UP Board Class 9 Hindi Gadya Chapter 7 Solution – ठेले पर हिमालय

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यूपी बोर्ड की कक्षा 9 की हिंदी पाठ्यपुस्तक का सातवाँ अध्याय “ठेले पर हिमालय” डॉ. धर्मवीर भारती द्वारा लिखित एक मनोरम यात्रा वृत्तांत है। यह निबंध लेखक की नैनीताल से कौसानी तक की यात्रा का सजीव चित्रण प्रस्तुत करता है, जिसमें हिमालय की भव्यता और प्राकृतिक सौंदर्य का मनोहारी वर्णन किया गया है। लेखक ने अपनी यात्रा के दौरान देखे गए दृश्यों, अनुभवों और भावनाओं को बड़ी ही संवेदनशीलता से प्रस्तुत किया है। इस पाठ में हिमालय की शीतलता, कत्यूर घाटी का अद्भुत सौंदर्य, और गोमती नदी के किनारे बैजनाथ की यात्रा का विवरण शामिल है।

UP Board Class 9 Hindi Gadya Chapter 7

UP Board Class 9 Hindi Gadya Chapter 7 Solution

SubjectHindi (गद्य)
Class9th
Chapter7. ठेले पर हिमालय
Authorडॉ0 धर्मवीर भारती
BoardUP Board

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. निम्नांकित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिये-

(क) ठेले पर बर्फ की सिलें लादे हुए बर्फ वाला आया। ठण्डे, चिकने, चमकते बर्फ से भाप उड़ रही थी। मेरे मित्र का जन्म स्थान अल्मोड़ा है, वे क्षण भर उस बर्फ को देखते रहे, उठती हुई भाप में खोये रहे और खोये-खोये से ही बोले, “यही बर्फ तो हिमालय की शोभा है।” और तत्काल शीर्षक मेरे मन में कौंध गया, ‘ठेले पर हिमालय’ । पर आपको इसलिए बता रहा हूँ कि अगर आप नये कवि हों तो भाई, इसे ले जायँ (UPBoardSolutions.com) और इस शीर्षक पर दो-तीन सौ पंक्तियाँ बेडौल-बेतुकी लिख डालें-शीर्षक मौजूं है और अगर नयी कविता से नाराज हों, सुललित गीतकार हों तो भी गुंजाइश है, इस बर्फ को डाँटें, “उतर आओ। ऊँचे शिखर पर बन्दरों की तरह क्यों चढ़े बैठे हो? ओ नये कवियो! ठेले पर लादो । पान की दुकानों पर बिको।”

प्रश्न

(i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) हिमालय की शोभा क्या है?

उत्तर-

(i) संदर्भ: यह गद्यांश डॉ. धर्मवीर भारती द्वारा लिखित ‘ठेले पर हिमालय’ नामक निबंध से लिया गया है। यह निबंध ‘हिंदी गद्य’ पाठ्यपुस्तक का हिस्सा है। इस अंश में लेखक बर्फ के एक ठेले को देखकर अपने विचारों और कल्पनाओं को व्यक्त करते हैं।

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या: लेखक के मित्र, जो अल्मोड़ा के मूल निवासी हैं, ठेले पर रखी बर्फ को देखकर भावुक हो जाते हैं। वे बर्फ से उठती भाप में खो जाते हैं और कहते हैं, “यही बर्फ तो हिमालय की शोभा है।” यह वाक्य हिमालय की प्राकृतिक सुंदरता और महत्व को दर्शाता है। इस टिप्पणी से प्रेरित होकर, लेखक के मन में ‘ठेले पर हिमालय’ शीर्षक उभरता है, जो साधारण में असाधारण की खोज का प्रतीक है।

(iii) हिमालय की शोभा: हिमालय की शोभा उसकी बर्फ है। यह बर्फ न केवल हिमालय की भौतिक सुंदरता का प्रतीक है, बल्कि उसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्ता का भी प्रतिनिधित्व करती है। लेखक के मित्र के लिए, यह बर्फ उनके घर और विरासत की याद दिलाती है। यह दर्शाता है कि कैसे एक साधारण वस्तु भी गहरे भावनात्मक और सांस्कृतिक अर्थ रख सकती है।

