Bihar Board class 7 History chapter 6 solutions are available here. This is our free guide that gives precise answers to all the questions from chapter 6 – “शहर, व्यापारी एवं कारीगर” in hindi.
मध्यकालीन भारत में अनेक नगर स्थित थे जो वाणिज्य और व्यापार के केंद्र के रूप में विकसित हुए। इन नगरों में विभिन्न प्रकार के व्यापारी वस्तुओं का आदान-प्रदान करते थे। देश के आंतरिक व्यापार में भारतीय व्यापारियों के साथ-साथ विदेशी व्यापारी भी शामिल हुए। समुद्री मार्ग से आए यूरोपीय देशों ने भी भारत से व्यापार करना शुरू किया। इस व्यापार से नगरों की समृद्धि बढ़ी और वहां कई नए व्यवसाय भी खुले। इस अध्याय में हम मध्यकालीन भारत के इन्हीं व्यापारिक नगरों, व्यापारियों और उनके व्यवसायों के बारे में अध्ययन करेंगे।
Bihar Board Class 7 History Chapter 6 Solutions
Subject | History (अतीत से वर्तमान भाग 2) |
Class | 7th |
Chapter | 6. शहर, व्यापारी एवं कारीगर |
Board | Bihar Board |
प्रश्न 1. शासक, व्यापारी एवं धनाढ्य लोग मंदिर क्यों बनवाते थे?
उत्तर: शासक, व्यापारी एवं धनाढ्य लोग मंदिर इस लिये बनवाते थे क्योंकि इससे उनकी धार्मिक आस्था और धार्मिक प्रतिष्ठा प्रदर्शित होती थी। इससे वे अपने धन और शक्ति का प्रदर्शन भी कर सकते थे। साथ ही मंदिर बनवाकर वे अपने लिये पुण्य कमा सकते थे और अमर नाम कमा सकते थे।
प्रश्न 2. शहरों में कौन-कौन लोग रहते थे?
उत्तर: शहरों में व्यापारी, कारीगर, शिल्पकार, आभूषण बनाने वाले, सब्जी बेचने वाले, जूता बनाने वाले, रंगरेज आदि लोग रहते थे। व्यापारियों में अनाज और कपड़ा बेचने वाले दोनों प्रकार के व्यक्ति रहते थे। बड़े शहरों में थोक खरीद-बिक्री भी होती थी।
प्रश्न 3. व्यापारिक वस्तुओं के यातायात के क्या साधन थे?
उत्तर: व्यापारिक वस्तुओं के यातायात के लिये सड़कें विकसित थीं। इन सड़कों पर बैलगाड़ी, घोड़े, खच्चर आदि का उपयोग होता था। दूर-दराज के व्यापार के लिये नदी मार्गों का प्रयोग होता था। तटीय क्षेत्रों में समुद्री मार्ग का भी उपयोग होता था। बंदरगाहों को अच्छी सड़कों से जोड़ा गया था। विदेशी व्यापार समुद्री जहाजों द्वारा होता था। ऊंट भी सामान ढोने के अच्छे साधन थे।
प्रश्न 4. सतरहवीं शताब्दी में किन यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों का भारत में आगमन हुआ?
उत्तर: सतरहवीं शताब्दी में अंग्रेज, हॉलैंड (डच) और फ्रांस की यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों का भारत में आगमन हुआ। पुर्तगाली पन्द्रहवीं शताब्दी में ही भारत पहुंच चुके थे।
प्रश्न 5. सुमेल करें :
उत्तर-
1. मंदिर नगर | (ii) तिरुपति |
2. तीर्थ स्थल | (v) पुष्कर |
3. प्रशासनिक नगर | (i) दिल्ली |
4. बन्दरगाह नगर | (iii) गोआ |
5. वाणिज्यिक नगर | (iv) पटना |
प्रश्न 6: मध्यकालीन भारत में आयात-निर्यात की वस्तुओं की सूची बनाइए।
उत्तर: मध्यकालीन भारत में आयात-निर्यात की प्रमुख वस्तुओं की सूची निम्नानुसार थी:
निर्यात की वस्तुएँ:
- मसाले (काली मिर्च, दालचीनी, लौंग आदि)
- सूती कपड़े
- नील (नीला रंग)
- जड़ी-बूटी
- खाद्य वस्तुएँ (चावल, गेहूँ, दालें आदि)
- सूती धागा
- रेशम
आयात की वस्तुएँ:
- ऊनी वस्त्र
- सोना
- चाँदी
- हाथी दाँत
- खजूर
- चीन से आने वाला रेशम
प्रश्न 7: भारत में यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों के आगमन के कारणों को रेखांकित कीजिए।
उत्तर: भारत में यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों के आगमन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे:
- भारतीय मसालों और मलमल कपड़ों की लोकप्रियता: यूरोपीय व्यापारियों को भारतीय मसालों और बारीक मलमल कपड़ों की भनक लग गई थी। इन वस्तुओं की भारी माँग यूरोप में थी।
- भारतीय व्यापारियों द्वारा यूरोप में व्यापार: पहले भारतीय व्यापारी इन वस्तुओं को लेकर यूरोप जाते थे और वहाँ से सोना-चाँदी लादकर लौटते थे। बाद में फारसी व्यापारी मध्यस्थ बन गए।
- यूरोपीय व्यापारियों का प्रत्यक्ष व्यापार करने का इच्छा: यूरोपीय व्यापारी इन वस्तुओं का व्यापार स्वयं करना चाहते थे। वे किसी मध्यस्थ की भूमिका को स्वीकार नहीं करना चाहते थे।
- पुर्तगाली नाविक वास्को-दा-गामा का भारत पहुँचना: 1498 में पुर्तगाली नाविक वास्को-दा-गामा की भारत आगमन और यहाँ स्वयं व्यापार करना शुरू करना एक महत्वपूर्ण कारण था।
- अन्य यूरोपीय देशों का भारत में आगमन: इसके बाद इंग्लैंड, हॉलैंड और फ्रांस के व्यापारिक कंपनियों ने भी सतरहवीं शताब्दी में भारत में प्रवेश किया और व्यापार करना आरंभ कर दिया।
प्रश्न 8: आपके विचार से मंदिरों के आसपास नगर क्यों विकसित हुए?
