Bihar Board class 10 Science chapter 9 – “अनुवांशिकता एवं जैव विकास” solutions are available here. This is our free guide that provides you all the questions and answers of chapter 9 in hindi medium.
अनुवांशिकता एवं जैव विकास (Bihar Board class 10 Science chapter 9) में हम जीवों में आनुवांशिक गुणों के संचार और उनके विकास के प्रक्रियाओं का अध्ययन करेंगे। इस अध्याय में, हम ग्रेगर मेंडल के प्रयोगों और आनुवांशिकी के नियमों को समझेंगे, जो हमें यह बताते हैं कि गुणसूत्रों के माध्यम से आनुवांशिक जानकारी किस प्रकार से अगली पीढ़ी में स्थानांतरित होती है। हम विभिन्न आनुवांशिक क्रियाविधियों, जैसे कि उत्परिवर्तन और पुनर्संयोजन, के बारे में भी जानेंगे। इसके अलावा, हम जैव विकास के सिद्धांतों और प्रक्रिया को समझने के लिए चार्ल्स डार्विन के विकासवाद के सिद्धांतों का अध्ययन करेंगे।
Bihar Board Class 10 Science Chapter 9 Solutions
Subject | Science |
Class | 10th |
Chapter | 9. अनुवांशिकता एवं जैव विकास |
Medium | Hindi (Bihar Board) |
अध्ययन के बीच वाले प्रश्न :-
9.1 पर आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. यदि एक ‘लक्षण – A’ अलैंगिक प्रजनन वाली समष्टि के 10 प्रतिशत सदस्यों में पाया जाता है तथा ‘लक्षण – B’ उसी समष्टि में 60 प्रतिशत जीवों में पाया जाता है, तो कौन-सा लक्षण पहले उत्पन्न हुआ होगा?
उत्तर:- लक्षण-B पहले उत्पन्न हुआ होगा, क्योंकि यह अधिक जीवों में पाया जाता है। अलैंगिक प्रजनन में, एक लक्षण समय के साथ अधिक जीवों में फैलता है। इसलिए, जो लक्षण अधिक जीवों में मौजूद है, वह पुराना होने की संभावना अधिक है।
प्रश्न 2. विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी स्पीशीज़ का अस्तित्व किस प्रकार बढ़ जाता है?
उत्तर:- विभिन्नताएँ प्रजाति को विभिन्न परिस्थितियों में जीवित रहने में मदद करती हैं। यदि वातावरण बदलता है, तो कुछ विभिन्नताएँ लाभदायक हो सकती हैं, जिससे प्रजाति के कुछ सदस्य जीवित रह सकते हैं और अनुकूलित हो सकते हैं।
9.2 पर आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. मेण्डल के प्रयोगों द्वारा कैसे पता चला कि लक्षण प्रभावी अथवा अप्रभावी होते हैं? या शुद्ध लम्बे तथा शुद्ध बौने पौधों के बीच एकसंकर संकरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:- मेंडल ने अपने प्रयोगों में मटर के पौधों का उपयोग किया। उन्होंने शुद्ध लंबे और शुद्ध बौने पौधों के बीच संकरण कराया। F1 पीढ़ी में सभी पौधे लंबे थे, जो दर्शाता है कि लंबापन प्रभावी लक्षण है। जब F1 पीढ़ी के पौधों को स्व-परागित किया गया, तो F2 पीढ़ी में लंबे और बौने पौधों का अनुपात 3:1 था। यह दर्शाता है कि बौनापन अप्रभावी लक्षण है। मेंडल ने इस प्रकार के कई प्रयोग किए और पाया कि कुछ लक्षण हमेशा प्रभावी होते हैं, जबकि अन्य अप्रभावी होते हैं। इस प्रकार, मेंडल ने प्रभावी और अप्रभावी लक्षणों की अवधारणा को स्थापित किया।
प्रश्न 2. मेण्डल के प्रयोगों से कैसे पता चला कि विभिन्न लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होते हैं?
