Bihar Board class 10 Science chapter 13 – “विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव” solutions are available here. This is our free guide that provides you all the questions and answers of chapter 13 in hindi medium.
विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव (Bihar Board class 10 Science chapter 13) में हम विद्युत धारा द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्रों और उनके विभिन्न प्रभावों का अध्ययन करेंगे। इस अध्याय में, हम ओएस्टेड के प्रयोग और एम्पीयर के नियमों के माध्यम से जानेंगे कि कैसे विद्युत धारा चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है। हम चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा निर्धारित करने के लिए दाएँ हाथ का नियम और इसके विभिन्न अनुप्रयोगों जैसे कि विद्युत चुंबक, मोटर, और जनरेटर के बारे में भी चर्चा करेंगे। इसके अलावा, हम फैराडे के विद्युत चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत को समझेंगे और इसके उपयोगों को जानेंगे।

Bihar Board Class 10 Science chapter 13 Solutions
| Subject | Science |
| Class | 10th |
| Chapter | 13. विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव |
| Medium | Hindi (Bihar Board) |
अध्ययन के बीच वाले प्रश्न :-
13.1 पर आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. चुंबक के निकट लाने पर दिक्सूचक की सुई विक्षेपित क्यों हो जाती है?
उत्तर:- दिक्सूचक की सुई वास्तव में एक छोटा चुंबक होती है, जो सामान्यतः पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के कारण उत्तर-दक्षिण दिशा में संरेखित रहती है। जब इसके पास कोई अन्य चुंबक लाया जाता है, तो यह सुई पर अतिरिक्त चुंबकीय बल लगाता है। चुंबकों के विपरीत ध्रुव एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं, जबकि समान ध्रुव एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं। इस कारण, नए चुंबक का क्षेत्र पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के साथ मिलकर एक नया परिणामी क्षेत्र बनाता है। दिक्सूचक की सुई इस नए परिणामी क्षेत्र के अनुसार अपनी दिशा बदलती है, जिससे वह अपनी मूल स्थिति से विचलित हो जाती है। सुई के विक्षेपण की मात्रा नए चुंबक की शक्ति और उसकी दूरी पर निर्भर करती है। इस प्रकार, बाहरी चुंबक के प्रभाव से दिक्सूचक की सुई अपनी सामान्य उत्तर-दक्षिण स्थिति से हटकर एक नई संतुलन स्थिति में आ जाती है।
चुंबक के निकट लाने पर दिक्सूचक की सुई विक्षेपित होती है क्योंकि दिक्सूचक की सुई स्वयं एक चुंबक होती है। चुंबक के चुंबकीय क्षेत्र के प्रभाव से सुई पर बल लगता है, जिससे वह अपनी स्थिति बदल लेती है।
13.1 से 13.2.2 पर आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. किसी छड़ चुंबक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ खींचिए।
उत्तर:-

प्रश्न 2. चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के गुणों की सूची बनाइए।
उत्तर:- चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के प्रमुख गुण इस प्रकार हैं:
- संपूर्ण चक्रीय होती हैं: चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ बंद वक्र बनाती हैं। वे चुंबक के उत्तरी ध्रुव से निकलती हैं और दक्षिणी ध्रुव में प्रवेश करती हैं।
- एक-दूसरे को नहीं काटतीं: चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ कभी भी एक-दूसरे को पार नहीं करतीं। यदि ऐसा होता, तो एक बिंदु पर दो दिशाओं में चुंबकीय क्षेत्र की उपस्थिति हो जाती, जो असंभव है।
- घनत्व से बल का संकेत: किसी क्षेत्र में चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं का घनत्व उस क्षेत्र में चुंबकीय बल की तीव्रता को दर्शाता है।
- दिशात्मकता का पालन: चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ चुंबक के बाहर उत्तरी से दक्षिणी ध्रुव की ओर तथा चुंबक के भीतर दक्षिणी से उत्तरी ध्रुव की ओर दिशा दिखाती हैं।
- आकर्षण और विकर्षण: ये रेखाएँ समान ध्रुवों पर विकर्षित होती हैं और विपरीत ध्रुवों पर आकर्षित होती हैं।
- तनाव और आकृति बनाए रखना: चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ लचीली होती हैं और अपनी आकृति बनाए रखने का प्रयास करती हैं।
- अविरल होती हैं: ये रेखाएँ चुंबकीय क्षेत्र के पूरे क्षेत्र में अविरल होती हैं।
प्रश्न 3. दो चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को प्रतिच्छेद क्यों नहीं करतीं?