उत्तर: मंदिरों के आसपास नगर विकसित होने के कारण निम्नलिखित थे:
- धार्मिक आस्था: भारत एक धार्मिक प्रधान देश रहा है। यहाँ के लोगों में देवी-देवताओं के प्रति गहरी श्रद्धा रही है। जहाँ-जहाँ मंदिर बने, वहाँ दर्शनार्थियों की भीड़ उमड़ने लगी।
- आवागमन व व्यापार: दर्शनार्थियों के आने-जाने के कारण उनकी उपयोगी वस्तुओं की दुकानें मंदिरों के आसपास खुलने लगीं। स्थानीय लोग भी इन वस्तुओं को खरीदने लगे।
- आर्थिक गतिविधियाँ: मंदिरों के आसपास धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक गतिविधियाँ होने लगीं। इससे क्रमशः मंदिरों के आसपास नगर विकसित हो गए।
इस प्रकार मंदिरों के आसपास दर्शनार्थियों का आवागमन, व्यापार व आर्थिक गतिविधियाँ होने के कारण नगर विकसित हुए।
प्रश्न 9: लोगों के जीवन में मेले एवं हाटों की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर: लोगों के जीवन में मेले एवं हाटों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी। इनकी भूमिका निम्नलिखित थी:
- दैनिक उपयोग की वस्तुओं की उपलब्धि: हाटों से लोग अपनी दैनिक जीवन में उपयोग होने वाली वस्तुएँ जैसे अनाज, सब्जियाँ आदि खरीदते थे।
- विशिष्ट वस्तुओं की उपलब्धि: मेलों में देश भर के कलाकार और शिल्पी अपने उत्पादों को लाते थे। ऐसी विशिष्ट वस्तुएँ हाट-बाजारों में उपलब्ध नहीं होती थीं।
- मनोरंजन का स्रोत: मेलों में लोगों को मनोरंजन के साधन भी मिल जाते थे। इससे वे मेलों का बड़ी बेसब्री से इंतजार करते थे।
- सामाजिक संपर्क: मेले और हाट सामाजिक संपर्क का माध्यम भी थे। यहाँ लोग एक-दूसरे से मिलते, बात-चीत करते और समान रुचियों के लोगों से जुड़ते थे।
इस प्रकार मेले और हाट लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।
प्रश्न 10: इस अध्याय में वर्णित शहरों की तुलना अपने जिले में स्थित शहरों से करें। क्या दोनों के बीच कोई समानता या असमानता है?
उत्तर: इस अध्याय में वर्णित शहरों और हमारे जिले के शहरों में निम्नलिखित समानताएँ और असमानताएँ हैं:
समानताएँ:
- विशिष्ट वस्तुओं के खास-खास महल्ले हैं।
- थोक और खुदरा, दोनों प्रकार के व्यापार होते हैं।
- सरकारी अधिकारी और व्यापारी कर्मचारी रहते हैं।
असमानताएँ:
- वर्णित शहर चहारदीवारियों से घिरे होते थे, जबकि हमारे जिले के शहर खुले हैं।
- वर्णित शहरों में सड़क और पानी की व्यवस्था का कोई उल्लेख नहीं है, जबकि हमारे शहरों में नगरपालिका है।
- वर्णित शहरों में रात में सड़कों पर रोशनी का प्रबंध नहीं था, जबकि हमारे शहरों में है।
इस प्रकार वर्णित शहरों और हमारे जिले के शहरों में कुछ समानताएँ हैं, लेकिन आधुनिक सुविधाओं के मामले में असमानताएँ भी हैं।
प्रश्न 11: धातुमूर्ति निर्माण के लुप्त मोम तकनीक के क्या लाभ हैं?
उत्तर: धातुमूर्ति निर्माण के लुप्त मोम तकनीक के निम्नलिखित लाभ थे:
- मूर्ति की आकृति का नियंत्रण: इस तकनीक से मनचाही आकृति की मूर्ति बनाई जा सकती थी।
- मोम का पुनर्उपयोग: मोम बर्बाद नहीं होता था। पिघलाकर निकालने के बाद उसे पुनः ठोस रूप में प्राप्त कर लिया जाता था।
- मूर्तियों का तेज उत्पादन: इस तकनीक में कम समय में अधिक मूर्तियाँ बनाई जा सकती थीं।
- लागत में कमी: मोम बर्बाद न होने से लागत में कमी आती थी।
- इस प्रकार लुप्त मोम तकनीक से मूर्तियों का उत्पादन नियंत्रित, पुनर्उपयोगी और कम लागत में किया जा सकता था।