसे रूप देखे थे?

उत्तर: कवि ने अपने युग में सिखा बढ़ाना, ग्रंथों का पाठ करना, व्याकरण वाचना, तन में भस्म रमाना, तीर्थ करना, डंड कमंडल धारण करना, और नग्न रूप में घूमना जैसे धर्म-साधना के रूप देखे थे। उनके अनुसार, ये सभी बाहरी रूप केवल आडंबर हैं और सच्ची साधना नहीं है।

प्रश्न 5: हरिरस से कवि का अभिप्राय क्या है?

उत्तर: कवि के अनुसार, हरि रस का अर्थ भगवान के नाम कीर्तन से प्राप्त आनंद और परमानंद है। राम-नाम का कीर्तन, स्मरण और उसमें डूब जाना ही हरि रस है। इस रस का पान करने से ही जीवन धन्य हो सकता है।

प्रश्न 6: कवि की दृष्टि में ब्रह्म का निवास कहाँ है?

उत्तर: कवि की दृष्टि में ब्रह्म का निवास उन प्राणियों में है जो सांसारिक विषयों की आसक्ति से रहित हैं, मान-अपमान और हर्ष-शोक से दूर हैं। काम, क्रोध, और लोभ जिन्हें नहीं छूते, उनमें ही ब्रह्म का निवास होता है।

प्रश्न 7: गुरु की कृपा से किस युक्ति की पहचान हो पाती है?

उत्तर: कवि के अनुसार, गुरु की कृपा से ही ब्रह्म को प्राप्त करने की युक्ति की पहचान हो पाती है। सांसारिक मोह, काम, क्रोध, लोभ, और द्वेष से रहित होकर ही ब्रह्म का साक्षात्कार किया जा सकता है। गुरु के बिना यह ज्ञान संभव नहीं है।

प्रश्न 8: व्याख्या करें

(क) राम नाम बिनु अरुझि मरै ।

उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति में कवि गुरुनानकजी राम-नाम की महत्ता को उजागर करते हैं। उनका कहना है कि राम-नाम के बिना मनुष्य संसार के जाल में फंसकर दुख और कष्टों से घिरा रहता है। राम-नाम की उपासना न करने से मनुष्य भटकाव और भ्रम में पड़ा रहता है और अंततः बिना किसी सार्थकता के मर जाता है। बाह्य आडंबर, जैसे तीर्थाटन, जटा बढ़ाना, और रंगीन वस्त्र धारण करना, भक्ति के बाहरी दिखावे हैं जो सच्ची भक्ति का स्थान नहीं ले सकते। राम-नाम ही सच्चा मार्ग है जो मनुष्य को शांति और मोक्ष प्रदान कर सकता है। राम-नाम के बिना जीवन एक निरर्थक संघर्ष बनकर रह जाता है। अतः कवि हमें राम-नाम की महत्ता समझाते हुए उसकी उपासना का महत्व बताना चाहते हैं। राम-नाम का स्मरण ही जीवन को सार्थक और आनंदमय बनाता है।

(ख) कंचन माटी जाने ।

उत्तर:
इस पंक्ति में कवि गुरुनानकजी ने सांसारिक मोह-माया से दूर रहने की सलाह दी है। वे कहते हैं कि सच्चे भक्त को सोने (कंचन) को मिट्टी के समान समझना चाहिए। यह दृष्टिकोण अपनाने से व्यक्ति लोभ और मोह से मुक्त होकर ब्रह्म की प्राप्ति कर सकता है। सांसारिक संपत्ति और धनोपार्जन की चाहत मनुष्य को ब्रह्म से दूर ले जाती है। ब्रह्म की प्राप्ति के लिए मन और आत्मा को समर्पित करना आवश्यक है। कवि का मानना है कि जो व्यक्ति धन-दौलत की चमक-दमक में उलझा नहीं रहता, वही सच्चे अर्थों में ब्रह्म के निकट होता है। ऐसे व्यक्ति के जीवन में ब्रह्म का निवास होता है और वही व्यक्ति वास्तविक आनंद की अनुभूति कर सकता है। गुरुनानकजी ने यह पंक्ति कहकर सांसारिक संपत्ति की व्यर्थता और ब्रह्म की सच्ची महत्ता को उजागर किया है।

(ग) हरष सोक तें रहै नियारो, नाहि मान अपमाना।

उत्तर:
इस पंक्ति में संत गुरुनानकजी बताते हैं कि सच्चा भक्त हर प्रकार के भावनात्मक उतार-चढ़ाव से परे होता है। उसे न तो खुशी में अत्यधिक आनंद होता है और न ही दुख में अत्यधिक शोक। ऐसा व्यक्ति मान-अपमान, निंदा-प्रशंसा से परे होता है। ब्रह्म को पाने के लिए मन को इन सभी भावनाओं से मुक्त करना आवश्यक है। गुरुनानकजी कहते हैं कि सच्चा भक्त वही है जो हर परिस्थिति में समान रहता है और ईश्वर की भक्ति में लीन रहता है। इस प्रकार का व्यक्ति ही सच्चे अर्थों में ब्रह्म की प्राप्ति कर सकता है। सांसारिक मोह-माया से परे होकर ही ब्रह्म के सानिध्य का अनुभव किया जा सकता है। यह पंक्ति हमें सिखाती है कि ब्रह्म की उपासना के लिए मन की स्थिरता और समर्पण आवश्यक है।