उत्तर:- चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को प्रतिच्छेद नहीं करतीं क्योंकि प्रत्येक बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की केवल एक ही दिशा हो सकती है। यदि दो क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को काटें, तो उस प्रतिच्छेद बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की दो अलग-अलग दिशाएँ होंगी, जो भौतिक रूप से असंभव है। चुंबकीय क्षेत्र एक सदिश राशि है, जिसका प्रत्येक बिंदु पर एक निश्चित परिमाण और दिशा होती है। इसलिए, क्षेत्र रेखाएँ हमेशा एक-दूसरे से अलग रहती हैं, जो चुंबकीय क्षेत्र की एकल और अद्वितीय प्रकृति को दर्शाता है। यह गुण चुंबकीय क्षेत्र के व्यवहार और उसके प्रभावों को समझने में मदद करता है।
13.2.3 और 13.2.4 पर आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. मेज़ के तल में पड़े तार के वृत्ताकार पाश पर विचार कीजिए। मान लीजिए इस पाश में दक्षिणावर्त विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम को लागू करके पाश के भीतर तथा बाहर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात कीजिए।
उत्तर:- दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम का उपयोग करके, हम चुंबकीय क्षेत्र की दिशा निर्धारित कर सकते हैं। इस नियम के अनुसार, यदि दाहिने हाथ की अंगुलियाँ विद्युत धारा की दिशा में मुड़ी हुई हैं, तो अंगूठा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को दर्शाता है। दक्षिणावर्त धारा के लिए, पाश के भीतर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा मेज के तल के लंबवत नीचे की ओर होगी। पाश के बाहर, चुंबकीय क्षेत्र की दिशा मेज के तल के लंबवत ऊपर की ओर होगी। यह परिणाम चुंबकीय क्षेत्र के वृत्तीय प्रकृति को दर्शाता है, जो विद्युत धारा के चारों ओर घूमता है।

प्रश्न 2. किसी दिए गए क्षेत्र में चुंबकीय क्षेत्र एकसमान है। इसे निरूपित करने के लिए आरेख खींचिए।
उत्तर:- एकसमान चुंबकीय क्षेत्र को दर्शाने के लिए, हम समानांतर सीधी रेखाएँ खींचते हैं। ये रेखाएँ एक-दूसरे से समान दूरी पर होती हैं और समान दिशा में होती हैं। आरेख में, क्षेत्र रेखाएँ बाएँ से दाएँ या ऊपर से नीचे जा सकती हैं, जो क्षेत्र की दिशा पर निर्भर करता है। प्रत्येक रेखा पर तीर का निशान होता है, जो चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को दर्शाता है। रेखाओं के बीच की समान दूरी यह दर्शाती है कि क्षेत्र की तीव्रता सभी बिंदुओं पर समान है। यह आरेख एकसमान चुंबकीय क्षेत्र की मुख्य विशेषताओं – समान तीव्रता और एक ही दिशा – को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करता है।

प्रश्न 3. सही विकल्प चुनिए किसी विद्युत धारावाही सीधी लंबी परिनालिका के भीतर चुंबकीय क्षेत्र
(a) शून्य होता है।
(b) इसके सिरे की ओर जाने पर घटता है।
(c) इसके सिरे की ओर जाने पर बढ़ता है।
(d) सभी बिंदुओं पर समान होता है।
उत्तर:- (d) सभी बिंदुओं पर समान होता है।
13.3 पर आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. किसी प्रोटॉन का निम्नलिखित में से कौन-सा गुण किसी चुंबकीय क्षेत्र में मुक्त गति करते समय परिवर्तित हो जाता है? ( यहाँ एक से अधिक सही उत्तर हो सकते हैं।
(a) द्रव्यमान
(b) चाल
(c) वेग
(d) संवेग
उत्तर:- (c) वेग तथा (d) संवेग
प्रश्न 2. क्रियाकलाप 13.7 में हमारे विचार से छड़ AB का विस्थापन किस प्रकार प्रभावित होगा यदि –
1. छड़ AB में प्रवाहित विद्युत धारा में वृद्धि हो जाए
2. अधिक प्रा. नाल चुंबक प्रयोग किया जाए; और
3. छड़ AB की लंबाई में वृद्धि कर दी जाए?