(ख) सच तो यह है कि सिर्फ बर्फ को बहुत निकट से देख पाने के लिए ही हम लोग कौसानी गये थे। नैनीताल से रानीखेत और रानीखेत से मझकाली के भयानक मोड़ों को पार करते हुए कोसी । कोसी से एक सड़क अल्मोड़ा चली जाती है, दूसरी कौसानी। कितना कष्टप्रद, कितना सूखी और कितना कुरूप है वह रास्ता । पानी का कहीं नाम-निशान नहीं, सूखे भूरे पहाड़, हरियाली का नाम नहीं । ढालों को काटकर बनाये हुए टेढ़े-मेढ़े खेतं, जो थोड़े से हों तो शायद अच्छे भी लगें, पर उनको एकरस सिलसिला बिल्कुल शैतान की आँत मालूम पड़ता है।

प्रश्न

(i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) बर्फ को पास से देखने के लिये लेखक कहाँ गया?

उत्तर-

(i) संदर्भ: यह गद्यांश धर्मवीर भारती द्वारा लिखित ‘ठेले पर हिमालय’ नामक यात्रा वृत्तांत से लिया गया है। लेखक हिमालय की यात्रा का वर्णन करते हुए कौसानी तक के सफर का जीवंत चित्रण प्रस्तुत करता है। वे बर्फ को निकट से देखने की इच्छा से इस यात्रा पर निकलते हैं।

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या: लेखक कौसानी जाने के मार्ग का वर्णन करता है। वे नैनीताल से रानीखेत होते हुए मझकाली के खतरनाक मोड़ों को पार कर कोसी पहुंचते हैं। कोसी से एक मार्ग अल्मोड़ा जाता है और दूसरा कौसानी। यह रास्ता कठिन, नीरस और बंजर है। मार्ग में न तो पानी है, न हरियाली। पहाड़ी ढलानों पर बने टेढ़े-मेढ़े खेत एकरस दिखते हैं, जो लेखक को अरुचिकर लगते हैं।

(iii) बर्फ को पास से देखने के लिए लेखक कहाँ गया? लेखक बर्फ को निकट से देखने के लिए कौसानी गया। कौसानी उत्तराखंड में स्थित एक पर्वतीय स्थल है, जहाँ से हिमालय की बर्फीली चोटियों का शानदार दृश्य देखा जा सकता है। यहाँ जाने का लेखक का मुख्य उद्देश्य बर्फ को करीब से निहारना था।

(ग) कौसानी के अड्डे पर जाकर बस रुकी। छोटा-सा, बिल्कुल उजड़ा-सा गाँव बर्फ का तो कहीं नाम-निशान नहीं। बिल्कुल ठगे गये हम लोग। कितना खिन्न था मैं, अनखाते हुए बस से उतरा कि जहाँ था वहीं पत्थर की मूर्ति-सा स्तब्ध खड़ा रह गया। कितना अपार सौन्दर्य बिखरा था, सामने की घाटी में। इसे कौसानी की पर्वतमाला ने अपने अंचल में यह जो कत्यूर की रंग-बिरंगी घाटी छिपा रखी है; इसमें किन्नर और यक्ष ही तो वास करते होंगे। पचासों मील चौड़ी यह घाटी, हरे मखमली कालीनों जैसे खेत, सुन्दर गेरू की शिलाएँ काटकर बने हुए लाल-लाल रास्ते, जिनके किनारेकिनारे सफेद-सफेद पत्थरों की कतार और इधर-उधर से आकर आपस में उलझ जानेवाली बेलों की लड़ियों-सी नदियाँ। मन में बेसाख्ता यहाँ आया कि इन बला की लड़ियों को उठाकर कलाई में लपेट लें, आँखों से लगा हूँ।

प्रश्न

(i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) कौन-सी घाटी थी, जिसमें अनन्त सौन्दर्य बिखरा पड़ा था?

