Bihar Board class 7 History chapter 8 is solved for free here. Below you will get simplified question answer of chapter 8 – “क्षेत्रीय संस्कृतियों का उत्कर्ष” in hindi medium.
बिहार बोर्ड की कक्षा 7 की इतिहास की पुस्तक का अध्याय 8 ‘क्षेत्रीय संस्कृतियों का उत्कर्ष’ गुप्त साम्राज्य के बाद उभरी क्षेत्रीय शक्तियों और उनकी संस्कृतियों पर प्रकाश डालता है। इस अध्याय में हम देखेंगे कि गुप्त साम्राज्य के विघटन के बाद छठी शताब्दी से लेकर कुछ क्षेत्रीय शासकों जैसे पाल, प्रतिहार, राष्ट्रकूट, पल्लव एवं चोल आदि ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया। इस काल में साहित्य, कला और संगीत में महत्वपूर्ण विकास हुआ। विभिन्न क्षेत्रों में अपनी भाषाओं जैसे बंगला, असमिया, मैथिली, भोजपुरी, उड़िया, अवधि एवं ब्रज का विकास हुआ। दक्षिण में तमिल और मलयालम भाषाएं विकसित हुईं। इसी दौरान उर्दू, हिंदी जैसी भाषाओं की भी नींव पड़ी।

Bihar Board Class 7 History Chapter 8 Solutions
Subject | History (अतीत से वर्तमान भाग 2) |
Class | 7th |
Chapter | 8. क्षेत्रीय संस्कृतियों का उत्कर्ष |
Board | Bihar Board |
प्रश्न 1. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें:
- उर्दू एक मिश्रित भाषा है । (मिश्रित/एकल/मधुर)
- उर्दू की उत्पत्ति ग्यारहवीं शताब्दी में हुयी । (ग्यारहवीं /चौदहवीं/बारहवीं)
- उर्दू का शाब्दिक अर्थ है शिविर। (घर/महल/शिविर/खेमा)
- इरानी लोग सिंधु को हिन्दू कहने थे । (हिन्द/हिन्दू/हिन्दी)
- तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की । (महाभारत/मेघदूतम्/रामचरितमानस)
- हाड़ी चित्रकला उत्तर-पश्चिम हिमालय क्षेत्र में विकसित हुयी। (मध्य भारत/उत्तर पश्चिम हिमालय/राजस्थान)
प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें:
प्रश्न (a) उर्दू का विकास कैसे हुआ ?
उत्तर: उर्दू भाषा का विकास मध्यकालीन भारत में हुआ। उर्दू एक मिश्रित भाषा है, जिसमें अरबी, फारसी और तुर्की भाषाओं के शब्द मिले हुए हैं। यह दिल्ली सल्तनत काल के दौरान दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में विकसित हुई। उर्दू की लिपि फारसी है, लेकिन व्याकरण हिंदी-उर्दू के समान है। उर्दू का विकास एक संपर्क भाषा के रूप में हुआ, जिसे सैनिक, प्रशासक और व्यापारी आपस में बातचीत करने के लिए उपयोग करते थे। धीरे-धीरे यह आम लोगों में भी प्रचलित होती गई।
प्रश्न (b) लौकिक साहित्य के बारे में पाँच पंक्तियों में बताइए।
उत्तर: मध्यकालीन भारत में लौकिक साहित्य का विकास हुआ। इसमें ‘ढोला-मारवाणी’ जैसे काव्य-कृतियों का महत्वपूर्ण स्थान है, जिनमें प्रेम और विरह की मार्मिक कहानियों का वर्णन किया गया है। इसी काल में अमीर खुसरो जैसे कवियों ने हिंदी के भंडार को समृद्ध किया और पहेलियों के माध्यम से भाषा को रोचक बनाया। मध्यकालीन लौकिक साहित्य में महिलाओं के मनोभावों का सजीव चित्रण किया गया। इस साहित्य ने सामाजिक जीवन की झलक प्रस्तुत की और लोक-संस्कृति को अभिव्यक्त किया।
प्रश्न (c) रहीम कौन थे? उनके द्वारा रचित किसी एक दोहे को लिखें।
उत्तर: रहीम (अब्दुर्रहीम खानखाना) मुगल शासक अकबर के दरबारी और नवरत्नों में से एक थे। वे कृष्ण भक्ति परंपरा से प्रभावित कवि थे और हिंदी में कई सुंदर कविताओं की रचना की। उनका एक प्रसिद्ध दोहा इस प्रकार है:
“रहिमन विपदा तू भली, जो थोड़े दिन होई।
हित अनहित या जगत में, जान पड़े सब कोई।”
इस दोहे में रहीम ने कहा है कि मुसीबतें अच्छी हैं, क्योंकि ये थोड़े ही दिनों के लिए होती हैं। इस जगत में हितकर और अहितकर दोनों कार्य ही सभी को पता चल जाते हैं।
प्रश्न (d) ‘हम्जानामा’ क्या है?