उत्तर:- हम जानते हैं कि F = BiL इसलिए,
- छड़ का विस्थापन बढ़ जायेगा; क्योंकि; F ∝ i बल का मान चालक में प्रवाहित धारा के मान के समानुपाती होता है।
- छड़ का विस्थापन बढ़ जायेगा; क्योंकि; F ∝ B बल का मान चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता के समानुपाती होता है।
- छड़ का विस्थापन बढ़ जायेगा; क्योंकि; F ∝ L बल का मान चालक की लंबाई के समानुपाती होता है।
प्रश्न 3. पश्चिम की ओर प्रक्षेपित कोई धनावेशित कण (अल्फा-कण) किसी चुंबकीय क्षेत्र द्वारा उत्तर की ओर विक्षेपित हो जाता है। चुंबकीय क्षेत्र की दिशा क्या है?
(a) दक्षिण की ओर
(b) पूर्व की ओर
(c) अधोमुखी
(d) उपरिमुखी
उत्तर:- (d) उपरिमुखी
13.4 पर आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. फ्लेमिंग का वामहस्त नियम लिखिए।
उत्तर:- फ्लेमिंग का वामहस्त नियम चुंबकीय क्षेत्र में रखे चालक पर लगने वाले बल की दिशा बताता है। इस नियम के अनुसार, बाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा और अंगूठे को एक-दूसरे के लंबवत फैलाएँ। तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा, मध्यमा विद्युत धारा की दिशा, और अंगूठा चालक पर लगने वाले बल की दिशा दर्शाता है। यह नियम विद्युत मोटर और अन्य विद्युत चुंबकीय उपकरणों के कार्य को समझने में मदद करता है।

प्रश्न 2. विद्युत मोटर का क्या सिद्धांत है?
उत्तर:- विद्युत मोटर का सिद्धांत विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करने पर आधारित है। जब किसी कुंडली में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है और उसे चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है, तो कुंडली पर एक बलयुग्म कार्य करता है। यह बलयुग्म कुंडली को उसकी अक्ष पर घुमाने का प्रयास करता है। यदि कुंडली स्वतंत्र रूप से घूम सकती है, तो वह निरंतर घूर्णन गति प्राप्त करती है। यह घूर्णन गति विभिन्न यांत्रिक कार्यों के लिए उपयोग की जाती है।
प्रश्न 3. विद्युत मोटर में विभक्त वलय की क्या भूमिका है?
