Free solutions for UP Board class 9 Hindi Padya chapter 13 – “प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी” are available here. These solutions are prepared by the subject experts and cover all question answers of this chapter for free.
उत्तर प्रदेश बोर्ड की कक्षा 9 की हिंदी पाठ्यपुस्तक के पद्य खंड में “प्रभु जी तुम चंदन हम पानी” शीर्षक से संत रैदास जी की एक भावपूर्ण कविता शामिल है। इस कविता में रैदास जी ने अपनी गहरी भक्ति और ईश्वर के प्रति समर्पण को सरल और सुंदर उपमाओं के माध्यम से व्यक्त किया है। उन्होंने स्वयं को पानी, बाती और धागे के रूप में, तथा प्रभु को चंदन, दीपक और मोती के रूप में चित्रित किया है। इन उपमाओं से कवि ने यह दर्शाया है कि जैसे ये चीजें एक-दूसरे के बिना अधूरी हैं, वैसे ही उनका जीवन भी प्रभु के बिना अपूर्ण है।

UP Board Class 9 Hindi Padya Chapter 13 Solution
Contents
Subject | Hindi (काव्य खंड) |
Class | 9th |
Chapter | 13. प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी |
Author | संत रैदास |
Board | UP Board |
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए :
(अ) प्रभुजी तुम चन्दन……………………………………..चन्द चकोरा।
उत्तर:
- सन्दर्भ: यह पद्य सन्त रैदास द्वारा रचित है।
- प्रसंग: प्रस्तुत पद में कवि की ईश्वर के प्रति अनन्य भक्ति और प्रेम प्रदर्शित किया गया है।
- व्याख्या: सन्त रैदास जी इस पद में अपने ईश्वर के प्रति गहरी भक्ति का परिचय देते हैं। वे कहते हैं कि जैसे चन्दन की सुगन्ध पानी में समा जाती है, वैसे ही मेरे मन में राम के नाम की अमृत बसी हुई है। हे प्रभु! आप इस उपवन के वैभव हो, और मैं मोर हूँ, जिसकी आँखें हमेशा आपकी ओर लगी रहती हैं, जैसे चकोर चाँद की ओर देखता है। यह स्थिति दर्शाती है कि उनका मन सदैव ईश्वर की ओर केन्द्रित है और उनके बिना वे अपने अस्तित्व को पूर्ण नहीं मानते।
- काव्यगत सौन्दर्य: इस पद में प्रेम और भक्ति का भाव प्रकट होता है। रैदास जी ने चन्दन और पानी, मोर और चकोर के उदाहरण देकर अपनी भक्ति की गहराई को व्यक्त किया है। इस काव्य में रूपक अलंकार और प्रतीकात्मकता का सुंदर उपयोग किया गया है, जिससे कविता में भावनाओं की गहराई और सुन्दरता को स्पष्ट किया गया है।
(ब) प्रभुजी तुम दीपक……………………………………… मिलत सोहागा।
उत्तर:
- सन्दर्भ: यह पद्य सन्त रैदास द्वारा रचित है।
- प्रसंग: इन पंक्तियों में सन्त रैदास की ईश्वर के प्रति अनन्य भक्ति का वर्णन है।
- व्याख्या: रैदास जी इस पद में ईश्वर को दीपक के रूप में और स्वयं को उस दीपक के प्रकाश के रूप में दर्शाते हैं। वे कहते हैं कि जैसे दीपक की ज्योति दिन-रात जलती रहती है, वैसे ही ईश्वर की उपस्थिति से उनके जीवन में निरंतर प्रकाश बना रहता है। वे ईश्वर को मोती मानते हैं और स्वयं को उस मोती में पिरोये हुए धागे के रूप में देखते हैं। यह स्थिति सोना और सुहागा के मिलने की तरह अद्वितीय है, जिसका अर्थ है कि ईश्वर के साथ होना उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण और सुखद है।
- काव्यगत सौन्दर्य: इस पद में रैदास जी ने ईश्वर और भक्त के रिश्ते को दीपक और ज्योति, मोती और धागे के उदाहरण से स्पष्ट किया है। यह तुलना कविता में गहराई और सुगमता लाती है। रैदास जी की भक्ति और उनकी ईश्वर के प्रति समर्पण भावना की अभिव्यक्ति इस कविता में अत्यंत प्रभावशाली ढंग से की गई है।
