Get our free guide on Bihar Board class 7 History chapter 7. Below we have given simplified answers for the exercise problems of chapter 7 – “सामाजिक-सांस्कृतिक विकास” in hindi.
किसी भी समाज या राष्ट्र के विकास का मूल आधार उसकी सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियां होती हैं। जब राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में बदलाव आते हैं, तो समाज और संस्कृति में भी परिवर्तन देखने को मिलता है। मध्यकालीन भारत में आए विभिन्न शासकों और विदेशी व्यापारियों के आगमन से यहां की समाज व्यवस्था और संस्कृति प्रभावित हुई। नए धर्म, विचारधाराएं और रीति-रिवाज यहां आए। इस अध्याय में हम इसी समय की सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थितियों और परिवर्तनों का अध्ययन करेंगे।
Bihar Board Class 7 History Chapter 7 Solutions
Subject | History (अतीत से वर्तमान भाग 2) |
Class | 7th |
Chapter | 7. सामाजिक-सांस्कृतिक विकास |
Board | Bihar Board |
पाठगत प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. आप बता सकते हैं कि इस्लाम धर्म अपने साथ खाने-पीने और पहनने की कौन-कौन-सी चीजें साथ लेकर आया?
उत्तर: इस्लाम धर्म ने भारत में कई नये खाद्य पदार्थों और पहनावों को लाकर प्रचलित किया। इनमें से कुछ प्रमुख हैं:
पहनावे:
- कुर्ता-पायजामा
- सलवार-कमीज
- लंगोटी/लुंगी
- अचकन
खाद्य पदार्थ:
- हलवा
- समोसा
- पिलाफ/पोलाव
- बिरयानी
- शरबत
प्रश्न 2. विभिन्न धर्मों के समानताओं एवं असमानतों को चार्ट के माध्यम से बताएँ।
उत्तर-
धर्मों के नाम | समानता | असमानता |
हिन्दू | पूजा करते हैं | नमाज पढ़ते हैं |
मुसलमान | लूँगी पहनते हैं | धोती पहनते हैं |
बौद्ध | कहीं भी प्रार्थना करते हैं | बौद्ध मठों में अराधना करते हैं |
ईसाई | कहीं भी प्रार्थना करते हैं | चर्च में प्रार्थना करते हैं |
प्रश्न 3. आप अपने शिक्षक या माता-पिता की सहायता से पाँच-पाँच हिन्दू देवी-देवताओं, सूफी एवं भक्ति संतों से जुड़े स्थलों की सूची बनाइए।
उत्तर-
क्रम | देवी | देवता | सूफी संत | भक्ति संत |
1. | लक्ष्मी | विष्णु | गजाली | रामानुज |
2. | पार्वती | शिव | रूमी | रामानन्द |
3. | दुर्गा | ब्रह्मा | सादी | नामदेव |
4. | पष्ठी | देवीराम | मनेरी | तुकाराम |
5. | मातृ देवी | कृष्ण | रॉविया | एकनाथ |
अभ्यास के प्रश्नोत्तर
आइए याद करें:
प्रश्न 1. सिंध विजय किसने की?
(क) मुहम्मद-बिन-तुगलक
(ख) मुहम्मद बिन कासिम
(ग) जलालुद्दीन अकबर
(घ) फिरोशाह तुगलक
उत्तर- (ख) मुहम्मद बिन कासिम
प्रश्न 2. महमूद गजनी के साथ कौन-सा विद्वान भारत आया ?
(क) अल-बहार
(ख) अल जवाहिरी
(ग) अल-बेरूनी
(घ) मिनहाज उस सिराज
उत्तर- (ग) अल-बेरूनी
प्रश्न 3. भारत में कुर्ता-पायजामा का प्रचलन किनके आगमन से शरू हुआ?
(क) ईसाई
(ख) मुसलमान
(ग) पारसी
(घ) यहूदी
उत्तर- (ख) मुसलमान
प्रश्न 4. अलवार और नयनार कहाँ के भक्त संत थे ?
(क) उत्तर भारत
(ख) पूर्वी भारत
(ग) महाराष्ट्र
(घ) दक्षिण भारत
उत्तर- (घ) दक्षिण भारत
प्रश्न 5. मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह कहाँ है ?
