Bihar Board Class 9 Hindi Chapter 2 Solutions – भारत का पुरातन विद्यापीठ : नालंदा

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भारत का पुरातन विद्यापीठ: नालंदा, बिहार बोर्ड कक्षा 9 की हिंदी पाठ्यपुस्तक का एक रोचक अध्याय है। यह निबंध भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा लिखा गया है, जिसमें नालंदा विश्वविद्यालय के गौरवशाली इतिहास और महत्व को दर्शाया गया है। लेखक ने बताया है कि कैसे नालंदा लगभग 600 वर्षों तक एशिया का प्रमुख शैक्षणिक केंद्र रहा, जहाँ देश-विदेश के छात्र शिक्षा प्राप्त करने आते थे। इस निबंध में नालंदा की शिक्षा प्रणाली, कला, संस्कृति और वैश्विक प्रभाव पर प्रकाश डाला गया है, साथ ही डॉ. प्रसाद की नालंदा को पुनर्स्थापित करने की इच्छा भी व्यक्त की गई है।

Bihar Board Class 9 Hindi Chapter 2

Bihar Board Class 9 Hindi Chapter 2 Solutions

SubjectHindi
Class9th
Chapter2. भारत का पुरातन विद्यापीठ : नालंदा
Authorडॉ. राजेंद्र प्रसाद
BoardBihar Board

Bihar Board Class 9 Hindi Chapter 2 Question Answer

प्रश्न 1. “नालंदा की वाणी एशिया महाद्वीप में पर्वत और समुद्रों के उस पार तक फैल गई थी।” इस वाक्य का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- यह वाक्य नालंदा विश्वविद्यालय की प्रसिद्धि और प्रभाव का वर्णन करता है। इसका अर्थ है कि नालंदा का ज्ञान और शिक्षा पूरे एशिया महाद्वीप में फैल गई थी, यहां तक कि समुद्र और पर्वतों को पार करके दूर-दूर तक पहुंच गई थी।

प्रश्न 2. मगध की प्राचीन राजधानी का नाम क्या था और वह कहाँ अवस्थित थी?

उत्तर- मगध की प्राचीन राजधानी का नाम राजगृह था। यह पांच पहाड़ियों के बीच स्थित थी और गिरिव्रज के नाम से भी जानी जाती थी।

प्रश्न 3. बुद्ध के समय नालंदा में क्या था?

उत्तर- बुद्ध के समय नालंदा एक छोटा सा गाँव था जहाँ प्रवजिकों (भिक्षुओं) का एक आम्रवन (आम का बाग) था। यह स्थान बौद्ध भिक्षुओं के लिए विश्राम और ध्यान का केंद्र था।

प्रश्न 4. महावीर और मेखलिपुत्त गोसाल की भेंट किस उपग्राम में हुई थी?

उत्तर- जैन ग्रंथों के अनुसार, महावीर और मेखलिपुत्र गोसाल की भेंट नालंदा के उपग्राम वाहिरिक में हुई थी। यह स्थान जैन धर्म के इतिहास में महत्वपूर्ण माना जाता है।

प्रश्न 5. महावीर ने नालंदा में कितने दिनों का वर्षावास किया था?

उत्तर- महावीर ने नालंदा में चौदह वर्षावास किया था। इस दौरान उन्होंने यहाँ अपने धार्मिक उपदेश दिए और अनुयायियों को शिक्षित किया।

प्रश्न 6. तारानाथ कौन थे? उन्होंने नालंदा को किसकी जन्मभूमि बताया है?

उत्तर- तारानाथ तिब्बत के एक प्रसिद्ध विद्वान और इतिहासकार थे। उन्होंने अपने लेखों में नालंदा को बौद्ध भिक्षु सारिपुत्र की जन्मभूमि बताया है।

प्रश्न 7. एक जीवंत विद्यापीठ के रूप में नालंदा कब विकसित हुआ?

उत्तर- नालंदा एक जीवंत विद्यापीठ के रूप में गुप्त काल में विकसित हुआ। इस समय के दौरान यह एक प्रमुख शैक्षणिक केंद्र बन गया और विभिन्न विषयों में उच्च शिक्षा प्रदान करने लगा।

प्रश्न 8. फाह्यान कौन थे? वे नालंदा कब आए थे?

