Get our free guide on Bihar Board Class 7 Civics chapter 10. This guide is prepared by the subject experts and gives you accurate answers for all the questions from chapter 10 – “चलें मण्डी घूमने”
बिहार बोर्ड की कक्षा 7 की नागरिक शास्त्र की पुस्तक का दसवां अध्याय “चलें मंडी घूमने” मंडियों के महत्व और कार्यप्रणाली पर केंद्रित है। यह अध्याय मंडियों की भूमिका और उनके कामकाज को समझाता है। इसमें किसानों द्वारा उपज को मंडियों में लाने और उसे बेचने की प्रक्रिया का वर्णन किया गया है। साथ ही, मंडियों में व्याप्त समस्याओं जैसे दलालों की भूमिका, उचित मूल्य न मिलना आदि पर भी चर्चा की गई है। छात्र इस अध्याय के अध्ययन से मंडियों के महत्व और उनकी कार्यप्रणाली को गहराई से समझ पाएंगे।
Bihar Board Class 7 Civics Chapter 10 Solutions
Subject | Civics |
Class | 7th |
Chapter | 10. चलें मण्डी घूमने |
Board | Bihar Board |
पाठगत प्रश्नोत्तर
प्रश्नों के उत्तर दें-
प्रश्न 1. इस रेखा चित्र के अनुसार बड़े शहर की मंडी तक चावल पहुंचने के क्या-क्या तरीके हैं?
उत्तर: इस रेखा चित्र के अनुसार, बड़े शहर की मंडी तक चावल पहुंचने के दो प्रमुख तरीके हैं:
- सीधा मार्ग: किसान के पास से चावल सीधे चावल मिल में जाता है, और वहाँ से थोक व्यापारी के पास पहुंचता है, जो इसे बड़े शहर की मंडी में बेचता है।
- परंपरागत मार्ग: किसान के पास से चावल पहले छोटे पिल में जाता है, फिर स्थानीय छोटे व्यापारी के पास, उसके बाद स्थानीय मंडी के थोक व्यापारी के पास, और अंत में बड़े शहर के थोक व्यापारी के पास पहुंचता है।
- इन दोनों तरीकों में से किसान को अपने उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिलता, क्योंकि मध्यस्थों की वजह से कीमत कम हो जाती है। किसानों को अपने उत्पाद का अधिक मूल्य प्राप्त करने के लिए सहकारी समिति या सीधे उपभोक्ताओं से जुड़ने की आवश्यकता है।
प्रश्न 2. थोक और खुदरा बाजार में क्या अंतर है?
उत्तर: थोक बाजार और खुदरा बाजार में मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं:
- मात्रा: थोक बाजार में किसी भी वस्तु की खरीद-बिक्री बड़े पैमाने पर होती है, जबकि खुदरा बाजार में छोटी मात्रा में होती है। थोक बाजार में माल टन या बोरी में मिलता है, जबकि खुदरा बाजार में किलो या पाव में।
- ग्राहक: थोक बाजार में मुख्य ग्राहक व्यापारी और उद्योगपति होते हैं, जबकि खुदरा बाजार में आम उपभोक्ता होते हैं।
- स्थान: थोक बाजार आमतौर पर बड़े शहरों में स्थित होते हैं, जबकि खुदरा बाजार छोटे शहरों और गांवों में भी हो सकते हैं।
- कीमत: थोक बाजार में कीमतें सामान्यत: कम होती हैं, क्योंकि बड़ी मात्रा में खरीद होती है। खुदरा बाजार में कीमतें थोड़ी ज्यादा होती हैं।
इस प्रकार, थोक बाजार और खुदरा बाजार में मात्रा, ग्राहक, स्थान और कीमतों के संदर्भ में अंतर होता है।
प्रश्न 3. थोक बाजार की जरूरत क्यों होती है? चर्चा करें।
उत्तर: थोक बाजार की जरूरत कई कारणों से होती है:
- किसानों और उपभोक्ताओं के बीच के संबंध को मजबूत करना: किसान अपने उत्पाद को सीधे उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंचा सकते। थोक बाजार में मध्यस्थों के माध्यम से किसानों और उपभोक्ताओं के बीच संपर्क बनता है।
- कीमतों को नियंत्रित करना: थोक बाजार में वस्तुओं की कीमतों का निर्धारण होता है, जो खुदरा व्यापारियों और उपभोक्ताओं के लिए मार्गदर्शक होता है।
- भंडारण और वितरण को सुगम बनाना: थोक बाजार में वस्तुओं का संग्रह और वितरण आसान होता है, जिससे उपभोक्ताओं को सुविधा होती है।
- आर्थिक विकास में योगदान: थोक बाजार देश की आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- स्थानीय व्यापारियों को लाभ: थोक बाजार की वजह से स्थानीय व्यापारी अपने क्षेत्र में वस्तुएं खरीद सकते हैं और उन्हें बेच सकते हैं।
इस प्रकार, थोक बाजार किसानों, व्यापारियों और उपभोक्ताओं सभी के लिए लाभकारी है और देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
प्रश्न 4. छोटे किसान को चावल का कम मूल्य क्यों मिलता है?
