Solving problems of Bihar Board class 9 Science chapter 15 is easier now! Here we have presented you with our comprehensive guide on this chapter. This guide is available in Hindi medium and helps you with question and answers of class 9 Vigyan chapter 15 – “खाद्य संसाधनों में सुधार”.
बिहार बोर्ड की कक्षा 9 विज्ञान की पुस्तक का पंद्रहवां अध्याय ‘खाद्य संसाधनों में सुधार’ हमें यह समझने में मदद करता है कि किस प्रकार हम अपने खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता और उपलब्धता में सुधार कर सकते हैं। इस अध्याय में हम फसल उत्पादन बढ़ाने के विभिन्न तरीकों जैसे बेहतर बीज, कृषि अभ्यास और प्रौद्योगिकियों के उपयोग पर विचार करेंगे।

Bihar Board Class 9 Science Chapter 15 Solutions
Subject | Science (विज्ञान) |
Class | 8th |
Chapter | 15. खाद्य संसाधनों में सुधार |
Board | Bihar Board |
अध्ययन के बीच वाले प्रश्न :-
प्रश्न श्रृंखला # 01
प्रश्न 1. अनाज, दाल, फल तथा सब्जियों से हमें क्या प्राप्त होता है ?
उत्तर:- अनाज से हमें प्रमुख रूप से कार्बोहाइड्रेट मिलता है जो शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है। दालों से हमें प्रोटीन प्राप्त होता है जो शरीर के विकास और मरम्मत के लिए आवश्यक है। फल और सब्जियों से विटामिन, खनिज लवण और फाइबर मिलता है जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने और स्वस्थ पचन में मदद करते हैं।
प्रश्न श्रृंखला # 02
प्रश्न 1. जैविक तथा अजैविक कारक किस प्रकार फसल उत्पादन को प्रभावित करते हैं ?
उत्तर:- जैविक कारक जैसे बैक्टीरिया, फंगस, कीट-पतंगे और अन्य जीव-जंतु फसलों को प्रभावित करते हैं। कुछ रोगजनक जीव फसलों में बीमारियां फैलाकर उत्पादन को कम करते हैं, जबकि कुछ जैविक कारक जैसे कीटनाशक केंचुए मिट्टी की उर्वरता बढ़ाते हैं। अजैविक कारक जैसे सूखा, बाढ़, लवणता, तापमान और वर्षा भी फसल उत्पादन को प्रभावित करते हैं।
प्रश्न 2. फसल सुधार के लिए ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण क्या है ?
उत्तर:- फसल सुधार के लिए कुछ इच्छित गुण हैं जैसे चारे की फसलों के लिए लंबी और घनी शाखाएं ताकि अधिक चारा प्राप्त हो सके, और अनाज की फसलों के लिए बौने पौधे ताकि कम पोषक तत्वों की आवश्यकता पड़े।
प्रश्न शृंखला # 03
प्रश्न 1. वृहत् पोषक क्या हैं ? और इन्हें वृहत् पोषक क्यों कहते हैं ?
उत्तर:- वृहत् पोषक वे आवश्यक तत्व हैं जिनकी पौधों को अपनी वृद्धि और विकास के लिए अधिक मात्रा में जरूरत होती है। इन्हें वृहत् पोषक इसलिए कहा जाता है क्योंकि पौधे इन्हें मिलीग्राम प्रति ग्राम सूखे पदार्थ की मात्रा में लेते हैं। मुख्य वृहत् पोषक हैं: नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम और सल्फर। ये तत्व पौधों की कोशिकाओं, प्रोटीन, एंजाइम और क्लोरोफिल के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
प्रश्न 2. पौधे अपना पोषण कैसे प्राप्त करते हैं ?
