Free solutions for UP Board class 9 Hindi Padya chapter 2 – “पदावली” are available here. These solutions are prepared by the subject experts and cover all question answers of this chapter for free.
उत्तर प्रदेश बोर्ड की कक्षा 9 की हिंदी पाठ्यपुस्तक के काव्य खंड में “पदावली” नामक दूसरा अध्याय महान भक्त कवयित्री मीराबाई की रचनाओं पर केंद्रित है। इस अध्याय में मीराबाई के भावपूर्ण पदों का संग्रह है, जो उनके श्रीकृष्ण के प्रति अगाध प्रेम और भक्ति को दर्शाते हैं। मीराबाई अपने पदों में श्रीकृष्ण की सुंदरता का मनोहारी वर्णन करती हैं, उनके मोर मुकुट से लेकर वैजयंती माला तक का चित्रण करते हुए। इन पदों में श्रृंगार और भक्ति रस का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यह अध्याय विद्यार्थियों को मीराबाई की काव्य शैली, उनके भक्ति भाव और श्रीकृष्ण के प्रति उनके समर्पण को समझने का सुअवसर प्रदान करता है।

UP Board Class 9 Hindi Padya Chapter 2 Solution
Contents
Subject | Hindi (काव्य खंड) |
Class | 9th |
Chapter | 2. पदावली |
Author | मीराबाई |
Board | UP Board |
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए :
(अ) बसो मेरे नैनन में… भक्त बछल गोपाल
उत्तर-
- सन्दर्भ: यह पद मीराबाई की रचना ‘मीरा-सुधा-सिन्धु’ के अंतर्गत ‘पदावली’ से लिया गया है। मीराबाई भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थीं और उनके प्रति उनका प्रेम अनूठा था।
- प्रसंग: इस पद में मीराबाई श्रीकृष्ण की मोहिनी मूर्ति का सजीव चित्रण करती हैं और उनसे निवेदन करती हैं कि वे उनके नेत्रों में निवास करें।
- व्याख्या: मीराबाई कहती हैं कि हे कृष्ण, आप मेरे नेत्रों में निवास कीजिए। आपके सिर पर मोरपंख का मुकुट और कानों में मकराकृति के कुंडल सुशोभित हैं। आपका लाल तिलक और श्यामल शरीर मोहक लगता है। आपके होंठों पर अमृतरस से भरी बाँसुरी शोभायमान है और आपके चरणों में बाँधी घुंघरुओं की मधुर ध्वनि मन को भाती है। आप भक्तों के प्रति वात्सल्यभाव रखते हैं और आपका अनुपम सौंदर्य अनन्त सुख प्रदान करता है।
- काव्यगत सौंदर्य: इस पद में मीराबाई की श्रीकृष्ण के प्रति अटूट भक्ति को दर्शाया गया है। यहाँ अनुप्रास और रूपक अलंकारों का सुन्दर प्रयोग किया गया है। भाषा सरल, सुमधुर ब्रज है। छन्द गेय और भावपूर्ण है।
(ब) माई री मैं तो गोविंद… जनम कौ कौल
उत्तर-
- सन्दर्भ: यह पद मीराबाई की ‘पदावली’ से लिया गया है, जिसमें मीराबाई अपने सच्चे प्रेम का वर्णन करती हैं।
- प्रसंग: इस पद में मीराबाई श्रीकृष्ण से अपने प्रेम को खुलेआम स्वीकार करती हैं और समाज की परवाह न करते हुए इसे व्यक्त करती हैं।
- व्याख्या: मीराबाई कहती हैं कि उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को ढोल बजाकर अपनाया है, कोई छुपकर नहीं। लोग इस प्रेम को महंगा या सस्ता मानते हैं, लेकिन मीराबाई ने इसे अपने हृदय की तराजू पर तौलकर अपनाया है। उनके लिए श्रीकृष्ण का रंग और रूप मायने नहीं रखता; उनका प्रेम अनमोल है। उन्होंने श्रीकृष्ण को सोच-समझकर अपनाया है और समाज की आलोचनाओं का सामना किया है। उनके अनुसार, श्रीकृष्ण उनके पूर्वजन्म के वचनबद्ध साथी हैं, जिन्होंने उन्हें दर्शन देकर उनके जीवन को धन्य किया है।
