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बिहार बोर्ड की कक्षा 7 की इतिहास की पुस्तक का अध्याय 9 ’18वीं शताब्दी में नयी राजनैतिक संरचनाएँ’ उस समय की राजनीतिक घटनाओं पर प्रकाश डालता है जब मुगल साम्राज्य की शक्ति क्षीण होने लगी थी। इस अध्याय में हम पढ़ेंगे कि मुगलों के बाद मराठों और अवध के नवाबों ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया। साथ ही बंगाल में ईस्ट इंडिया कंपनी की शक्ति का उदय भी हुआ जिसने बाद में पूरे भारत पर राज करना शुरू कर दिया। इस समय विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय शासकों ने अपनी सत्ता स्थापित की, जिससे देश में नयी राजनीतिक संरचनाओं का उदय हुआ।
Bihar Board Class 7 History Chapter 9 Solutions
Subject | History (अतीत से वर्तमान भाग 2) |
Class | 7th |
Chapter | 9. 18 वीं शताब्दी में नयी राजनैतिक संरचनाएँ |
Board | Bihar Board |
पाठगत प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. स्वयात्त राज्य किसे कहा जाता है?
उत्तर: स्वयंशासित या स्वायत्त राज्य उस राज्य को कहा जाता है, जो अपनी प्रशासनिक और नीतिगत निर्णय लेने में स्वतंत्र होता है। ऐसे राज्य अपने आंतरिक मामलों पर स्वयं नियंत्रण रखते हैं और केंद्रीय सरकार की दखल से परे होते हैं। इन राज्यों की स्वायत्तता का स्तर अलग-अलग हो सकता है, लेकिन वे अपने प्रमुख प्रशासनिक और नीतिगत फैसले स्वयं लेते हैं।
प्रश्न 2. नये राज्यों को तीन समूह में विभाजित करने के आधार क्या रहे होंगे?
उत्तर: 18वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य के क्षीण होने के साथ ही नए स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ। इन नए राज्यों को मुख्यतः तीन समूहों में विभाजित किया गया:
मराठा साम्राज्य: दक्षिण और मध्य भारत में मराठा शक्ति का प्रभुत्व था।
नवाबी शासन: पश्चिम और उत्तर भारत में नवाबी शासन स्थापित हुए।
स्थानीय शक्तियाँ: पूर्वी और पश्चिमी भारत में स्थानीय शक्तियों का उदय हुआ।
इस प्रकार, पुराने मुगल साम्राज्य के क्षरण और टूटने के कारण ही नए स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ, जिन्हें इन तीन प्रमुख समूहों में विभाजित किया गया।
प्रश्न 3. तकावी ऋण क्या था?
उत्तर: तकावी ऋण वह ऋण था, जिसे राज्य द्वारा किसानों को दिया जाता था। इस ऋण का मुख्य उद्देश्य किसानों की खेती-बाड़ी में सुधार करना और उत्पादन बढ़ाना था।
तकावी ऋण किसानों को कम ब्याज दर पर दिया जाता था, ताकि वे अपनी फसलों का उत्पादन बढ़ा सकें और अधिक आय अर्जित कर सकें। इस प्रकार, तकावी ऋण राज्य द्वारा किसानों की आय-वृद्धि और कृषि-उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए दिया जाता था।
प्रश्न 4. ठेकेदारी या इजारेदारी व्यवस्था क्या थी?
उत्तर: ठेकेदारी या इजारेदारी व्यवस्था एक कर संग्रह की प्रणाली थी, जिसमें राज्य एक निश्चित क्षेत्र के लिए कर संग्रह का ठेका कुछ लोगों को देता था।
इस व्यवस्था में, राज्य ठेकेदारों या इजारेदारों को एक निश्चित क्षेत्र में कर वसूलने का अधिकार प्रदान करता था। ठेकेदार या इजारेदार, राज्य को एक निर्धारित रकम का भुगतान करते थे और बची हुई रकम को अपने पास रख लेते थे। इस प्रणाली से राज्य को कर वसूली में सुविधा होती थी और ठेकेदारों को भी लाभ होता था।
प्रश्न 5. चौथ किसे कहा जाता था?
उत्तर: चौथ वह कर था, जिसे मराठा साम्राज्य पड़ोसी राज्यों से वसूलता था। मराठों ने यह व्यवस्था इस प्रकार की थी:
मराठे अपने पड़ोसी राज्यों पर हमला नहीं करते थे, बशर्ते कि वे राज्यों से उनकी उपज का एक चौथाई भाग (चौथ) के रूप में कर का भुगतान करें।
इस प्रकार, मराठों ने पड़ोसी राज्यों पर सीधे हमला न करके, उनसे उपज का चौथाई भाग वसूलकर अपना राजस्व प्राप्त करने की व्यवस्था की। इसे ही ‘चौथ’ कहा जाता था।
प्रश्न 6. सरदेशमुखी क्या था?
