UP Board Class 9 Hindi Padya Chapter 12 Solution – युगवाणी

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उत्तर प्रदेश बोर्ड की कक्षा 9 की हिंदी पाठ्यपुस्तक के पद्य खंड में “युगवाणी” शीर्षक से एक महत्वपूर्ण कविता शामिल है। यह कविता प्रसिद्ध कवि शिवमंगल सिंह सुमन द्वारा रचित है। इस कविता में सुमन जी ने किसानों और मजदूरों के जीवन, उनकी मेहनत और समाज में उनके योगदान को सुंदरता से चित्रित किया है। कवि ने खेतों की हरियाली, फसलों की मुस्कान और श्रमिकों के पसीने की महक को बड़ी ही सरल और प्रभावशाली भाषा में प्रस्तुत किया है। उन्होंने किसानों और मजदूरों को समाज की समृद्धि का आधार बताया है और उनके महत्व को रेखांकित किया है। यह कविता विद्यार्थियों को श्रम के महत्व और समाज के विकास में किसानों और मजदूरों की भूमिका को समझने में मदद करती है।

UP Board Class 9 Hindi Padya Chapter 12

UP Board Class 9 Hindi Padya Chapter 12 Solution

SubjectHindi (काव्य खंड)
Class9th
Chapter12. युगवाणी
Authorशिवमंगल सिंह ‘सुमन’
BoardUP Board

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए :

( क) हर क्यारी में पद-चिह्न ……………. मचल मचल इठलाती है

उत्तर:

  • सन्दर्भ: यह पंक्तियाँ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की कविता ‘युगवाणी’ से ली गई हैं। कवि यहाँ श्रमिकों और किसानों के योगदान का महत्त्व बताते हैं।
  • प्रसंग: इन पंक्तियों में किसान और श्रमिक के मेहनत और श्रम का वर्णन करते हुए कवि उनकी भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हैं।
  • व्याख्या: कवि बताते हैं कि खेतों में किसानों के श्रम के पदचिह्न बिखरे हुए हैं, जो उनकी कठिन मेहनत का प्रमाण हैं। उन्होंने जिन खेतों में फसल बोई थी, वह आज लहलहा रही है, और इन फसलों की हर डाल में श्रमिकों की मुस्कान बसी है। यह दर्शाता है कि किसान की मेहनत ही प्रकृति में नई जीवंतता लाती है। कोमल पत्तियाँ और लहराती फसलें मानो किसानों की हँसी और आनंद का प्रतीक हैं। कवि आगे यह भी बताते हैं कि जैसे ओस की बूँदें जीवन में ताजगी लाती हैं, वैसे ही किसानों का परिश्रम भी समाज में नई ऊर्जा का संचार करता है। हर नई कोपल मानो भविष्य की आशाओं को संजोए हुए है, जो समाज के विकास की ओर इशारा करती है।
  • काव्यगत सौंदर्य: इस कविता में श्रम की महत्ता को सरल भाषा में अभिव्यक्त किया गया है। कवि ने श्रमिकों और किसानों के योगदान को रूपक और प्रतीकों के माध्यम से दर्शाया है। भाषा खड़ी बोली है, जिसमें लक्षणा शब्दशक्ति का प्रयोग है। रस शांत है, जो श्रमिक के संघर्ष और आशा को व्यक्त करता है।

(ख) क्या उम्र ढलेगी तो … ………………………मौत कहीं बढ़ जाएगी

उत्तर:

  • सन्दर्भ: यह पंक्तियाँ ‘युगवाणी’ कविता से ली गई हैं, जहाँ कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ ने जीवन और मृत्यु के संबंध पर विचार किया है।
  • प्रसंग: कवि यहाँ जीवन की संध्या पर मनुष्य के विचारों और संघर्षों का वर्णन करते हैं।
  • व्याख्या: कवि पूछते हैं कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, क्या जीवन का आकर्षण कम हो जाएगा? क्या उम्र ढलने के साथ-साथ मनुष्य की सोचने और देखने की शक्ति भी मंद हो जाएगी? जिन खूबसूरत दृश्यों को मन ने संजोया है, क्या वे भी ओझल हो जाएंगे? सुमनजी का मानना है कि जीवन की इस यात्रा में संघर्ष और सपने भी महत्त्वपूर्ण होते हैं। जब हम अपने सपनों का मूल्यांकन करते हैं, तब हमारा संघर्ष धीमा पड़ सकता है, और जब मजबूरियाँ हमें घेर लेती हैं, तो मृत्यु निकट आती दिखती है। इस प्रकार कवि जीवन के संघर्ष और उसकी समाप्ति के संबंध को व्यक्त करते हैं, जहाँ अंत में मृत्यु का आगमन अनिवार्य है।
  • काव्यगत सौंदर्य: इस कविता में जीवन और मृत्यु का तात्त्विक विश्लेषण किया गया है। भाषा खड़ी बोली है, जो सहज और प्रभावी है। लक्षणा शब्दशक्ति के साथ-साथ शांति रस की प्रधानता है।

(ग) विश्वास सर्वहारा ……………………………………. दरार पड़ जायेगी l

उत्तर:

  • सन्दर्भ: यह पंक्तियाँ ‘युगवाणी’ कविता से ली गई हैं, जहाँ कवि ने सर्वहारा वर्ग की समस्याओं का चित्रण किया है।
  • प्रसंग: इन पंक्तियों में कवि ने पूंजीपति और शासन की गरीबों के प्रति उपेक्षा की आलोचना की है।
  • व्याख्या: सुमनजी यहाँ पूंजीपति वर्ग और शासकों को चेतावनी देते हैं कि यदि तुम गरीबों की समस्याओं को नजरअंदाज करोगे और उन्हें झूठी उम्मीदों में सुलाते रहोगे, तो यह समाज के लिए अच्छा नहीं होगा। समय आ चुका है कि गरीब जाग चुका है और उसे उसका अधिकार देना आवश्यक है। यदि समय रहते तुमने गरीबों की समस्याओं को हल नहीं किया, तो समाज में विद्रोह की स्थिति पैदा हो जाएगी। कवि यह भी कहते हैं कि जब गरीब वर्ग अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो जाता है, तब किसी भी प्रकार का शोषण उसके विद्रोह को नहीं रोक सकता। यदि शासक वर्ग समय रहते नहीं चेते, तो समाज की संरचना में दरार पड़ जाएगी, और इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा।
  • काव्यगत सौंदर्य: इस कविता में गरीबों के प्रति संवेदनशीलता और शासक वर्ग के प्रति चेतावनी है। भाषा खड़ी बोली है और लक्षणा शब्दशक्ति का प्रयोग किया गया है। रौद्र रस और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।

(घ) सदियों की कुर्बानी … अम्बर में घेरा यदि।

उत्तर:

  • सन्दर्भ: प्रस्तुत पंक्तियाँ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘युगवाणी’ नामक कविता से ली गई हैं। इसमें कवि ने शासक वर्ग को चेतावनी दी है और सर्वहारा वर्ग की कुर्बानियों की महत्ता बताई है।
  • प्रसंग: इन पंक्तियों में कवि ने गरीब और मेहनतकश लोगों के संघर्ष की अवहेलना करने वाले शासक और पूंजीपतियों को चेताया है कि वे समय रहते गरीबों की समस्याओं का समाधान करें।
  • व्याख्या: सुमनजी कहते हैं कि सदियों से गरीब और श्रमिक वर्ग कुर्बानियाँ देता आ रहा है, लेकिन शासक और पूंजीपति वर्ग ने उनकी कुर्बानियों को नजरअंदाज किया है। यदि समय रहते इनकी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ, तो यह बहुत बड़ी भूल होगी। शासक वर्ग गरीबों को केवल झूठी आशाएँ देकर नहीं सुला सकता। श्रमिक वर्ग अब जागरूक हो चुका है, और उसकी जागृति को रोकना असंभव है। यदि गरीबों के अधिकारों को कुचलने का प्रयास किया गया, तो शासक वर्ग खुद को अकेला पाएगा और दुनिया एक श्मशान में तब्दील हो जाएगी। कवि यह भी चेतावनी देते हैं कि यदि मेहनतकशों की कुर्बानियों का सम्मान नहीं किया गया, तो समाज में एक ऐसा सैलाब आएगा जिसे रोक पाना नामुमकिन होगा। समय रहते शासक वर्ग को जागना होगा, अन्यथा इतिहास उन्हें माफ नहीं करेगा।
  • काव्यगत सौन्दर्य: इन पंक्तियों में कवि ने शासक वर्ग को चेतावनी दी है। भाषा ओजपूर्ण और खड़ी बोली में है। लक्षणा और व्यंजना शब्दशक्ति का सुंदर प्रयोग हुआ है। रस वीर और अद्भुत है, जो समाज के उत्थान की प्रेरणा देता है।

