Bihar Board Class 8 Civics Chapter 5 Solutions – न्यायपालिका

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न्यायपालिका एक स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्था है, जो कानून के शासन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह अध्याय आपको भारत की न्यायपालिका संरचना और उसके कार्यों के बारे में विस्तृत जानकारी देगा। आप उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों और अन्य न्यायालयों के गठन, शक्तियों और कार्यों को समझेंगे। साथ ही, आप न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया, रिट अधिकार क्षेत्र और न्यायिक समीक्षा की अवधारणा से भी परिचित होंगे।

Bihar Board Class 8 Civics Chapter 5

Bihar Board Class 8 Civics Chapter 5 Solutions

SubjectCivics
Class8th
Chapter5. न्यायपालिका
BoardBihar Board

पाठगत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. बच्चों के पिता ने क्या जवाब दिया होगा? सोचकर लिखिए।

उत्तर- बच्चों के पिता समझदार और न्यायप्रिय व्यक्ति होने की संभावना है। वे दोनों बच्चों को समझाते हुए कहेंगे कि झगड़ा करना गलत है और एक-दूसरे की संपत्ति को नुकसान पहुंचाना और भी बुरा है। वे उन्हें शांत रहने और आपसी प्रेम बनाए रखने की नसीहत देंगे। साथ ही, किताब-कॉपी फाड़ने वाले बच्चे को डांटेंगे और उसे भविष्य में ऐसा नहीं करने को कहेंगे। अंत में, वे दोनों से मिलजुलकर रहने को कहेंगे।

प्रश्न 2. आपकी समझ में कौन सही है-गीता या उसके भाई ? आपस में चर्चा कीजिए।

उत्तर- इस मामले में गीता सही थी। हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार, बेटी और बेटे को पिता की संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलना चाहिए। गीता के भाईयों ने उसके साथ भेदभाव किया और उसका हक मारा। यह गलत था। एक बेटी को भी बेटों के समान अधिकार प्राप्त हैं। गीता ने अपना हक मांगकर सही किया। उसके भाई उसका हिस्सा स्वेच्छा से दे देते तो यह विवाद ही नहीं होता। लेकिन जब उन्होंने ऐसा नहीं किया, तो गीता को अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा।

प्रश्न 3. क्या आप ग्राम कचहरी के फैसले से सहमत हैं?

उत्तर- नहीं, ग्राम कचहरी के फैसले से सहमत होना उचित नहीं है। उनका फैसला पुराने विचारों और पुरुषवादी मानसिकता पर आधारित था। वे समझ नहीं पाए कि गीता भी पिता की संपत्ति में बराबर की हिस्सेदार है। ग्राम कचहरी के लोग कानून की समझ नहीं रखते और पिछली सदी की मानसिकता में जीते हैं। आधुनिक समय और कानून के अनुसार उनका फैसला गलत था। अदालत ने न्याय करके उन्हें सही रास्ता दिखाया।

प्रश्न 4. अदालत ने गीता के पक्ष में क्या फैसला सुनाया और क्यों ?

उत्तर- अदालत ने गीता के पक्ष में फैसला सुनाया क्योंकि वह हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत सही थी। इस कानून के अनुसार, बेटी और बेटे दोनों को पिता की संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलना चाहिए। गीता के भाइयों ने उसे उसका हक नहीं दिया, इसलिए अदालत ने उसकी मदद की। अदालत ने आदेश दिया कि पिता की 12 लाख रुपये की संपत्ति को 4 भागों में बांटा जाए और गीता को भी 3 लाख रुपये का हिस्सा मिले। इस तरह अदालत ने गीता के अधिकारों की रक्षा की।

प्रश्न 5. इस कहानी को पढ़ने के बाद न्याय के बारे में आपकी क्या समझ बनती है? इस पर अपनी शिक्षिका के साथ चर्चा कीजिए।