उत्तर- फाह्यान एक चीनी बौद्ध यात्री थे जो चौथी शताब्दी में भारत आए थे। उन्होंने नालंदा में सारिपुत्र के जन्म और परिनिर्वाण स्थल पर बने स्तूप का दर्शन किया।

प्रश्न 9. हर्षवर्दन के समय में कौन चीनी यात्री भारत आया था. उस समय नालंदा की दशा क्या थी?

उत्तर- हर्षवर्धन के समय में सातवीं सदी में युवानचांग नामक चीनी यात्री भारत आया था। उस समय नालंदा विश्वविद्यालय अपनी उन्नति के शिखर पर था और एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक केंद्र के रूप में प्रसिद्ध था।

प्रश्न 10. नालंदा के नामकरण के बारे में किस चीनी यात्री ने किस ग्रंथ के आधार पर क्या बताया है?

उत्तर- चीनी यात्री युवानचांग ने एक जातक कथा के आधार पर बताया कि नालंदा का नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यहाँ बुद्ध को अपने पूर्व जन्म में कभी तृप्ति नहीं होती थी (न-अल-दा का अर्थ है ‘न देना’)। यह नाम स्थान की धार्मिक महत्ता को दर्शाता है।

प्रश्न 11. नालंदा विश्वविद्यालय का जन्म कैसे हुआ?

उत्तर- नालंदा विश्वविद्यालय का जन्म जनता के उदार दान और राजाओं के संरक्षण से हुआ। इसकी स्थापना पाँच सौ व्यापारियों के दान से हुई, जिन्होंने अपने धन से भूमि खरीदकर बुद्ध को समर्पित की थी। यह धीरे-धीरे विकसित होकर एक प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र बन गया। कालांतर में, विभिन्न राजवंशों ने इसके विकास में योगदान दिया, जिससे यह एक विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय बन गया।

प्रश्न 12. यशोवर्मन के शिलालेख में वर्णित नालंदा का अपने शब्दों में चित्रण कीजिए।

उत्तर- यशोवर्मन के शिलालेख में नालंदा को एक भव्य और अद्वितीय स्थान के रूप में वर्णित किया गया है। यहाँ के विहारों के ऊँचे-ऊँचे शिखर आकाश को छूते थे, जिनके चारों ओर नीले जल से भरे सरोवर थे। इन सरोवरों में सुनहरे और लाल कमल तैरते थे, जबकि आसपास सघन आम्रकुंज छाया प्रदान करते थे। भवनों का शिल्प और स्थापत्य अत्यंत आकर्षक था, जिनमें विविध अलंकरण और सुंदर मूर्तियाँ थीं। यह वर्णन नालंदा की अद्वितीय सुंदरता और महत्व को दर्शाता है।

प्रश्न 13. इत्सिंग कौन था? उसने नालंदा के बारे में क्या बताया है?

उत्तर- इत्सिंग एक प्रसिद्ध चीनी यात्री और विद्वान था, जो 7वीं शताब्दी में भारत आया था। उसने नालंदा का विस्तृत वर्णन किया, जिसमें उसने बताया कि नालंदा विहार में तीन सौ बड़े कमरे और आठ मंडप थे। यह वर्णन नालंदा के विशाल आकार और महत्व को दर्शाता है। पुरातत्व विभाग की खुदाई से प्राप्त अवशेष इत्सिंग के वर्णन की पुष्टि करते हैं, जो नालंदा की वास्तविक भव्यता को प्रमाणित करता है।