उत्तर-

(i) संदर्भ:
यह गद्यांश धर्मवीर भारती द्वारा लिखित ‘ठेले पर हिमालय’ नामक यात्रा वृत्तांत से लिया गया है। लेखक कौसानी पहुंचने पर वहां के प्राकृतिक सौंदर्य से अभिभूत हो जाते हैं। वे कत्यूर घाटी के मनमोहक दृश्य का विस्तृत वर्णन करते हैं, जो उन्हें आश्चर्यचकित कर देता है।

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या:
लेखक कत्यूर घाटी के सौंदर्य से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। वे इसकी तुलना एक सुंदरी के आंचल में छिपे सौंदर्य से करते हैं। घाटी का वर्णन करते हुए वे इसे यक्ष और किन्नरों का निवास स्थान बताते हैं। पचास मील चौड़ी इस घाटी में हरे मखमली कालीन जैसे खेत, लाल मिट्टी के रास्ते, सफेद पत्थरों की कतार और उलझी हुई बेलों जैसी नदियां हैं। यह दृश्य लेखक को इतना मोहक लगता है कि वे इसे अपनी कलाई में लपेटकर आंखों से लगाना चाहते हैं।

(iii) कौन-सी घाटी थी, जिसमें अनंत सौंदर्य बिखरा पड़ा था?
कत्यूर घाटी में अनंत सौंदर्य बिखरा हुआ था। यह घाटी कौसानी के सामने स्थित है और अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। लेखक इस घाटी के विविध रंगों, हरे खेतों, लाल रास्तों और सफेद पत्थरों से बेहद प्रभावित होते हैं। उन्हें लगता है कि इस अद्भुत सौंदर्य में किन्नर और यक्ष जैसे दैवीय प्राणी ही निवास कर सकते हैं।

(घ) हिमालय की शीतलता माथे को छू रही है और सारे संघर्ष, सारे अन्तर्द्वन्द्व, सारे ताप जैसे नष्ट हो रहे हैं। क्यों पुराने साधकों ने दैहिक, दैविक और भौतिक कष्टों को ताप कहा था और उसे नष्ट करने के लिए वे क्यों हिमालय जाते थे, यह पहली बार मेरी समझ में आ रहा था और अकस्मात् एक दूसरा तथ्य मेरे मन के क्षितिज पर उदित हुआ। कितनी, कितनी पुरानी है यह हिमराशि । जाने किस आदिम काल से यह शाश्वत, अविनाशी हिम इन शिखरों पर जमा हुआ। कुछ विदेशियों ने इसीलिए इस हिमालय की बर्फ को कहा है-चिरन्तन हिम।

प्रश्न

(i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) कुछ विदेशियों ने हिमालय की बर्फ को चिरन्तन हिम क्यों कहा है?

उत्तर-

(i) संदर्भ:
यह गद्यांश धर्मवीर भारती द्वारा लिखित ‘ठेले पर हिमालय’ नामक यात्रा वृत्तांत से लिया गया है। लेखक हिमालय की यात्रा के दौरान अपने अनुभवों और विचारों को व्यक्त करते हैं। वे हिमालय की शीतलता और उसके प्राचीन अस्तित्व पर चिंतन करते हैं।

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या:
लेखक बताते हैं कि प्राचीन साधक शारीरिक, दैविक और भौतिक कष्टों को ‘ताप’ कहते थे। वे इन कष्टों से मुक्ति पाने के लिए हिमालय जाते थे। लेखक को यह समझ आता है कि हिमालय की शीतलता इन तापों को नष्ट करने में सहायक है। साथ ही, उन्हें हिमालय की प्राचीनता का बोध होता है। वे सोचते हैं कि यह बर्फ किसी आदिम काल से इन पर्वत शिखरों पर जमी हुई है, जो इसे शाश्वत और अविनाशी बनाती है।

