Bihar Board class 8 History solutions chapter 4 is available here. This is our expert guide to solve problems from the chapter 4 – “उपनिवेशवाद एवं जनजातीय समाज” of your History book in hindi medium.
इस अध्याय में आप उपनिवेशवाद के दौर में भारत की जनजातीय आबादी की स्थिति के बारे में जानेंगे। यह अध्याय आपको भारत में रहने वाली विभिन्न जनजातीय समुदायों जैसे भीलों, गोंडों, संथालों और मुंडाओं के बारे में परिचित कराएगा। आप उनके सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन, आर्थिक गतिविधियों और आस्थाओं के बारे में पढ़ेंगे।

Bihar Board Class 8 History Solutions Chapter 4
Contents
Subject | History (अतीत से वर्तमान भाग 3) |
Class | 8th |
Chapter | 4. उपनिवेशवाद एवं जनजातीय समाज |
Board | Bihar Board |
पाठगत प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. जनजातीय समाज के लोग जंगल का उपयोग किन-किन चीजों के लिए करते थे ? क्या उनके उद्योग को विकसित करने में भी जंगल की भूमिका थी?
उत्तर- जनजातीय समाज के लोग जंगलों पर पूरी तरह निर्भर थे। वे जंगल से ईंधन की लकड़ियां, खाद्य सामग्री जैसे फल, मूल, शहद एवं जड़ी-बूटियां प्राप्त करते थे। जंगल से ही उन्हें घर बनाने की लकड़ी व पशुओं के लिए चारा मिलता था। उनके व्यवसाय भी जंगलों पर आधारित थे जैसे हाथी दांत, बांस, धातुओं पर कारीगरी, गोंद, रबड़ आदि। लाख और रेशम उद्योग भी जंगलों से ही संभव हुए। इस प्रकार जंगल उनके जीवन और आजीविका का आधार था।
प्रश्न 2. स्लीपर किसे कहते हैं ?
उत्तर- रेल की पटरियां जिस लकड़ी के तख्तों पर बिछाई जाती हैं, उन्हें स्लीपर कहते हैं।
प्रश्न 3. बेगारी किसे कहते हैं ?
उत्तर- बिना मजदूरी या वेतन के किसी को जबरन काम करवाने को बेगारी कहते हैं।
प्रश्न 4. बंधुआ मजदूर से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- बंधुआ मजदूर वे मजदूर होते हैं जो कर्ज चुकाने के लिए मालिक के खेत पर बिना वेतन के काम करते रहते हैं, जब तक कि कर्ज और उस पर लगने वाला ब्याज चुकता नहीं हो जाता।
प्रश्न 5. दिकू किसे कहते हैं ?
उत्तर- गैर-आदिवासी सेठ और महाजनों को दिकू कहा जाता था। ये लोग आदिवासियों को अधिक ब्याज दरों पर कर्ज देते थे और उनका शोषण करते थे।
प्रश्न 6. क्या जनजातीय विद्रोह सिर्फ अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह था? इन विद्रोहों के लिए सेठ, साहुकार एवं महाजन कहाँ तक जिम्मेवार थे?
उत्तर- नहीं, जनजातीय विद्रोह केवल अंग्रेजों के खिलाफ नहीं था। यह विद्रोह सेठ, साहुकार और महाजनों के खिलाफ भी था, जो आदिवासियों का आर्थिक और शारीरिक शोषण करते थे। ये लोग आदिवासियों को अधिक ब्याज पर कर्ज देकर उनका शोषण करते थे। इसलिए आदिवासियों ने अंग्रेजों के साथ-साथ इन लोगों के खिलाफ भी विद्रोह किया।
प्रश्न 7. बिरसा मुंडा ने स्वयं को भगवान का अवतार क्यों घोषित किया?
उत्तर- वर्ष 1895 में बिरसा मुंडा को उनके कुलदेवता ‘सिंगबोगा’ से एक नए धर्म के प्रचार की प्रेरणा मिली थी। इसी प्रेरणा के अनुसार बिरसा मुंडा ने स्वयं को भगवान का अवतार घोषित किया।
अभ्यास-प्रश्न
प्रश्न 1. सही विकल्प चुनें
प्रश्न (i). जनजातीय समाज के लोग आम भाषा में क्या कहलाते थे?