उत्तर:- विद्युत मोटर में विभक्त वलय या कम्यूटेटर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह आर्मेचर कुंडली में प्रवाहित होने वाली धारा की दिशा को हर आधे चक्र में बदलता है। इस दिशा परिवर्तन के कारण, आर्मेचर पर लगने वाले बल की दिशा भी बदलती रहती है। परिणामस्वरूप, कुंडली पर लगातार एक ही दिशा में घूर्णी बल लगता रहता है, जो कुंडली को निरंतर एक ही दिशा में घुमाता है। इस प्रकार, विभक्त वलय मोटर के निरंतर घूर्णन को सुनिश्चित करता है।
13.5 पर आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. किसी कुंडली में विद्युत धारा प्रेरित करने के विभिन्न ढंग स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:- किसी कुंडली में विद्युत धारा प्रेरित करने के मुख्य तरीके हैं:-
- चुंबकीय क्षेत्र परिवर्तन: कुंडली के माध्यम से गुजरने वाले चुंबकीय क्षेत्र को बदलकर।
- गति द्वारा: कुंडली और चुंबक के बीच सापेक्ष गति उत्पन्न करके।
- अन्य कुंडली द्वारा: पास की किसी अन्य कुंडली में धारा परिवर्तन करके।
- स्व-प्रेरण: कुंडली में प्रवाहित धारा को बदलकर।
- ये सभी विधियाँ फैराडे के विद्युत चुंबकीय प्रेरण के नियम पर आधारित हैं, जिसके अनुसार चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन विद्युत धारा प्रेरित करता है।
13.6 पर आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. विद्युत जनित्र का सिद्धांत लिखिए।
उत्तर:- विद्युत जनित्र का सिद्धांत यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने पर आधारित है। इसमें एक कुंडली को शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र में घुमाया जाता है। कुंडली के घूमने से उसमें से गुजरने वाले चुंबकीय फ्लक्स में निरंतर परिवर्तन होता है। यह परिवर्तन फैराडे के नियम के अनुसार कुंडली में विद्युत धारा प्रेरित करता है। कुंडली को घुमाने में किया गया यांत्रिक कार्य विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार, जनित्र यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है।
प्रश्न 2. दिष्ट धारा के कुछ स्रोतों के नाम लिखिए।
उत्तर:- दिष्ट धारा (DC) के स्रोत:-
- विद्युत रासायनिक सेल (बैटरियाँ)
- सौर सेल
- DC जनित्र
- थर्मोकपल
प्रश्न 3. प्रत्यावर्ती विद्युत धारा उत्पन्न करने वाले स्रोतों के नाम लिखिए।
(a) दो (b) एक (c) आधे (d) चौथाई
उत्तर:- (c) आधे
13.7 पर आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. विद्युत परिपथों तथा साधित्रों में सामान्यतः उपयोग होने वाले दो सुरक्षा उपायों के नाम लिखिए।
उत्तर– सामान्यतः उपयोग में आने वाले दो उपायों के नाम निम्नवत् हैं
- विद्युत फ्यूज।
- भू-संपर्क तार का उपयोग
प्रश्न 2. 2 kW शक्ति अनुमतांक का एक विद्युत तंदूर किसी घरेलू विद्युत परिपथ (220V) में प्रचालित किया जाता है जिसका विद्युत धारा अनुमतांक 5 A है, इससे आप किस परिणाम की अपेक्षा करते हैं? स्पष्ट कीजिए।
हल:
दिया है, शक्ति P = 2kW
= 2 x 1000W = 2000 W
वोल्टेज, V = 220 V
हम जानते हैं कि, शक्ति, P = V x I या I = P/V
= 2000/220 = 9.09A
अर्थात् विद्युत तंदूर लाइन से 9.09A की धारा लेगा जोकि फ्यूज की क्षमता से अधिक है, अत : फ्यूज का तार गल जायेगा।
प्रश्न 3. घरेलू विद्युत परिपथों में अतिभारण से बचाव के लिए क्या सावधानी बरतनी चाहिए?
उत्तर:- एक ही सॉकिट से बहुत ज्यादा विद्युत उपकरणों को संयोजित नहीं करना चाहिए; क्योंकि इससे अतिभारण हो सकता है।
अभ्यास
प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन किसी लंबे विद्युत धारावाही तार के निकट चुंबकीय क्षेत्र का सही वर्णन करता है?
