Free solutions for UP Board class 9 Hindi Padya chapter 10 – “बादल को घिरते देखा है” are available here. These solutions are prepared by the subject experts and cover all question answers of this chapter for free.
उत्तर प्रदेश बोर्ड की कक्षा 9 की हिंदी पाठ्यपुस्तक के पद्य खंड में “बादल को घिरते देखा है” शीर्षक से एक सुंदर कविता शामिल है। यह कविता प्रसिद्ध कवि बाबा नागार्जुन द्वारा रचित है। इस कविता में नागार्जुन जी ने हिमालय के वर्षाकालीन सौंदर्य का मनमोहक चित्रण किया है। उन्होंने बर्फ से ढकी हिमालय की ऊंची चोटियों पर बादलों के घिरने का आकर्षक दृश्य प्रस्तुत किया है। यह कविता प्रकृति के प्रति कवि के गहरे प्रेम और संवेदनशीलता को दर्शाती है। साथ ही, यह रचना बाबा नागार्जुन की विशिष्ट काव्य शैली का भी परिचय देती है, जिसमें प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ समाज के प्रति उनकी गहरी समझ भी झलकती है।
UP Board Class 9 Hindi Padya Chapter 10 Solution
Contents
Subject | Hindi (काव्य खंड) |
Class | 9th |
Chapter | 10. बादल को घिरते देखा है |
Author | नागार्जुन |
Board | UP Board |
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए :
(अ) निशा काल ………………………………………………………………………….. के तीरे।
उत्तर-
सन्दर्भ: प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में सम्मिलित है, जो नागार्जुन द्वारा रचित ‘बादल को घिरते देखा है’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने हिमालय और उसके प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत वर्णन किया है।
प्रसंग: इन पंक्तियों में कवि नागार्जुन हिमालय के मोहक और अद्भुत दृश्य का चित्रण कर रहे हैं। वे हिमालय की ऊँचाइयों पर उमड़ते-घुमड़ते बादलों को देख रहे हैं और उसके विभिन्न प्राकृतिक तत्वों का सुंदर विवरण प्रस्तुत करते हैं।
व्याख्या: कवि कहता है कि चकवा-चकवी रातभर एक-दूसरे से अलग रहते हैं और सुबह होते ही वे मानसरोवर के तट पर मिलते हैं। कवि ने इन पक्षियों के माध्यम से प्रकृति के वैभव और उसकी सूक्ष्मता को प्रकट किया है। इसके बाद कवि कालिदास के प्रसिद्ध महाकाव्य ‘मेघदूत’ का उल्लेख करते हुए कुबेर की अलका नगरी और उसके धन के वैभव को याद करते हैं। कवि यह भी कहते हैं कि अब उस कालिदास के मेघ का कोई दूत दिखाई नहीं देता। कवि की कल्पना में वे बादल जो कहीं और बरस सकते थे, उन्हें उन्होंने हिमालय की ऊँचाइयों पर गरजते हुए देखा। यहाँ का वातावरण अत्यधिक ठंडा है और ऊँचाई पर स्थित बर्फ से ढके पर्वतों पर बादलों का संघर्ष अद्वितीय है। साथ ही, उन्होंने कस्तूरी मृग के माध्यम से जीवन की अंतर्निहित खोज और असंतोष का वर्णन किया है, जिसमें मृग अपनी नाभि में स्थित कस्तूरी को खोजने के लिए इधर-उधर दौड़ता रहता है लेकिन उसे प्राप्त नहीं कर पाता।
काव्यगत सौंदर्य: इस पद्यांश में कवि ने प्रकृति के अद्भुत चित्रण के साथ-साथ कल्पना और यथार्थ का सुंदर मिश्रण किया है। तत्सम शब्दावली का प्रयोग इसे भाषा की ऊँचाई प्रदान करता है। यहाँ श्रृंगार रस की अनुभूति होती है, विशेषकर चकवा-चकवी के मिलन के दृश्य में। अनुप्रास अलंकार का प्रयोग कविता को मधुर और सजीव बनाता है, जबकि कवि की प्रकृति-चित्रण कला उनकी रचनात्मकता को उजागर करती है।