उत्तर: सरदेशमुखी एक कर वसूली की प्रणाली थी, जिसमें मराठा साम्राज्य के बड़े जमींदार परिवारों को लोगों के हितों की रक्षा करने के बदले उपज का दसवाँ भाग (दसमांश) देना पड़ता था।
इन बड़े जमींदार परिवारों को ‘सरदेशमुख’ कहा जाता था। वे मराठा शासकों के लिए कर वसूली का काम करते थे और इसके बदले में उपज का एक भाग अपने लिए रख लेते थे। इस प्रकार, सरदेशमुखी व्यवस्था मराठा शासन के अंतर्गत स्थानीय स्तर पर कर-वसूली का एक तरीका था।
अभ्यास के प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i) मुगलों के उत्तराधिकारी राज्य में कौन राज्य आता है ?
(क) सिक्ख
(ख) जाट
(ग) मराठा
(घ) अवध
उत्तर-(घ) अवध
प्रश्न (ii) बंगाल में स्वायत राज्य की स्थापना किसने की ?
(क) मुर्शिद कुली खाँ
(ख) शुजाउद्दीन
(ग) बुरहान-उल-मुल्क
(घ) शुजाउद्दौला
उत्तर- (क) मुर्शिद कुली खाँ
प्रश्न (iii) सिक्खों के एक शक्तिशाली राजनैतिक और सैनिक शक्ति के रूप में किसने परिवर्तित किया :
(क) गुरुनानक
(ख) गुरु तेगबहादुर
(ग) गुरु अर्जुनदेव
(घ) गुरु गोविन्द सिंह
उत्तर- (घ) गुरु गोविन्द सिंह
प्रश्न (iv) शिवाजी ने किस वर्ष स्वतंत्र राज्य की स्थापना की ?
(क) 1665
(ख) 1680
(ग) 1674
(घ) 1660
उत्तर- (ग) 1674
प्रश्न (v) मराठा परिसंघ का प्रमुख कौन था?
(क) पेशवा
(ख) भोंसले
(ग) सिंधिया
(घ) गायकवाड़
उत्तर-(क) पेशवा
प्रश्न 2. निम्नलिखित में मेल बैठाएँ :
उत्तर-
ठेकेदारी प्रथा | भू-राजस्व प्रशासन |
सरदेशमुखी | मराठा |
निजाम-उल-मुल्क | हैदराबाद |
सूरजमल | जाट |
1707 ई० | औरंगजेब का निधन |
आइए विचार करें
प्रश्न (i) अवध और बंगाल के नवाबों ने जागीरदारी प्रथा को हटाने की कोशिश क्यों की?
उत्तर – अवध और बंगाल के नवाबों ने जागीरदारी प्रथा को हटाने की कोशिश इसलिए की, ताकि वे अपनी स्वायत्तता को बढ़ा सकें और मुगल शासन से अधिक स्वतंत्र हो सकें। जागीरदारी प्रथा के तहत जमींदार और अन्य स्थानीय प्रभावशाली लोग काफी शक्ति और स्वायत्तता हासिल कर लेते थे, जिससे नवाबों का प्रभाव कम हो जाता था। इसलिए उन्होंने इस प्रथा को समाप्त करके अपना प्रत्यक्ष नियंत्रण बढ़ाने की कोशिश की, ताकि वे मुगल शासन से पूर्णतः स्वतंत्र हो सकें।
प्रश्न (ii) शिवाजी ने अपने राज्य में कैसी प्रशासनिक व्यवस्था कायम की?
उत्तर – शिवाजी ने अपने राज्य में एक व्यवस्थित और दक्ष प्रशासनिक ढांचा स्थापित किया। उन्होंने एक केंद्रीकृत शासन प्रणाली विकसित की, जिसमें राजा यानी खुद शिवाजी, सर्वोच्च अधिकार और शक्ति के केंद्र थे।
राजा को सहायता प्रदान करने के लिए उन्होंने ‘अष्ट प्रधान’ नामक आठ मंत्रियों की एक परिषद बनाई। इनमें से प्रमुख थे –
- पेशवा – प्रधानमंत्री के रूप में कार्य करता था और प्रशासन एवं वित्त का प्रभार संभालता था।
- सर-ए-नौबत – सेना और रक्षा व्यवस्था का प्रमुख था।
- मजुमदार – वित्तीय लेखा-जोखा रखने वाला।
- वाकेनगीस – गुप्तचर विभाग का प्रमुख था।
- सुरु नविस – पत्र-व्यवहार एवं राजकीय दस्तावेजों का प्रभारी।
- दबीर – विदेश मंत्री का कार्य करता था।
- पंडित राव – धार्मिक और साहित्यिक मामलों के लिए उत्तरदायी था।
- न्यायाधीश शास्त्री – हिंदू न्याय प्रणाली का अधिकृत व्याख्याता।
इस प्रकार शिवाजी ने एक संगठित और कुशल प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की, जो उनके राज्य के विकास और सुचारु संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी।
प्रश्न (iii) पेशवाओं के नेतृत्व में मराठा राज्य का विस्तार क्यों हुआ?
