On this page, we are presenting you with UP Board class 9 Science chapter 12 solutions for free. Below you will get the written question and answer of chapter 12 – “खाद्य संसाधनों में सुधार” in hindi medium.
यूपी बोर्ड कक्षा 9 विज्ञान की पुस्तक का बारहवाँ अध्याय “खाद्य संसाधनों में सुधार” कृषि और खाद्य उत्पादन के क्षेत्र में हुई प्रगति पर केंद्रित है। यह अध्याय हमें बताता है कि कैसे वैज्ञानिक तरीकों और नई तकनीकों का उपयोग करके हम अपने खाद्य संसाधनों को बेहतर बना सकते हैं। इसमें हम फसल उत्पादन बढ़ाने के तरीके, पशुपालन में सुधार, और मछली पालन जैसे विषयों के बारे में सीखेंगे। यह अध्याय विद्यार्थियों को यह समझने में मदद करेगा कि कैसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग करके हम अपनी बढ़ती जनसंख्या के लिए पर्याप्त और पौष्टिक भोजन का उत्पादन कर सकते हैं, साथ ही पर्यावरण का भी ध्यान रख सकते हैं।
UP Board Class 9 Science Chapter 12 Solutions
Subject | Science (विज्ञान) |
Class | 9th |
Chapter | 12. खाद्य संसाधनों में सुधार |
Board | UP Board |
अध्ययन के बीच वाले प्रश्न :-
पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 229)
प्रश्न 1. अनाज, दाल, फल तथा सब्जियों से हमें क्या प्राप्त होता है?
उत्तर- अनाज, दाल, फल और सब्जियाँ हमारे आहार के महत्वपूर्ण स्रोत हैं जो विभिन्न पोषक तत्व प्रदान करते हैं:-
- अनाज (गेहूँ, चावल, मक्का): मुख्य रूप से कार्बोहाइड्रेट प्रदान करते हैं, जो शरीर का प्रमुख ऊर्जा स्रोत है।
- दालें (चना, मटर, मूंग): प्रोटीन का समृद्ध स्रोत हैं, जो शरीर की वृद्धि और मरम्मत के लिए आवश्यक है।
- फल और सब्जियाँ: विटामिन, खनिज और फाइबर प्रदान करते हैं, जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाते हैं और पाचन में सहायता करते हैं।
- इन सभी खाद्य पदार्थों में अन्य पोषक तत्व भी होते हैं, जैसे फाइटोकेमिकल्स और एंटीऑक्सीडेंट, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं।
- संतुलित आहार के लिए इन सभी खाद्य पदार्थों का समावेश आवश्यक है।
पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 230)
प्रश्न 1. जैविक तथा अजैविक कारक किस प्रकार फसल उत्पादन को प्रभावित करते हैं?
उत्तर- जैविक और अजैविक कारक फसल उत्पादन को निम्नलिखित तरीकों से प्रभावित करते हैं:-
जैविक कारक:
लाभदायक: कुछ जीवाणु, जैसे राइजोबिया, मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करते हैं। केंचुए मिट्टी की उर्वरता बढ़ाते हैं।
हानिकारक: कीट और रोगजनक फसलों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
अजैविक कारक:
- जलवायु: तापमान, वर्षा, और सूर्य का प्रकाश फसल की वृद्धि और उत्पादकता को प्रभावित करते हैं।
- मिट्टी: pH स्तर, उर्वरता, और संरचना फसल के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
इन कारकों के प्रभाव को कम करने के लिए, किसान रोग-प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग, मिश्रित खेती, और उचित फसल प्रबंधन तकनीकों का उपयोग करते हैं।
जलवायु परिवर्तन के कारण, फसलों को बदलती परिस्थितियों के अनुकूल बनाना महत्वपूर्ण हो गया है।
प्रश्न 2. फसल सुधार के लिए ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण क्या हैं?