(ब) दुर्गम बर्फानी ……………………………………………………. धावित हो-होकर
उत्तर-
सन्दर्भ: प्रस्तुत पद्यांश नागार्जुन द्वारा रचित ‘बादल को घिरते देखा है’ शीर्षक कविता से लिया गया है, जो हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में सम्मिलित है। इसमें कवि ने हिमालय की दुर्गम बर्फानी घाटियों और वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य का अनूठा चित्रण किया है।
प्रसंग: इस कविता में कवि ने कस्तूरी मृग के माध्यम से जीवन के सतत संघर्ष और उसकी अंतर्निहित खोज को दर्शाया है। हिमालय की ऊँचाईयों पर स्थित बर्फानी घाटियों में कस्तूरी मृग अपनी नाभि में स्थित कस्तूरी की सुगंध के पीछे दौड़ता है, जो प्रतीकात्मक रूप से जीवन की असंतोषजनक खोज को दर्शाता है।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि कस्तूरी मृग अपनी नाभि में स्थित कस्तूरी की सुगंध से इतना अधिक प्रभावित होता है कि वह उसे प्राप्त करने के लिए लगातार दौड़ता रहता है। वह इस सुगंध को अपने बाहर खोजने की कोशिश करता है, जबकि कस्तूरी उसी की नाभि में होती है। यहाँ मृग की यह दौड़ मानव जीवन की उन स्थितियों को दर्शाती है जहाँ व्यक्ति बाहरी सुखों की खोज में खुद को भटकाता रहता है, जबकि वास्तविक संतोष और आनंद उसके भीतर ही होता है। कवि ने बर्फ से ढके दुर्गम पर्वत-शिखरों का उल्लेख कर इस दृश्य को और भी प्रभावशाली बना दिया है। कस्तूरी मृग का यह उन्माद और उसकी अंतहीन खोज जीवन के असली रहस्यों की ओर इशारा करती है।
काव्यगत सौंदर्य: इस पद्यांश में कवि ने प्रकृति और मानवीय भावनाओं का गहरा और प्रतीकात्मक चित्रण किया है। कस्तूरी मृग की नाभि में स्थित कस्तूरी की सुगंध का उल्लेख कर कवि ने आत्मज्ञान और आंतरिक खोज की ओर संकेत किया है। तत्सम शब्दावली और अनुप्रास अलंकार का प्रयोग इसे भाषा की सुंदरता और मधुरता प्रदान करता है। इस कविता में श्रृंगार और शांत रस का सुंदर समन्वय दिखाई देता है, जो इसे एक अद्वितीय साहित्यिक अनुभव बनाता है।
(स) रजत-रचित…………………………………………………….. की त्रिपदी पर
उत्तर-
सन्दर्भ: प्रस्तुत पद्यांश कविवर नागार्जुन द्वारा रचित ‘बादल को घिरते देखा है’ शीर्षक कविता से लिया गया है, जो हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में सम्मिलित है। इस कविता में कवि ने हिमालय के रमणीय और ऐश्वर्यपूर्ण दृश्यों का अद्भुत वर्णन किया है।
प्रसंग: इस कविता में कवि हिमालय के प्राकृतिक सौंदर्य को कल्पना और यथार्थ के माध्यम से प्रस्तुत कर रहे हैं। यहाँ कवि ने प्राचीन काल के महलों, विलासिता और राजा-महाराजाओं के जीवन की झलक को दिखाया है, जो हिमालय की ऊँचाइयों से जुड़ी कल्पनाओं से मेल खाती हैं।
व्याख्या: इस पद्यांश में कवि ने हिमालय की प्राकृतिक सुंदरता और वहाँ की शांति का वर्णन करते हुए प्राचीन समय के विलासितापूर्ण जीवन की तस्वीर खींची है। कवि के अनुसार, राजमहलों में रजत (चाँदी) से बने मणियों से जड़े हुए कलात्मक पान-पात्र रखे होते थे, जिनमें द्राक्षासव (एक प्रकार का मद्य) भरा होता था। राजाओं और अमीर वर्ग के लोग इन्हीं कलामय पात्रों में मद्यपान करते थे। साथ ही, लोहित (लाल) चंदन की बनी हुई त्रिपदी (तीन पैर वाली छोटी मेज) पर ये पान-पात्र रखे जाते थे, जो उनके जीवन की विलासिता और संपन्नता को दर्शाता है। इस दृश्य के माध्यम से कवि ने हिमालय की शीतलता और सौंदर्य का अनोखा चित्रण किया है, जहाँ प्रकृति भी राजसी ठाठ-बाठ के साथ जुड़ती है।