(क) दिल्ली
(ख) ढाका
(ग) अजमेर
(घ) आगरा
उत्तर- (ग) अजमेर
प्रश्न 2. इन्हें सुमेलित करें :
उत्तर-
1. निजामुद्दीन औलियां | (2) दिल्ली |
2. शंकर देव | (3) असम |
3. नानकदेव | (6) पंजाब |
4. एकनाथ | (5) महाराष्ट्र |
5. मीराबाई | (4) राजस्थान |
6. संत दरिया साहब | (1) बिहार |
आइए समझकर विचार करें
प्रश्न 1: भारत में मिली-जुली संस्कृति का विकास कैसे हुआ? प्रकाश डालें।
उत्तर: भारत में मिली-जुली संस्कृति का विकास निम्नलिखित तरीकों से हुआ:
- इस्लाम का आगमन और दिल्ली सल्तनत की स्थापना: 1206 में दिल्ली सल्तनत की स्थापना के बाद हिंदू और मुसलमानों के बीच बौद्धिक और आध्यात्मिक स्तर पर संपर्क बढ़ा। पहले जहाँ भारतीय लोग तुर्क-अफगानों को लुटेरा मानते थे, अब उन्हें शासक के रूप में स्वीकार करने लगे।
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान: अलबरूनी जैसे विद्वान मुसलमान संस्कृत भाषा और हिंदू धर्मग्रंथों का अध्ययन करते थे। साथ ही सूफी संत और धर्म प्रचारक भारत के नगरों में आकर बसने लगे।
- धार्मिक समन्वय: मुगल शासकों के प्रयासों से हिंदू भक्त संतों और सूफी संतों के बीच मेल-मिलाप बढ़ा। उन्होंने यह प्रचार किया कि भगवान एक और ईश्वर-अल्लाह में कोई अंतर नहीं है।
- पहनावे और खानपान का आदान-प्रदान: हिंदू राजकर्मचारी फ़ारसी पढ़ने लगे और पायजामा, अचकन जैसे पहनावे अपनाने लगे। इसी प्रकार मुस्लिम पहनावों को हिंदू भी अपना लिया।
इस तरह धार्मिक, सांस्कृतिक और भौतिक स्तरों पर आदान-प्रदान होने से भारत में मिली-जुली संस्कृति का विकास हुआ।
प्रश्न 2: निर्गुण भक्त संतों की भारत में एक समृद्ध परम्परा रही है। कैसे?
उत्तर: निर्गुण भक्त संतों की भारत में एक समृद्ध परंपरा रही है। इसके कारण निम्नलिखित हैं:
- ईश्वर की निराकार धारणा: ये संत ईश्वर को रूपरहित या निर्गुण मानते थे। वे मूर्ति-पूजा और कर्मकाण्डों में विश्वास नहीं करते थे।
- जाति-पाँति का विरोध: निर्गुण भक्त संतों ने जाति-पाँति, छुआछूत और ऊंच-नीच का घोर विरोध किया। वे समता और भाईचारे के पक्षधर थे।
- कबीर और उनके उपदेश: कबीर इन संतों में सर्वाधिक प्रमुख थे। उन्होंने हिंदू और इस्लामी धार्मिक आडंबरों की घोर आलोचना की। उनके उपदेश ‘साखी’ और ‘शब्द’ में संकलित हैं।
- अन्य प्रमुख संत: गुरु नानक देव और दरिया साहब भी इसी निर्गुण भक्ति परंपरा में थे। उन्होंने भी धार्मिक संकीर्णता और जाति-पाँति का विरोध किया।
इस प्रकार निर्गुण भक्ति परंपरा ने भारत में समता, एकता और धार्मिक सहिष्णुता के संदेश को फैलाया। यह एक समृद्ध और प्रभावशाली परंपरा रही है।
प्रश्न 3: बिहार के संत दरिया साहेब के बारे में आप क्या जानते हैं? लिखें।