उत्तर- ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण वे विशेषताएँ हैं जो फसल उत्पादन और प्रबंधन में सुधार लाते हैं। इनमें पौधे का आकार, परिपक्वता अवधि, रोग और कीट प्रतिरोधकता, जल और पोषक तत्व दक्षता, तथा उपज गुणवत्ता शामिल हैं। उदाहरण के लिए, चारे के लिए लंबे और घने पौधे उपयुक्त होते हैं, जबकि अनाज के लिए बौने पौधे बेहतर होते हैं। कम समय में पकने वाली फसलें अधिक फसल चक्र की अनुमति देती हैं। रोग और कीट प्रतिरोधी फसलें उत्पादकता बढ़ाती हैं, जबकि कम संसाधनों में अधिक उत्पादन देने वाली फसलें किसानों के लिए लाभदायक होती हैं। बेहतर पोषण मूल्य या भंडारण क्षमता वाली फसलें भी महत्वपूर्ण हैं। इन गुणों का चयन और विकास फसल सुधार कार्यक्रमों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो कृषि उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा में सुधार लाता है।
पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 231)
प्रश्न 1. वृहत् पोषक क्या हैं और इन्हें वृहत्पोषक क्यों कहते हैं?
उत्तर- वृहत् पोषक वे आवश्यक तत्व हैं जो पौधों को बड़ी मात्रा में चाहिए, जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम। इन्हें वृहत्पोषक इसलिए कहा जाता है क्योंकि पौधों को इनकी अपेक्षाकृत अधिक मात्रा (प्रति किलोग्राम मिट्टी में मिलीग्राम से ग्राम तक) की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 2. पौधे अपना पोषक कैसे प्राप्त करते हैं?
उत्तर- पौधे अपने पोषक तत्व मुख्य रूप से मिट्टी से जड़ों द्वारा अवशोषित करते हैं। वे कार्बन डाइऑक्साइड हवा से पत्तियों के माध्यम से लेते हैं, जबकि पानी और खनिज पदार्थ मिट्टी से प्राप्त करते हैं। कृषि में, खाद और उर्वरक मिट्टी में मिलाकर पौधों को अतिरिक्त पोषण प्रदान किया जाता है।
पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 232)
प्रश्न 1. मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए खाद तथा उर्वरक के उपयोग की तुलना किजिए।
उत्तर-
खाद | उर्वरक |
---|---|
खाद में जैविक पदार्थों की प्रचुरता होती है। | . उर्वरक अकार्बनिक और रासायनिक पदार्थों से बनाए जाते हैं। |
इसे सब्जियों, पौधों, और जानवरों के अवशेषों के अपघटन से प्राप्त किया जाता है। | उर्वरक रासायनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से तैयार किए जाते हैं। |
खाद में पोषक तत्वों की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है। | उर्वरकों में पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती है, जिससे फसलों को आवश्यक पोषण मिलता है। |
खाद का भंडारण और स्थानांतरण कुछ हद तक कठिन होता है। | उर्वरकों का भंडारण और स्थानांतरण सरल और सुविधाजनक होता है। |
खेतों में खाद की अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है। | उर्वरकों का प्रभावी ढंग से उपयोग कम मात्रा में किया जा सकता है। |
.खाद में पोषक तत्वों का सीमित प्रकार होता है। | उर्वरकों में विभिन्न पोषक तत्व मौजूद होते हैं, जो फसलों की विविध आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। |
लगातार उपयोग के बावजूद खाद मिट्टी की संरचना और गुणों को बनाए रखने में सहायक होती है। | उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग से मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरता में गिरावट आ सकती है। |
पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 235)
प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-सी परिस्थिति में सबसे अधिक लाभ होगा? क्यों?
(a) किसान उच्चकोटि के बीज का उपयोग करें, सिंचाई ना करें अथवा उर्वरक का उपयोग ना करें।
(b) किसान सामान्य बीजों का उपयोग करें, सिंचाई करें तथा उर्वरक का उपयोग करें।
(c) किसान अच्छी किस्म के बीज का प्रयोग करें। सिंचाई करें, उर्वरक का उपयोग करें तथा फसल सुरक्षा की विधियाँ अपनाएँ।
उत्तर- परिस्थिति (c) में सबसे अधिक लाभ होगा। अच्छी किस्म के बीज, उचित सिंचाई, उर्वरक का उपयोग और फसल सुरक्षा विधियों का संयोजन फसल उत्पादन को अधिकतम करता है। उच्च गुणवत्ता वाले बीज रोग प्रतिरोधक होते हैं और बेहतर उपज देते हैं। नियमित सिंचाई और उर्वरक का उपयोग पौधों की वृद्धि और विकास को बढ़ावा देता है। फसल सुरक्षा विधियाँ, जैसे कीटनाशकों का उपयोग और उचित फसल-चक्र, फसल को कीट और रोगों से बचाती हैं। इन सभी कारकों का समन्वय न केवल उच्च उत्पादन सुनिश्चित करता है, बल्कि फसल की गुणवत्ता भी बढ़ाता है, जिससे बाजार में बेहतर मूल्य मिलता है।
पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 235)
प्रश्न 1. फसल की सुरक्षा के लिए निरोधक विधियाँ तथा जैव नियंत्रण क्यों अच्छा समझा जाता है?