उत्तर:- मेंडल ने अपने प्रयोगों में मटर के पौधों के विभिन्न लक्षणों का अध्ययन किया, जैसे बीज का आकार, फूल का रंग, और फली का आकार। उन्होंने पाया कि जब दो भिन्न लक्षणों वाले पौधों का संकरण कराया जाता है, तो F1 पीढ़ी में दोनों लक्षण स्वतंत्र रूप से व्यक्त होते हैं। उदाहरण के लिए, जब लाल फूल और गोल बीज वाले पौधे का संकरण सफेद फूल और झुर्रीदार बीज वाले पौधे से कराया गया, तो F1 पीढ़ी में सभी पौधों में लाल फूल और गोल बीज थे। F2 पीढ़ी में, इन लक्षणों के सभी संभव संयोजन दिखाई दिए। यह दर्शाता है कि प्रत्येक लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होता है।
प्रश्न 3. एक ‘A-रुधिर वर्ग’ वाला पुरुष एक स्त्री जिसका रुधिर वर्ग ‘O’ है, से विवाह करता है। उनकी पुत्री का रुधिर वर्ग – ‘O’ है। क्या यह सूचना पर्याप्त है यदि आपसे कहा जाए कि कौन-सा विकल्प लक्षण-रुधिर वर्ग – ‘A’ अथवा ‘O’ प्रभावी लक्षण है? का स्पष्टीकरण दीजिए।
उत्तर:- हां, यह सूचना पर्याप्त है यह निर्धारित करने के लिए कि ‘A’ रुधिर वर्ग प्रभावी लक्षण है। यहां पिता का रुधिर वर्ग ‘A’ है और माता का ‘O’ है, लेकिन पुत्री का रुधिर वर्ग ‘O’ है। यदि ‘O’ प्रभावी होता, तो पुत्री का रुधिर वर्ग ‘A’ नहीं हो सकता था। इसलिए, ‘A’ प्रभावी लक्षण है और ‘O’ अप्रभावी। पिता के जीनोटाइप में एक ‘A’ और एक ‘O’ जीन होना चाहिए (AO)। माता का जीनोटाइप OO होगा। पुत्री ने पिता से ‘O’ जीन और माता से ‘O’ जीन प्राप्त किया, इसलिए उसका रुधिर वर्ग ‘O’ है।
प्रश्न 4. मानव में बच्चे का लिंग-निर्धारण कैसे होता है?
उत्तर:- मानव में बच्चे का लिंग-निर्धारण गुणसूत्रों पर निर्भर करता है। पुरुषों में XY गुणसूत्र होते हैं, जबकि महिलाओं में XX गुणसूत्र होते हैं। जब शुक्राणु अंडे को निषेचित करता है, तो बच्चे का लिंग निर्धारित हो जाता है। यदि X गुणसूत्र वाला शुक्राणु अंडे को निषेचित करता है, तो बच्ची होगी (XX)। यदि Y गुणसूत्र वाला शुक्राणु अंडे को निषेचित करता है, तो बच्चा होगा (XY)। इस प्रकार, पिता का शुक्राणु बच्चे के लिंग को निर्धारित करता है। यह प्रक्रिया यादृच्छिक है, इसलिए लड़के या लड़की होने की संभावना लगभग समान होती है।
9.3 पर आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. वे कौन-से विभिन्न तरीके हैं जिनके द्वारा एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है?
उत्तर:- एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या समष्टि में कई तरीकों से बढ़ सकती है। प्राकृतिक चयन एक महत्वपूर्ण कारक है, जहां पर्यावरण के अनुकूल लक्षण वाले जीव बेहतर जीवित रहते और प्रजनन करते हैं। उदाहरण के लिए, हरे रंग के भृंगों का उत्पन्न होना जो पत्तियों में छिप सकते हैं। आनुवंशिक विविधता और उत्परिवर्तन भी नए लाभदायक लक्षणों को जन्म दे सकते हैं जो समय के साथ समष्टि में फैल सकते हैं। जीन प्रवाह, जहां अन्य समष्टियों से नए जीन आते हैं, भी एक कारक हो सकता है। कभी-कभी आकस्मिक घटनाएँ या प्राकृतिक आपदाएँ भी विशेष लक्षण वाले जीवों को अनजाने में लाभ दे सकती हैं। अंत में, मानव हस्तक्षेप, जैसे कृत्रिम चयन या संरक्षण प्रयास, भी विशेष लक्षण वाले जीवों की संख्या बढ़ा सकते हैं।
प्रश्न 2. एक एकल जीव द्वारा उपार्जित लक्षण सामान्यतः अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते। क्यों?