(a) चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ तार के लम्बवत् होती हैं।
(b) चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ तार के समांतर होती हैं।
(c) चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ अरीय होती हैं जिनका उद्भव तार से होता है।
(d) चुंबकीय क्षेत्र की संकेंद्री क्षेत्र रेखाओं का केंद्र तार होता है।
उत्तर:- (d) चुंबकीय क्षेत्र की संकेंद्री क्षेत्र रेखाओं का केंद्र तार होता है।
प्रश्न 2. वैद्युत-चुंबकीय प्रेरण की परिघटना –
(a) किसी वस्तु को आवेशित करने की प्रक्रिया है।
(b) किसी कुंडली में विद्युत धारा प्रवाहित होने के कारण चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने की प्रक्रिया है।
(c) कुंडली तथा चुंबक के बीच आपेक्षिक गति के कारण कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न करना है।
(d) किसी विद्युत मोटर की कुंडली को घूर्णन कराने की प्रक्रिया है।
उत्तर:- (c) कुंडली तथा चुंबक के बीच आपेक्षिक गति के कारण कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न करना है।
प्रश्न 3. विद्युत धारा उत्पन्न करने की युक्ति को कहते हैं –
(a) जनित्र
(b) गैल्वेनोमीटर
(c) ऐमीटर
(d) मोटर
उत्तर:- (a) जनित्र
प्रश्न 4. किसी ac जनित्र तथा dc जनित्र में एक मूलभूत अंतर यह है कि –
(a) ac जनित्र में विद्युत चुंबक होता है जबकि dc जनित्र में स्थायी चुंबक होता है।
(b) dc जनित्र उच्च वोल्टता का जनन करता है।
(c) ac जनित्र उच्च वोल्टता का जनन करता है।
(d) ac जनित्र में सी वलय होते हैं जबकि dc जनित्र में दिक्परिवर्तक होता है।
उत्तर:- (d) ac जनित्र में सी वलय होते हैं जबकि dc जनित्र में दिक्परिवर्तक होता है।
प्रश्न 5. लघुपथन के समय परिपथ में विद्युत धारा का मान –
(a) बहुत कम हो जाता है।
(b) परिवर्तित नहीं होता।
(c) बहुत अधिक बढ़ जाता है।
(d) निरंतर परिवर्तित होता है।
उत्तर:- (c) बहुत अधिक बढ़ जाता है।
प्रश्न 6. निम्नलिखित प्रकथनों में कौन-सा सही है तथा कौन-सा गलत है? इसे प्रकथन के सामने अंकित कीजिए।
(a) विद्युत मोटर यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित करता है। – असत्य
(b) विद्युत जनित्र वैद्युतचुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है। – सत्य
(c) किसी लंबी वृत्ताकार विद्युत धारावाही कुंडली के केंद्र पर चुंबकीय क्षेत्र समांतर सीधी क्षेत्र रेखाएँ होता है। – सत्य
(d) हरे विद्युतरोधन वाला तार प्रायः विद्युन्मय तार होता है। – सत्य
प्रश्न 7. चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करने के तीन तरीकों की सूची बनाइए।
उत्तर:- चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करने के तीन मुख्य तरीके हैं:-
- स्थायी चुंबक: लोहे या निकल जैसी धातुओं से बने चुंबक।
- विद्युत धारा: किसी चालक तार में बहने वाली विद्युत धारा।
- गतिमान आवेश: गति करते हुए आवेशित कण, जैसे इलेक्ट्रॉन।
- इन तीनों तरीकों में, चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ उत्पन्न होती हैं जो चुंबकीय बल को दर्शाती हैं।
प्रश्न 8. परिनालिका चुंबक की भाँति कैसे व्यवहार करती है? क्या आप किसी छड़ चुंबक की सहायता से किसी विद्युत धारावाही परिनालिका के उत्तर ध्रुव तथा दक्षिण ध्रुव का निर्धारण कर सकते हैं?
उत्तर:- परिनालिका, जो विद्युतरोधी तांबे के तार की बेलनाकार कुंडली होती है, विद्युत धारा प्रवाहित होने पर चुंबक की तरह व्यवहार करती है। इसके दोनों सिरे उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव बन जाते हैं। परिनालिका के अंदर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ समानांतर होती हैं, जो इसके केंद्र में सबसे प्रबल होती हैं। हाँ, छड़ चुंबक की सहायता से परिनालिका के ध्रुवों का निर्धारण किया जा सकता है। छड़ चुंबक का उत्तरी ध्रुव परिनालिका के दक्षिणी ध्रुव की ओर आकर्षित होगा और इसके विपरीत।
प्रश्न 9. किसी चुंबकीय क्षेत्र में स्थित विद्युत धारावाही चालक पर आरोपित बल कब अधिकतम होता है?