प्रश्न 14. विदेशों के साथ नालंदा विश्वविद्यालय के संबंध का कोई एक उदाहरण दीजिए।

उत्तर- नालंदा विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय संबंधों का एक महत्वपूर्ण उदाहरण एक प्राचीन ताम्रपत्र से मिलता है। इस ताम्रपत्र से पता चलता है कि सुमात्रा (सुवर्ण द्वीप) के शासक शैलेंद्र सम्राट श्री बालपुत्रदेव ने मगध के सम्राट देवपालदेव से नालंदा विश्वविद्यालय को पाँच सौ गाँवों का दान देने की प्रार्थना की थी। इतना ही नहीं, बालपुत्रदेव ने नालंदा में एक विशाल विहार का निर्माण भी करवाया था। यह घटना नालंदा की अंतरराष्ट्रीय ख्याति और महत्व को दर्शाती है, जो दूर-दूर तक फैली हुई थी।

प्रश्न 15. नालंदा में किन पांच विषयों की शिक्षा अनिवार्य थी?

उत्तर- नालंदा का शिक्षाक्रम बड़ी व्यावहारिक बुद्धि से तैयार किया गया था। मूल रूप में पाँच विषयों की शिक्षा वहाँ अनिवार्य थी-

  1. शब्द विद्या या व्याकरण, जिससे भाषा का सम्यक ज्ञान प्राप्त हो सके।
  2. हेतु विद्या या तर्कशास्त्र, जिससे विद्यार्थी अपनी बुद्धि की कसौटी पर प्रत्येक बात को परख सके।
  3. चिकित्सा विद्या जिसे सीखकर छात्र स्वयं स्वस्थ रह सकें एवं दूसरों को भी निरोग बना सकें।
  4. शिल्प विद्या, एक न एक शिल्प को सीखना यहाँ अनिवार्य था जिससे छात्रों में व्यवहारिक और आर्थिक जीवन की स्वतंत्रता आ सके।
  5. इसके अतिरिक्त अपनी रुचि के अनुसार लोग धर्म और दर्शन का अध्ययन करते थे।

प्रश्न 16.नालंदा के कुछ प्रसिद्ध विद्वानों की सूची बनाइए।

उत्तर- नालंदा के प्रसिद्ध विद्वानों में शीलभद्र, ज्ञानचंद्र, प्रभामित्र, स्थिरमति, और गुणमति शामिल थे। ये सभी विद्वान उस समय के महान आचार्य थे जब धर्मपाल नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति थे।

प्रश्न 17. शीलभद्र से युवानचांग (ह्वेनसांग) की क्या बातचीत हुई?

उत्तर- युवानचांग जब नालंदा से विदा लेने लगे, तो आचार्य शीलभद्र और अन्य भिक्षुओं ने उनसे वहीं रहने का अनुरोध किया। युवानचांग ने उत्तर दिया कि वे बुद्ध की जन्मभूमि से अत्यंत प्रेम करते हैं, लेकिन उनका उद्देश्य महान धर्म की खोज करना था। वे वापस जाकर अपने अनुभव और ज्ञान को दूसरों के साथ साझा करना चाहते थे, जिससे अन्य लोग भी लाभान्वित हो सकें। इस उत्तर से आचार्य शीलभद्र बहुत प्रसन्न हुए।

प्रश्न 18. विदेशों में ज्ञान-प्रसार के क्षेत्र में नालंदा के विद्वानों के प्रयासों के विवरण दीजिए।

उत्तर- नालंदा के विद्वानों ने तिब्बत में ज्ञान का प्रसार किया। तिब्बत के सम्राट स्ट्रोंग छन गप्पो ने थोन्मिसम्मोट को नालंदा भेजा, जहाँ उन्होंने आचार्य देवविदसिंह से शिक्षा प्राप्त की। आचार्य शांतिरक्षित और आचार्य कमलशील तिब्बत गए और वहाँ तंत्र विद्या का प्रचार किया। पद्मसंभव और दीपशंकर श्री ज्ञान अतिश भी नालंदा के प्रसिद्ध विद्वानों में से थे जिन्होंने तिब्बत में ज्ञान का प्रसार किया।

प्रश्न 19. ज्ञानदान की विशेषता क्या है?

उत्तर- ज्ञानदान की विशेषता यह है कि यह अनंत और असीमित होता है। इसे देने से देने वाले और लेने वाले दोनों को संतोष मिलता है और यह कभी समाप्त नहीं होता। यही ज्ञानदान की महानता है।

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