उत्तर:- एक एकल जीव द्वारा उपार्जित लक्षण सामान्यतः अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते क्योंकि ये लक्षण केवल शारीरिक कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं, जनन कोशिकाओं को नहीं। इसका मतलब है कि जीव के डीएनए में कोई परिवर्तन नहीं होता, जो अगली पीढ़ी में पारित होने के लिए आवश्यक है। केवल जनन कोशिकाओं में होने वाले परिवर्तन ही वंशानुगत हो सकते हैं। यह सिद्धांत लैमार्क के उपार्जित लक्षणों के वंशानुगमन के सिद्धांत को खारिज करता है। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति द्वारा व्यायाम से प्राप्त मांसपेशियाँ उसके बच्चों में स्वतः नहीं आएंगी, क्योंकि यह परिवर्तन उसके जीन में नहीं हुआ है।
प्रश्न 3. बाघों की संख्या में कमी आनुवंशिकता के दृष्टिकोण से चिंता का विषय क्यों है?
उत्तर:- बाघों की संख्या में कमी आनुवंशिकता के दृष्टिकोण से गंभीर चिंता का विषय है। छोटी आबादी में आनुवंशिक विविधता कम होती है, जो प्रजाति को कमजोर बनाती है। इससे इनब्रीडिंग (निकट संबंधियों में प्रजनन) की संभावना बढ़ जाती है, जो हानिकारक जीनों के प्रकट होने का खतरा बढ़ाता है। कम आनुवंशिक विविधता प्रजाति को बदलते पर्यावरण में अनुकूलन करने की क्षमता को भी कम करती है। छोटी आबादी में आकस्मिक घटनाओं का प्रभाव अधिक होता है, जो किसी महत्वपूर्ण जीन के खो जाने का खतरा बढ़ाता है। यह सब मिलकर प्रजाति के विलुप्त होने का खतरा बढ़ाता है, क्योंकि कम आनुवंशिक विविधता वाली प्रजातियाँ बीमारियों और पर्यावरणीय परिवर्तनों का सामना करने में कमजोर होती हैं। इसके अलावा, बाघों की कम संख्या पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को भी प्रभावित कर सकती है, जो अन्य प्रजातियों पर भी नकारात्मक असर डाल सकता है।
9.4 पर आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. वे कौन-से कारक हैं जो नयी स्पीशीज के उद्भव में सहायक हैं?
उत्तर:- नई स्पीशीज़ के उद्भव में कई कारक सहायक होते हैं। प्राकृतिक चयन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जहाँ अनुकूल लक्षणों वाले जीव बेहतर जीवित रहते और प्रजनन करते हैं। जीन प्रवाह का कम होना या न होना दो समूहों को अलग-अलग विकसित होने में मदद करता है। आनुवंशिक विचलन, जो छोटी आबादियों में अधिक प्रभावी होता है, नए लक्षणों के फैलने में मदद कर सकता है। डीएनए में गुणसूत्रों की संख्या में परिवर्तन दो समूहों के बीच प्रजनन को असंभव बना सकता है। भौगोलिक अलगाव भी महत्वपूर्ण है, जो दो समूहों को अलग-अलग विकसित होने का अवसर देता है। इन सभी कारकों के संयोजन से समय के साथ नई स्पीशीज़ का उद्भव हो सकता है।
प्रश्न 2. क्या भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज़ के पौधों के जाति-उद्भव का प्रमुख कारण हो सकता है? क्यों या क्यों नहीं?
उत्तर:- भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज़ के पौधों के जाति-उद्भव का प्रमुख कारण हो सकता है, लेकिन यह प्रक्रिया बहुत धीमी होगी। स्वपरागित पौधों में नए जीन का प्रवेश सीमित होता है, जिससे आनुवंशिक विविधता कम होती है। हालाँकि, भौगोलिक पृथक्करण अलग-अलग वातावरणों में अलग-अलग चयनात्मक दबावों का निर्माण कर सकता है। समय के साथ, ये अलग-अलग दबाव छोटे आनुवंशिक परिवर्तनों को बढ़ावा दे सकते हैं। उत्परिवर्तन भी नई विविधता ला सकते हैं। यदि ये परिवर्तन पर्याप्त हैं, तो वे अंततः नई प्रजातियों के गठन की ओर ले जा सकते हैं। हालाँकि, यह प्रक्रिया परपरागित पौधों की तुलना में बहुत धीमी होगी।
प्रश्न 3. क्या भौगोलिक पृथक्करण अलैंगिक जनन वाले जीवों के जाति उद्भव का प्रमुख कारक हो सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं?