काव्यगत सौंदर्य: इस पद्यांश में कवि ने शृंगार रस का सुंदर प्रयोग किया है, जो विलासिता और प्रकृति की शोभा को साथ-साथ प्रस्तुत करता है। तत्सम शब्दों का प्रयोग भाषा को गरिमामय और समृद्ध बनाता है। अलंकारों में अनुप्रास और उपमा का प्रयोग कविता में संगीतात्मकता लाता है। यहाँ का सौंदर्य और वर्णन काव्य कला की कुशलता को दर्शाता है, जहाँ कवि ने अद्वितीय कल्पना और यथार्थ का सम्मिश्रण किया है, जो पाठक को मोहक और प्रभावित करता है।
(द) कहाँ गया धनपति ……………………………………………….. भिड़ते देखा है ।
उत्तर-
सन्दर्भ: प्रस्तुत पद्यांश कविवर नागार्जुन द्वारा रचित ‘बादल को घिरते देखा है’ शीर्षक कविता से लिया गया है, जो हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में सम्मिलित है। इस कविता में कवि ने हिमालय के प्राकृतिक सौंदर्य और कल्पना का अद्वितीय मिश्रण प्रस्तुत किया है।
प्रसंग: इस कविता में कवि नागार्जुन ने प्राचीन काल में वर्णित कुबेर की अलका नगरी और कालिदास के मेघदूत की चर्चा की है, जो अब खो चुके हैं। वे हिमालय के पर्वतों पर उमड़ते-घुमड़ते बादलों और वहां की ठंडी हवाओं का सजीव चित्रण करते हैं।
व्याख्या: कवि प्रश्न करते हैं कि कहाँ गया कुबेर, जो धन का देवता था, और उसकी सुंदर अलका नगरी कहाँ चली गई? कालिदास का मेघदूत अब कहाँ है, जो आकाश में गमन करता था और प्रेमी यक्ष का संदेश लेकर जाता था? कवि कहते हैं कि उन्होंने इस मेघदूत को बहुत ढूँढा, लेकिन उसे कहीं नहीं पाया। शायद वह बादल, जो यायावर (घूमने वाला) था, कहीं यहीं हिमालय की ऊँचाइयों पर बरस गया हो। इसके बाद कवि कहते हैं कि ये बातें कवि की कल्पना मात्र हैं। वास्तविकता में, उन्होंने भीषण ठंड के दौरान कैलाश पर्वत के ऊँचे शिखरों पर विशाल बादलों को तूफानी हवाओं के साथ गरजते और एक-दूसरे से टकराते हुए देखा है। यह दृश्य उनके लिए कल्पना से परे एक अद्भुत अनुभव था।
काव्यगत सौंदर्य: इस पद्यांश में कवि ने प्रकृति और कल्पना का अनूठा संयोजन प्रस्तुत किया है। काव्य में तत्सम शब्दों का प्रयोग इसे गंभीरता और प्रभावशीलता प्रदान करता है। अनुप्रास अलंकार का प्रयोग कविता को लयबद्ध और मधुर बनाता है। शृंगार और वीर रस का मेल यहाँ कवि की कल्पनाशक्ति और यथार्थ को बखूबी दर्शाता है। हिमालय के भव्य दृश्य और मेघों का संघर्ष प्रकृति की महानता और सौंदर्य को चित्रित करता है, जिससे पाठक गहराई से प्रभावित होता है।
प्रश्न 2. नागार्जुन का जीवन-परिचय देते हुए उनकी भाषा-शैली का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