- काव्यगत सौंदर्य: पद में प्रेम और भक्ति की अभिव्यक्ति सहज और सरल भाषा में की गई है। अनुप्रास और रूपक अलंकारों का प्रयोग हुआ है। भाषा में मिठास और भक्ति रस का भाव गहरा है।
(स) पायो जी म्है तो राम रतन… जस गायो
उत्तर-
- सन्दर्भ: यह पद मीराबाई की ‘पदावली’ से लिया गया है, जहाँ वे भगवान के नाम की महिमा का वर्णन करती हैं।
- प्रसंग: मीराबाई इस पद में राम नाम की अद्भुत शक्ति और उसके प्रभाव की बात करती हैं।
- व्याख्या: मीराबाई कहती हैं कि उन्होंने भगवान राम के नामरूपी अमूल्य रत्न को प्राप्त कर लिया है। उनके सच्चे गुरु ने उन्हें यह रत्न प्रदान किया था। इस रत्न को प्राप्त करने के बाद मीराबाई ने संसार की मोह-माया को त्याग दिया और भगवान के नाम का गान करने लगीं। यह नामरूपी धन कभी समाप्त नहीं होता, इसे जितना खर्च किया जाए, उतना ही बढ़ता है। मीराबाई राम नाम रूपी नौका पर सवार होकर संसाररूपी सागर को पार कर गई हैं और अब केवल श्रीकृष्ण की भक्ति में तल्लीन हैं।
- काव्यगत सौंदर्य: इस पद में भक्तिकालीन साहित्य की विशेषताएँ प्रकट होती हैं। भाषा सरल, सरस और ब्रज मिश्रित है। रूपक और अनुप्रास अलंकारों का सुन्दर प्रयोग हुआ है। भक्ति और शान्त रस का समावेश हुआ है।
(द) मैं तो साँवरे… भगति रसीली जाँची
उत्तर-
- सन्दर्भ: यह पद मीराबाई की ‘पदावली’ से लिया गया है, जिसमें वे भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करती हैं।
- प्रसंग: मीराबाई यहाँ भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम में पूरी तरह से निमग्न हैं और संसार की अन्य वस्तुओं में उनका मन नहीं लगता।
- व्याख्या: मीराबाई कहती हैं कि वे कृष्ण के प्रेम में इतनी डूबी हुई हैं कि उनके बिना यह संसार उन्हें निस्सार प्रतीत होता है। वे कहती हैं कि उन्होंने लोक-लाज छोड़कर पूर्ण श्रृंगार किया है और पैरों में घुंघरू बाँधकर नाच रही हैं। साधुओं की संगति से उनके हृदय की सारी मलिनता समाप्त हो गई है और वे अब केवल कृष्ण भक्ति में आनंदित हैं। कालरूपी सर्प का भय उन्हें नहीं सताता क्योंकि वे अब श्रीकृष्ण की शरण में आ गई हैं।
- काव्यगत सौंदर्य: मीराबाई की एकनिष्ठ भक्ति और श्रीकृष्ण के प्रति दीवानगी का चित्रण है। भाषा सरल, सरस और राजस्थानी मिश्रित ब्रज है। अलंकारों में अनुप्रास और रूपक का प्रयोग हुआ है। रस भक्ति और शान्त है।
(य) मेरे तो गिरधर… तारो अब मोई
उत्तर-
- सन्दर्भ: यह पद मीराबाई की ‘पदावली’ से लिया गया है, जिसमें मीराबाई अपने समर्पण को दर्शाती हैं।
- प्रसंग: मीराबाई इस पद में श्रीकृष्ण को अपना सर्वस्व मानती हैं और अन्य सारे संबंधों को त्याग देती हैं।
- व्याख्या: मीराबाई कहती हैं कि अब उनका संसार में किसी से कोई नाता नहीं है, केवल श्रीकृष्ण ही उनके पति और स्वामी हैं। उन्होंने श्रीकृष्ण के प्रेम में अपने कुल की मर्यादा तक को त्याग दिया है और अब किसी भी लोक-लाज की परवाह नहीं करतीं। उनके लिए अब श्रीकृष्ण ही सब कुछ हैं और संसार की अन्य वस्तुएं उनके लिए अर्थहीन हैं। मीराबाई अपनी कृष्ण भक्ति के आनंद में मग्न हैं और संसार के दुखों से दूर हो गई हैं। अंत में वे श्रीकृष्ण से प्रार्थना करती हैं कि वे उनका उद्धार करें।