उत्तर:- भौगोलिक पृथक्करण अलैंगिक जनन वाले जीवों के जाति-उद्भव का प्रमुख कारक हो सकता है, लेकिन यह प्रक्रिया बहुत धीमी और जटिल होगी। अलैंगिक जनन में, संतति अपने जनक के समान होती है, जिससे आनुवंशिक विविधता सीमित होती है। हालाँकि, भौगोलिक पृथक्करण अलग-अलग वातावरणों में अलग-अलग चयनात्मक दबावों का निर्माण कर सकता है। समय के साथ, उत्परिवर्तन और छोटे आनुवंशिक परिवर्तन हो सकते हैं। यदि ये परिवर्तन पर्याप्त हैं और नए वातावरण में लाभदायक हैं, तो वे धीरे-धीरे नई विशेषताओं के विकास की ओर ले जा सकते हैं। यह प्रक्रिया लैंगिक जनन वाले जीवों की तुलना में बहुत धीमी होगी, लेकिन असंभव नहीं है।
9.5 पर आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. उन अभिलक्षणों का एक उदाहरण दीजिए जिनका उपयोग हम दो स्पीशीज के विकासीय संबंध निर्धारण के लिए करते हैं?
उत्तर:- दो स्पीशीज के विकासीय संबंध निर्धारित करने के लिए हम समजात अभिलक्षणों का उपयोग करते हैं। समजात अंग वे अंग हैं जो मूल संरचना में समान होते हैं, भले ही उनके कार्य भिन्न हों। उदाहरण के लिए, मेंढक, छिपकली, पक्षी और मनुष्य के अग्रपाद समजात अंग हैं। इन सभी में हड्डियों की मूल व्यवस्था समान है, लेकिन प्रत्येक जीव में ये अलग-अलग कार्यों के लिए अनुकूलित हो गए हैं। मेंढक में तैरने के लिए, पक्षी में उड़ने के लिए, और मनुष्य में वस्तुओं को पकड़ने के लिए। यह समानता इंगित करती है कि ये सभी जीव एक समान पूर्वज से विकसित हुए हैं, जिससे उनके विकासीय संबंध का पता चलता है।
प्रश्न 2. क्या एक तितली और चमगादड़ के पंखों को समजात अंग कहा जा सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं?
उत्तर:- तितली और चमगादड़ के पंखों को समजात अंग नहीं कहा जा सकता। ये समरूप अंग हैं, जो एक ही कार्य (उड़ना) करते हैं लेकिन अलग-अलग उत्पत्ति और संरचना रखते हैं। चमगादड़ के पंख वास्तव में उसके अग्रपाद का रूपांतरण हैं, जिसमें अंगुलियों की लंबी हड्डियाँ और उनके बीच झिल्ली होती है। दूसरी ओर, तितली के पंख शरीर की बाहरी परत से विकसित होते हैं और उनमें हड्डियाँ नहीं होतीं। ये दोनों अंग अलग-अलग तरीके से विकसित हुए हैं लेकिन एक ही कार्य करते हैं, इसलिए इन्हें समरूप अंग कहा जाता है, न कि समजात अंग।
प्रश्न 3. जीवाश्म क्या हैं? वे जैव-विकास प्रक्रम के विषय में क्या दर्शाते हैं?