नागार्जुन का जीवन-परिचय: कवि नागार्जुन का जन्म 30 जून 1911 को बिहार के दरभंगा जिले के सतलखा गाँव में हुआ था। उनका वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र था, लेकिन साहित्यिक जगत में वे नागार्जुन के नाम से प्रसिद्ध हुए। वे एक जनकवि थे, जिनकी कविताओं में सामाजिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक विषयों का अद्वितीय चित्रण मिलता है। नागार्जुन ने संस्कृत, हिंदी, मैथिली और बांग्ला में साहित्य रचना की। वे ग्रामीण भारत की पीड़ा, संघर्ष और शोषण की आवाज़ थे, और अपने जीवन में कई आंदोलनों और जन-आंदोलनों से जुड़े रहे। उनकी प्रमुख रचनाओं में ‘युगधारा’, ‘रतिनाथ की चाची’, ‘बलचनमा’, और ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ प्रमुख हैं। वे सरल, सजीव और जन-मानस की भावनाओं को व्यक्त करने वाले कवि थे। नागार्जुन का निधन 5 नवंबर 1998 को हुआ।
भाषा-शैली का उल्लेख: नागार्जुन की भाषा-शैली सरल, सजीव और जनसाधारण की भाषा थी। उनकी कविताएँ और रचनाएँ आम जनमानस की बोली-बानी में होती थीं, जिससे उनका काव्य सीधे लोगों के दिलों तक पहुँचता था। उन्होंने खड़ीबोली, तत्सम और तद्भव शब्दों का सुंदर प्रयोग किया। उनकी भाषा में व्यंग्यात्मकता और सजीव चित्रण की विशेषता दिखाई देती है, जिससे उनकी कविताएँ अधिक प्रभावी बनती हैं। उनकी शैली में प्रचुर मात्रा में लोकभाषा और ग्रामीण संस्कृति का प्रयोग मिलता है, जो उन्हें जनकवि की श्रेणी में उच्च स्थान पर स्थापित करता है। उन्होंने सामान्य से सामान्य विषय को अपनी भाषा-शैली के माध्यम से अद्वितीय रूप में प्रस्तुत किया, जिससे उनकी कविताएँ और रचनाएँ पाठकों पर गहरा प्रभाव छोड़ती हैं।
प्रश्न 3. नागार्जुन का जीवन वृत्त लिखकर उनके साहित्यिक योगदान का उल्लेख कीजिए l
उत्तर-
नागार्जुन का जीवन-वृत्त:
नागार्जुन का जन्म 30 जून 1911 को बिहार के दरभंगा जिले के सतलखा गाँव में हुआ था। उनका वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र था, लेकिन साहित्यिक जगत में वे नागार्जुन के नाम से प्रसिद्ध हुए। वे एक बहुभाषी रचनाकार थे और हिंदी, मैथिली, संस्कृत, और बांग्ला में साहित्य सृजन किया। नागार्जुन ने प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत पाठशालाओं में प्राप्त की। वे बौद्ध धर्म के प्रति आकर्षित हुए और बाद में ‘नागार्जुन’ नाम ग्रहण किया। उनका जीवन संघर्ष और सामाजिक चेतना से भरा हुआ था, और वे विभिन्न जन आंदोलनों से जुड़े रहे। अपने जीवन में उन्होंने सामाजिक न्याय और गरीबों की समस्याओं पर खुलकर आवाज उठाई। उनका निधन 5 नवंबर 1998 को हुआ।
नागार्जुन का साहित्यिक योगदान:
नागार्जुन भारतीय साहित्य में एक क्रांतिकारी जनकवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने कविता, उपन्यास, निबंध, और आलोचना सहित कई विधाओं में उत्कृष्ट रचनाएँ कीं। उनकी कविताएँ समाज के शोषित, पीड़ित, और वंचित वर्ग की समस्याओं को मुखर रूप से प्रस्तुत करती हैं। उनकी प्रमुख काव्य रचनाओं में ‘हरिजन गाथा’, ‘युगधारा’, ‘खिचड़ी विप्लव देखा हमने’, और ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
नागार्जुन का उपन्यास ‘बलचनमा’ और ‘रतिनाथ की चाची’ ग्रामीण जीवन और समाज में व्याप्त विषमताओं का सजीव चित्रण करते हैं। उनका लेखन व्यंग्य और सामाजिक आलोचना का सशक्त माध्यम रहा। उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से राजनीति, समाज, और सांस्कृतिक विषयों पर भी करारा प्रहार किया। उनके साहित्य में जनता की आवाज़, उनकी पीड़ा और संघर्ष की गहरी अभिव्यक्ति मिलती है।
