Bihar Board class 8 Hindi chapter 4 solutions are prepared by the subject experts. Below we have shared the accurate answers for all the questions from chapter 4 – “बालगोबिन भगत”.
यह रेखाचित्र बालगोबिन्द भगत नामक एक असाधारण व्यक्ति के जीवन पर आधारित है। वे एक साध्वी जीवन जीते थे लेकिन गृहस्थ भी थे। उनका परिवार था लेकिन वे संसार से अलगाव भी रखते थे। वे कबीर के अनुयायी थे और झूठ नहीं बोलते थे। उनका जीवन बहुत ही सादा और निष्कपट था। वे खेतीबाड़ी से प्राप्त अनाज का भोग कबीरपंथी मठ में लगा देते थे। संगीत में उनकी अद्भुत प्रतिभा थी और उनके गीत सुनकर लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे।

Bihar Board Class 8 Hindi Chapter 4 Solutions
| Subject | Hindi |
| Class | 8th |
| Chapter | 4. बालगोबिन भगत |
| Author | रामवृक्ष बेनीपुरी |
| Board | Bihar Board |
पाठ से
प्रश्न 1. बालगोबिन भगत गृहस्थ थे। फिर भी उन्हें साधु क्यों कहा जाता था?
उत्तर: बालगोबिन भगत एक गृहस्थ थे, लेकिन उन्हें साधु कहा जाता था क्योंकि उनके आचरण और जीवनशैली बहुत शुद्ध और उच्च कोटि की थी। एक साधु होने का मतलब केवल बाहरी आडंबरों और अनुष्ठानों को निभाना नहीं है, बल्कि अपने आचरण और आंतरिक शुद्धता को बनाए रखना है। भगत का जीवन बहुत ही नैतिक और तपस्वी था, इसलिए उन्हें साधु के रूप में देखा जाता था।
प्रश्न 2. भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त की?
उत्तर: जब भगत के बेटे की मृत्यु हुई, तो उन्होंने विलाप या शोक नहीं किया। बल्कि उन्होंने एक गीत गाया और अपने पौत्र से कहा कि आनंद मनाओ क्योंकि एक आत्मा परमात्मा से मिल गई है। भगत की यह भावना थी कि मृत्यु केवल शरीर का अंत है, आत्मा अमर है और वह परमात्मा में विलीन हो जाती है। इसलिए उन्होंने इसे आनंद का अवसर माना और गीत गाकर अपनी भावनाओं को व्यक्त किया।
प्रश्न 3. पुत्र-वधु द्वारा पुत्र की मुखाग्नि दिलवाना भगत के व्यक्तित्व की किस विशेषता को दर्शाता है ?
उत्तर: भगत ने अपने पुत्र की मुखाग्नि के लिए अपनी पुत्रवधू को ही चुना, उनके व्यक्तित्व की महानता और समता को दर्शाता है। विवाह में पति और पत्नी दोनों का समान स्थान होता है और दोनों ही एक-दूसरे के पूरक होते हैं। भगत ने यह दिखाया कि वे अपनी पुत्रवधू को भी पुत्र के समान ही सम्मान देते हैं। यह उनके समता और न्याय के प्रति समर्पण को दर्शाता है।
पाठ से आगे
प्रश्न 1. “धर्म का मर्म आचरण में है, अनुष्ठान में नहीं” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: “धर्म का मर्म आचरण में है, अनुष्ठान में नहीं” का अर्थ है कि धर्म का सार केवल बाहरी विधि-विधानों या रस्मों को पूरा करने में नहीं बल्कि हमारे दैनिक आचरण और व्यवहार में निहित है। बालगोबिन भगत गृहस्थ रहते हुए भी साधु जैसा पवित्र जीवन व्यतीत करते थे। उनका जीवन ही धर्म का मर्म था, न कि केवल साधु वेश धारण करना।
प्रश्न 2. बालगोबिन भगत कबीर को “साहब” मानते थे। इसके क्या-क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर: बालगोबिन भगत कबीर को “साहब” इसलिए मानते थे क्योंकि वे कबीर के विचारों और आदर्शों से बहुत प्रभावित थे। कबीर ने आडंबर और बाह्यावलंबी से दूर रहने का उपदेश दिया था, जो बालगोबिन भगत के जीवन में दृष्टिगत होता था। उनकी सरल जीवनशैली और मानव सेवा की भावना उन्हें कबीर के निकट लाती थी।
प्रश्न 3. बालगोबिन भगत ने अपने पुत्र को मृत्यु पर भी शोक प्रकट नहीं । किया। उनके इस व्यवहार पर अपनी तर्कपर्ण प्रतिक्रिया व्यक्त कीजिए।
उत्तर: बालगोबिन भगत का अपने पुत्र की मृत्यु पर शोक न करना उनकी गहरी आध्यात्मिक दृष्टि को दर्शाता है। जन्म और मृत्यु प्रकृति का नित्य चक्र है। शरीर नाशवान है, इसलिए उसके नष्ट होने पर शोक करना अज्ञानता है। बालगोबिन भगत ने मृत्यु को आत्मा की मुक्ति के रूप में स्वीकार किया होगा। शोक से न केवल मन विचलित होता है बल्कि जीवन में भी बाधा आती है।