(क) हरिजन
(ख) आदिवासी
(ग) सिक्ख
(घ) हिन्दू
उत्तर- (ख) आदिवासी
प्रश्न (ii). दिकू किसे कहा जाता था?
(क) अंग्रेज
(ख) महाजन
(ग) गैर आदिवासी
(घ) आदिवासी
उत्तर- (ग) गैर आदिवासी
प्रश्न (iii). बिरसा मुंडा किस क्षेत्र के निवासी थे?
(क) छोटानागपुर
(ख) संथाल परगना
(ग) मणिपुर
(घ) नागालैंड
उत्तर- (क) छोटानागपुर
प्रश्न (iv). गिंडाल्यू ने अंग्रेज सरकार की दमनकारी कानूनों को नहीं मानने का भाव जनजातियों में जगाकर गांधीजी के किस आंदोलन से जनजातीय आंदोलन को जोड़ने का सफल प्रयास किया?
(क) असहयोग आंदोलन
(ख) सविनय अवज्ञा आंदोलन
(ग) भारत छोड़ो आंदोलन..
(घ) खेड़ा आंदोलन
उत्तर- (ख) सविनय अवज्ञा आंदोलन
प्रश्न (v). झारखंड राज्य किस राज्य के विभाजन के परिणामस्वरूप बना था?
(क) बिहार
(ख) बंगाल
(ग) उड़ीसा
(घ) मध्य प्रदेश
उत्तर- (क) बिहार
प्रश्न 2. निम्नलिखित के जोड़े बनाएँ :-
उत्तर-
1. जादोनांग | (ग) जेलियांग रांग आंदोलन |
2. बिरसा मुंडा | (ङ) सिंगबोगा |
3. कंध जाति | (ख) उड़ीसा |
4. टिकेन्द्रजीत सिंह | (क) मणिपुर |
5. जतरा भगत | (घ) ताना भगत आंदोलन |
आइए विचार करें-
प्रश्न (i). अठारहवीं शताब्दी में जनजातीय समाज के लिए जंगल की क्या – उपयोगिता थी?
उत्तर- अठारहवीं शताब्दी में जनजातीय समाज का जीवन पूरी तरह से जंगलों पर निर्भर था। जंगल उनकी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे। वे जंगलों में ही रहते थे और वहां से ईंधन की लकड़ियां, खाद्य सामग्री जैसे फल, मूल, शहद और जड़ी-बूटियां प्राप्त करते थे। उनके घर भी जंगल की लकड़ियों से बने होते थे। वे जंगलों को साफ करके खेती योग्य भूमि तैयार करते थे और पशुपालन भी करते थे, जिसके लिए चारा जंगलों से मिलता था। इस प्रकार जनजातीय समाज के लिए जंगल उनके अस्तित्व और आजीविका का एकमात्र साधन था।
प्रश्न (ii). आदिवासी खेती के लिए किन तरीकों को अपनाते थे?
उत्तर- आदिवासी ‘झूम खेती’ या ‘घुमंतु कृषि’ की विधि को अपनाते थे। इस विधि में वे जंगल के एक हिस्से को काट-छांट करके साफ करते थे और उस जगह पर 2-3 वर्षों तक खेती करते थे। जब उस भूमि की उर्वरा शक्ति समाप्त हो जाती थी, तो वे किसी अन्य स्थान पर जाकर वहीं प्रक्रिया दोहराते थे। इस बीच, पहली जगह को कुछ वर्षों के लिए परती रहने दिया जाता था, जिससे वहां पुनः जंगल उग आता था। इस प्रकार उनकी खेती का काम चलता रहता था और साथ ही जंगलों को भी कोई नुकसान नहीं होता था।
प्रश्न (iii). गैर आदिवासियों एवं अंग्रेजों के प्रति आदिवासियों का विरोध क्यों हुआ?