( ङ ) इतिहास न तुमको ……………………………………………………………………….. को मत मन्द करो।

उत्तर:

  • संदर्भ: प्रस्तुत पद्य-पंक्तियाँ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘युगवाणी’ नामक कविता से ली गई हैं। इसमें कवि ने समाज के कर्णधारों को समय की महत्ता को पहचानने और समाज के कल्याण हेतु तत्पर रहने का संदेश दिया है।
  • प्रसंग: इन पंक्तियों में कवि समाज के शासक वर्ग को चेतावनी देते हैं कि यदि उन्होंने समाज के उत्थान और कल्याण के अवसरों का सही ढंग से उपयोग नहीं किया, तो इतिहास उन्हें क्षमा नहीं करेगा।
  • व्याख्या: कवि सुमनजी का कहना है कि समय निरंतर परिवर्तनशील है और हमें मिले हुए अवसर भी स्थायी नहीं होते। यदि इन अवसरों का सदुपयोग नहीं किया गया तो भविष्य में इसका दुष्परिणाम अवश्य भुगतना पड़ेगा। कवि यहाँ सत्ता में बैठे लोगों को सावधान कर रहे हैं कि उनकी निष्क्रियता और कर्तव्यहीनता से समाज का विकास रुक सकता है और आने वाली पीढ़ियाँ उन्हें उनके कर्तव्यों की उपेक्षा के लिए धिक्कारेंगी।
    सुमनजी आगे कहते हैं कि यदि वर्तमान समय का सही उपयोग नहीं किया गया, तो पूर्व दिशा में उगने वाले सूरज की रोशनी मुरझा जाएगी और समाज में निराशा का अंधकार छा जाएगा। कवि यह भी संकेत देते हैं कि समाज की प्रगति को रोकने का प्रयास नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह प्रयास समाज के विकास में बाधा उत्पन्न करेगा।
    कवि यहाँ समाज के सभी वर्गों के लिए एक समान अवसर प्रदान करने की बात करते हैं। वे कहते हैं कि प्रगति और विकास की रोशनी सिर्फ अमीरों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि इसका प्रकाश गरीबों के जीवन को भी उज्ज्वल करना चाहिए। इसके साथ ही, सुमनजी यह भी कहते हैं कि समाज में एक नवीन युग का प्रभात हो चुका है, जिसे हमें सकारात्मक रूप से अपनाना चाहिए और उसका स्वागत करना चाहिए।
  • काव्यगत सौंदर्य: इस कविता में सुमनजी ने ओजपूर्ण भाषा का प्रयोग किया है। कवि की प्रगतिवादी और सामाजिक चेतना का स्पष्ट रूप से वर्णन किया गया है। यहाँ वीर रस और अद्भुत रस का समावेश करते हुए समाज को जागरूक करने का प्रयास किया गया है।

प्रश्न 2. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर: शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का जन्म 1915 में उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था। वे स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय सेनानी और प्रसिद्ध छायावादोत्तर कवि थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना और सामाजिक न्याय के विचारों को प्रमुखता दी।