उत्तर:- पौधे मुख्यतः तीन स्रोतों से पोषण प्राप्त करते हैं: वायु, जल और मिट्टी। वायु से वे कार्बन डाइऑक्साइड लेते हैं, जो प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक है। जल से वे हाइड्रोजन और ऑक्सीजन प्राप्त करते हैं। मिट्टी से पौधे जड़ों द्वारा खनिज लवण अवशोषित करते हैं। इन खनिजों में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम और अन्य आवश्यक तत्व शामिल हैं। पत्तियां प्रकाश संश्लेषण द्वारा कार्बोहाइड्रेट बनाती हैं, जो पौधे के विकास के लिए ऊर्जा प्रदान करता है।
प्रश्न शृंखला # 04
प्रश्न 1. मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए खाद तथा उर्वरक के उपयोग की तुलना कीजिए।
उत्तर:-
- स्रोत और प्रकृति:
खाद: प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त जैविक पदार्थ, जैसे पशु मल, कम्पोस्ट, हरी खाद।
उर्वरक: कृत्रिम रूप से निर्मित रासायनिक पदार्थ।
2. पोषक तत्व और प्रभाव:
खाद: सभी आवश्यक पोषक तत्व कम मात्रा में, धीमी गति से लेकिन लंबे समय तक प्रभावी।
उर्वरक: विशिष्ट पोषक तत्वों की उच्च मात्रा, तुरंत प्रभाव लेकिन अल्पकालिक।
3. मृदा संरचना और जैविक गतिविधि:
खाद: मृदा की भौतिक संरचना सुधारती है, जल धारण क्षमता बढ़ाती है, मृदा जीवों को बढ़ावा देती है।
उर्वरक: मृदा संरचना पर सीधा प्रभाव नहीं, अत्यधिक उपयोग से मृदा जीवन प्रभावित हो सकता है।
4. पर्यावरणीय प्रभाव:
खाद: पर्यावरण अनुकूल, मृदा स्वास्थ्य के लिए लाभदायक।
उर्वरक: अति प्रयोग से मृदा और जल प्रदूषण की संभावना।
5. लागत और उपलब्धता:
खाद: सस्ती, स्थानीय स्तर पर उपलब्ध, लेकिन तैयार करने में समय लगता है।
उर्वरक: तुरंत उपलब्ध लेकिन अपेक्षाकृत महंगे।
प्रश्न श्रृंखला # 05
प्रश्न 1. अग्रलिखित में से कौन-सी परिस्थिति में सबसे अधिक लाभ होगा ? क्यों ?
(a) किसान उच्चकोटि के बीज का उपयोग करें, सिंचाई न करें अथवा उर्वरक का उपयोग न हों।
(b) किसान सामान्य बीजों का उपयोग करें, सिंचाई करें तथा उर्वरक का उपयोग करें।
(c) किसान अच्छी किस्म के बीज का प्रयोग करें, सिंचाई करें, उर्वरक का उपयोग करें, तथा फसल सुरक्षा की विधियाँ अपनायें।
उत्तर:- परिस्थिति (c) में किसान को सबसे अधिक लाभ होगा। इसके निम्नलिखित कारण हैं:-
- अच्छी किस्म के बीज उच्च उत्पादकता और रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले होते हैं, जो फसल की गुणवत्ता और मात्रा बढ़ाते हैं।
- समय पर सिंचाई पौधों को आवश्यक नमी प्रदान करती है, जो उनकी वृद्धि और विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
- उर्वरकों का उचित उपयोग मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी को पूरा करता है, जिससे पौधों का विकास बेहतर होता है।
- फसल सुरक्षा विधियाँ कीट, रोग और खरपतवार से फसल को बचाती हैं, जो अन्यथा उपज को काफी कम कर सकते हैं।
- इन सभी कारकों का संयुक्त प्रभाव फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता को बढ़ाता है, जिससे किसान को अधिकतम लाभ मिलता है।
प्रश्न शृंखला # 06
प्रश्न 1. फसल की सुरक्षा के लिए निरोधक विधियाँ तथा जैव नियन्त्रण क्यों अच्छा समझा जाता है ?