उत्तर: छोटे किसानों को चावल का कम मूल्य मिलता है, क्योंकि:
- कम उत्पादन: छोटे किसानों के पास सीमित जमीन है, जिससे उनका उत्पादन भी कम होता है। इस कारण से वे अपना माल सस्ते दाम पर बेचने को मजबूर होते हैं।
- वित्तीय कमजोरी: छोटे किसानों के पास पर्याप्त पूंजी या संसाधन नहीं होते। उन्हें तत्काल आय की आवश्यकता होती है, इसलिए वे अपना उत्पाद तुरंत बेचने को मजबूर होते हैं।
- मध्यस्थों का शोषण: छोटे किसान अपने उत्पाद को सीधे बाजार में नहीं ले जा सकते। वे इसे मध्यस्थों को बेचते हैं, जो उन्हें कम दाम देते हैं।
- संगठन की कमी: छोटे किसान संगठित नहीं होते, जिससे वे अपने हितों का प्रतिनिधित्व नहीं कर पाते और अपना उचित मूल्य नहीं मांग सकते।
इन कारणों से छोटे किसानों को अपने उत्पाद का वांछित मूल्य नहीं मिलता और वे शोषण का शिकार होते हैं। इसे रोकने के लिए किसानों को संगठित होना और सरकार को उनका समर्थन करना जरूरी है।
प्रश्न 5. इन फसलों में से दो फसलों के बाजार की कड़ियों (किसान से उपभोक्ता) का रेखा-चित्र बनाएँ, जो आपके इलाके में उगाया जाता है।
उत्तर:
(i) गेहूँ की बाजार श्रृंखला:
किसान → स्थानीय छोटा व्यापारी → स्थानीय मंडी का थोक व्यापारी → बड़े शहर का थोक व्यापारी → खुदरा विक्रेता → उपभोक्ता
(ii) सरसों की बाजार श्रृंखला:
किसान → तेल मिल → तेल पेराई वाले थोक व्यापारी → बड़े शहर का थोक व्यापारी → खुदरा विक्रेता → उपभोक्ता
इन बाजार श्रृंखलाओं में किसान को कम मूल्य मिलता है, क्योंकि मध्यस्थों द्वारा उनका शोषण होता है। किसानों को अधिक मूल्य प्राप्त करने के लिए सहकारी समिति या सीधे उपभोक्ताओं से जुड़ना चाहिए।
प्रश्न 6. तुम्हारे आस-पास कोई मिल है क्या ? वहाँ फसल कैसे पहुँचती है ? पता लगाओ।
उत्तर: जी हाँ, मेरे आस-पास में एक मिल है। वहां फसल पहुंचने का प्रमुख तरीका निम्नानुसार है:
- किसान से सीधा खरीद: मिल के मालिक स्थानीय किसानों से सीधे फसल खरीदते हैं और उन्हें मिल में लाकर प्रसंस्करण के लिए भेजते हैं।
- थोक मंडी से खरीद: मिल के मालिक थोक मंडी से फसल खरीदते हैं। वहां से फसल मिल में आती है, जहाँ इसका प्रसंस्करण किया जाता है।
- अनुबंधित किसानों से खरीद: कुछ मामलों में, मिल के मालिक स्थानीय किसानों के साथ अनुबंध कर लेते हैं, जिसके तहत वे पहले से ही फसल का मूल्य तय कर देते हैं और किसान उन्हें फसल सुपुर्द करते हैं।
इस प्रकार, मिल के मालिक अलग-अलग तरीकों से फसल को मिल तक पहुंचाते हैं, जहाँ इसका प्रसंस्करण किया जाता है।
प्रश्न 7. सरकार द्वारा चलायी गयी नियंत्रित मंडी क्या है ? शिक्षक के साथ चर्चा करें।
उत्तर: सरकार द्वारा चलायी जाने वाली नियंत्रित मंडी एक ऐसा बाजार है, जहां किसानों को अपने उत्पादों की खुली नीलामी के माध्यम से बेचने का मौका मिलता है। इस प्रकार, किसानों को अपने उत्पादों का उचित मूल्य प्राप्त होता है।
नियंत्रित मंडी की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
