UP Board Class 9 Hindi Gadya Chapter 1 Solution – बात

UP Board class 9 Hindi gadya chapter 1 solutions are shared here. This is an expert’s written guide that presents you with the written question answer of chapter 1 – “बात” in hindi medium.

यूपी बोर्ड की कक्षा 9 की हिंदी पाठ्यपुस्तक का पहला अध्याय ‘बात’ संचार और भाषा के महत्व पर केंद्रित है। यह अध्याय छात्रों को प्रभावी संवाद के मूल सिद्धांतों से परिचित कराता है। इसमें भाषा की भूमिका, सांस्कृतिक विविधता का प्रभाव, और संचार कौशल में सुधार के तरीके शामिल हैं। अध्याय मौखिक और गैर-मौखिक संकेतों के महत्व पर भी प्रकाश डालता है, जो व्यक्तिगत और पेशेवर संबंधों में समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।

UP Board Class 9 Hindi Gadya Chapter 1

UP Board Class 9 Hindi Gadya Chapter 1 Solution

SubjectHindi (गद्य)
Class9th
Chapter1. बात
Authorपं० प्रतापनारायण मिश्र
BoardUP Board

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

1. निम्नांकित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिये

(क) यदि हम वैद्य होते तो कफ और पित्त के सहवर्ती बात की व्याख्या करते तथा भूगोलवेत्ता होते तो किसी देश के जलबात का वर्णन करते, किन्तु दोनों विषयों में से हमें एक बात कहने का भी प्रयोजन नहीं है। हम तो केवल उसी बात के ऊपर दो-चार बातें लिखते हैं, जो हमारे-तुम्हारे सम्भाषण के समय मुख से निकल-निकल के परस्पर हृदयस्थ भाव को प्रकाशित करती रहती हैं।

प्रश्न

(i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(ii) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(iii) हम अपने हृदयस्थ भावों की अभिव्यक्ति किसके माध्यम से करते हैं?
(iv) भूगोलवेत्ता किसका अध्ययन करता है?
(v) वैद्य किस बात का वर्णन करते हैं? |

उत्तर –

(i) सन्दर्भ: यह गद्यांश पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित ‘बात’ शीर्षक निबंध से लिया गया है। लेखक यहाँ ‘बात’ की महत्ता और उसके व्यक्तिगत स्वभाव से संबंध पर प्रकाश डालते हैं।

(ii)रेखांकित अंशों की व्याख्या: लेखक बताते हैं कि व्यक्ति अपने पेशे या रुचि के अनुसार बात करता है। उदाहरण के लिए, वैद्य स्वास्थ्य संबंधी विषयों पर और भूगोलवेत्ता जलवायु पर चर्चा करेंगे। लेखक का कहना है कि वे इन विशेष क्षेत्रों की बातें नहीं, बल्कि सामान्य बातचीत में व्यक्त होने वाले हृदय के भावों पर लिखते हैं।

(iii) हम अपने हृदयस्थ भावों की अभिव्यक्ति वाणी या बातचीत के माध्यम से करते हैं।

(iv) भूगोलवेत्ता किसी देश की जलवायु और भौगोलिक विशेषताओं का अध्ययन करता है।

(v) वैद्य शरीर में कफ, पित्त और वात के संतुलन तथा उनसे संबंधित रोगों का वर्णन करते हैं।

(ख) जब परमेश्वर तक बात का प्रभाव पहुँचा हुआ है तो हमारी कौन बात रही? हम लोगों के तो ‘गात माँहि बात करामात है।’ नाना शास्त्र, पुराण, इतिहास, काव्य, कोश इत्यादि सब बात ही के फैलाव हैं जिनके मध्य एक-एक बात ऐसी पायी जाती है जो मन, बुद्धि, चित्त को अपूर्व दशा में ले जानेवाली अथच लोक-परलोक में सब बात बनानेवाली है। यद्यपि बात का कोई रूप नहीं बतला सकता कि कैसी है पर बुद्धि दौड़ाइये तो ईश्वर की भाँति इसके भी अगणित ही रूप पाइयेगा। बड़ी बात, छोटी बात, सीधी बात, खोटी बात, टेढ़ी बात, मीठी बात, कड़वी बात, भली बात, बुरी बात, सुहाती बात, लगती बात इत्यादि सब बाते ही तो हैं।