‘सुमन’ जी की प्रमुख रचनाओं में ‘जीवन के गान’, ‘प्रलय सृजन’, ‘विश्वास बढ़ता ही गया’, और ‘हिम तरंगिनी’ शामिल हैं। उनकी कविताओं में देशप्रेम, मानवतावाद और प्रगतिशील विचारधारा का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त विसंगतियों पर करारा प्रहार किया।

‘सुमन’ जी की भाषा सरल, सहज और प्रभावशाली थी। उनकी काव्य शैली में छायावादी और प्रगतिवादी दोनों धाराओं का समन्वय मिलता है। उनकी कविताएँ आज भी पाठकों को प्रेरित और प्रभावित करती हैं।

प्रश्न 3. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ के जीवन-वृत्त एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।

उत्तर:

शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ के जीवन-वृत्त:

शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का जन्म 5 अगस्त 1915 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा काशी हिंदू विश्वविद्यालय से प्राप्त की। सुमनजी हिंदी साहित्य में प्रतिष्ठित कवियों में से एक थे और उन्हें मुख्य रूप से प्रगतिवादी विचारधारा के कवि के रूप में जाना जाता है। उनका जीवन साहित्य और शिक्षा दोनों में समर्पित रहा। वे एक प्रसिद्ध कवि होने के साथ-साथ एक उच्च शिक्षाविद् भी थे। उन्होंने कई विश्वविद्यालयों में शिक्षण कार्य किया और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

उनकी कविताओं में राष्ट्रीयता, समाज सुधार, और मानवीय मूल्यों की झलक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। 1974 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा, उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और हिंदी साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए अन्य कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले। उनका निधन 27 नवंबर 2002 को हुआ।

शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की भाषा-शैली:

शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की भाषा-शैली ओजपूर्ण और प्रभावशाली थी। उन्होंने खड़ी बोली हिंदी का प्रयोग किया, जो सरल, सजीव और आकर्षक थी। उनकी कविताओं में राष्ट्रीयता और समाज सुधार की भावना मुखर रूप में प्रकट होती है।

सुमनजी की काव्य-शैली में लक्षणा और व्यंजना शब्द शक्ति का प्रमुख स्थान है। वे अपनी कविताओं में रूपक और प्रतीकों का सुंदर उपयोग करते थे, जिससे उनकी कविताओं में गहराई और प्रभावशीलता बढ़ जाती थी। उनकी कविताओं में वीर रस, रौद्र रस और अद्भुत रस का मुख्य रूप से समावेश होता था।

सुमनजी की कविताएँ सरल होते हुए भी गहन अर्थों से युक्त होती थीं, जो समाज को जागरूक करने और प्रेरित करने का काम करती थीं। उनकी लेखनी में प्रगतिवादी और यथार्थवादी दृष्टिकोण का विशेष प्रभाव देखा जा सकता है।

प्रश्न 4. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की साहित्यिक विशेषताएँ एवं भाषा-शैली का उल्लेख कीजिए।

उत्तर: शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की साहित्यिक विशेषताएँ एवं भाषा-शैली अत्यधिक प्रभावशाली और प्रगतिशील हैं। उनकी रचनाओं में समाज सुधार, क्रांति, और जन-जागरण की गूंज सुनाई देती है। सुमनजी ने अपने साहित्य के माध्यम से अन्याय, शोषण और विषमता के खिलाफ आवाज उठाई। उनकी कविताओं में ओज और वीर रस की प्रमुखता है, जिससे पाठकों में साहस और उत्साह का संचार होता है। उनकी रचनाएँ सरल भाषा में होते हुए भी गहन अर्थ रखती हैं, जिसमें लक्षणा और व्यंजना शक्तियों का उत्कृष्ट प्रयोग देखने को मिलता है।

सुमनजी की भाषा खड़ी बोली है, जिसमें ओजस्विता और प्रवाह दोनों हैं। वह प्रतीकों और अलंकारों का अत्यधिक प्रयोग करते हैं, जिससे उनकी कविताएँ और भी प्रभावशाली हो जाती हैं। उनकी शैली भावात्मक होते हुए भी तार्किकता से परिपूर्ण है, जिससे उनके विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त होते हैं। कुल मिलाकर, सुमनजी की रचनाएँ जनमानस को जागरूक करने और सामाजिक बदलाव लाने का माध्यम हैं।