उत्तर- अंग्रेजों ने अधिक लगान प्राप्त करने के लिए आदिवासियों की जमीनों तक अपना नियंत्रण बढ़ा दिया। वे आदिवासियों को उनकी पारंपरिक जमीनों से बेदखल करने लगे। आदिवासी मानते थे कि उन्होंने ही जंगलों को साफ करके खेती योग्य बनाया है, इसलिए वे उन जमीनों के असली मालिक हैं और उन्हें किसी को लगान देने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन अंग्रेजों ने नई लगान प्रणाली के तहत उनकी जमीनों को भी सरकारी दस्तावेजों में दर्ज कर लिया और उन पर भी अन्य किसानों की तरह वार्षिक लगान लगा दिया।
इसके कारण आदिवासियों की जमीनें नीलाम होने लगीं या महाजनों के कब्जे में चली गईं। उन्हें अब झूम खेती की आजादी नहीं रही। गैर-आदिवासी सेठ, महाजन और साहुकारों का भी उनके क्षेत्रों में प्रवेश हुआ, जिन्होंने आदिवासियों को कर्जा देकर उनकी जमीनें हथियाने और उन्हें बंधुआ मजदूर बनाने का प्रयास किया। इन सभी शोषण और अत्याचार की नीतियों के कारण आदिवासियों में गैर-आदिवासियों और अंग्रेजों के प्रति विरोध उत्पन्न हुआ और उन्हें शस्त्र उठाने को विवश होना पड़ा।
प्रश्न (iv). वन अधिनियम ने आदिवासियों के किन अधिकारों को छीन लिया ?
उत्तर- तेजी से घटते जंगलों की समस्या से निपटने के लिए अंग्रेज सरकार ने वर्ष 1864 में ‘वन विभाग’ की स्थापना की और 1865 में ‘वन अधिनियम’ लागू किया। इस अधिनियम के तहत वृक्षारोपण की सुरक्षा और पुराने जंगलों के संरक्षण के लिए कई नियम बनाए गए। इसका परिणाम यह हुआ कि आदिवासियों का जंगलों पर परंपरागत अधिकार समाप्त हो गया। उन्हें अब जंगलों से लकड़ी काटने, जानवरों को चराने, फल-फूल एकत्र करने या शिकार करने की अनुमति नहीं थी। सरकार ने आदिवासियों के जंगलों में प्रवेश पर भी प्रतिबंध लगा दिया था। इस प्रकार वन अधिनियम ने आदिवासियों के जंगलों पर उनके अधिकारों को समाप्त कर दिया, जबकि वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जंगलों पर पूरी तरह निर्भर थे।
प्रश्न (v). ईसाई मिशनरियों ने आदिवासी समाज में असंतोष पैदा कर दिया, कैसे?
उत्तर- आदिवासियों को शिक्षा देने के बहाने ईसाई मिशनरियों का भी उनके क्षेत्रों में आगमन हुआ। हालांकि, मिशनरियों का असली उद्देश्य आदिवासी क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित करना और उनका धर्मांतरण करना था। उन्होंने आदिवासियों के धर्म और संस्कृति की आलोचना शुरू कर दी और कई आदिवासियों का धर्मांतरण भी करवा लिया। मिशनरियों ने आदिवासियों को यह प्रलोभन दिया कि वे उन्हें सेठों, साहुकारों और महाजनों से बचाएंगे। परंतु वास्तव में ये मिशनरी ही सेठों, साहुकारों, जमींदारों और बिचौलियों के साथ मिलकर आदिवासियों का शोषण करते थे। इन कारणों से आदिवासियों में मिशनरियों के प्रति असंतोष पैदा हुआ और उन्होंने अंग्रेजों तथा गैर-आदिवासियों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।
प्रश्न (vi). बिरसा मुंडा कौन थे ? उन्होंने जनजातीय समाज के लिए क्या किया ?