उत्तर:- जीवाश्म प्राचीन जीवों के संरक्षित अवशेष या उनके निशान हैं, जो चट्टानों या अन्य प्राकृतिक सामग्री में पाए जाते हैं। ये हमें जैव-विकास प्रक्रिया के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं। जीवाश्म बताते हैं कि कौन सी प्रजातियाँ पहले मौजूद थीं लेकिन अब विलुप्त हो गई हैं। वे विभिन्न प्रजातियों के बीच की कड़ियों को भी दर्शाते हैं, जैसे आर्कीऑप्टैरिक्स, जो सरीसृप और पक्षियों के बीच का जीव था। जीवाश्मों की आयु और उनकी चट्टानों में स्थिति से हम यह भी जान सकते हैं कि विभिन्न प्रजातियाँ कब विकसित हुईं। इसके अलावा, जीवाश्म हमें प्राचीन पर्यावरण और जलवायु के बारे में भी जानकारी देते हैं, जो जैव-विकास को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार, जीवाश्म जैव-विकास के अध्ययन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
9.6 पर आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. क्या कारण है कि आकृति, आकार, रंग-रूप में इतने भिन्न दिखाई पड़ने वाले मानव एक ही स्पीशीज़ के सदस्य हैं?
उत्तर:- मानव एक ही प्रजाति (होमो सैपियंस) के हैं, भले ही वे दिखने में अलग हों। इसके कई कारण हैं:-
- जेनेटिक समानता: सभी मनुष्यों का डीएनए 99.9% समान है। यह समानता हमें एक प्रजाति बनाती है।
- प्रजनन क्षमता: विभिन्न दिखने वाले मनुष्य आपस में संतान पैदा कर सकते हैं, जो प्रजनन क्षम होती है।
- विकासात्मक इतिहास: सभी आधुनिक मनुष्यों का उद्गम अफ्रीका से हुआ। समय के साथ, अलग-अलग वातावरण में रहने से उनमें छोटे-मोटे बदलाव आए।
- अनुकूलन: विभिन्न जलवायु और वातावरण के अनुसार त्वचा का रंग, शरीर का आकार जैसी विशेषताएं बदलीं।
- आनुवंशिक विविधता: एक ही प्रजाति में भी जीन के विभिन्न रूप (एलील) पाए जाते हैं, जो विभिन्न शारीरिक लक्षणों का कारण बनते हैं।
प्रश्न 2. विकास के आधार पर क्या आप बता सकते हैं कि जीवाणु, मकड़ी, मछली तथा चिम्पैंजी में किसका शारीरिक अभिकल्प उत्तम है? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:- विकास के संदर्भ में किसी एक जीव का शारीरिक अभिकल्प दूसरे से “उत्तम” नहीं होता। हर जीव अपने वातावरण के अनुकूल विकसित होता है:-
- अनुकूलन: हर जीव अपने पर्यावरण के लिए अनुकूलित होता है। जैसे, जीवाणु चरम परिस्थितियों में भी जीवित रह सकते हैं।
- जटिलता बनाम सरलता: जटिल शरीर रचना हमेशा बेहतर नहीं होती। जीवाणु की सरल संरचना उन्हें तेजी से प्रजनन और अनुकूलन में मदद करती है।
- विशिष्ट लाभ: मकड़ी का जाल बुनना, मछली का पानी में तैरना, और चिम्पैंजी का औजार इस्तेमाल करना – ये सभी विशेष अनुकूलन हैं।
- पर्यावरणीय दबाव: हर जीव अपने वातावरण के दबावों के अनुसार विकसित होता है, न कि किसी पूर्व-निर्धारित “उत्तम” डिजाइन की ओर।
- सफलता का मापदंड: एक प्रजाति की सफलता उसके अस्तित्व और प्रजनन क्षमता से मापी जाती है, न कि शारीरिक जटिलता से।
निष्कर्षतः, हर जीव अपने पर्यावरण में जीवित रहने के लिए अच्छी तरह से अनुकूलित है, इसलिए किसी एक को सर्वोत्तम नहीं कहा जा सकता।
अभ्यास
प्रश्न 1. मेण्डल के एक प्रयोग में लंबे मटर के पौधे जिनके बैंगनी पुष्प थे, का संकरण बौने पौधों जिनके सफेद पुष्प थे, से कराया गया। इनकी संतति के सभी पौधों में पुष्प बैंगनी रंग के थे। परंतु उनमें से लगभग आधे बौने थे। इससे कहा जा सकता है कि लंबे जनक पौधों की आनुवंशिक रचना निम्न थी।
(a) TTWW
(b) TTww
(c) TtWW
(d) TtWw
उत्तर:- (c) TtWW
प्रश्न 2. समजात अंगों का उदाहरण है –
(a) हमारा हाथ तथा कुत्ते के अग्रपाद
(b) हमारे दाँत तथा हाथी के दाँत
(c) आलू एवं घास के उपरिभूस्तारी
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:- (d) उपरोक्त सभी
प्रश्न 3. विकासीय दृष्टिकोण से हमारी किससे अधिक समानता है?