प्रश्न 5. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्यिक योगदान का उल्लेख कीजिए।

उत्तर: शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ (1925-1990) हिन्दी साहित्य के प्रमुख कवि और विचारक थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के एक गाँव में हुआ था। सुमनजी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल से प्राप्त की और उच्च शिक्षा के लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। वे एक शिक्षित और समाज के प्रति गहरी संवेदना रखने वाले व्यक्ति थे।

सुमनजी का साहित्यिक योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने अपनी कविताओं, गीतों, और निबंधों के माध्यम से सामाजिक असमानताओं, अन्याय, और शोषण के खिलाफ आवाज उठाई। उनकी रचनाओं में प्रगतिवादी दृष्टिकोण और जन जागरूकता की भावना प्रबल थी। उनकी कविताएँ आम जनता की आवाज बन गईं, जिसमें उन्होंने समाज के दबे-कुचले वर्ग की पीड़ा और संघर्ष को स्वर दिया।

उनकी प्रमुख काव्य-रचनाएँ ‘युगवाणी’, ‘मुक्ति’, और ‘शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की कविताएँ’ हैं। इन रचनाओं में उन्होंने समाज के विभिन्न पहलुओं, जैसे कि स्वतंत्रता संग्राम, सामाजिक विषमताएँ, और मानवाधिकार, को महत्वपूर्ण विषय बनाया।

सुमनजी की साहित्यिक शैली ओजस्वी और भावात्मक है, जिसमें उन्होंने सरल भाषा और प्रभावी प्रतीकों का उपयोग किया। उनकी कविताओं में रौद्र और वीर रस की प्रमुखता होती है, जिससे पाठकों में सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता और प्रेरणा मिलती है। उनके साहित्यिक योगदान ने हिन्दी कविता को नई दिशा और प्रेरणा दी, और वे आज भी सामाजिक न्याय और समानता के प्रतीक माने जाते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. ‘युगवाणी’ कविता के माध्यम से कवि क्या सन्देश देना चाहता है?

उत्तर: कवि ‘युगवाणी’ के माध्यम से मानवता और समाज के विकास की आवश्यकता पर जोर देते हैं। वे कहते हैं कि राष्ट्र के विकास के कार्य में किसी भी प्रकार की रुकावट नहीं होनी चाहिए और हमें निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए ताकि समाज में सुधार और प्रगति हो सके।

प्रश्न 2. ‘युगवाणी’ कविता की भाषागत विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर: ‘युगवाणी’ कविता की भाषा सरल और व्यावहारिक है, जो जनजीवन से जुड़ी हुई है। इसमें छायावादी काव्यशास्त्र की जटिलताओं की जगह स्पष्टता और सरलता है। कविता में उर्दू शब्दों का भी प्रयोग है और सुमनजी ने नए शब्दों का निर्माण किया है, जो भाषा को प्रभावशाली बनाते हैं।

प्रश्न 3. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित ‘युगवाणी’ कविता का सारांश संक्षेप में लिखिए।

उत्तर: ‘युगवाणी’ कविता में कवि श्रमिक और कृषक वर्ग की कठिनाइयों को उजागर करते हैं। वे बताते हैं कि श्रमिकों के श्रम का फल आज भी उनकी मेहनत के गवाह है, लेकिन वे अभी भी परेशान हैं। कवि शासक वर्ग को चेतावनी देते हैं कि यदि वे असहायों की समस्याओं को गंभीरता से नहीं लेंगे और उनका समाधान नहीं करेंगे, तो समाज का असंतुलन और भी बढ़ेगा।

प्रश्न 4. कवि ने प्रस्तुत कविता के माध्यम से किन वास्तविकताओं के प्रति आगाह किया है?