उत्तर- इस कहानी से हमें न्याय और न्यायपालिका के बारे में कई बातें समझ में आती हैं। पहली बात, न्याय किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव किए बिना होना चाहिए। दूसरी बात, अगर किसी के साथ अन्याय हो तो वह न्यायपालिका की शरण ले सकता है। तीसरी बात, न्यायपालिका को निष्पक्ष होकर सही-गलत का फैसला करना चाहिए, भेदभाव नहीं करना चाहिए। चौथी बात, न्यायपालिका लोगों के अधिकारों की रक्षा करती है और उन्हें न्याय दिलवाती है। इस तरह, न्यायपालिका एक महत्वपूर्ण संस्थान है जो समाज में न्याय और शांति स्थापित करती है।

प्रश्न 6. अपने शिक्षक की सहायता से इस तालिका में दिये गये खाली स्थानों को भरिए।

उत्तर-

प्रश्न 7. न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाये रखने के लिए क्या-क्या किया गया?

उत्तर- न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए कई उपाय किए गए हैं। सबसे पहले, न्यायपालिका को विधायिका और कार्यपालिका से पूरी तरह अलग रखा गया है ताकि उन पर किसी का प्रभाव न हो। दूसरा, न्यायाधीशों की नियुक्ति एक स्वतंत्र प्रक्रिया के जरिए होती है जिसमें सरकार का सीधा हस्तक्षेप नहीं होता। तीसरा, न्यायाधीशों को उनके कार्यकाल के दौरान हटाना बहुत मुश्किल है ताकि वे निडर होकर निष्पक्ष फैसले दे सकें। चौथा, न्यायपालिका के बजट को भी विधायिका द्वारा मंजूर किया जाता है ताकि सरकार उन पर दबाव न डाल सके। इन उपायों से न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुरक्षित रहती है।

प्रश्न 8. न्यायपालिका की स्वतंत्रता में किस-किस तरह की बाधाएँ आती है।

उत्तर- न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। पहली चुनौती बाहरी दबाव की होती है, जब कुछ शक्तिशाली लोग अपने प्रभाव से न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। दूसरी चुनौती भ्रष्टाचार की है, जब कुछ न्यायाधीश स्वयं रिश्वत लेकर पक्षपात करते हैं। तीसरी चुनौती सरकार द्वारा दबाव डालने की होती है, जब वह न्यायपालिका के बजट को प्रभावित करने की कोशिश करती है।

चौथी चुनौती भारी कामकाज का बोझ होता है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है। पांचवीं चुनौती पर्याप्त संसाधनों की कमी होती है। इन सभी कारणों से न्यायपालिका की स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाती है। लेकिन फिर भी, हमारा लोकतंत्र न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने का प्रयास करता है क्योंकि यही न्याय की आत्मा है।

अभ्यास-प्रश्न

प्रश्न 1. क्या आपको ऐसा लगता है कि इस तरह की नई न्यायिक व्यवस्था में एक आम नागरिक किसी भी ताकतवर या अमीर व्यक्ति के विरुद्ध मुकदमा जीत सकता है ? कारण सहित समझाइये।

उत्तर- हां, इस नई न्यायिक व्यवस्था में एक आम नागरिक किसी भी ताकतवर या अमीर व्यक्ति के विरुद्ध मुकदमा जीत सकता है। हालांकि इसके लिए कुछ शर्तें हैं। सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह है कि न्यायपालिका पूरी तरह निष्पक्ष और स्वतंत्र होनी चाहिए। न्यायाधीशों को भ्रष्टाचार से दूर रहना चाहिए और केवल कानून के आधार पर ही निष्पक्ष फैसला करना चाहिए। दूसरी शर्त यह है कि गरीब व्यक्ति के पास अपना मामला लड़ने के लिए पर्याप्त संसाधन होने चाहिए। आज कल कई सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएं गरीबों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करती हैं जिससे वे ताकतवर लोगों के खिलाफ अपना मुकदमा लड़ सकते हैं। इन शर्तों के साथ, हमारी न्यायिक व्यवस्था में एक आम नागरिक भी किसी ताकतवर/अमीर व्यक्ति के खिलाफ न्याय प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 2. हमें न्यायपालिका की जरूरत क्यों है?