(घ) नानक लीन भयो गोविंद सो, ज्यों पानी संग पानी।

उत्तर:
इस पंक्ति में कवि गुरुनानकजी ने ब्रह्म और जीवात्मा के मिलन को समझाया है। वे कहते हैं कि जिस प्रकार पानी और पानी का मिलन होता है और दोनों में कोई भेद नहीं रह जाता, उसी प्रकार जब जीवात्मा ब्रह्म में लीन हो जाती है तो वह भी ब्रह्ममय हो जाती है। यह मिलन सांसारिक मोह-माया से मुक्त होकर और गुरु की कृपा से ही संभव है। गुरु के मार्गदर्शन से ही हम ब्रह्म की सच्ची उपासना कर सकते हैं और आत्मा को ब्रह्म में विलीन कर सकते हैं। ब्रह्म की प्राप्ति जीवन का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। जब जीवात्मा ब्रह्म में समर्पित हो जाती है, तब वह अपनी सच्ची पहचान और शांति प्राप्त करती है। इस प्रकार, गुरुनानकजी ने इस पंक्ति के माध्यम से ब्रह्म की महत्ता और गुरु की कृपा की आवश्यकता को स्पष्ट किया है।

प्रश्न 9: आधुनिक जीवन में उपासना के प्रचलित रूपों को देखते हुए नानक के इन पदों की क्या प्रासंगिकता है? अपने शब्दों में विचार करें।

उत्तर:
आधुनिक जीवन में उपासना के अनेक स्वरूप देखने को मिलते हैं, जैसे तीर्थाटन, जटा-बढ़ाना, भस्म रमाना और मंदिर-मस्जिद जाकर पूजा करना। इसके साथ ही, धर्म के नाम पर विभेद और बाह्य आडंबर भी प्रचलित हैं, जिससे लोगों को सच्ची शांति नहीं मिल पाती। नानकजी के पदों की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है क्योंकि वे राम-नाम की महिमा पर बल देते हैं। हरि-कीर्तन एक सरल और सच्चा मार्ग है, जिसमें बाहरी दिखावे की आवश्यकता नहीं होती। यदि लोग भगवत् नाम का सच्चे हृदय से स्मरण करें, तो उन्हें वास्तविक सुख, शांति और परमानंद की अनुभूति हो सकती है। नानकजी के उपदेश हमें सिखाते हैं कि ईश्वर की सच्ची उपासना बाहरी आडंबर से नहीं, बल्कि सच्चे मन से की जानी चाहिए।

भाषा की बात

प्रश्न 1. पद में प्रयुक्त निम्नांकित शब्दों के मानक आधुनिक रूप लिखें –

बिरथे, बिखु, निहफलु, मटि, संधिआ, करम, गुरसबद, तीरथभगवनु, महीअल,
सरब, माटी, अस्तुति, नियारो, जुगति, पिछानी

उत्तर-

प्रश्न 2. दोनों पदों में प्रयुक्त सर्वनामों को चिहित करें और उनके भेद बताएं।

उत्तर-

  • कहाँ – प्रश्नवाचक सर्वनाम
  • कोई – अनिश्चयवाचक सर्वनाम
  • तें – पुरूषवाचक सर्वनाम
  • यह – निश्चयवाचक सर्वनाम
  • सो – संबंधवाचक सर्वनाम

प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों के वाक्य-प्रयोग करते हुए लिंग-निर्णय करें –

जम, मुक्ति, धोती, जल, भस्म, कंचन, जुमति, स्तुति

उत्तर-

  • जग – जग बड़ा है।
  • मुक्ति – उसे मुक्ति मिल गई।
  • धोती – धोती नई है। जल गंदा है।
  • भस्म – लग गया।
  • जुगति – उसकी जुगटी अनूठी है।
  • स्तुति – ईश्वर की स्तुति करनी चाहिए।

प्रश्न 4. निम्नलिखित विशेषणों का स्वतंत्रत वाक्य प्रयोग करें –

व्यर्थ, निष्फल, नग्न, सर्व, न्यारा, सकल

उत्तर-

  • व्यर्थ – राम नाम के बिना जीवन व्यर्थ है।
  • निष्फल – प्रयोग निष्फल हो गया।
  • नग्न – वह नग्न बैठा है।
  • सर्व – सर्व नष्ट हो गया।
  • न्यारा – संसार न्यारा है।
  • सकल – आतंकवाद पर सकल विश्व एक हों।
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