Free solutions for UP Board class 9 Hindi Padya chapter 4 – “प्रेम माधुरी” are available here. These solutions are prepared by the subject experts and cover all question answers of this chapter for free.
उत्तर प्रदेश बोर्ड की कक्षा 9 की हिंदी पाठ्यपुस्तक के काव्य खंड में “प्रेम माधुरी” नामक चौथा अध्याय भारतेंदु हरिश्चंद्र जी की रचना पर आधारित है। इस अध्याय में कवित्त छंद में रचित एक सुंदर कविता का संकलन है, जो वर्षा ऋतु के आगमन और उसके प्रभाव का मनोहारी वर्णन करती है। कवि ने प्रकृति के सौंदर्य और गोपिकाओं के श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम को बड़ी ही कुशलता से चित्रित किया है। इस रचना में वर्षा ऋतु की सुंदरता, गोपिकाओं की भावनाएं और श्रीकृष्ण के प्रति उनका अटूट प्रेम सजीव रूप से प्रस्तुत किया गया है। यह अध्याय विद्यार्थियों को भारतेंदु हरिश्चंद्र की काव्य शैली, अलंकारों के प्रयोग और भावपूर्ण अभिव्यक्ति को समझने का अवसर प्रदान करता है।
UP Board Class 9 Hindi Padya Chapter 4 Solution
Contents
Subject | Hindi (काव्य खंड) |
Class | 9th |
Chapter | 4. प्रेम माधुरी |
Author | भारतेन्दु हरिश्चन्द्र |
Board | UP Board |
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए :
(अ) कूकै लगीं …………………………………………………….. बरसै लगे।
उत्तर-
- सन्दर्भ: यह पद्यांश भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की ‘प्रेममाधुरी’ से लिया गया है और इसमें वर्षा ऋतु के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया गया है।
- व्याख्या: इस छंद में कवि ने वर्षा ऋतु के आगमन का मनोहारी चित्रण किया है। कदम्ब के पेड़ों पर कोयलें मधुर स्वर में कूकने लगी हैं। पेड़ों के पत्ते वर्षा के जल से धुले हुए हैं और हवा में हिलते हुए शोभायमान हो रहे हैं। मेंढक बोलने लगे हैं और मोर अपने पंख फैलाकर नाच रहे हैं। वर्षा के आगमन से धरती हरियाली से ढक गई है और ठंडी हवा चलने लगी है। कवि हरिश्चन्द्र (जो श्रीकृष्ण का प्रतीक है) को देखकर गोपियाँ पुनः उनके दर्शन के लिए व्याकुल हो उठती हैं। यह वर्षा ऋतु बादलों के झूमने और पृथ्वी पर बरसने के साथ नए उत्साह का संचार कर रही है।
- काव्यगत सौंदर्य: इस पद्यांश में कवि ने वर्षा ऋतु के प्राकृतिक सौंदर्य को चित्रात्मक शैली में प्रस्तुत किया है। भाषा में सरलता, सरसता और प्रवाह है। अलंकार की दृष्टि से अनुप्रास और पुनरुक्ति अलंकार का प्रयोग किया गया है। शृंगार रस का सौंदर्य स्पष्ट है।
(ब) जिय पै जु………………………………………………………….. कै बिसारिए।
उत्तर-
- सन्दर्भ: यह पद्यांश भी भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की रचना ‘प्रेममाधुरी’ से लिया गया है। इसमें गोपियाँ उद्धव से अपनी प्रेमजनित विवशता का वर्णन कर रही हैं।
- व्याख्या: गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि यदि हमारा अपने मन पर अधिकार होता, तो हम लोकलाज का ध्यान रखकर सही और गलत का निर्णय कर पातीं। परन्तु हमारे मन, आँखें, कान और शरीर सब श्रीकृष्ण की ओर खिंचते हैं। हम पूरी तरह से परवश हो चुकी हैं, इसलिए आपका ज्ञान का उपदेश हमें श्रीकृष्ण से विमुख नहीं कर सकता। मन जहाँ बसा हो, उसे भुलाना असंभव है। उद्धव द्वारा दिए गए ज्ञान के उपदेश को वे व्यर्थ मानती हैं, क्योंकि उनका मन कृष्ण के प्रेम में डूबा हुआ है।