उत्तर:- निरोधक विधियाँ और जैव नियन्त्रण फसल सुरक्षा के लिए अत्यंत प्रभावी और वांछनीय माने जाते हैं। इन विधियों का सबसे बड़ा लाभ यह है कि ये पर्यावरण के अनुकूल हैं और प्रदूषण नहीं फैलाती हैं। ये प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखते हुए कीटों और रोगों के प्रति फसलों में दीर्घकालिक प्रतिरोध क्षमता विकसित करती हैं। समय के साथ, ये विधियाँ रासायनिक नियंत्रण की तुलना में अधिक किफायती साबित होती हैं। इनसे उत्पादित फसलें मानव और पशु स्वास्थ्य के लिए अधिक सुरक्षित होती हैं, क्योंकि इनमें हानिकारक रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता। साथ ही, ये विधियाँ लाभदायक कीटों और सूक्ष्मजीवों को संरक्षित करके जैव विविधता के संरक्षण में भी योगदान देती हैं।
प्रश्न 2. भंडारण की प्रक्रिया में कौन-से कारक अनाज की हानि के लिए उत्तरदायी हैं ?
उत्तर:- भंडारण के दौरान अनाज को नुकसान पहुँचाने वाले कई कारक हैं, जिन्हें मुख्यतः जैविक और अजैविक श्रेणियों में बांटा जा सकता है। जैविक कारकों में कीट जैसे घुन, कृन्तक जैसे चूहे, विभिन्न प्रकार के कवक और सूक्ष्मजीव शामिल हैं, जो अनाज को खाते या संक्रमित करते हैं। अजैविक कारकों में अत्यधिक नमी, उच्च तापमान और खराब वेंटिलेशन प्रमुख हैं, जो सड़न को बढ़ावा देते हैं। इसके अलावा, रासायनिक प्रक्रियाएँ जैसे ऑक्सीकरण और एंजाइम गतिविधियाँ भी अनाज की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं। अनुचित हैंडलिंग या भंडारण से होने वाली यांत्रिक क्षति भी एक महत्वपूर्ण कारक है। लंबे समय तक भंडारण से अनाज की गुणवत्ता धीरे-धीरे कम होती जाती है। ये सभी कारक मिलकर न केवल अनाज के वजन और गुणवत्ता को कम करते हैं, बल्कि उसकी अंकुरण क्षमता को भी प्रभावित करते हैं।
प्रश्न श्रृंखला # 07
प्रश्न 1. पशुओं की नस्ल सुधार के लिए प्रायः कौन-सी विधि का उपयोग किया जाता है और क्यों ?
उत्तर:- पशुओं की नस्ल सुधार के लिए प्रायः संकरण विधि का उपयोग किया जाता है। इस विधि में दो विभिन्न गुणों वाली नस्लों के पशुओं का प्रजनन कराया जाता है, जिससे एक नई संकर संतान उत्पन्न होती है। यह संतान दोनों मूल नस्लों के श्रेष्ठ गुणों को समाहित करती है। उदाहरण के लिए, देसी गायों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है, जबकि विदेशी नस्लों का दुग्ध उत्पादन अधिक होता है। इन दोनों का संकरण करके ऐसी नई नस्ल विकसित की जा सकती है जो उच्च दुग्ध उत्पादन के साथ-साथ रोग प्रतिरोधक भी हो। यह विधि पशुपालन में उत्पादकता बढ़ाने और आनुवंशिक विविधता लाने में सहायक होती है।
प्रश्न श्रृंखला # 08
प्रश्न 1. निम्नलिखित कथन की विवेचना कीजिए –
“यह रुचिकर है कि भारत में कुक्कुट, अल्प रेशे के खाद्य पदार्थों को उच्च पोषकता वाले पशु प्रोटीन आहार में परिवर्तन करने के लिए सबसे अधिक सक्षम है। अल्प रेशे के खाद्य पदार्थ मनुष्यों के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं।”
उत्तर:- कुक्कुट पालन भारत में एक महत्वपूर्ण कृषि गतिविधि है जो कम मूल्य के खाद्य पदार्थों को उच्च पोषक मूल्य वाले प्रोटीन में परिवर्तित करने में सक्षम है। मुर्गियाँ अल्प रेशे युक्त खाद्य पदार्थों को खाकर उन्हें अंडों और मांस के रूप में उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन में बदलती हैं। ये अल्प रेशे के खाद्य पदार्थ मनुष्यों के लिए सीधे उपभोग हेतु उपयुक्त नहीं होते, क्योंकि वे हमारे पाचन तंत्र द्वारा आसानी से पचाए नहीं जा सकते और पर्याप्त पोषण प्रदान नहीं करते। कुक्कुट पालन इन कम उपयोगी खाद्य पदार्थों को मूल्यवान प्रोटीन स्रोत में बदलकर खाद्य श्रृंखला में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो मानव पोषण के लिए अत्यंत लाभदायक है।
प्रश्न शृंखला # 10
प्रश्न 1. पशुपालन तथा कुक्कुट पालन के प्रबन्धन प्रणाली में क्या समानता है ?