प्रश्न

(i) गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(ii) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(iii) “गात माँहि बात करामात है।” का क्या तात्पर्य है?
(iv) कौन-सी बात चित्त, मन और बुद्धि को अपूर्व दिशा की ओर अग्रसर करती है?
(v) ‘बड़ी बात’, ‘छोटी बात’ एवं ‘सीधी बात’ मुहावरे का क्या अभिप्राय है?

उत्तर-

(i) सन्दर्भ: यह गद्यांश पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित ‘बात’ शीर्षक निबंध से लिया गया है। लेखक यहाँ ‘बात’ के व्यापक प्रभाव और महत्व पर प्रकाश डालते हैं।

(ii) रेखांकित अंशों की व्याख्या: लेखक बताते हैं कि ‘बात’ का प्रभाव मनुष्य से परे, ईश्वर तक पहुंचता है। मनुष्य के शरीर में ‘बात’ (वाणी या वायु) एक चमत्कार है। विभिन्न शास्त्र, पुराण, और साहित्य ‘बात’ के ही विस्तार हैं। इनमें ऐसी बातें मिलती हैं जो मन, बुद्धि और चित्त को अपूर्व स्थिति में ले जाती हैं और लोक-परलोक का ज्ञान कराती हैं। ‘बात’ के अनेक रूप होते हैं, जैसे बड़ी, छोटी, सीधी, या टेढ़ी बात।

(iii) “गात माँहि बात करामात है” का तात्पर्य है कि मनुष्य के शरीर में ‘बात’ (वाणी या प्राण वायु) एक अद्भुत शक्ति है।

(iv) विभिन्न शास्त्रों, पुराणों और साहित्य में पाई जाने वाली ज्ञानवर्धक बातें मन, बुद्धि और चित्त को नई दिशा देती हैं।

(v) ‘बड़ी बात’, ‘छोटी बात’ और ‘सीधी बात’ जैसे मुहावरे ‘बात’ के विभिन्न स्वरूपों और प्रभावों को दर्शाते हैं। ये विभिन्न परिस्थितियों में बोली जाने वाली बातों के महत्व और प्रकृति को बताते हैं।

(ग) सच पूछिये तो इस बात की भी क्या ही बात है जिसके प्रभाव से मानव जाति समस्त जीवधारियों की शिरोमणि (अशरफ-उल मखलूकात) कहलाती है। शुकसारिकादि पक्षी केवल थोड़ी-सी समझने योग्य बातें उच्चरित कर सकते हैं, इसी से अन्य नभचारियों की अपेक्षा आदृत समझे जाते हैं। फिर क़ौन न मानेगा कि बात की बड़ी बात है। हाँ, बात की बात इतनी बड़ी है कि परमात्मा को लोग निराकार कहते हैं, तो भी इसका सम्बन्ध उसके साथ लगाये रहते हैं। वेद, ईश्वर का वचन है, कुरआनशरीफ कलामुल्लाह है, होली बाइबिल वर्ड ऑफ गोड है। यह वचन, कलाम और वर्ड बात ही के पर्याय हैं जो प्रत्यक्ष मुख के बिना स्थिति नहीं कर सकती। पर बात की महिमा के अनुरोध से सभी धर्मावलम्बियों ने ‘बिन बानी वक्ता बड़ जोगी’ वाली बात मान रखी है।

प्रश्न

(i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(ii) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(iii) निराकार परमात्मा का सम्बन्ध बात से कैसे है?
(iv) मानव जाति समस्त जीवधारियों में क्यों शिरोमणि है?
(v) ‘बिन बानी वक्ता बड़ जोगी’ का क्या अभिप्राय है?