(iii) कुछ विदेशियों ने हिमालय की बर्फ को चिरन्तन हिम क्यों कहा है?
विदेशी विद्वानों ने हिमालय की बर्फ को ‘चिरन्तन हिम’ कहा है क्योंकि यह अत्यंत प्राचीन और स्थायी है। यह बर्फ आदिकाल से हिमालय के शिखरों पर जमी हुई है और लगातार बनी रहती है। इसका अस्तित्व शाश्वत और अविनाशी प्रतीत होता है। ‘चिरन्तन’ शब्द इसकी सनातनता और निरंतरता को दर्शाता है।

(ङ) सूरज डूबने लगा और धीरे-धीरे ग्लेशियरों में पिघली केसर बहने लगी। बर्फ कमल के लाल फूलो में बदलने लगी, घाटियाँ गहरी नीली हो गयीं। अँधेरा होने लगा तो हम उठे और मुँह-हाथ धोने और चाय पीने में लगे। पर सब चुपचाप थे, गुमसुम जैसे सबका कुछ छिन गया हो या शायद सबको कुछ ऐसा मिल गया हो, जिसे अन्दर-ही-अन्दर सहजेने में सब आत्मलीन हो अपने में डूब गये हों।

प्रश्न

(i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) किस समय बर्फ कमल के लाल फूलों में बदलने सी प्रतीत होने लगी?

उत्तर-

(i) संदर्भ:
यह गद्यांश धर्मवीर भारती द्वारा लिखित ‘ठेले पर हिमालय’ नामक यात्रा वृत्तांत से लिया गया है। लेखक कौसानी में सूर्यास्त के समय के प्राकृतिक सौंदर्य और उसके प्रभाव का वर्णन करते हैं।

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या:
लेखक सूर्यास्त के बाद के क्षणों का वर्णन करते हैं। अंधेरा होने पर सभी लोग उठकर दैनिक क्रियाओं में व्यस्त हो जाते हैं, जैसे मुंह-हाथ धोना और चाय पीना। परंतु सभी शांत और गुमसुम हैं। लेखक इस मौन को दो तरह से व्याख्यायित करते हैं – या तो सबका कुछ खो गया है, या फिर सबको कुछ ऐसा मिल गया है जिसे वे अपने अंदर संजोए हुए हैं। यह मौन प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य के प्रभाव को दर्शाता है।

(iii) किस समय बर्फ कमल के लाल फूलों में बदलने सी प्रतीत होने लगी?
सूर्यास्त के समय बर्फ कमल के लाल फूलों में बदलने सी प्रतीत होने लगी। सूरज के डूबते समय उसकी लाली बर्फ पर पड़ती है, जिससे बर्फ लाल कमल के फूलों जैसी दिखाई देने लगती है। यह प्राकृतिक घटना हिमालय के सौंदर्य को और भी बढ़ा देती है, जो देखने वालों को मंत्रमुग्ध कर देती है।

(च) आज भी उसकी याद आती है तो मन पिरा उठता है। कल ठेले के बर्फ को देखकर मेरे मित्र उपन्यासकार जिस तरह स्मृतियों में डूब गये, उसे दर्द को समझता हूँ और जब ठेले पर हिमालय की बात कहकर हँसता हूँ तो वह उस दर्द को भुलाने का ही बहाना है। ये बर्फ की ऊँचाइयाँ बार-बार बुलाती हैं और हम हैं कि चौराहों पर खड़े ठेले पर लदकर निकलने वाली बर्फ को ही देखकर मन बहला लेते हैं। किसी ऐसे क्षण में ऐसे ही ठेलों पर लदे हिमालयों से घिरकर ही तो तुलसी ने कहा था-‘कबहुँक हैं यदि रहिन रहगो’-मैं क्या कभी ऐसे भी रह सकेंगा, वास्तविक हिमशिखरों की ऊँचाइयों पर?

(i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) किसने हिमालय के शिखरों पर रहने की इच्छा व्यक्त की है?