- काव्यगत सौन्दर्य: इस पद में मीराबाई की गहन भक्ति और समर्पण का सुन्दर चित्रण है। अलंकारों में अनुप्रास, रूपक और पुनरुक्ति अलंकार प्रमुख हैं। भाषा सरल और प्रभावी है। रस भक्ति है और शैली आत्मनिवेदनात्मक है।
प्रश्न 2. मीराबाई का जीवन-परिचय बताते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा, मीराबाई का जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक सेवाओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा, मीरा की रचनाओं एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- मीराबाई का जीवन-परिचय एवं उनकी रचनाएँ:
जीवन-परिचय: मीराबाई का जन्म सन् 1498 में राजस्थान के मेड़ता में हुआ था। वे राठौर वंश की राजकुमारी थीं। मीराबाई का विवाह मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र भोजराज से हुआ था, परंतु वे बचपन से ही भगवान श्रीकृष्ण की भक्त थीं। पति की मृत्यु के बाद मीराबाई का मन पूरी तरह से श्रीकृष्ण की भक्ति में रम गया। उन्होंने समाज की परवाह किए बिना, संसारिक बंधनों को त्यागकर अपना जीवन श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया। उनकी भक्ति और भजनों के कारण उन्हें समाज के विरोध का भी सामना करना पड़ा, लेकिन वे अपने मार्ग पर दृढ़ रहीं। मीराबाई ने भक्ति के क्षेत्र में एक अनूठा स्थान प्राप्त किया और अंततः द्वारका में श्रीकृष्ण की मूर्ति में लीन होकर उनका निधन हुआ।
साहित्यिक सेवाएँ एवं रचनाएँ: मीराबाई की प्रमुख रचनाएँ ‘मीरा के पद’, ‘नरसी का मायरा’, ‘गीत गोविंद की टीका’ आदि हैं। उनके पदों में कृष्ण भक्ति, प्रेम, समर्पण और आत्म-निवेदन का भाव स्पष्ट रूप से झलकता है। उनकी रचनाएँ भक्ति काव्य की श्रेणी में आती हैं और उनमें शुद्ध भक्ति की भावना व्यक्त होती है। मीराबाई ने अपनी रचनाओं में श्रीकृष्ण को नायक रूप में चित्रित किया और अपने जीवन की हर पीड़ा और संतोष को उनके प्रति अर्पित किया।
भाषा-शैली: मीराबाई की भाषा सरल, सहज और भावनात्मक है। उन्होंने मुख्य रूप से ब्रजभाषा और राजस्थानी का प्रयोग किया है, लेकिन कहीं-कहीं गुजराती और पंजाबी शब्द भी मिलते हैं। उनके पदों में अनुप्रास, रूपक और उपमा अलंकारों का प्रयोग हुआ है। उनकी शैली आत्म-निवेदनात्मक और गीतात्मक है, जो उनकी भक्ति की गहराई को व्यक्त करती है। मीराबाई के पद गेय होते हैं और भक्ति रस में डूबे हुए हैं।
मीराबाई की भक्ति और उनकी रचनाएँ आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं और उनकी साहित्यिक सेवाओं ने भक्तिकाल में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1: मीरा ने संसार की तुलना किस खेल से की है और क्यों?
उत्तर- मीरा ने संसार की तुलना चौपड़ के खेल से की है क्योंकि चौपड़ का खेल थोड़ी देर तक चलता है और फिर समाप्त हो जाता है। इसी प्रकार संसार की वस्तुएँ भी थोड़े समय के लिए ही रहती हैं और फिर नष्ट हो जाती हैं। इससे मीरा यह बताती हैं कि संसार अस्थायी और क्षणभंगुर है।
प्रश्न 2: मीरा गिरिधर के घर जाने की बात क्यों कहती हैं?