उत्तर- न्यायपालिका की जरूरत इसलिए है क्योंकि समाज में कभी-कभी ऐसे विवाद उठते हैं जिनका निपटारा स्वयं लोग नहीं कर पाते। जब व्यक्तिगत तरीके या स्थानीय प्रणाली से विवाद सुलझाना संभव नहीं होता है, तब एक निष्पक्ष और स्वतंत्र न्यायिक प्रणाली की आवश्यकता होती है। न्यायपालिका कानून के आधार पर तथ्यों का निष्पक्ष मूल्यांकन करती है और उचित न्याय देती है। यह समाज में शांति और न्याय स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। एक स्वतंत्र न्यायपालिका लोगों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने और न्याय प्राप्त करने का अवसर देती है। इसलिए लोकतंत्र में न्यायपालिका की अहम भूमिका होती है।

प्रश्न 3. निचली अदालत से ऊपरी अदालत तक हमारी न्यायपालिका की संरचना एक पिरामिड जैसी है। न्यायपालिका की संरचना को पढ़ने के बाद उसका एक चित्र बनाएँ।

उत्तर- हां, आपने सही कहा कि हमारी न्यायपालिका की संरचना एक पिरामिड जैसी है। सबसे नीचे ग्राम न्यायालय होते हैं, उनके ऊपर जिला न्यायालय, फिर उच्च न्यायालय और सबसे ऊपर सुप्रीम कोर्ट होती है। यहां एक चित्र है जो इस संरचना को दर्शाता है:

प्रश्न 4. भारत में न्यायपालिका को स्वतंत्र बनाने के लिए क्या-क्या कदम उठाये गये हैं?

उत्तर- भारत में न्यायपालिका को स्वतंत्र बनाने के लिए इसे विधायिका और कार्यपालिका से पूरी तरह अलग रखा गया है। न्यायाधीशों की नियुक्ति एक स्वतंत्र प्रक्रिया के जरिए होती है जिसमें सरकार का सीधा हस्तक्षेप नहीं होता। इससे न्यायपालिका बाहरी दबावों से मुक्त रहती है।

प्रश्न 5. आपके विचार में भारत में न्याय प्राप्त करने के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा कौन-सी है ? इसे दूर करने के लिए क्या करना चाहिए?

उत्तर- मेरे विचार से, भारत में न्याय प्राप्त करने की सबसे बड़ी बाधा न्यायिक प्रक्रिया में लगने वाला समय और खर्च है। गरीब लोगों के लिए लंबे समय तक कोर्ट जाना और वकीलों को भुगतान करना मुश्किल होता है। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार को गरीबों के लिए मुफ्त कानूनी सहायता और त्वरित न्यायिक प्रक्रिया की व्यवस्था करनी चाहिए।

प्रश्न 6. अगर भारत में न्यायपालिका स्वतंत्र न हो तो नागरिकों को न्याय प्राप्त करने के लिए किन-किन मश्किलों का सामना करना पड सकता है?

उत्तर- अगर न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं होगी तो नागरिकों को न्याय प्राप्त करना बेहद मुश्किल होगा। ऐसी स्थिति में धनी और शक्तिशाली लोग न्यायपालिका पर दबाव डालकर अपने हित में फैसले करवा सकेंगे। गरीब और बेबस लोगों को भ्रष्टाचार और पक्षपात का सामना करना पड़ेगा। स्वतंत्र न्यायपालिका ही निष्पक्ष न्याय की गारंटी है।

Other Chapter Solutions
Chapter 1 Solutions – भारतीय संविधान
Chapter 2 Solutions – धर्मनिरपेक्षता और मौलिक अधिकार
Chapter 3 Solutions – संसदीय सरकार (लोग व उनके प्रतिनिधि)
Chapter 4 Solutions – कानून की समझ
Chapter 5 Solutions – न्यायपालिका
Chapter 6 Solutions – न्यायिक प्रक्रिया
Chapter 7 Solutions – सहकारिता
Chapter 8 Solutions – खाद्य सुरक्षा

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