प्रश्न 4. अपने गाँव-जवार में उपस्थित किसी साध का रेखाचित्र अपने शब्दों में प्रस्तुत करें।
उत्तर: हमारे गाँव में एक साधु रहते हैं जिनका व्यवहार और जीवनशैली साधु की तरह पवित्र और सरल है। करीब 40-50 वर्ष पूर्व वे गाँव में आए और एक मंदिर में निवास करने लगे। लोग उन्हें साधु-बाबा कहकर सम्मान देते हैं। वे कभी गुस्सा नहीं करते और हँसमुख रहते हैं। गाँव के लोगों की समस्याओं का निदान कर देते हैं। किसी के घर में कलह होने पर सभी उनके समझाने पर काम में लग जाते हैं। किसी के बीमार पड़ने पर वे उसका इलाज कराने की व्यवस्था करते हैं। डॉक्टर भी उनके आग्रह पर अच्छा इलाज करते हैं। पंचायत के निर्णयों में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। साधु-बाबा की वजह से ही गाँव के लोग खुशहाल और समृद्ध हैं। किसी को कोर्ट-कचहरी नहीं जाना पड़ता।
प्रश्न 5. अब सारा संसार निस्तब्धता में सोया है, बालगोबिन भगत का संगीत – जाग रहा है, जगा रहा है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर: यह पंक्तियाँ बालगोबिन भगत के संगीत साधना की विशेषता बताती हैं। चाहे दिन हो या रात, गर्मी हो या बरसात, बिजली की गड़गड़ाहट हो या मेढकों की आवाजें, बालगोबिन भगत का संगीत साधना निरंतर जारी रहती थी। जब सारा संसार निस्तब्ध और निद्रा में लीन होता था, उस समय भी बालगोबिन भगत का संगीत प्रवाहित होता रहता था। उनका संगीत जागरूक और जागृत करने वाला था।
प्रश्न 6. रूढ़ीवादिता से हमें किस प्रकार निपटना चाहिए ? किसी एक. रूढ़ीवादी परम्परा का उल्लेख करते हए बताइए कि आप किस प्रकार निपटेंगे?
उत्तर: रूढ़ीवादिता से निपटने के लिए हमें समझदारी से काम लेना होगा। समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों को तर्क और ज्ञान के प्रकाश से दूर करना होगा। उदाहरण के लिए, मृत्यु के अवसर पर भोज करना एक रूढ़िवादी प्रथा है जिससे गरीबों को कर्ज लेकर लाचार होना पड़ता है। हम लोगों को इस नुकसान का ज्ञान करा कर उन्हें इस परंपरा से दूर रहने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से ही हम रूढ़ीवादिता पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
व्याकरण
प्रश्न 1. इस पाठ में प्रयुक्त वैसे शब्दों का चयन कीजिए जो योजक चिह्न से जुड़े हों एवं उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
- लगौटी – मात्र – बालगोबिन भगत लगौटी – मात्र धारण करते थे।
- साफ – सुथरा – मकान को साफ-सुथरा रखना चाहिए।
- दो – टुक – वह हमेशा दो – टुक बात करता है।
- कभी – कभी – बालगोबिन भगत गाते-गाते कभी – कभी नाच उठते थे।
- सदा – सर्वदा – हमें सदा – सर्वदा पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए।
- पानी भरे पानी – भरे खेत में वे काम करते दिखते थे।
- स्वर – तरंग – बालगोबिन भगत के स्वर – तरंग लोगों को तुरन्त आकर्षित कर लेता था।
- टर्र – टर्र-मेढ़क की टर्र – टर्र वर्षा ऋतु में सुनाई पड़ता है।
- डिमक-डिमक-बालगोबिन भगत की खंजरी डिमक-डिमक बज उठती । थी।
- गाते – गाते वह गाते – गाते मस्ती में नाचने लगते थे।
- बार – बार – भगत के सिर पर से कमली बार – बार खिसक जाता था।
- प्रेम – मंडली – बालगोबिन के प्रेमी – मंडली उनके गायन में साथ देता था।
- ” धीरे – धीरे-धीरे-धीरे लोग वहाँ आ गये। गंगा – स्नान-गंगा-स्नान से पुण्य होता है।
- संगीत – साधना – बालगोबिन भगत की संगीत – साधना निर्मल थी।
प्रश्न 2. इस पाठ में आए दस क्रिया-विशेषण छाँटकर लिखिए।
उत्तर:
- दो-टुक बाल करना।
- चहक उठना ।
- खाम-खाह झगड़ा।
- चमक उठना ।
- बच्चे का उछलना।
- धीरे-धीरे स्वर ।
- खेलते बच्चे
- गंगा स्नान ।
- डिमक-डिमक बजना