उत्तर: बिहार के महान संत दरिया साहेब के बारे में निम्नलिखित जानकारी है:
- कार्यक्षेत्र: दरिया साहेब का कार्यक्षेत्र तत्कालीन शाहाबाद जिला था, जिसके अब चार जिले – भोजपुर, रोहतास, बक्सर और कैमूर हो गए हैं।
- धार्मिक विचार: दरिया साहेब एकेश्वरवादी और निर्गुण वाद के पक्षधर थे। उन्होंने ईश्वर को सर्वव्यापी, निराकार और निर्गुण माना। वे अवतार-पूजा को मानने से इंकार करते थे।
- प्रेम, भक्ति और ज्ञान: उनका मानना था कि प्रेम के बिना भक्ति असंभव है और भक्ति के बिना ज्ञान अधूरा है। वे ईश्वर के प्रति प्रेम, भक्ति और ज्ञान को मोक्ष प्राप्ति का साधन मानते थे।
- जाति-पंथ का विरोध: दरिया साहेब ने जाति-प्रथा और छुआछूत का घोर विरोध किया। उनके अनुयायियों में दलित वर्ग की संख्या अधिक थी।
- विचारों का प्रभाव: दरिया साहेब के विचारों पर इस्लाम का और व्यावहारिक पहलुओं पर निर्गुण भक्ति का प्रभाव था। उनके अनुयायी भोजपुर, बक्सर, रोहतास और भभुआ जिलों में अधिक थे।
- प्रमुख उपदेश: “एक ब्रह्म सकल घटवासी, वेदा कितेबा दुनों परणासी”, “ब्रह्म, विष्णु, महेश्वर देवा, सभी मिली रहिन ज्योति सेवा” जैसे उपदेश उनके विचारों को प्रदर्शित करते हैं।
इस प्रकार दरिया साहेब बिहार के महान निर्गुण भक्त संत थे, जिन्होंने समता, एकता और धार्मिक सहिष्णुता का संदेश दिया।
प्रश्न 4: मनेरी साहब बिहार के महान सूफी संत थे। कैसे?
उत्तर: मनेरी साहेब बिहार के महान सूफी संत थे। इसके कारण निम्नलिखित हैं:
- फिरदौसी परंपरा का प्रतीक: मनेरी साहेब फिरदौसी परंपरा के प्रमुख सूफी संत थे। उन्होंने इस परंपरा को बिहार में मजबूत करने का कार्य किया।
- समन्वयवादी संस्कृति के प्रणेता: मनेरी साहेब ने संकीर्ण विचारधारा, जाति-पाँति और धार्मिक कट्टरता का विरोध किया। उन्होंने मिली-जुली संस्कृति के निर्माण का सक्रिय प्रयास किया।
- ज्ञानार्जन और धर्मप्रचार: मनेरी साहेब ने मनेर से लेकर मुनारगाँव तक की यात्रा की और ज्ञानार्जन किया। बाद में वे राजगीर और बिहारशरीफ में तपस्या कर धर्मप्रचार में लीन रहे।
- साहित्यिक योगदान: फ़ारसी भाषा में उनके पत्रों के दो संकलन ‘मकतुबाते सदी’ और ‘मकतुबात’ प्रमुख हैं। उन्होंने हिंदी में भी कई रचनाएँ लिखीं, जिनमें उन्होंने ईश्वर को सूफियाना ढंग से व्यक्त किया।
- मजार और उत्तराधिकारी: मनेरी साहेब का मजार बिहारशरीफ में है, जहाँ उनकी माँ बीबी रजिया का मजार भी है। बीबी रजिया सूफी संत पीर जगजोत की बेटी थीं।
इस प्रकार मनेरी साहेब बिहार के महान सूफी संत थे, जिन्होंने मिली-जुली संस्कृति के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रश्न 5: महाराष्ट्र के भक्त संतों की क्या विशेषता थी?