उत्तर-मीरा श्रीकृष्ण को अपना आराध्य ही नहीं, बल्कि पति भी मानती हैं। वे अपने आपको श्रीकृष्ण के साथ विवाह बंधन में बंधा हुआ मानती हैं और इसलिए वे अपने पति गिरिधर के पास जाने की इच्छा व्यक्त करती हैं। उनके लिए कृष्ण का घर उनका असली ठिकाना है।
प्रश्न 3: ‘मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई’ – मीरा के भक्ति-भाव पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- मीरा इस पद में कहती हैं कि उनके जीवन में केवल गिरिधर गोपाल ही सबसे महत्वपूर्ण हैं, और उनके अलावा कोई दूसरा नहीं है। वे कहती हैं कि उन्होंने संसार के सभी रिश्तों को त्याग दिया है और केवल कृष्ण की भक्ति में लीन हो गई हैं। कृष्ण ही उनके पति और आराध्य हैं, और इसी भक्ति के माध्यम से वे मोक्ष प्राप्त करना चाहती हैं।
प्रश्न 4: धर्म के अन्तर्गत केवल बाहरी कर्मकाण्ड करने से क्या होता है?
उत्तर-बाहरी कर्मकाण्ड करने से व्यक्ति वास्तविक ईश्वर के स्वरूप को नहीं समझ पाता और केवल दिखावटी धार्मिक कार्यों में फंसा रहता है। इससे मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं होती, और व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र में उलझा रहता है। अतः सच्ची भक्ति और आंतरिक पवित्रता ही धर्म का सार है।
प्रश्न 5: मीरा के काव्य में व्यक्त भक्ति एवं रहस्यवाद का परिचय दीजिए।
उत्तर- मीरा की भक्ति प्रेम से ओतप्रोत है और वे कृष्ण को अपना सबकुछ मानती हैं। उनके काव्य में दाम्पत्य प्रेम और भगवान के प्रति असीम समर्पण का रहस्यवाद झलकता है। वे कहती हैं कि कृष्ण उनके हृदय में बसते हैं और किसी अन्य सांसारिक व्यक्ति से उन्हें कोई लगाव नहीं है। उनकी भक्ति सरल, माधुर्यपूर्ण और प्रेममय है।
प्रश्न 6: कृष्ण के क्रय के सम्बन्ध में संसार के लोगों की क्या धारणा है?
उत्तर- संसार के लोग कहते हैं कि मीरा ने गोविन्द (कृष्ण) को बड़े ही चतुराई से खरीद लिया है। कोई कहता है कि उन्होंने चुपके से कृष्ण को अपना बना लिया है, तो कोई कहता है कि कृष्ण का रंग काला या गोरा है। इस तरह लोग अपने-अपने दृष्टिकोण से मीरा की कृष्ण-भक्ति को समझते हैं।
प्रश्न 7: मीरा ने संसार की तुलना किससे की है और क्यों?
उत्तर- मीरा ने संसार की तुलना चौपड़ के खेल से की है। जिस प्रकार चौपड़ का खेल थोड़ी देर तक चलता है और फिर समाप्त हो जाता है, वैसे ही यह संसार भी क्षणिक और अस्थायी है। मीरा यह बताना चाहती हैं कि संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है और सब कुछ नष्ट होने वाला है।
प्रश्न 8: मीरा को कौन-सा धन प्राप्त हो गया है? उस धन की क्या विशेषता है?
मीरा को रामरतन रूपी अमूल्य धन प्राप्त हो गया है। इस धन की विशेषता यह है कि इसे न तो खर्च किया जा सकता है और न ही कोई इसे चुरा सकता है। यह धन प्रयोग करने पर दिन-प्रतिदिन बढ़ता रहता है, और यह आत्मिक सुख और शांति का स्रोत है।
प्रश्न 9: मीरा ने संसार सागर को पार करने का क्या उपाय बताया है?
मीरा कहती हैं कि संसार सागर को पार करने के लिए भगवान के नाम का सहारा लेना चाहिए। वे राम नाम को बेड़ा मानती हैं, जिससे व्यक्ति संसार रूपी सागर से पार हो सकता है। भगवान की भक्ति और उनका नाम ही मोक्ष प्राप्त करने का उपाय है।
प्रश्न 10: मीरा भगवान के किस प्रकार के रूप को अपने नयनों में बसाना चाहती हैं?