नागार्जुन की भाषा शैली सरल, सजीव और जनमानस की भाषा थी। उनके साहित्य में वेदना, संघर्ष, और विद्रोह की भावनाएँ प्रमुख रूप से प्रकट होती हैं। साहित्य के क्षेत्र में उनका योगदान अमूल्य है, जिसने उन्हें हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान दिलाया।
प्रश्न 4. नागार्जुन के साहित्यिक अवदान एवं रचनाओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
नागार्जुन के साहित्यिक अवदान:
नागार्जुन भारतीय साहित्य के एक ऐसे अद्वितीय रचनाकार थे जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया। वे जनकवि के रूप में विख्यात थे, जिनकी रचनाएँ सीधे समाज के आम जनों की समस्याओं, दुख-दर्द, और संघर्षों को प्रतिबिंबित करती हैं। उनके साहित्य का प्रमुख अवदान यही है कि उन्होंने समाज के वंचित और शोषित वर्ग की आवाज़ को बुलंद किया। वे अपनी लेखनी के माध्यम से किसानों, मजदूरों, और गरीबों के जीवन को केंद्र में रखकर उनकी समस्याओं पर चर्चा करते थे। नागार्जुन का साहित्य उनके समय की राजनीतिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक परिस्थितियों का सजीव चित्रण है।
उनकी रचनाएँ सरल भाषा में होती थीं, ताकि आम जनता भी उन्हें समझ सके। उन्होंने शोषण, भ्रष्टाचार, और अन्याय के खिलाफ अपनी कलम को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। उनके काव्य में व्यंग्य, विद्रोह, और क्रांति की भावना प्रमुख रूप से देखने को मिलती है। नागार्जुन का साहित्यिक अवदान यह है कि उन्होंने जन-आंदोलनों और सामाजिक सुधारों को साहित्य का विषय बनाया और इसे लोक जीवन से जोड़ा। उनकी रचनाओं में शृंगार, वीर, और करुण रस का अद्भुत मिश्रण है, जो पाठक के दिल को गहराई तक छूता है।
नागार्जुन की प्रमुख रचनाएँ:
कविता संग्रह: नागार्जुन की कविताएँ उनके क्रांतिकारी विचारों और समाज में हो रहे अन्याय के खिलाफ उनकी आवाज़ का प्रतीक हैं। उनके प्रमुख कविता संग्रहों में ‘युगधारा’, ‘खिचड़ी विप्लव देखा हमने’, ‘हरिजन गाथा’, और ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ शामिल हैं। इन कविताओं में उन्होंने समाज के हाशिये पर खड़े लोगों की पीड़ा और संघर्ष को केंद्र में रखा।
उपन्यास: नागार्जुन के उपन्यास उनके ग्रामीण जीवन के सजीव चित्रण के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके प्रमुख उपन्यासों में ‘बलचनमा’ और ‘रतिनाथ की चाची’ का नाम लिया जाता है। ‘बलचनमा’ में उन्होंने ग्रामीण समाज की आर्थिक और सामाजिक विषमताओं का गहन विश्लेषण किया है, जबकि ‘रतिनाथ की चाची’ में पारिवारिक और सामाजिक संबंधों की जटिलताओं को उजागर किया है।
निबंध और आलोचना: नागार्जुन ने निबंध और आलोचना के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनके निबंध सामाजिक और राजनीतिक विषयों पर होते थे, जिनमें उन्होंने तात्कालिक समस्याओं पर विचार किया। उनकी भाषा और शैली सजीव और प्रभावी थी, जो पाठक को गहराई तक प्रभावित करती है।
अन्य रचनाएँ: नागार्जुन ने बांग्ला, मैथिली, और संस्कृत में भी साहित्य सृजन किया। उन्होंने मैथिली में भी कविताएँ लिखीं और बांग्ला साहित्य का भी हिंदी में अनुवाद किया। उनका बहुभाषी साहित्यिक योगदान उन्हें एक विशिष्ट स्थान प्रदान करता है।