उत्तर:- पशुपालन और कुक्कुट पालन के प्रबंधन में कई समानताएँ हैं। दोनों में आवास की गुणवत्ता महत्वपूर्ण है, जिसमें उचित तापमान, प्रकाश और वायु संचार शामिल है। स्वच्छता दोनों प्रणालियों का अनिवार्य हिस्सा है, जो रोगों के प्रसार को रोकने में मदद करती है। आहार प्रबंधन भी समान है, जहाँ संतुलित और पौष्टिक आहार प्रदान किया जाता है। नियमित स्वास्थ्य जाँच और टीकाकरण दोनों में आवश्यक है। प्रजनन प्रबंधन भी समान सिद्धांतों पर आधारित है, जिसमें नस्ल सुधार पर ध्यान दिया जाता है। अंत में, दोनों में उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 2. ब्रौलर तथा अण्डे देने वाली लेयर में क्या अन्तर है ? इनके प्रबन्धन के अन्तर को स्पष्ट कीजिए। .
उत्तर:- ब्रॉयलर और लेयर कुक्कुट पालन के दो अलग-अलग उद्देश्य हैं। ब्रॉयलर मांस उत्पादन के लिए पाले जाते हैं, जबकि लेयर अंडे उत्पादन के लिए। ब्रॉयलर को तेजी से बढ़ने और अधिक मांस देने के लिए प्रोटीन और ऊर्जा से भरपूर आहार दिया जाता है, जबकि लेयर को कैल्शियम और प्रोटीन युक्त संतुलित आहार दिया जाता है। ब्रॉयलर का जीवनकाल छोटा होता है (लगभग 6-8 सप्ताह), जबकि लेयर 72-78 सप्ताह तक अंडे देती हैं। ब्रॉयलर के लिए तापमान नियंत्रण अधिक महत्वपूर्ण है, जबकि लेयर के लिए प्रकाश व्यवस्था महत्वपूर्ण है। ब्रॉयलर में वजन वृद्धि पर ध्यान दिया जाता है, जबकि लेयर में अंडे उत्पादन की निरंतरता पर।
प्रश्न शृंखला # 11
प्रश्न 1. मछलियाँ कैसे प्राप्त करते हैं ?
उत्तर:- मछलियाँ मुख्यतः दो तरीकों से प्राप्त की जाती हैं:-
- प्राकृतिक स्रोतों से मछली पकड़कर: इसमें समुद्र, नदियाँ, झीलें और तालाब शामिल हैं। यह विधि मत्स्य पालन का पारंपरिक तरीका है।
- मछली पालन या मत्स्य संवर्धन द्वारा: इसमें नियंत्रित वातावरण में मछलियों का पालन किया जाता है। यह विधि अधिक उत्पादक और टिकाऊ है।
मत्स्य संवर्धन में तालाब, टैंक या पिंजरों में मछलियों को पाला जाता है। इस विधि में मछलियों की वृद्धि, प्रजनन और स्वास्थ्य पर नियंत्रण रखा जा सकता है। आजकल समुद्री मत्स्य पालन भी लोकप्रिय हो रहा है, जिसमें समुद्र में पिंजरों का उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 2. मिश्रित मछली संवर्धन से क्या लाभ हैं ?