उत्तर- निरोधक विधियाँ और जैव नियंत्रण फसल सुरक्षा के लिए बेहतर विकल्प हैं क्योंकि ये पर्यावरण के अनुकूल हैं। ये विधियाँ फसलों और वातावरण को हानि नहीं पहुँचातीं, जबकि रासायनिक कीटनाशक दोनों को नुकसान पहुँचा सकते हैं। जैव नियंत्रण प्राकृतिक शत्रुओं का उपयोग करके कीटों को नियंत्रित करता है, जो पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखता है। निरोधक विधियाँ, जैसे फसल चक्र और प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग, कीटों और रोगों के प्रसार को रोकती हैं। इन विधियों से लंबे समय तक टिकाऊ कृषि की जा सकती है और उत्पादों की गुणवत्ता भी बेहतर रहती है।
प्रश्न 2. भंडारण की प्रक्रिया में कौन-से कारक अनाज की हानि के लिए उत्तरदायी हैं?
उत्तर- अनाज भंडारण में हानि के लिए जैविक और अजैविक दोनों कारक जिम्मेदार हैं। जैविक कारकों में कीट, चूहे, कवक, और जीवाणु शामिल हैं, जो अनाज को खाते या खराब करते हैं। अजैविक कारकों में अनुचित नमी और तापमान प्रमुख हैं, जो कवक वृद्धि और कीट प्रजनन को बढ़ावा दे सकते हैं। ये कारक अनाज की गुणवत्ता, वजन और अंकुरण क्षमता को कम करते हैं। इन समस्याओं से बचने के लिए, अनाज को भंडारण से पहले अच्छी तरह सुखाना चाहिए, उचित वेंटिलेशन वाले स्थान पर रखना चाहिए, और आवश्यकतानुसार कीट नियंत्रण उपायों का उपयोग करना चाहिए।
पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 236)
प्रश्न 1. पशुओं की नस्ल सुधार के लिए प्रायः कौन-सी विधि का उपयोग किया जाता है और क्यों?
उत्तर- पशुओं की नस्ल सुधार के लिए प्रायः कृत्रिम गर्भाधान (कृत्रिम वीर्यसेचन) विधि का उपयोग किया जाता है। इस विधि में उच्च गुणवत्ता वाले नर पशु का वीर्य एकत्र करके कई मादा पशुओं में प्रत्यारोपित किया जाता है। यह विधि कई कारणों से लाभदायक है:-
- एक उत्कृष्ट नर पशु के वीर्य से हजारों मादा पशुओं को गर्भवती किया जा सकता है, जो व्यापक नस्ल सुधार को संभव बनाता है।
- हिमशीतित वीर्य को लंबे समय तक संरक्षित किया जा सकता है, जिससे दूरस्थ क्षेत्रों में भी इसका उपयोग संभव हो जाता है।
- यह विधि संक्रामक रोगों के प्रसार को रोकने में मदद करती है, जो प्राकृतिक प्रजनन में एक जोखिम हो सकता है।
- इससे विदेशी और देशी नस्लों के बीच संकरण आसानी से किया जा सकता है, जिससे बेहतर दुग्ध उत्पादन और अन्य वांछनीय लक्षण वाली संकर नस्लें विकसित की जा सकती हैं।
- यह विधि आर्थिक रूप से किफायती है और बड़े पैमाने पर नस्ल सुधार के लिए उपयोगी है।
पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 237)
प्रश्न 1. निम्नलिखित कथन की विवेचना कीजिए-
”यह रुचिकर है कि भारत में कुक्कुट, अल्प रेशे के खाद्य पदार्थों को उच्च पोषकता वाले पशु प्रोटीन आहार में परिवर्तन करने के लिए सबसे अधिक सक्षम है। अल्प रेशे के खाद्य पदार्थ मनुष्यों के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं।”