मीरा भगवान श्रीकृष्ण के उस रूप को अपने नयनों में बसाना चाहती हैं जिसमें उनके सिर पर मोर-मुकुट हो, कानों में मकराकृति के कुंडल हों और माथे पर अरुण तिलक हो। यह नटवर नागर रूप मीरा के हृदय में गहराई से बसा हुआ है।
प्रश्न 11: मीरा शरीर पर गर्व न करने का उपदेश क्यों देती हैं?
मीरा का कहना है कि यह शरीर मिट्टी से बना है और एक दिन मिट्टी में ही मिल जाएगा। चूंकि यह नश्वर और क्षणभंगुर है, इसलिए इस पर गर्व करना व्यर्थ है। शरीर का मोह छोड़कर आत्मा की शुद्धि पर ध्यान देना ही उचित है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. मीरा की किन्हीं दो रचनाओं के नाम बताइए।
उत्तर- नरसी जी का मायरा और राग गोविन्द ।
प्रश्न 2. मीरा ने किस भाषा में रचना की है?
उत्तर- मीरा ने ब्रजभाषा में अपने गीतों की रचना की है।
प्रश्न 3. मीरा ने प्रेम की लता को किस प्रकार पल्लवित किया?
उत्तर- मीरा ने प्रेम की लता को आँसुओं के जल से सींच-सींचकर पल्लवित किया। उसे लता से उसे आनन्दरूपी फल प्राप्त हुआ।
प्रश्न 4. निम्नलिखित में से सही वाक्य के सम्मुख सही (✓) का चिह्न लगाइए –
(अ) मीरा भगवान् के सगुण रूप की उपासिका थीं। (✓)
(ब) मीरा के अनुसार शरीर पर गर्व करना चाहिए। (✗)
(स) मीरा श्रीकृष्ण को पति रूप में मानती हुई उनके घर जाना चाहती हैं। (✓)
(द) मीराबाई रतन सिंह की पुत्री थीं। (✓)
प्रश्न 5. मीरा ने क्या मोल लिया है?
उत्तर- मीराबाई ने गोविन्द श्रीकृष्ण को मोल लिया है।
प्रश्न 6. मीरा भगवान् के किस रूप की उपासिका थीं?
उत्तर- मीरा भगवान् के साकार रूप की उपासिका थीं। कृष्ण को श्याम सुन्दर रूप, कान में कुण्डल, हाथ में मुरली और गले में वनमाला, श्रीकृष्ण के इस रूप पर मीरा मोहित थीं।
प्रश्न 7. मीरा किस भक्ति-शाखा की कवयित्री हैं?
उत्तर- मीरा सगुण भक्ति शाखा की कवयित्री हैं।
प्रश्न 8. मीरा किसके रंग में रँगी हैं?
उत्तर- मीरा भगवान् श्रीकृष्ण के रंग में रँगी हैं।
प्रश्न 9. मीरा के काव्य को मुख्य स्वर क्या है?
उत्तर- मीरा के काव्य का मुख्य स्वर कृष्ण-भक्ति है।
काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध
प्रश्न 1. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार का नाम बताइए
(अ) बसो मेरे नैनन में नन्दलाल।
(ब) काल ब्याल हूँ बाँची।
(स) मोर मुकुट मकराकृत कुण्डल।
उत्तर-
(अ) इस पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है।
(ब) काल ब्याल हूँ बाँची में रूपक अलंकार है।
(स) मोर मुकुट मकराकृत कुण्डल में वृत्त्यनुप्रास अलंकार है।
प्रश्न 2. निम्नलिखित पंक्ति का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए
गसी मीरा लाल गिरधर, तारो अब मोई।
उत्तर- काव्य सौन्दर्य :
(अ) इस पंक्ति में मीरा अपने को श्रीकृष्ण की दासी बताया है।
(ब) भाषा-ब्रज।
(स) रस-भक्ति एवं शांत।
(द) छंद-गेय।
(य) शैली-मुक्तक।
प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए-
भगति, सबद, नैनन, बिसाल, किरपा, आणंद, अँसुवन।
उत्तर- भक्ति, शब्द, नयन, विशाल, कृपा, आनंद, आँसुओं।