उत्तर-

(i) संदर्भ:
यह गद्यांश धर्मवीर भारती द्वारा लिखित ‘ठेले पर हिमालय’ नामक यात्रा वृत्तांत से लिया गया है। लेखक हिमालय की याद और उसके प्रति अपनी आकांक्षा को व्यक्त करते हैं। वे हिमालय की वास्तविक ऊंचाइयों और शहर में ठेले पर मिलने वाली बर्फ के बीच तुलना करते हुए अपनी भावनाओं को प्रकट करते हैं।

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या:
लेखक कहते हैं कि हिमालय की ऊंचाइयां उन्हें बार-बार आकर्षित करती हैं। लेकिन वे और उनके जैसे लोग शहर के चौराहों पर खड़े ठेलों पर लदी बर्फ देखकर ही संतोष कर लेते हैं। यह कथन हिमालय की वास्तविक यात्रा और शहरी जीवन में उपलब्ध सीमित अनुभव के बीच के अंतर को दर्शाता है। लेखक इस सीमित अनुभव से असंतुष्ट हैं और हिमालय की वास्तविक ऊंचाइयों पर जाने की लालसा रखते हैं।

(iii) किसने हिमालय के शिखरों पर रहने की इच्छा व्यक्त की है?
लेखक के अनुसार, तुलसीदास ने हिमालय के शिखरों पर रहने की इच्छा व्यक्त की थी। वे तुलसीदास के “कबहुँक हैं यदि रहिन रहगो” वाक्य का उल्लेख करते हैं, जिसका अर्थ है “क्या मैं कभी वहाँ रह पाऊँगा?” यह उद्धरण तुलसीदास की हिमालय के प्रति गहरी आकांक्षा को दर्शाता है। लेखक स्वयं भी इसी भाव से हिमालय की ऊंचाइयों पर जाने और रहने की इच्छा व्यक्त करते हैं।

प्रश्न 2. डॉ० धर्मवीर भारती की जीवनी एवं कृतियों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर- डॉ० धर्मवीर भारती (1926-1997) हिंदी साहित्य के प्रमुख लेखक, कवि, और नाटककार थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त की और बाद में हिंदी साहित्य में एम.ए. और पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की।

डॉ० धर्मवीर भारती की कृतियों में उनके उपन्यास “गुनाहों का देवता” और “कन्यादान” विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। इसके अलावा, उनकी कविताएँ और नाटक भी साहित्यिक जगत में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनकी कविताओं की किताबें “अंधा युग” और “साधना” भी उनके साहित्यिक योगदान का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनके नाटकों में “अंधा युग” और “सृजन” प्रमुख हैं, जो भारतीय समाज और संस्कृति पर गहराई से प्रकाश डालते हैं।

प्रश्न 3. डॉ० धर्मवीर भारती के साहित्यिक अवदान एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।

उत्तर- डॉ० धर्मवीर भारती का साहित्यिक अवदान हिंदी साहित्य में अमूल्य है। उनके लेखन में सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों की गहरी समझ और विश्लेषण देखने को मिलता है। उनकी भाषा-शैली सरल, प्रवाहमयी, और प्रभावशाली है, जो पाठकों को तुरंत आकर्षित करती है।

उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से मानवीय भावनाओं और संवेदनाओं को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया। उनकी रचनाओं में भावनात्मक गहराई और समाज की यथार्थता का समावेश होता है। “गुनाहों का देवता” जैसे उपन्यासों में उन्होंने प्रेम, संघर्ष, और सामाजिक मूल्यों को अत्यंत प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया। उनकी भाषा भी सरल और सशक्त है, जो उनकी विचारधारा और भावनाओं को स्पष्टता से व्यक्त करती है।

प्रश्न 4. डॉ० धर्मवीर भारती का जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डालिए।
अथवा, डॉ० धर्मवीर भारती का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा, डॉ० धर्मवीर भारती के लेखन की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर- डॉ० धर्मवीर भारती एक महत्वपूर्ण हिंदी साहित्यकार थे जिनका जीवन और लेखन हिंदी साहित्य को नई दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनका जन्म 1926 में हुआ और 1997 में उनका निधन हो गया। वे एक प्रमुख उपन्यासकार, कवि, और नाटककार थे, और उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया।