उत्तर:- मिश्रित मछली संवर्धन में एक ही तालाब में विभिन्न प्रजातियों की मछलियों का एक साथ पालन किया जाता है। इस विधि के कई लाभ हैं:-
- संसाधनों का बेहतर उपयोग: विभिन्न प्रजातियाँ तालाब के अलग-अलग भागों से अपना भोजन प्राप्त करती हैं, जैसे कतला सतह से, रोहू मध्य भाग से, और कॉमन कार्प तली से।
- कम प्रतिस्पर्धा: विभिन्न प्रजातियों की आहार आवश्यकताएँ अलग-अलग होती हैं, जिससे उनके बीच प्रतिस्पर्धा कम होती है।
- उच्च उत्पादकता: एक ही तालाब से विभिन्न प्रकार की मछलियाँ प्राप्त होती हैं, जो कुल उत्पादन बढ़ाता है।
- बेहतर आर्थिक लाभ: विविध उत्पादन से बाजार में अधिक विकल्प मिलते हैं, जो आय बढ़ाने में मदद करता है।
- पारिस्थितिक संतुलन: विभिन्न प्रजातियों का संयोजन तालाब के पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित रखने में मदद करता है।
प्रश्न श्रृंखला # 12
प्रश्न 1. मधु उत्पादन के लिए प्रयुक्त मधुमक्खी में कौन-से ऐच्छिक गुण होने चाहिए ?
उत्तर:- मधु उत्पादन के लिए मधुमक्खियों में निम्नलिखित वांछनीय गुण होने चाहिए:-
- उच्च मधु संग्रहण क्षमता: मधुमक्खियाँ अधिक मात्रा में मकरंद एकत्र करने में सक्षम होनी चाहिए।
- शांत स्वभाव: कम आक्रामक मधुमक्खियाँ मधुमक्खी पालकों के लिए काम करना आसान बनाती हैं।
- रानी मधुमक्खी की उच्च अंडे देने की क्षमता: यह कॉलोनी के तेजी से विकास में मदद करती है।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता: स्वस्थ मधुमक्खियाँ अधिक उत्पादक होती हैं और कॉलोनी को मजबूत रखती हैं।
- अच्छी सर्दी सहने की क्षमता: यह वर्ष भर मधु उत्पादन सुनिश्चित करती है।
प्रश्न 2. चारागाह क्या है और ये मधु उत्पादन से कैसे सम्बन्धित है ?
उत्तर:- मधुमक्खी पालन के संदर्भ में, चारागाह वह क्षेत्र है जहाँ मधुमक्खियाँ मकरंद और पराग एकत्र करती हैं। यह आमतौर पर फूलों से भरा क्षेत्र होता है। चारागाह मधु उत्पादन से निम्न प्रकार संबंधित है:-
- मधु की मात्रा: अच्छा चारागाह अधिक मकरंद उपलब्ध कराता है, जिससे मधु उत्पादन बढ़ता है।
- मधु की गुणवत्ता: विभिन्न प्रकार के फूल मधु के स्वाद और गुणों को प्रभावित करते हैं।
- मधुमक्खी कॉलोनी का स्वास्थ्य: विविध चारागाह मधुमक्खियों को संतुलित पोषण प्रदान करता है।
- मौसमी उत्पादन: विभिन्न मौसमों में खिलने वाले फूल वर्ष भर मधु उत्पादन सुनिश्चित करते हैं।
- विशेष प्रकार के मधु: कुछ विशिष्ट फूलों से एकल स्रोत मधु का उत्पादन किया जा सकता है, जो अधिक मूल्यवान होता है।
अभ्यास
प्रश्न 1. फसल उत्पादन की एक विधि का वर्णन करो जिससे अधिक पैदावार प्राप्त हो सके।
उत्तर:- फसल चक्र एक प्रभावी विधि है जिससे अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। इसमें एक ही खेत में अलग-अलग फसलों को क्रमबद्ध तरीके से उगाया जाता है। यह विधि मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने में मदद करती है। फसल चक्र में आमतौर पर दलहनी फसलों को शामिल किया जाता है, जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण द्वारा मिट्टी को पोषक तत्व प्रदान करती हैं। इसके अलावा, गहरी और उथली जड़ों वाली फसलों का आलटरनेशन मिट्टी के विभिन्न स्तरों से पोषक तत्वों का उपयोग करता है। फसल चक्र कीट और रोग नियंत्रण में भी मदद करता है, क्योंकि कई कीट और रोगजनक एक विशिष्ट फसल पर निर्भर होते हैं। इस प्रकार, फसल चक्र उत्पादकता बढ़ाने का एक टिकाऊ तरीका है।
प्रश्न 2. खेतों में खाद तथा उर्वरकों का उपयोग क्यों करते हैं ?