- काव्यगत सौंदर्य: यहाँ भारतेन्दु जी ने गोपियों के प्रेम की गहनता और विवशता को अत्यंत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। भाषा भावानुरूप है, और अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है। इस छंद में शृंगार रस के साथ गोपियों की प्रेम-वेदना को व्यक्त किया गया है।
(स) बहु भाँति… ………………………..अब आपुहिं धावती हैं।
उत्तर-
- सन्दर्भ: यह पद्यांश भी ‘प्रेम माधुरी’ से लिया गया है, जिसमें गोपी अपनी सखियों से वियोग की व्यथा व्यक्त कर रही है।
- व्याख्या: गोपी अपनी सखियों को उलाहना देती है कि पहले तो वे उसे तरह-तरह से आश्वासन देती थीं कि श्रीकृष्ण से मिलवा देंगी, परंतु अब वे स्वयं उससे अलग हो गई हैं। वे उसे श्रीकृष्ण से मिलाने की बजाय उसे सांत्वना देने लगी हैं। यह गोपी के लिए असहनीय है, क्योंकि सखियाँ पहले उसकी प्रेम की भावना को भड़का चुकी हैं, और अब वे स्वयं उसे शांत करने के प्रयास में दौड़ी जा रही हैं। यह व्यवहार गोपी के लिए अनुचित और पीड़ादायक है।
- काव्यगत सौंदर्य: गोपी की व्यथा को बहुत सुंदर और सजीव ढंग से चित्रित किया गया है। अनुप्रास अलंकार और ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है। विप्रलम्भ श्रृंगार रस इस छंद में स्पष्ट दिखाई देता है, जो गोपी की भावनाओं को और अधिक मार्मिक बनाता है।
(द) ऊधौ जू सूधो गहो………………………………………… यहाँ भाँग परी है।
उत्तर-
- सन्दर्भ: यह पद्यांश भी भारतेन्दु की ‘प्रेम माधुरी’ से लिया गया है, जिसमें गोपियाँ उद्धव से उनके निराकार ब्रह्म के उपदेश को नकारती हैं।
- व्याख्या: गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि वे जिस मार्ग पर ज्ञान का उपदेश दे रहे हैं, वह उनके लिए व्यर्थ है। यहाँ सभी गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रेम में लीन हैं और वे निराकार ब्रह्म के उपदेश को नहीं समझ सकतीं। उनका कहना है कि यह पूरी मंडली श्रीकृष्ण के प्रेम में पागल हो चुकी है, इसलिए उद्धव का ज्ञान यहाँ निष्फल होगा। गोपियों का यह प्रेम अनन्य और अद्वितीय है, और इसे कोई उपदेश नहीं बदल सकता।
- काव्यगत सौंदर्य: इस पद्यांश में गोपियों के श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम को बहुत सुंदर ढंग से व्यक्त किया गया है। ब्रज भाषा और मुक्तक शैली में अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है। शृंगार रस यहाँ प्रमुख रूप से दृष्टिगोचर होता है।
(य) इन दुखियान को…………………………………………………………………….रहि जायँगी।
उत्तर-
- सन्दर्भ: प्रस्तुत पद्यांश भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की रचना ‘प्रेम माधुरी’ से लिया गया है, जिसमें गोपियों के श्रीकृष्ण के वियोग में व्याकुल नेत्रों की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया गया है।
- प्रसंग: इस सवैये में गोपियाँ श्रीकृष्ण के वियोग में अपने नेत्रों की बेचैनी और पीड़ा का वर्णन कर रही हैं।