उत्तर:- चुंबकीय क्षेत्र में स्थित विद्युत धारावाही चालक पर लगने वाला बल इस सूत्र से दिया जाता है: F = BIL sinθ
जहाँ B चुंबकीय क्षेत्र, I धारा की तीव्रता, L चालक की लंबाई, और θ धारा और चुंबकीय क्षेत्र के बीच का कोण है। बल अधिकतम तब होता है जब θ = 90° होता है, अर्थात जब धारावाही चालक चुंबकीय क्षेत्र के लंबवत होता है। इस स्थिति में, sinθ का मान 1 होता है, जो बल को अधिकतम बनाता है।
प्रश्न 10. मान लीजिए आप किसी चैंबर में अपनी पीठ को किसी एक दीवार से लगाकर बैठे हैं। कोई इलेक्ट्रॉन पुंज आपके पीछे की दीवार से सामने वाली दीवार की ओर क्षैतिजतः गमन करते हुए किसी प्रबल चुंबकीय क्षेत्र द्वारा आपके दाईं ओर विक्षेपित हो जाता है। चुंबकीय क्षेत्र की दिशा क्या है?
उत्तर:- इस स्थिति में, फ्लेमिंग के बाएँ हाथ के नियम का उपयोग करके चुंबकीय क्षेत्र की दिशा निर्धारित की जा सकती है। इस नियम के अनुसार, यदि बाएँ हाथ की तर्जनी विद्युत धारा (या इलेक्ट्रॉन प्रवाह की विपरीत दिशा) की ओर और अंगूठा विक्षेपण की दिशा में हो, तो मध्यमा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा दर्शाएगी। इस प्रश्न में, चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ऊर्ध्वाधर नीचे की ओर होगी।
प्रश्न 11. विद्युत मोटर का नामांकित आरेख खींचिए। इसका सिद्धांत तथा कार्यविधि स्पष्ट कीजिए। विद्युत मोटर में विभक्त वलय का क्या महत्त्व है?
उत्तर:- विद्युत मोटर एक ऐसा उपकरण है जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करता है। इसका सिद्धांत चुंबकीय क्षेत्र में स्थित धारावाही चालक पर बल लगने पर आधारित है।

कार्यविधि:-
- जब आर्मेचर कुंडली में विद्युत धारा प्रवाहित होती है, तो फ्लेमिंग के बाएँ हाथ के नियम के अनुसार इसकी भुजाओं पर विपरीत दिशा में बल लगता है।
- यह बल-युग्म आर्मेचर को घुमाता है।
- विभक्त वलय और कार्बन ब्रशों की मदद से धारा की दिशा हर आधे चक्कर के बाद बदल जाती है।
- इससे आर्मेचर लगातार एक ही दिशा में घूमता रहता है।
विभक्त वलय का महत्व:-
विभक्त वलय आर्मेचर में धारा की दिशा को नियंत्रित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि आर्मेचर पर लगने वाला बल हमेशा एक ही दिशा में हो, जिससे मोटर निरंतर घूमती रहती है।
प्रश्न 12. ऐसी कुछ युक्तियों के नाम लिखिए जिनमें विद्युत मोटर उपयोग किए जाते हैं।
उत्तर:- विद्युत मोटर का उपयोग निम्नलिखित उपकरणों में किया जाता है:-
- पंखे और कूलर
- वाशिंग मशीन
- मिक्सर और ग्राइंडर
- वाटर पंप
- एयर कंडीशनर
- रेफ्रिजरेटर
- कंप्यूटर के हार्ड डिस्क ड्राइव
- विद्युत चालित खिलौने
- सीडी और डीवीडी प्लेयर
प्रश्न 13. कोई विद्युतरोधी ताँबे के तार की कुंडली किसी गैल्वेनोमीटर से संयोजित है। क्या होगा यदि कोई छड़ चुंबक –
उत्तर:-
(a) जब छड़ चुंबक को कुंडली में धकेला जाता है, तो कुंडली में एक क्षणिक प्रेरित धारा उत्पन्न होगी। गैल्वेनोमीटर एक तरफ विक्षेप दिखाएगा।