नागार्जुन का साहित्यिक अवदान भारतीय साहित्य में अमूल्य है। उन्होंने साहित्य को एक सशक्त माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया और समाज की समस्याओं पर प्रखरता से विचार किया, जिससे वे जनता के कवि के रूप में सदैव स्मरणीय रहेंगे।
प्रश्न 5. नागार्जुन का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए तथा उनके काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
नागार्जुन का जीवन-परिचय:
नागार्जुन का जन्म 30 जून 1911 को बिहार के दरभंगा जिले में हुआ था। उनका असली नाम वैद्यनाथ मिश्र था, परंतु वे साहित्य जगत में ‘नागार्जुन’ नाम से प्रसिद्ध हुए। वे बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित हुए और ‘नागार्जुन’ नाम धारण किया। उनका जीवन संघर्षशील रहा और वे समाजवादी विचारधारा के समर्थक थे। 5 नवंबर 1998 को उनका निधन हुआ।
रचनाएँ:
नागार्जुन की प्रमुख रचनाओं में ‘युगधारा’, ‘हरिजन गाथा’, ‘खिचड़ी विप्लव देखा हमने’, ‘बलचनमा’, और ‘रतिनाथ की चाची’ शामिल हैं।
काव्य-सौन्दर्य:
नागार्जुन की कविताएँ सजीव चित्रण, सरल भाषा, व्यंग्य, और जनसाधारण की भावनाओं को व्यक्त करती हैं। उनके काव्य में प्रकृति, समाज और विद्रोह के सुंदर चित्र मिलते हैं, जिससे पाठक गहराई से प्रभावित होते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. नागार्जुन ने अपनी कविता ‘बादल को घिरते देखा है’ में प्रकृति के किस रूप के सौन्दर्य का वर्णन किया?
उत्तर: नागार्जुन ने इस कविता में हिमालय की कैलाश पर्वत की चोटी पर घिरते बादलों के सौंदर्य का वर्णन किया है। उन्होंने बादलों के घिरने, गरजने और हवाओं से टकराने का जीवंत चित्रण किया है। कवि ने प्रकृति के इस रूप को न केवल देखा है, बल्कि उसके साथ एकाकार होकर अनुभव किया है। यह वर्णन पाठकों को प्रकृति की विशालता और शक्ति का अहसास कराता है।
प्रश्न 2. ‘महामेघ को झंझानिल से गरज-गरज भिड़ते देखा है’ पंक्ति में प्राकृतिक वर्णन के अतिरिक्त मुख्य भाव क्या है?
उत्तर: इस पंक्ति में प्राकृतिक वर्णन के साथ-साथ जीवन संघर्ष का भाव भी निहित है। कवि बादलों और हवाओं के टकराव को मनुष्य के जीवन संघर्ष से जोड़ते हैं। वे दिखाते हैं कि जैसे बादल हवाओं से लड़ते हैं, वैसे ही मनुष्य को भी जीवन की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। यह पंक्ति हमें सिखाती है कि कठिनाइयों के बावजूद हमें अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए।
प्रश्न 3. कवि ने नरेत्तर (मनुष्य से इतर) दम्पतियों का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर: कवि ने नरेत्तर दम्पतियों का वर्णन बहुत सुंदर और कल्पनाशील तरीके से किया है। उन्होंने किन्नर युगलों को दिव्य और आकर्षक रूप में चित्रित किया है। कवि ने उनके श्रृंगार का वर्णन किया है, जिसमें सुगंधित फूल, मणि की माला, और नीलकमल के कर्णफूल शामिल हैं। उन्होंने किन्नरों को हिरण की खाल पर बैठे और अंगूरी शराब पीते हुए दिखाया है। यह वर्णन पौराणिक कल्पना और सौंदर्य बोध को दर्शाता है।
