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यह कविता आध्यात्मिक और नैतिक बातों पर प्रकाश डालती है। कवि कहता है कि केवल बाहरी आडंबरों जैसे तिलक, जनेऊ और मालाएं पहनने से कोई धार्मिक नहीं बन जाता। असली धर्म तो मन की शुद्धता और परोपकार में निहित है। संसार में भोग-विलास की लालसा मनुष्य को भटका देती है। उसे लुभाती है लेकिन अंत में निराशा ही हाथ लगती है।

Bihar Board Class 8 Hindi Chapter 6 Solutions
| Subject | Hindi |
| Class | 8th |
| Chapter | 6. बिहारी के दोहे |
| Author | बिहारी |
| Board | Bihar Board |
पाठ से
प्रश्न 1. उन पदों को लिखिए जिनमें निम्न बातें कही गई हैं।
(क) बाह्याडंबर व्यर्थ है।
उत्तर: जप माला छापै तिलक ………….. साँचे राँचै रामु ।।
(ख) नम्रता का पालन करने से ही मनुष्य श्रेष्ठ बनता है।
उत्तर: नर की अरू नल नीर ……………. ऊँचो होय ।।
(ग) बिना गुण के कोई बड़ा नहीं होता।
उत्तर: बड़े न हूजे गुनन ………………… गहनो गढ्यो न जाय ।।
(घ) सुख-दुःख समान रूप से स्वीकारना चाहिए।
उत्तर: दीरघ साँस न लेहु ……………………….. दई सु कबुली ।।
प्रश्न 2: दुर्जन का साथ रहने से अच्छी बुद्धि नहीं मिल सकती। इसकी उपमा में कवि ने क्या कहा है?
उत्तर: कवि ने दुर्जन की संगति से अच्छी बुद्धि प्राप्त न होने की उपमा देते हुए कहा है कि जिस प्रकार हींग को सुगंधित कपूर के साथ रखने से वह खुद सुगंधित नहीं हो सकती, उसी तरह दुर्जन की संगति में रहने से मनुष्य की आंतरिक बुद्धि और गुण नहीं बढ़ सकते। सत्संगति के अभाव में मनुष्य स्वयं अपने गुणों से वंचित रहता है।
पाठ से आगे
प्रश्न 1: गुण नाम से ज्यादा बड़ा होता है। कैसे?
उत्तर: हाँ, गुण वास्तव में नाम से बड़ा और महत्वपूर्ण होता है। सिर्फ किसी को सोने (कनक) का नाम देने से वह सोना नहीं बन जाता। यहाँ कवि बिहारी ने धतूरे के उदाहरण से समझाया है कि धतूरे को कनक (सोना) कहा जा सकता है, लेकिन वास्तविक गुणों के अभाव में वह सोने की तरह कीमती नहीं हो सकता। इसी प्रकार किसी व्यक्ति को महान या श्रेष्ठ कहना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसके वास्तविक गुणों और आचरण से ही उसकी प्रतिष्ठा निर्धारित होती है।
प्रश्न 2: “कनक” शब्द का प्रयोग किन-किन अर्थों में किया गया है?
उत्तर: इस दोहे में “कनक” शब्द का प्रयोग दो विपरीत अर्थों में किया गया है। एक ओर “कनक” का अर्थ है सोना, जो बहुमूल्य और कीमती होता है। दूसरी ओर, “कनक” का प्रयोग धतूरे के लिए भी किया गया है, जो एक निम्न स्तर की वनस्पति है। इस प्रकार कवि ने “कनक” शब्द का प्रयोग उच्च और निम्न दोनों स्तरों के लिए किया है, जिससे यह संकेत मिलता है कि केवल नाम से कोई वस्तु या व्यक्ति की प्रकृति नहीं बदलती, बल्कि उसके वास्तविक गुण ही उसकी पहचान और महत्व निर्धारित करते हैं।
व्याकरण
प्रश्न 1. पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर:
- भव = संसार
- नर = मनुष्य
- बाधा = विघ्न, दुख।
- तन = शरीर
- नीर = जल
- कनक = सोना
प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों के आधुनिक/खड़ी बोली रूप लिखिए।
उत्तर:
- अरू = और
- जेतो = जितना
- तेतो = उतना
- हरौ = हरण करो
- वृथा = व्यर्थ
- गुनन = गुण
- बिनु = बिना