(b) जब छड़ चुंबक को कुंडली से बाहर खींचा जाता है, तो फिर से एक क्षणिक प्रेरित धारा उत्पन्न होगी। गैल्वेनोमीटर विपरीत दिशा में विक्षेप दिखाएगा।
(c) जब छड़ चुंबक कुंडली के भीतर स्थिर रखा जाता है, तो कोई प्रेरित धारा उत्पन्न नहीं होगी। गैल्वेनोमीटर कोई विक्षेप नहीं दिखाएगा
ये प्रभाव फैराडे के विद्युत चुंबकीय प्रेरण के नियम पर आधारित हैं, जिसके अनुसार चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन होने पर ही प्रेरित धारा उत्पन्न होती है।
प्रश्न 14. दो वृत्ताकार कुंडली A तथा B एक-दूसरे के निकट स्थित हैं। यदि कंडली A में विद्युत धारा में कोई परिवर्तन करें तो क्या कुंडली B में कोई विद्युत धारा प्रेरित होगी? कारण लिखिए।
उत्तर:- हाँ, कुंडली B में विद्युत धारा प्रेरित होगी। इसके कारण निम्नलिखित हैं:-
- जब कुंडली A में विद्युत धारा में परिवर्तन होता है, तो इसके चारों ओर का चुंबकीय क्षेत्र भी परिवर्तित होता है।
- यह परिवर्तित चुंबकीय क्षेत्र कुंडली B को भी प्रभावित करता है।
- फैराडे के विद्युत चुंबकीय प्रेरण के नियम के अनुसार, जब किसी चालक के आसपास के चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन होता है, तो उस चालक में विद्युत धारा प्रेरित होती है।
- इस प्रकार, कुंडली A के चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन के कारण कुंडली B में विद्युत धारा प्रेरित होती है।
यह प्रक्रिया अन्योन्य प्रेरण कहलाती है और ट्रांसफॉर्मर जैसे उपकरणों में इसका उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 15. निम्नलिखित की दिशा को निर्धारित करने वाला नियम लिखिए –
- किसी विद्युत धारावाही सीधे चालक के चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र
- किसी चुंबकीय क्षेत्र में, क्षेत्र के लंबवत् स्थित, विद्युत धारावाही सीधे चालक पर आरोपित बल तथा
- किसी चुंबकीय क्षेत्र में किसी कुंडली के घूर्णन करने पर उस कुंडली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत धारा।
उत्तर:- 1. धारावाही चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा: मैक्सवेल का दक्षिण हस्त नियम
- दाहिने हाथ से चालक को इस तरह पकड़ें कि अंगूठा धारा की दिशा में हो।
- मुड़ी हुई अंगुलियाँ चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा दर्शाती हैं।
2. चुंबकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर बल की दिशा: फ्लेमिंग का वाम हस्त नियम
- बाएँ हाथ की पहली तीन अंगुलियों को एक-दूसरे के लंबवत रखें।
- तर्जनी: चुंबकीय क्षेत्र की दिशा
- मध्यमा: धारा की दिशा
- अंगूठा: चालक पर लगने वाले बल की दिशा
3. चुंबकीय क्षेत्र में घूमती कुंडली में प्रेरित धारा की दिशा: फ्लेमिंग का दक्षिण हस्त नियम
- दाएँ हाथ की पहली तीन अंगुलियों को एक-दूसरे के लंबवत रखें।
- तर्जनी: चुंबकीय क्षेत्र की दिशा
- अंगूठा: चालक की गति की दिशा
- मध्यमा: प्रेरित धारा की दिशा
प्रश्न 16. नामांकित आरेख खींचकर किसी विद्युत जनित्र का मूल सिद्धांत तथा कार्यविधि स्पष्ट कीजिए। इसमें ब्रशों का क्या कार्य है?