उत्तर- कुक्कुट पालन भारत में एक महत्वपूर्ण कृषि गतिविधि है जो कम मूल्य के खाद्य पदार्थों को उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन में परिवर्तित करती है। मुर्गियाँ कृषि उपोत्पादों और अन्य कम रेशे वाले पदार्थों को खाकर उन्हें प्रोटीन युक्त अंडों और मांस में बदलती हैं। ये खाद्य पदार्थ, जो मनुष्यों के लिए कम पौष्टिक या अपाच्य होते हैं, कुक्कुट द्वारा आसानी से पचा लिए जाते हैं। इस प्रक्रिया से न केवल कृषि अपशिष्ट का उपयोग होता है, बल्कि यह किसानों के लिए अतिरिक्त आय का स्रोत भी बनता है। कुक्कुट पालन से प्राप्त प्रोटीन मनुष्यों के लिए उच्च पोषण मूल्य प्रदान करता है, जो विशेषकर कम आय वर्ग के लिए महत्वपूर्ण है। इस प्रकार, कुक्कुट पालन खाद्य श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण कड़ी है जो कम उपयोगी संसाधनों को मूल्यवान पोषण में परिवर्तित करती है।
पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 238)
प्रश्न 1. पशुपालन तथा कुक्कुट पालने के प्रबंधन प्रणाली में क्या समानता है?
उत्तर- पशुपालन और कुक्कुट पालन की प्रबंधन प्रणालियों में कई समानताएँ हैं:-
- दोनों में उचित आवास की आवश्यकता होती है, जो पशुओं और पक्षियों को सुरक्षा और आराम प्रदान करे।
- उचित पोषण व्यवस्था महत्वपूर्ण है, जिसमें संतुलित आहार और स्वच्छ पानी शामिल है।
- नियमित स्वास्थ्य देखभाल और टीकाकरण दोनों में आवश्यक है, जो रोगों से बचाव सुनिश्चित करता है।
- उन्नत नस्लों का उपयोग बेहतर उत्पादकता के लिए किया जाता है।
- स्वच्छता और सफाई दोनों प्रणालियों में महत्वपूर्ण है, जो स्वस्थ वातावरण बनाए रखने में मदद करती है।
प्रश्न 2. ब्रौलर तथा अंडे देने वाली लेयर में क्या अंतर है? इनके प्रबंधन के अन्तर को भी स्पष्ट करो।
उत्तर- ब्रॉयलर और लेयर मुर्गियों में मुख्य अंतर उनके उद्देश्य और प्रबंधन में है:-
- उद्देश्य: ब्रॉयलर मांस उत्पादन के लिए पाले जाते हैं, जबकि लेयर अंडे उत्पादन के लिए।
- आहार: ब्रॉयलर के आहार में अधिक प्रोटीन और वसा होती है, जबकि लेयर के आहार में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है।
- पालन अवधि: ब्रॉयलर को 6-8 सप्ताह में बाजार भेज दिया जाता है, जबकि लेयर को 72 सप्ताह तक या अधिक रखा जाता है।
- आवास: ब्रॉयलर को अधिक जगह की आवश्यकता होती है, जबकि लेयर को कम जगह में रखा जा सकता है।
- स्वास्थ्य प्रबंधन: दोनों में टीकाकरण और स्वच्छता महत्वपूर्ण है, लेकिन लेयर में लंबी अवधि के लिए स्वास्थ्य प्रबंधन की आवश्यकता होती है।
पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 239)
प्रश्न 1. मछलियाँ कैसे प्राप्त करते हैं?