- खुली नीलामी: इन मंडियों में किसानों द्वारा लाए गए उत्पाद की खुली नीलामी होती है, जिससे उन्हें अधिक मूल्य प्राप्त होता है।
- सरकारी नियंत्रण: ये मंडियां सरकार द्वारा नियंत्रित और प्रबंधित होती हैं, ताकि किसानों के हित सुरक्षित रहें।
- उचित मूल्य: नीलामी प्रक्रिया के कारण किसानों को उत्पादों का उचित मूल्य मिलता है।
- कम शोषण: मध्यस्थों के शोषण से किसानों को बचाव मिलता है।
हालांकि, ऐसी नियंत्रित मंडियों की व्यवस्था न होने से किसानों को स्थानीय व्यापारियों या निजी मिलों को कम मूल्य पर अपनी फसल बेचनी पड़ती है। इसलिए, नियंत्रित मंडियों का विस्तार आवश्यक है।
प्रश्न 8. शीतगृहों के निर्माण से किसे फायदा हो सकता है ? चर्चा करें।
उत्तर: शीतगृहों के निर्माण से मुख्यतः सब्जी और फल व्यापारियों को लाभ हो सकता है। इसके कारण निम्नलिखित हैं:
- उत्पादों का संरक्षण: शीतगृहों में फलों और सब्जियों को सुरक्षित रखा जा सकता है, जिससे उनका सड़ना या नष्ट होना रोका जा सकता है।
- अधिक आय: व्यापारी फलों और सब्जियों को लंबे समय तक संग्रहित रखकर उन्हें उचित मूल्य पर बेच सकते हैं, जिससे उनकी आय बढ़ जाती है।
- फसलों के विपणन में सुधार: शीतगृह व्यापारियों को फसलों को बिना नुकसान के दूर-दराज के क्षेत्रों में भेजने में सक्षम बनाते हैं।
- उपभोक्ताओं को लाभ: शीतगृहों में संरक्षित फलों और सब्जियों का उपभोग उपभोक्ताओं को पूरे वर्ष मिल सकता है।
इस प्रकार, शीतगृहों से व्यापारियों को लाभ होता है और साथ ही उपभोक्ताओं को भी फलों व सब्जियों की उपलब्धता बढ़ जाती है।
प्रश्न 9. बिहार में फल प्रसंस्करण आधारित उद्योग लगाने की क्या-क्या संभावनाएं हैं? चर्चा करें।
उत्तर: बिहार में फल प्रसंस्करण आधारित उद्योगों की स्थापना के लिए कई संभावनाएं हैं:
- फल उत्पादन: बिहार में फलों का उत्पादन काफी अच्छा है, खासकर लौकी, केला और गन्ना जैसे फलों का। यह फल प्रसंस्करण उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराएगा।
- बाजार की उपलब्धता: बिहार में बड़े शहरों और औद्योगिक केंद्रों की उपस्थिति इन उत्पादों के लिए अच्छा बाजार प्रदान करती है।
- रोजगार सृजन: ये उद्योग स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान कर सकते हैं, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
- निर्यात की संभावना: जूस, जेली, जैम आदि के रूप में प्रसंस्कृत फल उत्पाद देश के बाहर भी निर्यात किए जा सकते हैं।
- सरकारी समर्थन: सरकार इन उद्योगों को विभिन्न नीतियों और प्रोत्साहनों के माध्यम से सहायता प्रदान कर सकती है।
इन कारणों से बिहार में फल प्रसंस्करण आधारित उद्योगों की स्थापना के अच्छे अवसर हैं। इनका विकास राज्य की अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा दे सकता है।
प्रश्न 10. अपने घर के आस-पास सर्वे करें कि पिछले 15 वर्षों में लोगों की फल को खपत में क्या-क्या परिवर्तन आए और क्यों ?