उनकी प्रमुख रचनाएँ “गुनाहों का देवता”, “कन्यादान”, “अंधा युग”, और “साधना” हैं। “गुनाहों का देवता” एक सामाजिक उपन्यास है जो प्रेम और सामाजिक संघर्ष की गहरी कहानियों को प्रस्तुत करता है। “अंधा युग” एक महत्वपूर्ण नाटक है जो महाभारत की कथा पर आधारित है और समाज के विभिन्न पहलुओं को आलोचनात्मक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करता है।

डॉ० धर्मवीर भारती की लेखनी की प्रमुख विशेषताओं में उनकी भाषा की सहजता, भावनात्मक गहराई, और समाज की समस्याओं की सच्चाई को उजागर करने की क्षमता शामिल है। उनका लेखन हमेशा पाठकों को सोचने और समाज की सच्चाई को समझने पर मजबूर करता है। उनकी रचनाओं में प्रेम, संघर्ष, और सामाजिक मूल्य अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और उनकी भाषा सरल और प्रभावशाली है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. कौसानी की यात्रा में नैनीताल से कोसी तक लेखक का सफर कैसा रहा?

उत्तर- लेखक का सफर अत्यंत कष्टप्रद और चुनौतीपूर्ण था। मार्ग में भयानक मोड़ और ऊबड़-खाबड़ सड़कें थीं। रास्ता सूखा और कुरूप था, जहाँ पानी का कहीं नाम-निशान नहीं था। सूखे भूरे पहाड़ और हरियाली की कमी ने यात्रा को और भी कठिन बना दिया था। लेखक ने इस मार्ग को “शैतान की आँत” जैसा बताया है।

प्रश्न 2. कोसी के आगे जो बदलाव आया उसका मुख्य कारण क्या था?

उत्तर- कोसी के आगे बदलाव का मुख्य कारण प्रसन्नवदन शुक्ल जी का मिलना था। उनके मिलने से लेखक की सारी थकान दूर हो गई और मनोदशा में सकारात्मक परिवर्तन आया। शुक्ल जी की उपस्थिति ने यात्रा को अधिक सुखद और रोचक बना दिया, जिससे लेखक का मन प्रफुल्लित हो गया।

प्रश्न 3. कौसानी पहुँचने पर पहले लेखक को अवाक् मूर्ति-सा स्तब्ध कर देने वाला कौन-सा दृश्य दिखायी दिया?

उत्तर- कौसानी पहुँचने पर लेखक को पहले एक उजड़ा-सा गाँव दिखा, जहाँ बर्फ का कोई निशान नहीं था। इससे वह निराश हो गया। लेकिन जैसे ही वह बस से उतरा, सामने की घाटी में बिखरे अपार सौंदर्य को देखकर वह स्तब्ध रह गया। कत्यूर घाटी का मनमोहक दृश्य – हरे मखमली खेत, लाल-लाल रास्ते, और सफेद पत्थरों की कतार – उसे अवाक कर गया।

प्रश्न 4. कत्यूर घाटी के पार बादलों की ओट के बीच से दिखता हिमालय का एक श्रृंग उसे कैसा लगा?

उत्तर- कत्यूर घाटी के पार, बादलों के बीच से दिखता हिमालय का एक शृंग लेखक को खिड़की से झाँकते हुए जैसा प्रतीत हुआ। यह दृश्य इतना सुंदर और आकर्षक था कि लेखक खुशी से चीख उठा “बर्फ”! हालाँकि, यह दृश्य क्षणिक था और अचानक लुप्त हो गया, जो इसकी रहस्यमयता और आकर्षण को और बढ़ा देता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. धर्मवीर भारती की दो रचनाओं के नाम लिखिए।

उत्तर- धर्मवीर भारती की दो प्रमुख रचनाएँ हैं: ‘गुनाहों का देवता’ (उपन्यास) और ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ (कहानी संग्रह)।

प्रश्न 2. धर्मवीर भारती किस युग के लेखक हैं?

उत्तर- धर्मवीर भारती आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख लेखक हैं, जिन्होंने 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रश्न 3. धर्मवीर भारती का जन्म कब हुआ था?