(a) चीन के विद्यार्थी
(b) चिम्पैंजी
(c) मकड़ी।
(d) जीवाणु
उत्तर:- (a) चीन के विद्यार्थी
प्रश्न 4. एक अध्ययन से पता चला कि हलके रंग की आँखों वाले बच्चों के जनक (माता-पिता) की आँखें भी हलके रंग की होती हैं। इसके आधार पर क्या हम कह सकते हैं कि आँखों के हलके रंग का लक्षण प्रभावी है अथवा अप्रभावी?
उत्तर:- इस अध्ययन के आधार पर हम निश्चित रूप से नहीं कह सकते कि आँखों का हलका रंग प्रभावी है या अप्रभावी। इसका मुख्य कारण यह है कि हमें माता-पिता और बच्चों के जीनोटाइप की पूरी जानकारी नहीं है। आँखों के रंग का वंशानुगमन जटिल हो सकता है और इसमें एक से अधिक जीन शामिल हो सकते हैं। इसके अलावा, हमें अध्ययन में शामिल बच्चों की संख्या की जानकारी भी नहीं है, जो एक महत्वपूर्ण कारक हो सकता है। यह भी संभव है कि पर्यावरणीय कारक आँखों के रंग को प्रभावित कर रहे हों। इसलिए, इस सीमित जानकारी के आधार पर हलके रंग की आँखों के लक्षण की प्रभाविता या अप्रभाविता का निर्धारण करना उचित नहीं होगा। इस प्रश्न का सही उत्तर पाने के लिए अधिक विस्तृत और नियंत्रित अध्ययन की आवश्यकता होगी।
प्रश्न 5. जैव-विकास तथा वर्गीकरण का अध्ययन क्षेत्र किस प्रकार परस्पर संबंधित है?
उत्तर:- जैव-विकास और वर्गीकरण का अध्ययन क्षेत्र गहराई से परस्पर संबंधित है। दोनों क्षेत्र जीवों के विकास, उनके साझा पूर्वजों और उनके बीच के संबंधों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। जैव-विकास जीवों की शारीरिक संरचना में समय के साथ होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन करता है, जबकि वर्गीकरण इन्हीं संरचनाओं और विशेषताओं के आधार पर जीवों को विभिन्न समूहों में वर्गीकृत करता है। दोनों क्षेत्र जीवों के बीच आनुवंशिक संबंधों का विश्लेषण करते हैं और प्राकृतिक चयन की प्रक्रिया को समझने में मदद करते हैं। जैव-विकास हमें बताता है कि कैसे विभिन्न प्रजातियाँ समय के साथ विकसित हुई हैं, जबकि वर्गीकरण इन प्रजातियों को उनके विकासात्मक संबंधों के आधार पर व्यवस्थित करता है। इस प्रकार, ये दोनों क्षेत्र एक-दूसरे के पूरक हैं और जीवों की विविधता तथा उनके इतिहास को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
प्रश्न 6. समजात तथा समरूप अंगों को उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:- समजात और समरूप अंग जैव विकास में महत्वपूर्ण अवधारणाएँ हैं। समजात अंग वे अंग हैं जो विभिन्न प्रजातियों में समान मूल संरचना रखते हैं, लेकिन अलग-अलग कार्य कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, मनुष्य का हाथ, पक्षी का पंख, और व्हेल का फ्लिपर सभी समजात अंग हैं। ये सभी एक समान मूल संरचना से विकसित हुए हैं, लेकिन अलग-अलग कार्य करते हैं। दूसरी ओर, समरूप अंग वे हैं जो समान कार्य करते हैं लेकिन अलग-अलग मूल संरचना रखते हैं। जैसे, तितली और पक्षी के पंख दोनों उड़ने का काम करते हैं, लेकिन उनकी आंतरिक संरचना बिलकुल अलग है। इसी तरह, मछली और व्हेल के फ्लिपर भी समरूप अंग हैं। ये अवधारणाएँ जैव विकास की प्रक्रिया और विभिन्न प्रजातियों के बीच संबंधों को समझने में मदद करती हैं।
प्रश्न 7. कुत्ते की खाल का प्रभावी रंग कत्ता कुतिया ज्ञात करने के उद्देश्य से एक काली खाल (BB) x (bb) सफ़ेद खाल प्रोजेक्ट बनाइए।
उत्तर:- कुत्ते की खाल के रंग का प्रभावी लक्षण जानने के लिए, हम एक प्रयोग कर सकते हैं। इसमें एक शुद्ध काली खाल वाले कुत्ते (BB) को एक शुद्ध सफेद खाल वाली कुतिया (bb) के साथ प्रजनन कराया जाएगा। इस संकरण से पहली पीढ़ी (F1) में सभी पिल्ले Bb जीनोटाइप के होंगे। अगर सभी F1 पिल्ले काले रंग के होते हैं, तो यह दर्शाता है कि काला रंग प्रभावी है और सफेद रंग अप्रभावी। इसकी पुष्टि के लिए, हम F1 पीढ़ी के दो Bb कुत्तों का आपस में प्रजनन करा सकते हैं। F2 पीढ़ी में 3:1 के अनुपात में काले और सफेद पिल्ले मिलने से यह सिद्ध हो जाएगा कि काला रंग प्रभावी है। यह प्रयोग मेंडल के एकसंकर क्रॉस के सिद्धांत पर आधारित है और आनुवंशिकता के नियमों को समझने में मदद करता है।