उत्तर- मछलियाँ मुख्यतः दो तरीकों से प्राप्त की जाती हैं: मत्स्य ग्रहण और मत्स्य पालन। मत्स्य ग्रहण में, समुद्र या अलवणीय जल से विभिन्न प्रकार के जालों का उपयोग करके मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। आधुनिक तकनीकों जैसे सैटेलाइट और सोनार का उपयोग मछली के झुंडों का पता लगाने में किया जाता है, जो मछली पकड़ने की क्षमता को बढ़ाता है। मत्स्य पालन में, तालाबों या समुद्र में मछलियों का संवर्धन किया जाता है। समुद्र में मछली पालन को मैरीकल्चर कहते हैं। यह विधि नियंत्रित वातावरण में मछली उत्पादन की अनुमति देती है और मछली की मांग को पूरा करने में मदद करती है।
प्रश्न 2. मिश्रित मछली संवर्धन के क्या लाभ हैं?
उत्तर- मिश्रित मछली संवर्धन एक कुशल तकनीक है जिसमें एक ही तालाब में विभिन्न प्रजातियों की मछलियों का पालन किया जाता है। इसके कई लाभ हैं:-
- संसाधनों का बेहतर उपयोग: विभिन्न मछलियाँ जल के अलग-अलग स्तरों से भोजन लेती हैं, जैसे कटला सतह से, रोहू मध्य भाग से, और मृगल तली से।
- प्रतिस्पर्धा में कमी: चयनित मछलियों की भोजन की आदतें अलग-अलग होती हैं, जिससे उनके बीच प्रतिस्पर्धा कम होती है।
- उत्पादकता में वृद्धि: तालाब के सभी क्षेत्रों का उपयोग होने से कुल मछली उत्पादन बढ़ जाता है।
- जोखिम में कमी: यदि एक प्रजाति प्रभावित होती है, तो अन्य प्रजातियाँ उत्पादन बनाए रखती हैं।
- पारिस्थितिक संतुलन: विभिन्न प्रजातियाँ तालाब के पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में मदद करती हैं।
पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 240)
प्रश्न 1. मधु उत्पादन के लिए प्रयुक्त मधुमक्खी में कौन-कौन से ऐच्छिक गुण होने चाहिए?
उत्तर- मधु उत्पादन के लिए मधुमक्खियों में निम्नलिखित गुण होने चाहिए:-
- अधिक मात्रा में मकरंद एकत्र करने की क्षमता।
- कम आक्रामक स्वभाव, जिससे डंक मारने की संभावना कम हो।
- छत्ते में स्थिर रहने की प्रवृत्ति।
- तेज़ प्रजनन दर, जिससे कॉलोनी का विस्तार हो सके।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता।
- स्थानीय जलवायु के अनुकूल होना।
- इन गुणों के कारण इटैलियन मधुमक्खी प्रजाति का व्यापक उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 2. चरागाह क्या है और ये मधु उत्पादन से कैसे सम्बन्धित है?
उत्तर- चरागाह वह वनस्पति क्षेत्र है जहाँ से मधुमक्खियाँ मकरंद और परागकण एकत्र करती हैं, और यह मधु उत्पादन से गहराई से जुड़ा हुआ है। चरागाह में उपलब्ध फूलों की प्रजातियाँ मधु के स्वाद और गुणवत्ता को सीधे प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए, बादाम, महुआ, आम, सूरजमुखी जैसे विभिन्न फूल अलग-अलग प्रकार का मधु देते हैं, जिससे विविध स्वाद और गुण वाले मधु का उत्पादन होता है। चरागाह का भौगोलिक क्षेत्र भी मधु की विशिष्टता निर्धारित करता है, जैसे कश्मीर का प्रसिद्ध बादामी शहद। एक अच्छा चरागाह मधुमक्खियों को पर्याप्त पोषण प्रदान करता है, जो उनके स्वास्थ्य और उत्पादकता को बढ़ाता है। इसके अलावा, मौसमी बदलाव के अनुसार चरागाह का प्रबंधन करना मधु उत्पादन को वर्ष भर नियमित रखने में मदद करता है, जो मधुपालन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ – 241)
प्रश्न 1. फसल उत्पादन की एक विधि का वर्णन करो जिससे अधिक पैदावार प्राप्त हो सके।
उत्तर- फसल किस्मों में सुधार एक प्रभावी विधि है जिससे अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। इसमें उच्च उत्पादन क्षमता, रोग प्रतिरोधकता, और बेहतर गुणवत्ता वाली फसल किस्मों का चयन किया जाता है। संकरण द्वारा विभिन्न किस्मों या प्रजातियों के बीच वांछित गुणों का मिश्रण किया जाता है। आनुवंशिक संशोधन तकनीक से भी फसलों में विशेष गुण जोड़े जा सकते हैं। इसके अलावा, स्थानीय जलवायु और मिट्टी के अनुकूल बीजों का चयन करना भी महत्वपूर्ण है। ये विधियाँ न केवल उत्पादन बढ़ाती हैं, बल्कि फसलों को अधिक टिकाऊ और पर्यावरण अनुकूल भी बनाती हैं।
प्रश्न 2. खेतों में खाद तथा उर्वरक का उपयोग क्यों करते हैं?