उत्तर: ‘हम्जानामा’ मुगल शासकों द्वारा बनवाया गया एक प्रसिद्ध चित्र-संग्रह है। यह मुगल चित्रकला की एक उत्कृष्ट कृति है। ‘हम्जानामा’ एक पांडुलिपि है, जिसमें करीब 1200 चित्र बने हुए हैं। ये चित्र मुगल शैली के स्थूल और नट्टकीन्ने गंभीर अंदाज में कपड़े पर बने हुए हैं। इन चित्रों में मुख्य रूप से वीरता, युद्ध, शौर्य और शासकीय गतिविधियों का चित्रण किया गया है। ‘हम्जानामा’ मुगल चित्रकला के उत्कृष्ट नमूनों में से एक माना जाता है।
प्रश्न (e) पहाड़ी चिरकला में किन-किन विषयों पर चित्र बनाये जाते थे?
उत्तर: पहाड़ी चित्रकला में विशेषकर सामाजिक विषयों पर चित्र बनाए जाते थे। इन चित्रों में बच्चियों को गेंद खेलते, संगीत के साज बजाते, पक्षियों या पशुओं के साथ मनोरंजन करते हुए दिखाया जाता था। राजा-महाराजाओं के अकेले या दरबारियों के साथ बैठे हुए चित्र भी बनाए जाते थे। इसके अलावा, प्राकृतिक दृश्यों जैसे पत्तों और फलों से लदे वृक्षों का चित्रण भी पहाड़ी चित्रकला में देखने को मिलता था। इस प्रकार, पहाड़ी चित्रकला में सामाजिक, राजनीतिक और प्राकृतिक विषयों पर चित्र बनाए जाते थे।
प्रश्न (f) गजल और कव्वाली में अंतर बताएँ।
उत्तर: गजल और कव्वाली मध्यकालीन भारत में विकसित दो प्रमुख गायन शैलियाँ थीं, जिनके बीच निम्नलिखित अंतर हैं:
- शब्दार्थ: गजल का शाब्दिक अर्थ है ‘अपने प्रेम पात्र से वार्ता’। जबकि कव्वाली का अर्थ है ‘कथन’ या ‘कहना’।
- भाव: गजलें शृंगार रस में लिखी जाती थीं और प्रेम-विषयक होती थीं। कव्वाली में भक्ति और सूफियाना भाव प्रधान होते थे।
- संरचना: गजल में कम से कम पाँच और अधिक से ग्यारह शेर होते थे, जिनका संग्रह ‘दीवान’ कहलाता था। कव्वाली में कोई निश्चित संरचना नहीं होती थी।
- श्रोता: गजलें संगीत-प्रेमियों को अच्छी लगती थीं, जबकि कव्वाली का श्रोता मुख्यत: सूफी साधक होते थे।
इस प्रकार, गजल और कव्वाली के बीच विषय, संरचना और श्रोता में महत्वपूर्ण अंतर था।
चर्चा करें
प्रश्न 1. क्षेत्रीय भाषा एवं साहित्य के विकास का क्या महत्त्व है ?
उत्तर: क्षेत्रीय भाषाओं और साहित्य के विकास का महत्वपूर्ण योगदान है:
- भाषाई विविधता को संरक्षित रखना: भारत में विभिन्न क्षेत्रों में विकसित क्षेत्रीय भाषाएँ और साहित्य देश की भाषाई विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखना: क्षेत्रीय भाषाओं और साहित्य में प्रतिबिंबित होती है उस क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत। इससे लोक-परंपराओं, मूल्यों और पहचान को बनाए रखा जा सकता है।
- सामाजिक एकीकरण: क्षेत्रीय साहित्य, समुदायों को एक-दूसरे से जोड़ने में मदद करता है। यह समानता और सामाजिक एकीकरण को बढ़ावा देता है।
- भाषाई समृद्धि: क्षेत्रीय भाषाओं और साहित्य के विकास से भारतीय भाषा-परंपरा में समृद्धि आती है। नई शैलियों, छंदों और शब्दकोष का विकास होता है।
- पहचान और गौरव: क्षेत्रीय साहित्य में अपने क्षेत्र की पहचान और गौरव की झलक मिलती है। यह क्षेत्रीय अस्मिता को बनाए रखने में योगदान देता है।
इस प्रकार, क्षेत्रीय भाषाओं और साहित्य का संरक्षण और विकास देश की सांस्कृतिक और भाषाई विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 2. आपके घर में जो भाषा बोली जाती है? उसका प्रयोग लिखने में कब से शुरू हुआ?
उत्तर: मेरे घर में भोजपुरी भाषा बोली जाती है। भोजपुरी भाषा का लिखित प्रयोग काफी पुराना है और इसका आरंभ कबीर के समय से माना जाता है।
मध्यकाल में भोजपुरी में कई महाकाव्यों की रचना हुई। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ‘बटोहिया’, ‘फिरंगिया’ और ‘कुंवर सिंह’ जैसे प्रसिद्ध महाकाव्य भोजपुरी में रचे गए। इन महाकाव्यों में भोजपुरी भाषा का समृद्ध और उन्नत रूप प्रस्तुत किया गया।
इसके अलावा, महेंद्र मिश्र और भिखारी ठाकुर जैसे प्रसिद्ध भोजपुरी गीतकारों ने भी इस भाषा को समृद्ध किया। आज भोजपुरी भाषा का काफी विकास हो चुका है और यह बिहार व पश्चिम बंगाल के साथ ही देश के अन्य हिस्सों में भी व्यापक रूप से बोली और समझी जाती है।