- व्याख्या: गोपियाँ कहती हैं कि श्रीकृष्ण के वियोग में उनके नेत्रों को स्वप्न में भी शांति नहीं मिलती। इन नेत्रों ने कभी स्वप्न में भी श्रीकृष्ण के दर्शन नहीं किए, इसलिए वे सदा उनके दर्शन के लिए व्याकुल रहते हैं। गोपियाँ कहती हैं कि जब श्रीकृष्ण के लौटने की अवधि बीत गई, तब उनके प्राण शरीर छोड़ने के लिए व्याकुल हो गए। परंतु उनके नेत्र अब भी श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए तड़पते हैं और मृत्यु के बाद भी ये नेत्र प्राणों के साथ नहीं जाएंगे, क्योंकि उन्होंने अपने प्रिय को जी भरकर नहीं देखा है। वे कहती हैं कि मृत्यु के बाद भी ये नेत्र जिस भी लोक में जाएंगे, वहाँ पश्चाताप करते रहेंगे कि उन्होंने अपने प्रियतम के दर्शन नहीं किए। वे उद्धव से विनती करती हैं कि श्रीकृष्ण से कहें कि उनके नेत्र मृत्यु के बाद भी उनके दर्शन की प्रतीक्षा में खुले रहेंगे।
- काव्यगत सौंदर्य: इस पद्यांश में गोपियों के एकनिष्ठ प्रेम और उनके नेत्रों की व्यथा का गहन और मार्मिक चित्रण हुआ है। भाषा ब्रज की है, जो भावनाओं को और भी सजीव बनाती है। ‘सपनेहुँ चैन न मिलना’ और ‘देखो एक बारहू न नैन भरि’ जैसे मुहावरों का सुंदर प्रयोग किया गया है। अनुप्रास और पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार का प्रयोग हुआ है, और वियोग श्रृंगार रस प्रधान है।
प्रश्न 2. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के जीवन-परिचय एवं रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की साहित्यिक सेवाओं का उल्लेख करते हुए उनके जीवन-परिचय पर प्रकाश डालिए।
अथवा, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की कृतियों का उल्लेख करते हुए उनकी भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र आधुनिक हिन्दी साहित्य के जनक माने जाते हैं। उनका जन्म 1850 में काशी में हुआ था। उन्होंने कविता, नाटक, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएँ कीं और हिन्दी भाषा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी प्रमुख रचनाओं में ‘वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति’, ‘भारत दुर्दशा’, और ‘अंधेर नगरी’ शामिल हैं। भारतेन्दु की भाषा सरल, सहज और जनसामान्य के करीब थी, जिसने हिन्दी साहित्य को नई दिशा दी।
प्रश्न 3. ‘प्रेम माधुरी’ के सम्बन्ध में भारतेन्दु के विचारों को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- ‘प्रेम माधुरी’ में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने गोपियों के कृष्ण-प्रेम की गहराई और तीव्रता को दर्शाया है। कवि ने वर्षा ऋतु के माध्यम से विरह की पीड़ा को व्यक्त किया है, जहाँ प्रकृति की सुंदरता गोपियों के दुख को और बढ़ा देती है। गोपियों का कृष्ण के प्रति अटूट प्रेम उनके द्वारा उद्धव के ज्ञान-उपदेश को अस्वीकार करने में दिखता है। भारतेन्दु ने इस कृति में भक्ति और प्रेम के उच्चतम रूप को प्रस्तुत किया है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. ‘प्रलय’ की चाल से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर- प्रलय की चाल से कवि का तात्पर्य आँखों से बहते आँसुओं की तीव्रता से है, जैसे प्रलय में जल भर जाता है, वैसे ही आँखों में आँसू भर जाते हैं।
प्रश्न 2. श्रीकृष्ण को भूलने में गोपियाँ अपने को असमर्थ क्यों पाती हैं?