उत्तर – शिवाजी की मृत्यु के बाद मराठा क्षेत्रों पर फिर से मुगलों का प्रभाव बढ़ गया था। लेकिन जैसे ही 1707 में मुगल शासक औरंगजेब की मृत्यु हुई, चितपावन ब्राह्मणों के एक परिवार का प्रभाव मराठा राज्य पर स्थापित हो गया। इस परिवार ने शिवाजी के उत्तराधिकारियों को ‘पेशवा’ का पद दे दिया।
नये पेशवा ने पुणे को मराठा राज्य का नया केंद्र बना दिया और मराठों के सैन्य संगठन को और अधिक मजबूत किया। इस सशक्त सैन्य संगठन के बल पर पेशवाओं ने मराठा राज्य का विस्तार करने में सफलता प्राप्त की। कई मुगल शासकों ने भी पेशवाओं का नेतृत्व स्वीकार कर लिया, जिससे मराठा राज्य का दायरा और भी बढ़ गया।
इस प्रकार पेशवाओं के कुशल नेतृत्व और मराठा सेना की शक्ति के कारण मराठा राज्य का विस्तार हुआ और यह एक महाशक्ति के रूप में उभरकर सामने आया।
प्रश्न (iv) मुगल सत्ता के कमजोर होने का भारतीय इतिहास पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर – मुगल सत्ता के कमजोर होने का भारतीय इतिहास पर गहरा प्रभाव पड़ा। इसका सबसे बड़ा परिणाम यह हुआ कि देश में छोटे-छोटे स्वायत्त राज्यों और नवाबी शासनों का उदय हुआ। ये छोटे राज्य अपने स्वार्थों में डूबे रहे और किसानों पर भारी कर लगाकर उनका शोषण करने लगे। इन राज्यों में अराजकता और कलह व्याप्त हो गई।
इस परिस्थिति का लाभ उठाकर अंग्रेज ने एक-एक करके इन छोटे राज्यों को अपने अधिकार में ले लिया। उन्होंने इन राज्यों को हराने के लिए बल और छल दोनों का प्रयोग किया। अंततः पूरे भारत पर अंग्रेजों का प्रभुत्व कायम हो गया।
इस प्रकार मुगल सत्ता के कमजोर होने ने भारत के इतिहास में एक नई दशा प्रारंभ कर दी, जिसके परिणाम स्वरूप देश में विखंडन और अराजकता फैल गई, जिसका लाभ अंग्रेजों ने उठाया और पूरे भारत पर अपना राज स्थापित कर लिया।
प्रश्न (v) अठारहवीं शताब्दी में उदित होने वाले राज्यों के बीच क्या समानताएँ थीं?
उत्तर – अठारहवीं शताब्दी में उदित होने वाले प्रमुख राज्यों में बंगाल, अवध और हैदराबाद शामिल थे। इन तीनों राज्यों में कई समानताएँ थीं:
- ये तीनों राज्य पहले मुगल साम्राज्य के प्रांतीय सूबे (गुलाम शासन) थे, लेकिन धीरे-धीरे स्वायत्तता प्राप्त करके स्वतंत्र राज्य बन गए।
- इन राज्यों की आर्थिक व्यवस्था भू-राजस्व वसूली पर आधारित थी। उन्होंने जागीरदारी प्रणाली को समाप्त करके इस पर अपना नियंत्रण कायम किया।
- सभी तीनों राज्यों में प्रशासन का केंद्र नवाब/नवाब-जादे थे। उन्होंने अपने प्रशासनिक अधिकार को बढ़ाने के लिए जागीरदारी प्रणाली को समाप्त कर दिया।
- इन तीनों राज्यों के नवाब अपनी अंतर्राज्यीय शक्ति और प्रभाव को बढ़ाने में संलग्न थे और मुगल साम्राज्य से अधिक स्वतंत्र होने के लिए प्रयासरत थे।
इस प्रकार अठारहवीं शताब्दी में उदित होने वाले ये तीनों राज्य, अपनी आर्थिक, प्रशासनिक और राजनीतिक संरचना में काफी समानताएँ लिए हुए थे।