उत्तर:- खाद और उर्वरक मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और फसल उत्पादन में सुधार के लिए उपयोग किए जाते हैं। फसलें मिट्टी से पोषक तत्व लेती हैं, जिससे समय के साथ मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है। खाद (जैविक पदार्थ) मिट्टी की संरचना में सुधार करती है, जल धारण क्षमता बढ़ाती है, और लाभदायक सूक्ष्मजीवों को बढ़ावा देती है। उर्वरक मिट्टी में विशिष्ट पोषक तत्वों की कमी को पूरा करते हैं, जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, और पोटैशियम। इनका संतुलित उपयोग फसल की वृद्धि, स्वास्थ्य, और उत्पादकता में सुधार करता है। हालांकि, अत्यधिक उपयोग से मिट्टी और पर्यावरण को नुकसान हो सकता है।
प्रश्न 3. अंतराफसलीकरण तथा फसल चक्र के क्या लाभ हैं ?
उत्तर:- अंतराफसलीकरण और फसल चक्र दोनों कृषि उत्पादकता बढ़ाने की महत्वपूर्ण तकनीकें हैं। अंतराफसलीकरण में एक ही खेत में एक साथ दो या अधिक फसलें उगाई जाती हैं। यह भूमि का बेहतर उपयोग करता है, कीट और रोग प्रसार को कम करता है, और मिट्टी के क्षरण को रोकता है। फसल चक्र में अलग-अलग मौसमों में विभिन्न फसलें उगाई जाती हैं। यह मिट्टी की उर्वरता बनाए रखता है, कीट चक्र को तोड़ता है, और पोषक तत्वों का संतुलन बनाता है। दोनों तकनीकें रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करती हैं, जैव विविधता बढ़ाती हैं, और पर्यावरण के अनुकूल हैं।
प्रश्न 4. आनुवंशिक फेरबदल क्या हैं ? कृषि प्रणालियों में से कैसे उपयोगी हैं ?
उत्तर:- आनुवंशिक फेरबदल एक प्रक्रिया है जिसमें किसी जीव के जीनोम में परिवर्तन किया जाता है। इसमें वांछित गुणों वाले जीन को एक प्रजाति से दूसरी में स्थानांतरित किया जाता है। कृषि में, यह तकनीक फसलों की गुणवत्ता और उत्पादकता बढ़ाने के लिए उपयोग की जाती है। उदाहरण के लिए, फसलों को सूखा, कीट, या रोग प्रतिरोधी बनाया जा सकता है। पोषण मूल्य में सुधार, शेल्फ लाइफ बढ़ाना, या विषम परिस्थितियों में बेहतर विकास के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। हालांकि, इस तकनीक के उपयोग पर कुछ चिंताएं भी हैं, जैसे पर्यावरणीय प्रभाव और लंबे समय तक सुरक्षा।
प्रश्न 5. भण्डारगृहों (गोदामों) में अनाज की हानि कैसे होती है ?
उत्तर:- भण्डारगृहों में अनाज की हानि मुख्यतः दो कारकों से होती है: जैविक और अजैविक। जैविक कारकों में कीट, चूहे, फंगस और बैक्टीरिया शामिल हैं, जो अनाज को खाते या खराब करते हैं। अजैविक कारकों में अधिक नमी और अनुचित तापमान प्रमुख हैं। अधिक नमी से फंगस की वृद्धि होती है, जबकि उच्च तापमान अनाज को सूखा देता है। इन कारणों से अनाज का वजन कम हो जाता है, उसकी अंकुरण क्षमता घट जाती है, और रंग बदल जाता है। परिणामस्वरूप, अनाज की गुणवत्ता और बाजार मूल्य में कमी आती है। उचित भंडारण तकनीकों और नियमित निरीक्षण से इन हानियों को कम किया जा सकता है।
प्रश्न 6. किसान के लिए पशुपालन प्रणालियाँ कैसे लाभदायक हैं ?