उत्तर- गोपियाँ श्रीकृष्ण को इसलिए नहीं भूल पातीं, क्योंकि उनका मन पूरी तरह से श्रीकृष्ण में समर्पित हो चुका है, और वे उनसे अत्यधिक प्रेम करती हैं।
प्रश्न 3. ‘कूप ही में यहाँ भाँग परी है’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर- इस पंक्ति का अर्थ है कि ब्रजवासियों में श्रीकृष्ण के प्रेम का नशा ऐसा चढ़ा है, जैसे कुएँ में भाँग पड़ गई हो, जिससे सभी उनके प्रेम में डूबे हुए हैं।
प्रश्न 4. निगोड़े का अर्थ स्पष्ट करते हुए बताइए कि बादलों को निगोड़े क्यों कहा गया है?
उत्तर- गोपियों ने बादलों को निगोड़ा इसलिए कहा क्योंकि वे श्रीकृष्ण के बिना विरह में हैं, और बादलों का उमड़ना उनकी विरह वेदना को और बढ़ा रहा है।
प्रश्न 5. ‘आग लगा कर पानी के लिए दौड़ने’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- इसका आशय है पहले किसी समस्या को उत्पन्न करना और फिर उसे हल करने का नाटक करना, जैसे गोपी की सखियाँ पहले उसे आशा देती हैं और फिर उसे समझाती हैं।
प्रश्न 6. वियोगिनी गोपियों की आँखों को सदैव पश्चात्ताप क्यों रहेगा?
उत्तर- गोपियों की आँखों को श्रीकृष्ण के दर्शन न कर पाने का पश्चाताप रहेगा, क्योंकि वे उन्हें अपने नयनों में भरकर नहीं देख पायीं।
प्रश्न 7. कृष्ण के रूप-सौन्दर्य को देखे बिना गोपियों के नेत्रों की क्या दशा हो रही है?
उत्तर- गोपियों के नेत्र श्रीकृष्ण के बिना बेचैन हैं, वे न तो चैन से सो पा रही हैं और न ही श्रीकृष्ण के दर्शन का सुख पा रही हैं।
प्रश्न 8. भारतेन्दु जी के लेखन की भाषा बताइए।
उत्तर- भारतेन्दु जी ने अपने लेखन में मुख्य रूप से ब्रजभाषा और खड़ी बोली का प्रयोग किया है, जो सरल और प्रभावी है।
प्रश्न 9. ‘उतै चलि जात’ में किधर जाने की ओर संकेत है?
उत्तर- इस पंक्ति में संकेत मथुरा की ओर है, जहाँ श्रीकृष्ण गए थे, और गोपियाँ भी उसी ओर जाना चाहती हैं।
प्रश्न 10. ‘रितून को कंत’ किसे और क्यों कहा गया है?
उत्तर- बसंत को ‘रितून का कंत’ कहा गया है, क्योंकि यह ऋतु प्रेम और सौंदर्य की प्रतीक मानी जाती है, जब प्रकृति खिल उठती है।
प्रश्न 11. गोपियाँ उद्धव से ज्ञान का उपदेश वापस ले जाने के लिए क्यों कह रही हैं?
उत्तर- गोपियाँ उद्धव से उपदेश वापस लेने के लिए कहती हैं, क्योंकि उनका मन श्रीकृष्ण में लगा हुआ है और वे उनके बिना कोई अन्य उपदेश नहीं सुनना चाहतीं।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र किस युग के साहित्यकार हैं?
उत्तर- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार माने जाते हैं।
प्रश्न 2. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को ‘भारतेन्दु’ की उपाधि से किसने सम्मानित किया?
उत्तर- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को यह उपाधि काशी के विद्वानों ने उनकी साहित्य सेवा के लिए दी थी।
प्रश्न 3. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की किन्हीं दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर- ‘भारत दुर्दशा’ और ‘अंधेर नगरी’ उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।
प्रश्न 4. ‘प्रेम-माधुरी’ भारतेन्दु जी की किस भाषा की रचना है?