उत्तर- खेतों में खाद और उर्वरक का उपयोग मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने और बढ़ाने के लिए किया जाता है। फसल उगाने के दौरान पौधे मिट्टी से विभिन्न पोषक तत्व ग्रहण करते हैं, जिससे मिट्टी की पोषक क्षमता कम हो जाती है। खाद मिट्टी की संरचना सुधारती है और उसकी जल धारण क्षमता बढ़ाती है। उर्वरक पौधों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करते हैं, जो उनकी वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक हैं। इससे न केवल फसल की पैदावार बढ़ती है, बल्कि उसकी गुणवत्ता भी सुधरती है। हालांकि, खाद और उर्वरक का संतुलित उपयोग महत्वपूर्ण है ताकि मिट्टी का स्वास्थ्य बना रहे।
प्रश्न 3. अन्तराफसलीकरण तथा फसल-चक्र के क्या लाभ हैं?
उत्तर- अन्तराफसलीकरण और फसल-चक्र कृषि के महत्वपूर्ण तरीके हैं जो कई लाभ प्रदान करते हैं। ये विधियाँ खरपतवार और कीटों को प्राकृतिक रूप से नियंत्रित करने में मदद करती हैं। मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने में सहायक होती हैं, क्योंकि विभिन्न फसलें मिट्टी से अलग-अलग पोषक तत्व लेती और देती हैं। इससे किसानों को एक ही भूमि से विविध उपज मिलती है, जो आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है। साथ ही, ये तकनीकें मिट्टी के कटाव को रोकने और जैव विविधता को बढ़ावा देने में भी मदद करती हैं। इस प्रकार, ये विधियाँ टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देती हैं।
प्रश्न 4. आनुवंशिक फेरबदल क्या हैं? कृषि प्रणालियों में यह कैसे उपयोगी हैं?
उत्तर- आनुवंशिक फेरबदल एक आधुनिक तकनीक है जिसमें पौधों के जीन में वांछित बदलाव किए जाते हैं। इसमें विशेष गुणों वाले जीन को एक प्रजाति से दूसरी में स्थानांतरित किया जाता है। यह प्रक्रिया उच्च तापमान, विकिरण या रासायनिक पदार्थों के उपयोग से की जा सकती है। कृषि में, इस तकनीक का उपयोग रोग प्रतिरोधी, सूखा सहनशील, या अधिक पोषक तत्वों वाली फसलें विकसित करने के लिए किया जाता है। इससे फसल उत्पादकता बढ़ती है और कृषि को अधिक टिकाऊ बनाया जा सकता है। हालांकि, इस तकनीक के उपयोग में नैतिक और पर्यावरणीय चिंताओं को भी ध्यान में रखना आवश्यक है।
प्रश्न 5. भण्डारगृहों (गोदामों) में अनाज की हानि कैसे होती है?
उत्तर- भंडारगृहों में अनाज की हानि मुख्यतः दो प्रकार के कारकों से होती है: जैविक और अजैविक। जैविक कारकों में कीट, चूहे, कवक, और जीवाणु शामिल हैं, जो अनाज को खाते या संक्रमित करते हैं। अजैविक कारकों में अनुचित नमी और तापमान शामिल हैं, जो अनाज की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। ये कारक अनाज का वजन कम कर सकते हैं, उसकी अंकुरण क्षमता घटा सकते हैं, और उसे बदरंग कर सकते हैं। कुछ कीट फसल के विकास के दौरान ही अनाज में प्रवेश कर जाते हैं। इन सभी कारणों से अनाज की गुणवत्ता और मात्रा दोनों प्रभावित होती हैं, जिससे आर्थिक नुकसान होता है।
प्रश्न 6. किसानों के लिए पशुपालन प्रणालियाँ कैसे लाभदायक हैं?