उत्तर:- विद्युत जनित्र (या डायनेमो) एक ऐसा उपकरण है जो यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है। यह विद्युत चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है।
मूल सिद्धांत:-
जब किसी चुंबकीय क्षेत्र में कोई कुंडली घूमती है, तो उसमें से गुजरने वाली चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन के कारण कुंडली में विद्युत वाहक बल प्रेरित होता है।
कार्यविधि:-
- शक्तिशाली स्थायी चुंबक या विद्युत चुंबक द्वारा एक प्रबल चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न किया जाता है।
- इस चुंबकीय क्षेत्र में एक आर्मेचर (तांबे के तार की कुंडली) को घुमाया जाता है।
- आर्मेचर के घूमने से उसमें प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है।
- स्लिप रिंग या विभक्त वलय द्वारा यह प्रेरित धारा बाहरी परिपथ तक पहुंचाई जाती है।

ब्रशों का कार्य:-
ब्रश (कार्बन या तांबे के बने) स्लिप रिंग या विभक्त वलय के संपर्क में रहते हैं। ये घूमते हुए आर्मेचर से विद्युत धारा को स्थिर बाहरी परिपथ तक पहुंचाने का कार्य करते हैं। दिष्ट धारा जनित्र में ब्रश धारा की दिशा को एक ही दिशा में बनाए रखने में मदद करते हैं।
[यहाँ एक सरल नामांकित आरेख होना चाहिए जो विद्युत जनित्र के मुख्य भागों – स्थायी चुंबक, आर्मेचर, स्लिप रिंग/विभक्त वलय, और ब्रश को दर्शाता हो।]
प्रश्न 17. किसी विद्युत परिपथ में लघुपथन कब होता है?
उत्तर:- लघुपथन एक ऐसी स्थिति है जब विद्युत परिपथ में अचानक बहुत अधिक धारा प्रवाहित होने लगती है। यह निम्नलिखित कारणों से हो सकता है:-
- जब विद्युतमय तार और उदासीन तार एक-दूसरे के सीधे संपर्क में आ जाते हैं।
- तारों के इन्सुलेशन में क्षति होने पर।
- किसी विद्युत उपकरण में आंतरिक दोष के कारण।
- नमी या पानी के कारण विद्युत का अवांछित मार्ग बनने पर।
प्रश्न 18. भूसंपर्क तार का क्या कार्य है? धातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रों को भूसंपर्कित करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:- भूसंपर्क तार (अर्थिंग वायर) एक सुरक्षा उपाय है जो विद्युत उपकरणों को पृथ्वी से जोड़ता है। इसके कार्य और महत्व निम्नलिखित हैं:-
- सुरक्षा: यह अतिरिक्त या अवांछित विद्युत धारा को पृथ्वी में प्रवाहित कर देता है, जिससे विद्युत झटके का खतरा कम हो जाता है।
- लघुपथन से बचाव: किसी दोष की स्थिति में, यह धारा को सीधे जमीन में भेज देता है, जिससे फ्यूज या सर्किट ब्रेकर सक्रिय हो जाते हैं।
- स्थिर विद्युत का निस्तारण: यह उपकरणों पर जमा होने वाले स्थिर विद्युत आवेश को भी निस्तारित करता है।
- उपकरणों की सुरक्षा: यह विद्युत उपकरणों को अचानक होने वाले उच्च वोल्टेज से भी बचाता है।
धातु के आवरण वाले विद्युत उपकरणों को भूसंपर्कित करना इसलिए आवश्यक है क्योंकि धातु विद्युत का सुचालक होती है। यदि कोई दोष उत्पन्न होता है और धातु का आवरण विद्युतमय हो जाता है, तो भूसंपर्क तार इस अतिरिक्त धारा को सुरक्षित रूप से पृथ्वी में प्रवाहित कर देता है, जिससे उपयोगकर्ता को विद्युत झटके से बचाया जा सकता है।