प्रश्न 8. विकासीय संबंध स्थापित करने में जीवाश्म का क्या महत्त्व है?
उत्तर:- जीवाश्म विकासीय संबंधों को समझने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये प्राचीन जीवों के अवशेष या छाप हैं जो हमें पृथ्वी के इतिहास और जीवन के विकास की कहानी बताते हैं। जीवाश्मों का अध्ययन हमें बताता है कि कौन से जीव कब अस्तित्व में थे और कब विलुप्त हुए। इससे हम विभिन्न प्रजातियों के बीच संबंधों को समझ सकते हैं और उनके विकास क्रम का अनुमान लगा सकते हैं। जीवाश्म हमें दिखाते हैं कि समय के साथ जीवों की शारीरिक संरचना में कैसे परिवर्तन आए, जो विकास की प्रक्रिया को समझने में मदद करता है। इसके अलावा, जीवाश्म हमें पृथ्वी के प्राचीन पर्यावरण और जलवायु के बारे में भी जानकारी देते हैं। इस प्रकार, जीवाश्म जैव विकास के अध्ययन में एक अमूल्य साधन हैं।
प्रश्न 9. किन प्रमाणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि जीवन की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से हुई है? या स्टैनले मिलर के प्रयोग का सचित्र वर्णन कीजिए। (2011, 12, 13, 17)
उत्तर:- स्टैनली मिलर और हेरोल्ड यूरे के 1953 के प्रयोग ने जीवन की उत्पत्ति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी। उन्होंने प्राचीन पृथ्वी के वातावरण का अनुकरण किया, जिसमें मीथेन, अमोनिया, हाइड्रोजन और जलवाष्प शामिल थे। इस मिश्रण को एक बंद प्रणाली में रखा गया और बिजली के झटके दिए गए, जो प्राचीन पृथ्वी पर बिजली की चमक का प्रतिनिधित्व करते थे। कुछ दिनों बाद, उन्होंने पाया कि इस प्रणाली में जैविक अणु, विशेष रूप से अमीनो एसिड बन गए थे। ये अमीनो एसिड प्रोटीन के निर्माण खंड हैं, जो जीवन के लिए आवश्यक हैं। यह प्रयोग दर्शाता है कि जीवन के लिए आवश्यक जटिल जैविक अणु सरल अजैविक पदार्थों से बन सकते हैं। हालांकि यह प्रयोग जीवन की उत्पत्ति को पूरी तरह से नहीं समझाता, यह दिखाता है कि प्राचीन पृथ्वी की परिस्थितियों में जैविक अणुओं का निर्माण संभव था, जो जीवन की उत्पत्ति का पहला कदम हो सकता है।
प्रश्न 10. अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती हैं, व्याख्या कीजिए। यह लैंगिक प्रजनन करने वाले जीवों के विकास को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर:- लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अलैंगिक जनन की तुलना में अधिक स्थायी होती हैं। इसका मुख्य कारण है कि लैंगिक जनन में दो अलग-अलग जनकों के जीन मिलते हैं, जो नई और विविध संयोजन बनाते हैं। इस प्रक्रिया में, प्रत्येक संतान अपने माता-पिता से अलग होती है, जो आनुवंशिक विविधता को बढ़ाता है। यह विविधता जीवों को बदलते पर्यावरण में अनुकूलन करने में मदद करती है।
लैंगिक प्रजनन करने वाले जीवों के विकास पर इसका महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। विविधता प्राकृतिक चयन के लिए कच्चा माल प्रदान करती है, जिससे अनुकूल लक्षण वाले जीव जीवित रहते और प्रजनन करते हैं। यह प्रक्रिया समय के साथ नई प्रजातियों के विकास का कारण बन सकती है। इस प्रकार, लैंगिक जनन जैव विकास की प्रक्रिया को गति देता है और जीवों को पर्यावरण परिवर्तनों के प्रति अधिक लचीला बनाता है।
प्रश्न 11. संतति में नर एवं मादा जनकों द्वारा आनुवंशिक योगदान में बराबर की भागीदारी किस प्रकार सुनिश्चित की जाती है?