(स) प्रभुजी तुम स्वामी………………………………………करै रैदासा।
उत्तर:
- सन्दर्भ: यह पद्य सन्त रैदास द्वारा रचित है।
- प्रसंग: इन पंक्तियों में रैदास जी ने अपने को ईश्वर के दास के रूप में प्रदर्शित किया है।
- व्याख्या: रैदास जी इस पद में अपने आप को ईश्वर का दास मानते हैं और ईश्वर को अपने स्वामी के रूप में संबोधित करते हैं। वे दर्शाते हैं कि उनकी भक्ति और समर्पण की भावना इतनी गहरी है कि वे ईश्वर को अपना मालिक मानते हैं और स्वयं को उनके पूर्ण सेवा में समर्पित मानते हैं। इस प्रकार की भक्ति में एक पूर्ण विनम्रता और समर्पण होता है जो संसार के माया-मोह से मुक्ति की ओर ले जाता है।
- काव्यगत सौन्दर्य: रैदास जी की यह कविता भक्ति और दासत्व की भावना को व्यक्त करती है। इसमें विनम्रता और श्रद्धा की विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं। कवि की भाषा सरल और सीधी है, जो उनकी भक्ति के वास्तविक भावों को उजागर करती है।
प्रश्न 2. रैदास का जीवन परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा, रैदास की साहित्यिक सेवाओं एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: सन्त रैदास एक प्रमुख भक्तिकावि और समाज सुधारक थे, जिनका जीवन 15वीं शताब्दी के आसपास था। वे उत्तर भारत के प्रमुख संतों में से एक माने जाते हैं और उनके भक्ति आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। रैदास जी का जन्म काशी (वाराणसी) के एक गरीब जाति के परिवार में हुआ था, और वे युवा अवस्था से ही ईश्वर भक्ति में लीन हो गए थे। उन्होंने जातिवाद और सामाजिक विषमताओं के खिलाफ संघर्ष किया और अपने भक्ति काव्य के माध्यम से सभी जातियों और वर्गों के लोगों को एकता और प्रेम का संदेश दिया।
रैदास जी की रचनाएँ मुख्य रूप से भक्ति कविता की श्रेणी में आती हैं, जो सरल और जनप्रिय भाषा में लिखी गई हैं। उनकी कविताओं में भगवान के प्रति अनन्य भक्ति, सामाजिक समानता, और मानवता के उच्च आदर्शों का उल्लेख मिलता है। उनके प्रमुख काव्य-रचनाओं में ‘रैदास की वाणी’, ‘रैदास के पद’, और ‘संत रैदास की कविता’ शामिल हैं। इन रचनाओं में वे भगवान के प्रति अपनी भक्ति को अत्यंत सरल और प्रभावशाली तरीके से व्यक्त करते हैं। उनकी रचनाओं में वह भक्ति और सामाजिक सुधार की बात करते हैं जो आम जनमानस को सहजता से समझ आ सके। रैदास जी की भाषा सरल, प्रवाहमयी और जनजीवन के करीब थी, जो उनकी कविताओं को लोकप्रिय बनाने में सहायक रही।
रैदास की साहित्यिक सेवाओं एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए:
उत्तर: रैदास जी ने अपनी साहित्यिक सेवाओं के माध्यम से भक्ति आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके काव्य में भगवान के प्रति असीम प्रेम और भक्ति की भावना स्पष्ट होती है। उन्होंने समाज में व्याप्त जातिवाद और सामाजिक असमानताओं के खिलाफ अपनी लेखनी के माध्यम से आवाज उठाई और समानता का संदेश फैलाया। उनकी रचनाएँ सामान्य जन के जीवन के करीब हैं और उसमें एक सहजता और सरलता देखी जाती है जो समाज के हर वर्ग के लोगों को आकर्षित करती है।