उत्तर- पशुपालन प्रणालियाँ किसानों के लिए कई तरह से लाभदायक हैं। दुग्ध उत्पादन से नियमित आय प्राप्त होती है, जबकि कृषि कार्यों में मदद के लिए पशुओं का उपयोग लागत कम करता है। पशुओं का गोबर खाद के रूप में उपयोग किया जा सकता है, जो मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है। कृषि अवशेषों का उपयोग पशु चारे के रूप में किया जा सकता है, जो संसाधनों का कुशल उपयोग सुनिश्चित करता है। मुर्गी पालन और मधुमक्खी पालन जैसी गतिविधियाँ अतिरिक्त आय के स्रोत प्रदान करती हैं। इस प्रकार, पशुपालन कृषि आय को विविधता प्रदान करता है और किसानों की आर्थिक स्थिरता में योगदान देता है।
प्रश्न 7. पशुपालन के क्या लाभ हैं?
उत्तर- पशुपालन किसानों और समाज के लिए कई महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करता है। सबसे पहले, यह दूध जैसे पौष्टिक खाद्य पदार्थों का स्रोत है, जो विटामिन A, D, कैल्शियम और फॉस्फोरस से भरपूर होता है। मांस उत्पादन से उच्च गुणवत्ता वाला प्रोटीन मिलता है। कृषि कार्यों में बैल और भैंसों का उपयोग लागत कम करने में मदद करता है। भेड़, बकरी और ऊँट से प्राप्त ऊन कपड़ा उद्योग के लिए महत्वपूर्ण है। पशुओं का गोबर जैविक खाद के रूप में मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है। इसके अलावा, पशुपालन ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर भी प्रदान करता है, जो आर्थिक विकास में योगदान देता है।
प्रश्न 8. ज्पादन बढ़ाने के लिए कुक्कुट पालन, मत्स्य पालन तथा मधुमक्खी पालन में क्या समानताएँ हैं?
उत्तर- कुक्कुट पालन, मत्स्य पालन और मधुमक्खी पालन में उत्पादन बढ़ाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण समानताएँ हैं। सबसे पहले, इन सभी में उचित आवास प्रबंधन आवश्यक है, जिसमें स्वच्छता और अनुकूल तापमान शामिल है। दूसरा, पोषण प्रबंधन महत्वपूर्ण है – सभी को उचित मात्रा और गुणवत्ता वाला आहार मिलना चाहिए। तीसरा, रोग नियंत्रण और स्वास्थ्य प्रबंधन सभी में आवश्यक है, जिसमें नियमित जाँच और टीकाकरण शामिल हैं। चौथा, प्रजनन प्रबंधन भी महत्वपूर्ण है, जिसमें उच्च गुणवत्ता वाले प्रजनकों का चयन शामिल है। अंत में, सभी में पर्यावरण प्रबंधन आवश्यक है, जैसे जल गुणवत्ता (मत्स्य पालन में) या फूलों की उपलब्धता (मधुमक्खी पालन में)। इन सभी कारकों का उचित प्रबंधन उत्पादकता बढ़ाने में मदद करता है।
प्रश्न 9. प्रग्रहण मत्स्यन, मेरीकल्चर तथा जल संवर्धन में क्या अंतर है?
उत्तर-
प्रग्रहण मत्स्यन | मेरिकल्पन | जल संवर्धन |
---|---|---|
प्राकृतिक स्रोतों से मछलियों का शिकार करना प्रग्रहण मत्स्यन कहलाता है, जैसे कि नदी या समुद्र से मछलियाँ पकड़ना। | समुद्री जीवों, जैसे पंखयुक्त मछलियों (जैसे मछली), प्रॉन, मसल्स, ऑयस्टर, और समुद्री खर-पतवार का समुद्र के जल में संवर्धन करना मेरिकल्पन कहलाता है। | मछली और अन्य जलीय भोजन का उत्पादन नियंत्रित स्रोतों, जैसे लैगून या तालाब में करना जल संवर्धन या एक्वाकल्चर कहलाता है। |