उत्तर: कवि ने कविता के माध्यम से शासक वर्ग की दीन-दुखियों के प्रति उपेक्षा और शोषण की वास्तविकता को उजागर किया है। उन्होंने बताया कि श्रमिक वर्ग अभी भी शोषित और परेशान है, और शासकों को इन समस्याओं की गंभीरता को समझने और सुधार की दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता है।

प्रश्न 5. ‘युगवाणी’ कविता में कवि ने शासकों को क्या परामर्श दिया है?

उत्तर: कवि शासकों को यह परामर्श देते हैं कि यदि वे असहाय और निर्धन वर्ग की समस्याओं का समाधान करने की बजाय उनके साथ खिलवाड़ करेंगे, तो उन्हें इसका गंभीर परिणाम भुगतना पड़ेगा। वे चेतावनी देते हैं कि अगर मानवीय संवेदनाओं की फसल नष्ट हो गई, तो शासक अकेले रह जाएंगे और समाज को खोखला पाएंगे।

प्रश्न 6. “युगवाणी’ कविता में कवि ने किसके इतिहास को माफ न करने को कहा है?

उत्तर: कवि ने शासक और पूंजीपति वर्ग के इतिहास को माफ न करने की बात कही है। वे मानते हैं कि इस वर्ग के द्वारा श्रमिकों का शोषण किया गया है और इसके लिए उनका इतिहास कभी माफ नहीं किया जा सकता।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ किस काल के कवि हैं?

उत्तर: शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ आधुनिक काल के प्रगतिवादी कवि हैं।

प्रश्न 2. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ किस धारा के कवि हैं?

उत्तर: शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ प्रगतिवादी धारा के कवि हैं।

प्रश्न 3. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की रचनाओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर: ‘सुमन’ जी की प्रमुख रचनाएँ हैं- हिल्लोल, जीवन के गान, प्रलय सृजन, विश्वास बढ़ता ही गया, विन्ध्य हिमालय, पर आँखें नहीं भरीं, और मिट्टी की बारात।

प्रश्न 4. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।

उत्तर: ‘सुमन’ जी की भाषा सरल, जनजीवन के निकट और व्यावहारिक है, और उनकी शैली में ओज और प्रसाद गुणों की प्रधानता है।

प्रश्न 5. ‘युगवाणी’ कविता का तात्पर्य बताइए।

उत्तर: ‘युगवाणी’ कविता का तात्पर्य है कि समय के अनुसार राष्ट्र का विकास निरंतर करना चाहिए ताकि मानवता का कल्याण हो सके।

काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध

1. निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए

(क) तन का, मन को पावन नाता कैसे तोड़ें?

उत्तर : कवि ने जीवन और मृत्यु की यथार्थता को रेखांकित करने का प्रयास किया है। भाषा–खड़ी बोली, शब्द शक्तिलक्षणी, शैली-गीत एवं रस-शान्त

(ख) इतिहास न तुमको माफ करेगी याद रहे।

उत्तर : श्रमिक के अभ्युत्थान के लिए कवि ने चेतावनी दी है। भाषा-खड़ी बोली, शब्द शक्ति-लक्षणा, शैली-भावात्मक, गीत एवं रस-रौद्र

(ग) नव-निर्माण की लपटों को मत मन्द करो।

उत्तर : यहाँ कवि की प्रगतिवादी भावना व्यक्त हुई है। शब्दशक्ति-लक्षणा तथा व्यंजना, शैली-भावात्मक, गीत अलंकारअनुप्रास एवं भाषा-ओजपूर्ण खड़ी बोली।

(घ) विश्वास सर्वहारा का तुमने खोया तो
आसन्न मौत की गहन गोंस गड़ जायेगी।

उत्तर : श्रमिक के अभ्युत्थान के लिए कवि ने चेतावनी दी है। भाषा-खड़ी बोली, शब्द शक्ति-लक्षणा, अलंकार-गहन गोंस गड़ में अनुप्रास अलंकार।।

2. निम्नलिखित शब्द-युग्मों से विशेषण-विशेष्य अलग कीजिए l

पद – चिह्न, धर्म – ध्वजा, दुःख – दर्द

उत्तर :

विशेषणविशेष्य
पदचिह्न
धर्मध्वजा
दुःखदर्द
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