उत्तर:- संतति में नर और मादा जनकों द्वारा आनुवंशिक योगदान की बराबर भागीदारी अर्धसूत्री विभाजन (मियोसिस) और निषेचन की प्रक्रिया द्वारा सुनिश्चित की जाती है। इस प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण शामिल हैं:-
- गुणसूत्र युग्म: प्रत्येक सामान्य कोशिका में गुणसूत्रों के जोड़े होते हैं, जिनमें एक नर से और एक मादा से प्राप्त होता है।
- अर्धसूत्री विभाजन: यह प्रक्रिया युग्मकों (शुक्राणु और अंडाणु) के निर्माण में होती है, जिसमें गुणसूत्रों की संख्या आधी हो जाती है।
- यादृच्छिक वितरण: अर्धसूत्री विभाजन के दौरान, गुणसूत्र यादृच्छिक रूप से अलग होते हैं, जो आनुवंशिक विविधता को बढ़ाता है।
- निषेचन: जब शुक्राणु और अंडाणु मिलते हैं, तो वे एक युग्मनज बनाते हैं जिसमें पूरा गुणसूत्र सेट होता है, जिसमें आधा नर से और आधा मादा से आता है।
प्रश्न 12. “केवल वे विभिन्नताएँ जो किसी एकल जीव (व्यष्टि) के लिए उपयोगी होती हैं, समष्टि में अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं? क्यों एवं क्यों नहीं?
उत्तर:- यह कथन आंशिक रूप से सही है, लेकिन इसमें कुछ महत्वपूर्ण नुांसों को ध्यान में रखना आवश्यक है:-
- प्राकृतिक चयन: यह सच है कि प्राकृतिक चयन उन विभिन्नताओं को पसंद करता है जो जीवों को उनके पर्यावरण में जीवित रहने और प्रजनन करने में मदद करती हैं।
- समष्टि स्तर पर प्रभाव: कुछ विभिन्नताएँ व्यक्तिगत स्तर पर कम उपयोगी हो सकती हैं, लेकिन समष्टि स्तर पर लाभदायक हो सकती हैं, जैसे सामाजिक व्यवहार।
- तटस्थ विभिन्नताएँ: कुछ विभिन्नताएँ न तो हानिकारक होती हैं न ही विशेष रूप से लाभदायक, लेकिन फिर भी समष्टि में बनी रह सकती हैं।
- जीन प्रवाह: कभी-कभी, कम उपयोगी विभिन्नताएँ भी जीन प्रवाह के कारण समष्टि में बनी रह सकती हैं।
- पर्यावरणीय परिवर्तन: जो विभिन्नता आज उपयोगी नहीं है, वह भविष्य में बदलते पर्यावरण में महत्वपूर्ण हो सकती है।
इसलिए, हालांकि यह कथन मोटे तौर पर सही है, यह जैव विकास की जटिलता को पूरी तरह से नहीं दर्शाता। विभिन्नताओं का अस्तित्व कई कारकों पर निर्भर करता है, न केवल व्यक्तिगत उपयोगिता पर।