उत्तर-

(i) सन्दर्भ: यह गद्यांश पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित ‘बात’ शीर्षक निबंध से लिया गया है। लेखक यहाँ ‘बात’ की महत्ता और उसके व्यापक प्रभाव पर प्रकाश डालते हैं।

(ii) रेखांकित अंशों की व्याख्या: लेखक बताते हैं कि ‘बात’ का महत्व इतना अधिक है कि मनुष्य को सभी प्राणियों में श्रेष्ठ माना जाता है। यहां तक कि तोता-मैना जैसे पक्षी भी कुछ बातें बोलकर अन्य पक्षियों से श्रेष्ठ माने जाते हैं। ‘बात’ की महिमा इतनी है कि निराकार परमात्मा को भी वाणी से जोड़ा जाता है। विभिन्न धर्मों के पवित्र ग्रंथों को ईश्वर का वचन माना जाता है, जो ‘बात’ के महत्व को दर्शाता है।

(iii) निराकार परमात्मा का संबंध ‘बात’ से इस प्रकार है कि विभिन्न धर्मों में ईश्वर को निराकार मानते हुए भी उनके वचनों या संदेशों (जैसे वेद, कुरान, बाइबिल) को महत्व दिया जाता है। यह ‘बात’ की शक्ति को दर्शाता है।

(iv) मानव जाति को समस्त जीवधारियों में शिरोमणि इसलिए माना जाता है क्योंकि मनुष्य ‘बात’ करने में सबसे अधिक कुशल है। यह क्षमता उसे अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ बनाती है।

(v) ‘बिन बानी वक्ता बड़ जोगी’ का अभिप्राय है कि बिना मुख के भी कोई महान वक्ता हो सकता है। यह कहावत निराकार ईश्वर की वाणी के महत्व को दर्शाती है, जिसे विभिन्न धर्मों में स्वीकार किया गया है।

(घ) बात के काम भी इसी भाँति अनेक देखने में आते हैं। प्रीति-वैर, सुख-दु:ख, श्रद्धा-घृणा, उत्साह-अनुत्साह आदि जितनी उत्तमता और सहजता बात के द्वारा विदित हो सकते हैं, दूसरी रीति से वैसी सुविधा ही नहीं । घर बैठे लाखों कोस का समाचार मुख और लेखनी से निर्गत बात ही बतला सकती है। डाकखाने अथवा तारघर के सहारे से बात की बात में चाहे जहाँ की जो बात हो, जान सकते हैं। इसके अतिरिक्त बात बनती है, बात बिगड़ती है, बात आ पड़ती है, बात जाती रहती है, बात उखड़ती है। हमारे तुम्हारे भी सभी काम बात पर ही निर्भर करते हैं। ‘बातहि हाथी पाइये बातहि हाथी पाँव’ बात ही से पराये अपने और अपने पराये हो जाते हैं। मक्खीचूस उदार तथा उदार स्वल्पव्ययी, कापुरुष युद्धोत्साही एवं युद्धप्रिय शान्तिशील, कुमार्गी, सुपथगामी अथच सुपन्थी, कुराही इत्यादि बन जाते हैं।

प्रश्न

(i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए। |
(ii) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(iii) लाखों कोस का समाचार कौन बतला सकता है?
(iv) पाँच वाक्यों में बात का महत्त्व लिखिए।
(v) ‘बातहि हाथी पाइये बातहि हाथी पाँव’ का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

(i) सन्दर्भ: यह गद्यांश पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित ‘बात’ शीर्षक निबंध से लिया गया है। लेखक यहाँ ‘बात’ के विभिन्न प्रभावों और महत्व पर प्रकाश डालते हैं।

(ii) रेखांकित अंशों की व्याख्या: लेखक बताते हैं कि हमारे सभी काम ‘बात’ पर निर्भर करते हैं। ‘बात’ का प्रभाव इतना शक्तिशाली है कि यह लोगों के व्यवहार और स्वभाव को बदल सकती है। उदाहरण के लिए, कंजूस व्यक्ति उदार बन सकता है, कायर व्यक्ति साहसी हो सकता है, और बुरे मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति सही राह पर आ सकता है – सब ‘बात’ के प्रभाव से।