उत्तर- बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1874 को छोटानागपुर के उलिहातु गांव के निकट चलकद में हुआ था। उनके पिता का नाम सुगना मुंडा और मां का नाम कदमी था। बिरसा की शिक्षा चाईबासा के एक जर्मन मिशन स्कूल में हुई। शुरू में वह ईसाई धर्म में आए, लेकिन बाद में उससे असंतुष्ट होकर वापस मुंडा बन गए। अंग्रेजों और जमींदारों के प्रति आक्रोश ने उन्हें मुंडा विद्रोह की ओर प्रेरित किया।
वर्ष 1895 में बिरसा को अपने कुलदेवता ‘सिंगबोगा’ से एक नए धर्म के प्रचार की प्रेरणा मिली। इसके अनुसार उन्होंने स्वयं को भगवान का अवतार घोषित किया और अंग्रेजी शासन का अंत करने का संकल्प लिया। उन्होंने अपने अनुयायियों के साथ मिलकर अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी। 2 जून 1900 को रांची जेल में हैजा रोग से उनकी मृत्यु हो गई। हालांकि, उनके द्वारा शुरू किया गया मुंडा विद्रोह जारी रहा और अंततः अंग्रेज सरकार को आदिवासी समाज को विशेष संरक्षण और सुविधाएं देनी पड़ीं।
प्रश्न (vii). अंग्रेज संथालों का शोषण किस तरह किया करते थे?
उत्तर- अंग्रेजों ने संथाल जनजाति का बहुआयामी शोषण किया। नई लगान व्यवस्था के तहत उन्होंने संथालों को उनकी पारंपरिक जमीनों से बेदखल कर दिया। जब संथाल लगान की भारी राशि चुकाने में असमर्थ रहे, तो उनकी जमीनें नीलाम कर दी गईं। ‘वन अधिनियम’ के माध्यम से अंग्रेजों ने संथालों के जंगल उपयोग करने के अधिकारों को भी छीन लिया। जो कभी स्वतंत्र और अपनी जमीन के मालिक थे, उन्हें अंग्रेजों ने बंधुआ मजदूरों की श्रेणी में धकेल दिया। इस तरह अंग्रेजों ने संथाल जनजाति का आर्थिक, शारीरिक और मानसिक शोषण किया।
प्रश्न (viii). जादोनांग कौन था? उसकी उपलब्धियों के विषय में बताइए।
उत्तर- उत्तर-पूर्व भारत के मणिपुर राज्य में जेमेई, लियांगमेई और रांगमेई नागा जनजातियां निवास करती थीं। जादोनांग रांगमेई जनजाति का नेता था। 1920 में उसके नेतृत्व में इन तीनों जनजातियों ने ‘जेलियांगरांग आंदोलन’ नामक विद्रोह शुरू किया। जादोनांग ने पहले इन जनजातियों में एकता स्थापित की और फिर अंग्रेजों तथा गैर-आदिवासियों को बाहर निकालने का एक राजनीतिक कार्यक्रम बनाया। बाद में यह आंदोलन गांधीजी के सविनय अवज्ञा आंदोलन से जुड़ गया।
प्रश्न (ix). जनजातीय विद्रोह में महिलाओं की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर- जनजातीय विद्रोह में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही। जादोनांग की 13 वर्षीय चचेरी बहन गिंडाल्यू ने नागा राज्य स्थापना के प्रयासों में उसका साथ दिया। जादोनांग की फांसी के बाद गिंडाल्यू ने आंदोलन को आगे बढ़ाया और गांधी के आंदोलन से जोड़ने में सफल रही। कई अन्य आदिवासी महिलाएं भी विद्रोह में शामिल थीं जैसे राधा, हीरा, फूलों, झानो, बिरसा मुंडा की पत्नी मानी बुई और बेटी थीगी नागी। ताना भगत आंदोलन में लीथो उराँव और गोंड विद्रोह में राजमोहिनी देवी ने नेतृत्व किया। महिलाओं ने विद्रोहों में सैनिक कार्रवाई से लेकर नेतृत्व तक की भूमिकाएं निभाईं।
प्रश्न (x). जनजातीय समाज की महिलाओं का घरेलू उद्योग क्या था?
उत्तर- जनजातीय समाज की महिलाएं घर पर चटाई बनाने, बुनाई करने और वस्त्र बनाने का काम करती थीं। वे रेशम और लाख उद्योगों में भी अपने पुरुषों का साथ देती थीं। इस प्रकार चटाई, बुनाई, वस्त्र निर्माण, रेशम और लाख उद्योग उनके घरेलू उद्योग थे।
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