उत्तर- ‘प्रेम माधुरी’ भारतेन्दु जी की रचना ब्रजभाषा में है।
प्रश्न 5. भारतेन्दु युग के उस कवि का नाम बताइए, जिसे खड़ीबोली का जनक कहा जाता है।
उत्तर- खड़ीबोली का जनक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को माना जाता है।
प्रश्न 6. निम्नलिखित में से सही उत्तर के सम्मुख सही (✓) का चिह्न लगाइए-
(अ) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र शुक्ल युग के कवि हैं। (✗)
(ब) ‘कविवचन सुधा’ पत्रिका के सम्पादक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र थे। (✓)
काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध
प्रश्न 1. निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए-
(अ) परसों को बिताय दियो बरसों तरसों कब पांय पिया परसों।
(ब) पिय प्यारे तिहारे निहारे बिना, अँखियाँ दुखियाँ नहीं मानती हैं।
(स) बोलै लगे दादुर मयूर लगे नाचै फेरि ।
देखि के संजोगी जन हिय हरसै लगे।
उत्तर-
(अ) काव्य-सौन्दर्य-
- यहाँ पर कवि ने बसंत ऋतु के आगमन का सुन्दर वर्णन करते हुए गोपियों की विरह अवस्था का मर्मस्पर्शी चित्रण किया है। प्रकृति के उद्दीपन रूप का सजीव चित्रण है।
- अलंकार- अन्त्यानुप्रास, वृत्त्यनुप्रास।
- रस- विप्रलम्भ श्रृंगार।
- भाषा- साहित्यिक ब्रजभाषा।
- शैली- भावात्मक।
- छन्द- सवैया।
- गुण- माधुर्य ।
(ब) काव्य-सौन्दर्य-
- यहाँ गोपियों की श्रीकृष्ण दर्शन की तीव्र लालसा का सुन्दर चित्रण है।
- अलंकार- अनुप्रास
- रस- वियोग श्रृंगार ।
- भाषा- साहित्यिक ब्रजभाषा।
- गुण- माधुर्य ।
- शैली- भावात्मक।
- छन्द- सवैया।
(स) काव्य-सौन्दर्य-
- इन पंक्तियों में वर्षा ऋतु का सौंदर्य और प्राकृतिक परिवेश का मनोहारी चित्रण किया गया है। वर्षा में दादुर (मेंढक) की टर्र-टर्र और मोर के नृत्य से वातावरण आनंदमय हो जाता है, जिसे देखकर संयोगी जनों के हृदय में प्रसन्नता का संचार होता है। अलंकार: अनुप्रास
- रस: श्रृंगार (संयोग)
- भाषा: साहित्यिक ब्रजभाषा
- गुण: माधुर्य
- शैली: चित्रात्मक
- छन्द: सवैया
प्रश्न 2. ‘कुकै लग कोइलैं कदंबन पै बैठि फेरि’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर- ‘कूकै लगीं’ कोइलैं कदंबन पै बैठि फेरि’ में वृत्त्यनुप्रास अलंकार है।
प्रश्न 3. निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ स्पष्ट करते हुए वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
प्रलय ढाना, पलकों में न समाना, कुएँ में भाँग पड़ी होना।
उत्तर-
- प्रलय ढाना- (कहर ढाना)
मेरे परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने पर घर में जैसे प्रलये ढा गया हो। - पलकों में न समाना- (आनन्दित होना)
विवाह के समय इतना उल्लास था कि वह आनन्द जैसे पलकों में न समा रहा हो। - कुएँ में भाँग पड़ी होना- (सभी की एक जैसी स्थिति)।
कृष्ण के विरह में ब्रज की सभी गोपियाँ व्याकुल थीं, जिसे देखकर लगता था जैसे पूरे कुएँ में भाँग पड़ी हो।