(iii) लाखों कोस का समाचार मुख से निकली ‘बात’ या लिखित शब्द (लेखनी से निर्गत बात) बता सकते हैं।

(iv) बात का महत्व:

  • यह विभिन्न भावनाओं को व्यक्त करने का सबसे सरल माध्यम है।
  • यह दूर की जानकारी प्राप्त करने में मदद करती है (डाकघर, तारघर के माध्यम से)।
  • यह व्यक्तियों के व्यवहार और स्वभाव को बदल सकती है।
  • यह मानवीय संबंधों को प्रभावित करती है (अपनों को पराया और परायों को अपना बना सकती है)।
  • यह जीवन के लगभग हर पहलू को प्रभावित करती है।

(v) ‘बातहि हाथी पाइये बातहि हाथी पाँव’ का आशय है कि अच्छी बात से बड़ा पुरस्कार (हाथी) मिल सकता है, जबकि बुरी बात से बड़ी सजा (हाथी के पैर तले कुचला जाना) मिल सकती है। यह मुहावरा ‘बात’ के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों को दर्शाता है।

(ङ) बात का तत्त्व समझना हर एक का काम नहीं है और दूसरों की समझ पर आधिपत्य जमाने योग्य बात गढ़ सकना भी ऐसों वैसों का साध्य नहीं है। बड़े-बड़े विज्ञवरों तथा महा-महा कवीश्वरों के जीवन बात ही के समझने-समझाने में व्यतीत हो जाते हैं। सहृदयगण की बात के आनन्द के आगे सारा संसार तुच्छ हुँचता है। बालकों की तोतली बातें, सुन्दरियों की मीठीमीठी प्यारी-प्यारी बातें, सत्कवियों की रसीली बातें, सुवक्ताओं की प्रभावशालिनी बातें जिनके जी को और का और न कर दें, उसे पशु नहीं पाषाणखण्ड कहना चाहिए, क्योंकि कुत्ते, बिल्ली आदि को विशेष समझ नहीं होती तो भी पुचकार के’तूतू’, ‘पूसी-पूसी’ इत्यादि बातें कह दो तो भावार्थ समझ के यथासामर्थ्य स्नेह प्रदर्शन करने लगते हैं। फिर वह मनुष्य कैसा जिसके चित्त पर दूसरे हृदयवान् की बात का असर न हो।

प्रश्न

(i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए। |
(iii) बालकों की बातें कैसी होती हैं?
(iv) इस अवतरण में पाषाण खण्ड से क्या आशय है?
(v) विद्वानों एवं कवियों का जीवन कैसे बीतता है?

उत्तर –

(i) सन्दर्भ: यह गद्यांश पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित ‘बात’ शीर्षक निबंध से लिया गया है। लेखक यहाँ ‘बात’ के गहन अर्थ और उसके प्रभाव पर प्रकाश डालते हैं।

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या: लेखक बताते हैं कि विभिन्न प्रकार की बातें लोगों को अलग-अलग तरह से प्रभावित करती हैं। बच्चों की तोतली बातें, सुंदर स्त्रियों की मधुर वाणी, कवियों की रसीली रचनाएँ, और वक्ताओं के प्रभावशाली भाषण – ये सभी श्रोताओं के मन को गहराई से छूते हैं। जो व्यक्ति इन बातों से प्रभावित नहीं होता, उसे लेखक पत्थर के समान निर्जीव और संवेदनहीन मानते हैं।

(iii) बालकों की बातें तोतली होती हैं, अर्थात् उनका उच्चारण पूरी तरह स्पष्ट नहीं होता, लेकिन वे सुनने में मधुर और आकर्षक लगती हैं।

(iv) इस अवतरण में ‘पाषाण खण्ड’ का आशय ऐसे व्यक्ति से है जो किसी भी प्रकार की भावनात्मक या सुंदर बातों से प्रभावित नहीं होता। यह एक ऐसे व्यक्ति को दर्शाता है जो पत्थर की तरह कठोर और निर्भावुक है।

