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छठी शताब्दी ईसा पूर्व का समय भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ लेता है। इस अवधि में धार्मिक और दार्शनिक विचारों का उदय हुआ जिसने हमारे देश की संस्कृति और परंपराओं को गहराई से प्रभावित किया। इस अध्याय में हम उन बौद्ध और जैन धर्मों के बारे में पढ़ेंगे जिनकी स्थापना इसी समय हुई। हम जानेंगे कि गौतम बुद्ध और महावीर के उपदेशों ने किस तरह लोगों को नए जीवन मूल्यों और आदर्शों की ओर प्रेरित किया। साथ ही हम उन जनजातीय राज्यों और राजवंशों के बारे में भी अध्ययन करेंगे जिन्होंने उस युग में शासन किया।
UP Board Class 6 History Chapter 5
Subject | History |
Class | 6th |
Chapter | 5. छठी शताब्दी ई०पूँ० का भारत धार्मिक आन्दोलन |
Board | UP Board |
अभ्यास
प्रश्न 1. निम्नलिखित के विषय में लिखिए –
उत्तर :
विवरण | महावीर स्वामी | गौतमबुद्ध |
जन्म का समय | 599 वर्ष पूर्व | 563 वर्ष पूर्व |
जन्म का स्थान | वैशाली | लुम्बिनी |
बचपन का नाम | वर्धमान | सिद्धार्थ |
माता का नाम | त्रिशला | महामाया |
पिता का नाम | सिद्धार्थ | शुद्धोधन |
उपदेश की भाषा | प्राकृत भाषा | पाली भाषा |
प्रश्न 2. त्रिरत्न और अष्टांगिक मार्ग क्या हैं? यह किनसे संबंधित हैं? लिखिए।
उत्तर: त्रिरत्न और अष्टांगिक मार्ग जैन और बौद्ध धर्मों से संबंधित हैं।
- त्रिरत्न: महावीर स्वामी ने इन्हें जैन धर्म का आधार बताया। ये हैं – सही दृष्टिकोण, सही ज्ञान और सही आचरण।
- अष्टांगिक मार्ग: गौतम बुद्ध ने इसका उपदेश दिया। यह है – सही दृष्टि, सही संकल्प, सही वाणी, सही कर्म, सही जीवनयापन, सही प्रयास, सही स्मृति और सही समाधि। ये मार्ग मानवीय और सुखद जीवन जीने के लिए हैं।
प्रश्न 3. जैन और बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को लोगों ने क्यों अपनाया?
उत्तर: लोगों ने जैन और बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को अपनाया क्योंकि ये धर्म शाकाहारी संस्कृति को बल देते थे, अहिंसा के पक्षधर थे और लोकतांत्रिक व उदार थे। इनके संघों में महिलाओं को भी प्रवेश और उच्च स्थान मिलता था। इसके अलावा, जातक और हितोपदेश में दिए गए सरल उपदेशों ने भी इन धर्मों के प्रचार में मदद की।
प्रश्न 4. महावीर स्वामी द्वारा बताए गए पाँच महाव्रतों के बारे में लिखिए।
उत्तर: महावीर स्वामी ने जैन धर्म के पाँच प्रमुख महाव्रत बताए:
- जीवों को न मारना
- सच बोलना
- चोरी न करना
- अनुचित धन न जुटाना
- इंद्रियों पर काबू रखना
ये व्रत जीवन में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य की भावना को बढ़ावा देते हैं।