उत्तर: महाराष्ट्र के भक्त संतों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं:
- भक्ति धारा का प्रसार: महाराष्ट्र में 13वीं शताब्दी में नामदेव ने भक्ति धारा को प्रवाहित किया, जिसे 17वीं शताब्दी में तुकाराम ने आगे बढ़ाया। यह परंपरा रामानुज के उपदेशों से प्रेरित थी।
- ईश्वर के प्रति श्रद्धा और प्रेम: इन संतों ने ईश्वर के प्रति श्रद्धा, भक्ति और प्रेम के सिद्धांत को लोकप्रिय बनाया। वे ईश्वर के प्रति अटूट समर्पण में विश्वास करते थे।
- धार्मिक आडंबरों का विरोध: इन संतों ने मूर्ति-पूजा, तीर्थ-यात्रा, व्रत-उपवास जैसे धार्मिक आडंबरों का घोर विरोध किया। वे इन रीति-रिवाजों को केवल दिखावा मात्र मानते थे।
- जाति-पाँति का खंडन: इन संतों ने जाति-व्यवस्था, ऊँच-नीच के भेदभाव का विरोध किया। उनके अनुयायियों में सभी जातियों, महिलाओं और मुसलमानों को शामिल किया गया।
- विट्ठल स्वामी का प्रचार: इन संतों ने पंढरपुर में विट्ठल स्वामी (श्रीकृष्ण) को जन-जन का आराध्य देवता बनाया।
- सामाजिक कुरीतियों का खंडन: इन संतों के अभंग (भजन) में सामाजिक कुरीतियों पर करारा प्रहार किया गया। उन्होंने दीन-दुखियों और दलितों को भी समान दृष्टि से देखा।
इस प्रकार महाराष्ट्र के भक्त संतों ने समता, भक्ति और सामाजिक सुधार का संदेश दिया।
विचारणीय मुद्दे
प्रश्न 1. मध्यकालीन भक्त संतों में कुछ अपवादों को छोड़कर एक समान विशेषताएँ थीं। कैसे?
उत्तर: मध्यकालीन भारत में भक्त संत आंदोलन का उदय कई कारणों से हुआ। तत्कालीन समाज में पंडितों द्वारा जाति-पाँति और कर्मकांड पर बल दिया जाता था, जिससे साधारण जनता का भारी शोषण होता था। ऐसी स्थिति में भक्त संत आए और समाज में व्याप्त इन बुराइयों का विरोध करके धार्मिक सुधार की मांग की।
इन संतों में कुछ अपवादों को छोड़कर निम्न समान विशेषताएँ थीं:
- वे निष्कपट, सरल और स्वच्छ जीवन जीते थे। कर्मकांड और आडम्बर से दूर रहते थे।
- वे जाति-पाँति और भेदभाव का विरोध करते थे। सभी लोगों को समान रूप से अपना मानते थे।
- उनका मुख्य लक्ष्य लोगों को धार्मिक जागृति देना और उन्हें एकता के सूत्र में बाँधना था।
- वे अपने गीतों, भजनों और कविताओं के माध्यम से धार्मिक संदेश प्रचारित करते थे।
- उनका जोर भक्ति और ईश्वर-प्रेम पर था, न कि जाति-पाँति और कर्मकांड पर।
- इन समान विशेषताओं के कारण मध्यकालीन भक्त संत आंदोलन व्यापक रूप से लोकप्रिय हो गया।
प्रश्न 2. शंकराचार्य ने भारत को सांस्कृतिक रूप से एक सूत्र में बांधा। कैसे?
उत्तर: शंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना करके भारत को सांस्कृतिक रूप से एक सूत्र में बाँधने का महत्वपूर्ण कार्य किया। ये चार मठ थे:
- उत्तर में बद्रीनाथ में बद्रीनाथ मठ
- दक्षिण में श्रृंगेरी में श्रृंगेरी मठ
- पूर्व में पुरी में गोवर्धन मठ
- पश्चिम में द्वारिका में द्वारिका पीठ
शंकराचार्य ने इन चारों ओर की धार्मिक और सांस्कृतिक परम्पराओं को एकसूत्र में बाँधा। भारत के हर कोने से लोग इन मठों पर आकर पूजा-अर्चना करने लगे। इससे भारतीय जीवन में एक संस्कृतिक एकता का भाव आ गया। भारत के हर भाग से लोग एक-दूसरे के साथ जुड़ गए। शंकराचार्य की यह पहल भारत को सांस्कृतिक रूप से एकसूत्र में बाँधने में बहुत महत्वपूर्ण साबित हुई।
प्रश्न 3. क्या आपके गाँव के पुजारी मध्यकालीन संतों की तरह कर्मकांड, जात-पात, आडम्बर आदि का विरोध करते हैं? अगर नहीं तो क्यों ?