रैदास जी की भाषा शैली अत्यंत सरल और सहज थी। उन्होंने अपने काव्य में जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया, जिससे उनकी कविताएँ आम जनता में लोकप्रिय हो सकें। उनकी भाषा में उर्दू और हिंदी के लोक शब्दों का मिश्रण देखने को मिलता है, जिससे उनकी कविताएँ जीवन्त और प्रभावशाली बनती हैं। उन्होंने अलंकारिकता की बजाय स्पष्टता और प्रकटता को प्राथमिकता दी, जिससे उनके विचार सीधेतौर पर पाठकों तक पहुँच सकें। रैदास जी की शैली में प्रेम, भक्ति, और सामाजिक सन्देश को सरल और प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया गया है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. ‘प्रभुजी तुम चन्दन हम पानी’ कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर- इस कविता में सन्त रैदास ने भगवान के प्रति अपनी अनन्य भक्ति का Ausdruck किया है। वे भगवान को चन्दन के समान महकदार और स्वयं को उस चन्दन में समाए पानी की तरह दर्शाते हैं। वे अपने भक्ति भाव को मोर की तरह भगवान की ओर देखने वाले चकोर की उपमा देते हैं और भगवान को दीपक, मोती, और स्वामी मानते हुए अपनी स्थिति को उनकी सेवा करने वाले दीप की बाती, मोती में पिरोए गए धागे, और दास के रूप में प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार, रैदास ने ईश्वर के प्रति अपनी गहरी निष्ठा और समर्पण को व्यक्त किया है।
प्रश्न 2. ‘प्रभुजी तुम चन्दन हम पानी’ कविता के आधार पर रैदास की भक्ति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- रैदास की भक्ति निर्गुण और भावात्मक है। वे बाहरी धार्मिक आडम्बरों की बजाय, हृदय से भगवान के प्रति सच्ची भक्ति को महत्वपूर्ण मानते हैं। रैदास का मानना है कि केवल कर्मकाण्ड, पूजा-पाठ, और तीर्थयात्रा के बिना ईश्वर की सच्ची प्राप्ति संभव नहीं है। उनके लिए ईश्वर सर्वव्यापक, अन्तर्यामी, और दीन-दलितों का उद्धारक है। भक्ति के माध्यम से ही वे ईश्वर को प्राप्त करना संभव मानते हैं, और मूर्ति पूजा या पुरानी धार्मिक रीतियों की उपेक्षा करते हैं।
प्रश्न 3. ‘जाकी ज्योति बरै दिन राती’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- इस पंक्ति का आशय है कि ईश्वर की ज्योति निरन्तर जलती रहती है और कभी बुझती नहीं है। यह ज्योति दिन-रात सभी समय प्रज्ज्वलित रहती है, जिससे सम्पूर्ण संसार को प्रकाश मिलता है। ईश्वर की यह अलोकिक ज्योति सभी जीवों के जीवन को प्रकाशित करती है और उनके भीतर सत्य और ज्ञान का प्रकाश फैलाती है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. रैदास किस काल के कवि थे?
उत्तर- रैदास भक्तिकाल के कवि थे।
प्रश्न 2. रैदास की रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर- रैदास की वाणी।
प्रश्न 3. रैदास के पिता का क्या नाम था?
उत्तर- भविष्य पुराण में रैदास के पिता का नाम मानदास बताया गया है।
प्रश्न 4. रैदास की माता का नाम लिखिए।
उत्तर- रैदास पुराण में रैदास की माता का नाम भगवती दिया गया है।
प्रश्न 5. रैदास किस कवि के समकालीन थे?
उत्तर- रैदास कबीर के समकालीन थे।
काव्य सौन्दर्य एवं व्याकरण बोध
प्रश्न 1. ‘जैसे चितवत चन्द चकोरा’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर- इस पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्न 2. निम्नलिखित के तत्सम रूप लिखिए – राती, सोनहिं, मोती।
उत्तर- रात्रि, सुवर्ण, मुक्ता।