प्रश्न 4. ‘बादल को घिरते देखा है’ शीर्षक कविता का सारांश लिखिए।
उत्तर: ‘बादल को घिरते देखा है’ कविता में कवि नागार्जुन ने कैलास पर्वत पर बादलों के सौंदर्य और उनके संघर्ष का जीवंत चित्रण किया है। कविता में, कवि ने पर्वत की ऊँचाइयों पर घिरते बादलों का वर्णन किया है, जो निर्मल और चाँदी जैसे सफेद हैं। इन बादलों की उपस्थिति से पर्वत और वातावरण मनोहारी बन जाते हैं। कवि ने दर्शाया है कि बड़े-बड़े बादल तूफानी हवाओं के साथ गरजते हुए संघर्ष करते हैं, हालांकि हवाएँ अंततः उन्हें उड़ा ले जाती हैं। इसके बावजूद, बादल अपने अस्तित्व के लिए लगातार संघर्षरत रहते हैं।
आकाश में छाए बादल किन्नर प्रदेश की शोभा को और भी अद्वितीय बना देते हैं। झरनों की कल-कल ध्वनि देवदार के वनों को गुंजायमान कर देती है, और इन वनों में किन्नर और किन्नरियाँ विलासितापूर्ण क्रीड़ाएँ करती हैं। इस प्रकार, कविता में कवि ने प्राकृतिक सौंदर्य और किन्नर प्रदेश की रमणीयता को एक साथ चित्रित किया है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. नागार्जुन किस युग के कवि हैं?
उत्तर: नागार्जुन आधुनिक (प्रगतिवाद) युग के कवि हैं।
प्रश्न 2. नागार्जुन की रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: युगधारा, बलचनमा।
प्रश्न 3. नागार्जुन की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: नागार्जुन की भाषा सहज, सरल, और जनसाधारण की भावनाओं को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने वाली है।
प्रश्न 4. ‘बादल को घिरते देखा है’ शीर्षक कविता का सारांश लिखिए।
उत्तर: कविता में कवि ने कैलास पर्वत पर बादलों के सौंदर्य, उनके संघर्ष, और किन्नर प्रदेश की रमणीयता का चित्रण किया है।
प्रश्न 5. ‘बादल को घिरते देखा है’ शीर्षक कविता का उद्देश्य क्या है?
उत्तर: कवि ने कैलास पर्वत पर बादलों के घिरने और प्राकृतिक सौंदर्य को चित्रित करने का प्रयास किया है।
प्रश्न 6. ‘बादल को घिरते देखा है’ कविता का प्रतिपाद्य बताइए।
उत्तर: कविता का प्रतिपाद्य कैलास पर्वत की चोटी पर बादलों के सौंदर्य और उनके वातावरण पर प्रभाव का वर्णन है।
काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध
1. निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिएl
(अ) श्यामल शीतल अमल सलिल में।
समतल देशों के आ-आकर
पावस की उमस से आकुल
तिक्त मधुर बिस तंतु खोजते, हंसों को तिरते देखा है।
(ब) मृदुल मनोरम अँगुलियों को वंशी पर फिरते देखा है।
उत्तर:
(अ) काव्य-सौन्दर्य-
- कैलाश पर्वत अत्यन्त रमणीक स्थान है। गर्मी की उमस से व्याकुल होकर यहाँ दूर देश के पक्षी आते हैं और विचरण करते हैं।
- शैली-गेय है।
- भाषा-सहज, स्वाभाविक एवं बोधगम्य है।
- अलंकार-अनुप्रास।
(ब) काव्य-सौन्दर्य-
- कवि कह रहा है कि कोमल अँगुलियों द्वारा वंशीवादन से लोग थिरक उठते हैं। जैसे गोपिकाएँ भगवान् श्रीकृष्ण की मुरली पर मोहित हो जाती थीं।
- शैली-गेय है।
- भाषा-सहज, स्वाभाविक एवं बोधगम्य है।
2. निम्नलिखित शब्द युग्मों से विशेषण-विशेष्य अलग कीजिए l
अतिशय शीतल, स्वर्णिम कमलों, प्रणय कलह, रजत-रचित।
उत्तर:
विशेषण | विशेष्य |
---|---|
अतिशय | शीतल |
स्वर्णिम | कमलों |
प्रणय | कलह |
रजत | रचित |