उत्तर: मेरे गाँव के पुजारी अभी भी मध्यकालीन संतों की तरह कर्मकांड, जात-पात और आडम्बर का विरोध नहीं करते हैं। इसके कुछ प्रमुख कारण हैं:
- गाँव में पुराने रीति-रिवाजों और परम्पराओं को लोग अभी भी मानते हैं। पुजारी को इनका पालन करना पड़ता है।
- पुजारियों की आय का प्रमुख स्रोत इन्हीं कर्मकांडों और आचार-विचार पर आधारित है। अगर वे इनका विरोध करें तो उनकी आमदनी खत्म हो जाएगी।
- गाँव में ऊँची जातियों का प्रभुत्व है। पुजारी उनके साथ खड़े रहते हैं, क्योंकि वे उन्हें संरक्षण और आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं।
- सरकार द्वारा भी इस दिशा में कोई जोरदार कदम नहीं उठाए गए हैं। पुजारी निरंकुश हो गए हैं।
इन कारणों से मेरे गाँव के पुजारी अभी भी मध्यकालीन संतों की तरह कर्मकांड, जाति-पाँति और आडम्बर का विरोध नहीं करते।
प्रश्न 4. क्या आपने हिन्दू और मुसलमानों को साथ रहते हुए देखा है? उनमें क्या-क्या समानताएँ हैं?
उत्तर: हाँ, मैंने हिन्दुओं और मुसलमानों को एक साथ रहते हुए देखा है। वास्तव में, हमारे समुदाय में यह सामंजस्य और सौहार्द्रपूर्ण वातावरण हमेशा से ही रहा है।
हिन्दू और मुसलमान समुदायों में निम्न प्रमुख समानताएँ हैं:
- आर्थिक जीवन: आर्थिक पहलुओं में दोनों समुदायों का एक-दूसरे पर निर्भरता है। व्यापार, व्यवसाय और रोजगार में एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हैं।
- सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन: समान भौगोलिक क्षेत्र में रहने के कारण सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों में काफी समानता है। त्योहार, उत्सव और रीति-रिवाजों में मेल-जोल होता है।
- राजनीतिक जागरूकता: अब राजनीतिक मुद्दों पर भी दोनों समुदाय एक दूसरे को समझने लगे हैं। धर्म और जाति के आधार पर वोट देने की प्रवृत्ति कम हो रही है।
इस प्रकार, हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच सामंजस्य और सौहार्द्र का वातावरण बना हुआ है। अगर कभी-कभार कुछ राजनीतिक घटनाओं के कारण विभाजन या तनाव भी उत्पन्न होता है, तो भी दोनों समुदाय मूलतः एक साथ रहते और सहयोग करते हैं।
प्रश्न 5. सांस्कृतिक रूप से सभी धर्मावलम्बियों को और करीब लाने के लिये आप क्या-क्या करना चाहेंगे, जिससे सौहार्दपूर्ण माहौल बने ?
उत्तर: सांस्कृतिक रूप से सभी धर्मावलम्बियों को और करीब लाने के लिये हम निम्न कदम उठा सकते हैं:
- धार्मिक समारोहों और त्योहारों में सभी धर्मों के लोगों को सम्मिलित होने का आमंत्रण देना। इससे उनके बीच मेल-जोल और एकता का भाव बढ़ेगा।
- सामुदायिक भोज, संस्कृतिक कार्यक्रम और सामाजिक आयोजनों का आयोजन करना, जिनमें सभी धर्मों के लोग एक साथ शामिल हों।
- स्कूलों और कॉलेजों में सांस्कृतिक एकता पर आधारित कार्यक्रमों का आयोजन करना। छात्र-छात्राओं में धार्मिक सौहार्द्र की भावना पैदा होगी।
- धार्मिक स्थलों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना। इससे भिन्न धर्मों के लोग एक-दूसरे के त्योहारों और परंपराओं से जुड़ेंगे।
- स्थानीय स्तर पर धार्मिक नेताओं और समाज के प्रभावशाली लोगों की भूमिका को प्रोत्साहित करना। वे लोगों में सांप्रदायिक सौहार्द्र का संदेश फैला सकते हैं।
इन कदमों से सभी धर्मावलम्बियों में एक-दूसरे के प्रति सम्मान और सौहार्द्र की भावना जागृत होगी, जिससे सांस्कृतिक एकता और सौहार्दपूर्ण माहौल बनाए रखा जा सकेगा।