उत्तर: पिछले 15 वर्षों में लोगों की फल की खपत में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन आए हैं, जिनका मुख्य कारण बढ़ती हुई महंगाई है।
- कम खपत: फलों की कीमतों में तेज बढ़ोतरी के कारण, अब लोग पहले की तुलना में कम मात्रा में ही फल खरीद और खा पाते हैं।
- कम विविधता: गरीब और मध्यवर्गीय परिवारों में केवल सस्ते और आम उपलब्ध फलों जैसे केले, संतरा, सेब आदि का ही उपयोग किया जाता है। महंगे फल जैसे अंगूर, स्ट्रॉबेरी आदि अब उनकी पहुंच से बाहर हो गए हैं।
- सीमित उपयोग: कुछ लोग फल को अब केवल त्योहारों या खास मौकों पर ही उपयोग करते हैं, न कि रोजमर्रा के भोजन में।
- स्वास्थ्य पर प्रभाव: फलों की कम खपत के कारण लोगों में कई पोषक तत्वों की कमी होती जा रही है, जो उनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है।
इस प्रकार, बढ़ती महंगाई के कारण लोगों की फल खपत में काफी कमी आई है, जिससे उनका पोषण और स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है।
प्रश्न 11. स्वतंत्रता के पूर्व बिहार को देश का चीनी का कटोरा कहा जाता था। 1942-43 में राज्य में कुल 32 चीनी मिलें थीं जबकि देश मे मिर्फ 140 चीनी मिलें थीं। वहीं 2000 तक राज्य में चीनी मिलों की संख्या घटकर सिर्फ 10 रह गयी जबकि भारतवर्ष में चीनी मिलों की संख्या बढ़कर 495 हो गयी।
उत्तर: स्वतंत्रता के पूर्व बिहार को “देश का चीनी का कटोरा” कहा जाता था क्योंकि इस समय बिहार में चीनी मिलों की संख्या काफी अधिक थी। 1942-43 में बिहार में 32 चीनी मिलें थीं जबकि देश भर में केवल 140 चीनी मिलें थीं।
लेकिन समय के साथ-साथ बिहार में चीनी मिलों की संख्या कम होती गई। 2000 तक यह घटकर मात्र 10 रह गई, जबकि भारत में चीनी मिलों की संख्या बढ़कर 495 हो गई। इसका मुख्य कारण था बिहार के गन्नों में रस की मात्रा कम होना। गन्ने में कम रस होने से चीनी उत्पादन लाभप्रद नहीं रहा और धीरे-धीरे ज्यादातर चीनी मिलें बंद हो गईं।
इसके अलावा, सरकार की ओर से भी चीनी मिलों को पर्याप्त प्रोत्साहन नहीं मिला, जिससे उनका संचालन कठिन हो गया। इस प्रकार बिहार में चीनी मिलों की संख्या काफी घट गई और देश की अन्य राज्यों में चीनी मिलों की संख्या बढ़ती गई।
प्रश्न 12. बिहार में चम्पारण, गोपालगंज, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, शाहबाहू, पूर्णिया, पटना एवं सहरसा प्रमुख गन्ना उत्पादक जिले हैं इन्हें मानचित्र में दिखाएँ।
उत्तर: छात्र इन प्रमुख गन्ना उत्पादक जिलों को बिहार के मानचित्र पर चिह्नित कर सकते हैं। ये जिले हैं – चम्पारण, गोपालगंज, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, शाहबाहू, पूर्णिया, पटना और सहरसा।
प्रश्न 13. बिहार में मक्का उद्योग लगाने की काफी संभावनाएं हैं। इन इकाइयों के द्वारा मक्के के विभिन्न उत्पाद जैसे – स्टार्च, बेबीकान, पॉपकार्न, कार्न-फ्लेक्स, मक्के का आटा, मुर्गियों का चारा, मक्के का तेल । आदि बनाया जा सकता है। इनके क्या फायदे नुकसान है, चर्चा करें।
उत्तर: बिहार में मक्का उद्योग लगाने के कई फायदे हैं:
फायदे:
- कच्चे माल की उपलब्धता: बिहार में मक्के की उत्पादन क्षमता अच्छी है, इसलिए कच्चा माल आसानी से उपलब्ध हो सकता है।
- व्यापक उपयोग: मक्के से विविध उत्पाद जैसे स्टार्च, बेबीकान, पॉपकॉर्न, कार्न-फ्लेक्स, मक्के का आटा, मुर्गियों का चारा और तेल बनाए जा सकते हैं। ये उत्पाद व्यापक रूप से उपयोग में आते हैं।
- रोजगार सृजन: ये उद्योग स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करेंगे।
- आर्थिक लाभ: इन उद्योगों से राज्य को आर्थिक लाभ होगा और व्यापार में वृद्धि होगी।
नुकसान:
इन उद्योगों से कोई भी प्रत्यक्ष नुकसान नहीं होता है। ये उत्पाद स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं हैं और पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचाते।
इस प्रकार, बिहार में मक्का आधारित उद्योगों की स्थापना से कई सकारात्मक पहलू हैं और इससे राज्य की आर्थिक वृद्धि होगी।
अभ्यास के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. आपके अनुसार अरहर किसान से किस प्रकार आपके घरों में दाल के रूप में पहुँचता है ? दिये गये विकल्पों में से खाली बॉक्स भरें।
उत्तर:
किसान → दाल मिल → स्थानीय छोटे व्यवसायी → स्थानीय मंडी के थोक व्यवसायी → बड़ी मंडी के थोक व्यवसायी → खुदरा व्यवसायी
इस प्रकार, अरहर फसल किसान से मंडी के माध्यम से उपभोक्ताओं तक पहुंचती है। किसान पहले अपनी फसल को दाल मिल को बेचता है, मिल से यह स्थानीय छोटे व्यापारियों को जाती है, फिर स्थानीय मंडी के थोक विक्रेताओं को, बाद में बड़ी मंडी के थोक विक्रेताओं को, और अंततः खुदरा विक्रेताओं के माध्यम से उपभोक्ताओं तक पहुंचती है।
इस प्रक्रिया में कई मध्यस्थ शामिल हैं, जिसके कारण किसानों को अपने उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिलता। किसानों को अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए सहकारी समिति या सीधे उपभोक्ताओं से जुड़ना चाहिए।
प्रश्न 2. स्तंभ ‘क’ को स्तंभ ‘ख’ से मिलान करें।
उत्तर:
स्तंभ क | स्तंभ ख |
(i) शाही लीची | (क) भागलपुर |
(ii) दुधिया मालदह | (ग) दीघा (पटना) |
(iii) मखाना | (घ) दरभंगा |
(iv) जर्दालु आम | (क) भागलपुर |
प्रश्न 3. कृषि उपजों के न्यूनतम समर्थन मूल्य से आप क्या समझते हैं ? इससे किसानों को क्या फायदा होता है?
उत्तर: कृषि उपजों के न्यूनतम समर्थन मूल्य का अर्थ है कि सरकार किसानों को उनकी फसलों के लिए एक न्यूनतम गारंटीकृत मूल्य देती है। यह मूल्य किसानों की लागत और उनके लाभ को ध्यान में रखकर सरकार द्वारा निर्धारित किया जाता है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य से किसानों को निम्नलिखित फायदे होते हैं:
- उचित मूल्य: किसानों को उनकी मेहनत और लागत के अनुरूप उचित मूल्य मिलता है, जिससे उन्हें लाभ होता है।
- आर्थिक सुरक्षा: किसानों को अपनी फसलों के न्यूनतम मूल्य की गारंटी मिलती है, जिससे उन्हें आर्थिक सुरक्षा प्राप्त होती है।
- कृषि विकास: यह मूल्य किसानों को अधिक उत्पादन और बेहतर खेती के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे कृषि क्षेत्र का विकास होता है।
- खाद्य सुरक्षा: किसानों को उचित मूल्य मिलने से खाद्य उत्पादन में वृद्धि होती है, जिससे देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
हालांकि, बिहार में इस योजना का लाभ किसानों तक पूरी तरह से नहीं पहुंच पाता। इसे और अधिक प्रभावी बनाने की जरूरत है।
प्रश्न 4. निम्नलिखित फसलों से बनाये जाने वाले विभिन्न उत्पादों को लिखें। इन उत्पादों को बनाने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
उत्तर-
फसल | उत्पाद |
(i) गेहूँ | सूजी, मैदा, आटा |
(ii) मक्का | सत्तू, आटा, दर्श |
(iii) लीची | जूस, जैम, जेली, मधु |
(iv) गन्ना | चीनी, गुड़ |
(V) जूट | थैला |
गेहूँ से सूजी, मैदा और आटा बनाने के लिए गेहूँ को मिल में भेजा जाता है, मक्का से भी सत्तू, आटा या दर्रा बनाने के मिल की आवश्यकता होती है। लीची से जुस, जैम, जेली या मधु बनाने के लिए इसे प्रसंस्करण उद्योग में भेजते हें। गन्ना से चीनी बनाने के लिए हम गन्ने को चीनी मिल भेजते हैं और गड बनाने के लिए गन्ना की पेड़ाई करती हैं। जूट से मशीनों द्वारा थैला बनाया जाता है।