उत्तर:- पशुपालन किसानों के लिए कई तरह से लाभदायक होता है। यह अतिरिक्त आय का स्रोत बनता है, जैसे दूध, मांस और अंडों की बिक्री से। कृषि उप-उत्पादों (जैसे भूसा) का पशु चारे के रूप में उपयोग होता है, जबकि पशु अपशिष्ट (गोबर) खेतों के लिए प्राकृतिक खाद बनता है। यह चक्रीय प्रणाली लागत कम करती है और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है। पशु कृषि कार्यों में भी मदद करते हैं, जैसे हल चलाना। पशुपालन से प्राप्त अतिरिक्त आय किसानों को बेहतर बीज, उर्वरक और कृषि उपकरण खरीदने में सक्षम बनाती है, जो कृषि उत्पादकता को बढ़ाता है।
प्रश्न 7. पशुपालन के क्या लाभ हैं ?
उत्तर:- पशुपालन के कई महत्वपूर्ण लाभ हैं:-
- यह दूध, मांस और अंडे जैसे पोषक खाद्य पदार्थों का स्रोत है।
- कृषि कार्यों में सहायता, जैसे हल चलाना और बोझा ढोना।
- पशु मलमूत्र से प्राकृतिक खाद मिलती है, जो मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है।
- अतिरिक्त आय का स्रोत, जो किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारता है।
- कुक्कुट पालन से गुणवत्तापूर्ण अंडे और मांस प्राप्त होते हैं।
- पशुओं से प्राप्त उत्पादों का औद्योगिक उपयोग, जैसे चमड़ा और ऊन।
- जैव विविधता संरक्षण में योगदान, विशेषकर देशी नस्लों का संरक्षण।
प्रश्न 8. उत्पादन बढ़ाने के लिए कुक्कुट पालन, मत्स्य पालन तथा मधुमक्खी पालन में क्या समानताएँ हैं ?
उत्तर:- कुक्कुट, मत्स्य और मधुमक्खी पालन में उत्पादन बढ़ाने के लिए कई समान रणनीतियाँ अपनाई जाती हैं:-
- उचित स्वच्छता और रोग नियंत्रण।
- पोषण प्रबंधन: संतुलित और नियमित आहार प्रदान करना।
- अनुकूल वातावरण: उचित तापमान और आर्द्रता बनाए रखना।
- प्रजनन प्रबंधन: उच्च गुणवत्ता वाली नस्लों का चयन और संकरण।
- आधुनिक तकनीकों का उपयोग, जैसे स्वचालित फीडर या जल गुणवत्ता नियंत्रण।
- नियमित निगरानी और स्वास्थ्य देखभाल।
- कुशल विपणन रणनीतियाँ अपनाना।
प्रश्न 9. प्रग्रहण मत्स्यन, मेरीकल्चर तथा जल संवर्धन में क्या अन्तर है ?
उत्तर:- प्रग्रहण मत्स्यन, मेरीकल्चर और जल संवर्धन मत्स्य उत्पादन की अलग-अलग विधियाँ हैं:-
- प्रग्रहण मत्स्यन: प्राकृतिक जल स्रोतों जैसे समुद्र, नदियों या झीलों से मछली पकड़ना।
- मेरीकल्चर: समुद्री जीवों का नियंत्रित वातावरण में व्यावसायिक पालन, जैसे समुद्री मछली, शैवाल या कवच मछली।
- जल संवर्धन: मीठे पानी में आर्थिक महत्व के जलीय जीवों का पालन, जैसे कार्प मछली, झींगा या केकड़े।
- मुख्य अंतर उनके वातावरण, प्रबंधन स्तर और उत्पादित प्रजातियों में है।