उत्तर- धर्मवीर भारती का जन्म 25 दिसंबर, 1926 को इलाहाबाद (वर्तमान प्रयागराज), उत्तर प्रदेश में हुआ था।

प्रश्न 4. हिमालय की शोभा क्या है?

उत्तर- हिमालय की शोभा उसकी विशाल बर्फीली चोटियाँ हैं, जो इसे विश्व का सबसे ऊँचा पर्वत श्रृंखला बनाती हैं।

प्रश्न 5. हिम श्रृंग के क्षणिक दर्शन का उस पर क्या प्रभाव हुआ?

उत्तर- हिम श्रृंग के क्षणिक दर्शन से लेखक की सारी थकान, निराशा और खिन्नता दूर हो गई, उनमें नया उत्साह भर गया।

प्रश्न 6. पूरी हिम-श्रृंखला देखने पर लेखक के मन में कैसे भाव उदित हुए?

उत्तर- हिमालय की शीतलता को महसूस करते हुए लेखक को समझ आया कि प्राचीन साधक अपने शारीरिक, आध्यात्मिक और भौतिक कष्टों से मुक्ति पाने के लिए हिमालय आते थे।

प्रश्न 7. रात होने पर चाँद दिखायी दिया तब लेखक को क्यों लगने लगा कि जैसे उसका मन कल्पनाहीन हो गया हो?

उत्तर- चाँदनी रात में हिमालय की शांति देखकर लेखक को लगा कि उसकी कल्पनाशक्ति जैसे थम गई है। अन्य लेखकों और कवियों ने इसी दृश्य से प्रेरणा लेकर रचनाएँ की, पर वह कुछ नहीं लिख पाया।

प्रश्न 8. बैजनाथ पहुँचकर गोमती में स्नान करते हुए लेखक के मन में हिमालय के प्रति कैसे भाव जगते हैं?

उत्तर- गोमती नदी में स्नान करते समय लेखक को लगा जैसे उसके जल में हिमालय की बर्फीली चोटियों की छाया तैर रही हो। उसके मन में इन ऊँचे शिखरों पर पहुँचने की तीव्र इच्छा जागी।

व्याकरण-बोध

प्रश्न 1. निम्न में समास-विग्रह कीजिए और समास का नाम भी बताइए-

हिमालय, शीर्षासन, जलराशि, पर्वतमाला, तन्द्रालस, प्रसन्नवदन।

उत्तर-

  • हिमालय – हिम का आलय – षष्ठी तत्पुरुष समास
  • शीर्षासन – शीर्ष के द्वारा आसन – तृतीया तत्पुरुष समास
  • जलराशि – जल की राशि – षष्ठी तत्पुरुष समास
  • पर्वतमाला – पर्वत की माला – षष्ठी तत्पुरुष समास
  • तन्द्रालस – तन्द्रा से पूर्ण आलस – तृतीया तत्पुरुष समास
  • प्रसन्नवदन – प्रसन्न वदन वाला – कर्मधारय समास

प्रश्न 2. इस पाठ के आधार पर भारती जी की भाषा-शैली पर एक लेख लिखिए।

उत्तर- धर्मवीर भारती जी की भाषा परिष्कृत खड़ी बोली हिंदी है, जिसमें सरलता और सजीवता का अद्भुत संगम है। उनकी भाषा में तत्सम, तद्भव और देशज शब्दों का सुंदर मिश्रण देखने को मिलता है, जो उनके लेखन को समृद्ध और प्रभावशाली बनाता है। मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग उनकी भाषा को जीवंत और बोधगम्य बनाता है। इस पाठ में उन्होंने भावात्मक, वर्णनात्मक और चित्रात्मक शैलियों का कुशलतापूर्वक प्रयोग किया है, जो पाठक को हिमालय की यात्रा का जीवंत अनुभव कराता है। उनकी भाषा में प्रकृति के सूक्ष्म चित्रण की क्षमता है, जो पाठक के मन में दृश्यों को साकार कर देती है।

प्रश्न 3. निम्न शब्दों से प्रत्यय अलग कीजिए –

सुहावनापन, कष्टप्रद, शीतलता।

उत्तर- पन, प्रद, ता।

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