(v) विद्वानों एवं कवियों का जीवन ‘बात’ को समझने और समझाने में व्यतीत होता है। वे जीवन भर भाषा के गहन अर्थ, शब्दों के प्रयोग, और उनके प्रभाव को समझने और दूसरों तक पहुँचाने का प्रयास करते रहते हैं।

(च) ‘मर्द की जबान’ (बात का उदय स्थान) और गाड़ी का पहिया चलता-फिरता ही रहता है। आज जो बात है कल ही स्वार्थान्धता के वश हुजूरों की मरजी के मुवाफिक दूसरी बातें हो जाने में तनिक भी विलम्ब की सम्भावना नहीं है। यद्यपि कभी-कभी अवसर पड़ने पर बात के अंश का कुछ रंग-ढंग परिवर्तित कर लेना नीति-विरुद्ध नहीं है। पर कब? जात्युपकार, देशोद्धार, प्रेम-प्रचार आदि के समय न कि पापी पेट के लिए।

प्रश्न

(i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) लेखक ने किसे नियमों का उल्लंघन नहीं माना है?
(iv) ‘मर्द की जबान’ के चलते-फिरते रहने से क्या तात्पर्य है?
(v) बात के ढंग का कुछ रंग-ढंग परिवर्तित कर लेना किस प्रकार नीति विरुद्ध नहीं है?

उत्तर –

(i) सन्दर्भ: यह गद्यांश पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित ‘बात’ शीर्षक निबंध से लिया गया है। लेखक यहाँ बात बदलने की प्रवृत्ति और उसके उचित-अनुचित पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं।

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या: लेखक कहते हैं कि आजकल कुछ लोग अपनी बात को गाड़ी के पहिए की तरह बदलते रहते हैं। जो बात आज कही जाती है, वह कल स्वार्थवश या अधिकारियों की इच्छानुसार बदल सकती है। लेखक इस प्रवृत्ति की आलोचना करते हुए कहते हैं कि बात बदलना केवल तभी उचित है जब इससे समाज, देश या प्रेम का हित हो, न कि व्यक्तिगत लाभ के लिए।

(iii) लेखक ने बात के रंग-ढंग को परिवर्तित करना नियमों का उल्लंघन नहीं माना है, बशर्ते यह जाति उपकार, देशोद्धार या प्रेम-प्रचार जैसे उच्च उद्देश्यों के लिए हो।

(iv) ‘मर्द की जबान’ के चलते-फिरते रहने का तात्पर्य है कि लोग अपनी बात को आसानी से और जल्दी बदल देते हैं, जैसे गाड़ी का पहिया लगातार घूमता रहता है।

(v) बात के ढंग का परिवर्तन नीति विरुद्ध नहीं है जब यह समाज, देश या मानवता के हित में हो। लेखक स्पष्ट करते हैं कि यह परिवर्तन व्यक्तिगत लाभ या स्वार्थ के लिए नहीं, बल्कि उच्च लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए होना चाहिए।

प्रश्न 2. पं० प्रतापनारायण मिश्र का जीवन-परिचय बताते हुए उनकी साहित्यिक सेवाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा, पं० प्रतापनारायण मिश्र का जीवन एवं साहित्यिक परिचय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – जीवन-परिचय: पंडित प्रतापनारायण मिश्र का जन्म 24 सितंबर 1856 को उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के हुलासी गांव में हुआ था। वे एक प्रमुख हिंदी साहित्यकार और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उनके पिता का नाम पंडित रामनारायण मिश्र था। प्रतापनारायण मिश्र का बचपन से ही साहित्य और कला की ओर रुझान था। उन्होंने शिक्षा की शुरुआत गाँव से की और बाद में कानपुर से उच्च शिक्षा प्राप्त की। वे हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए जीवनभर समर्पित रहे।

प्रश्न 3. पं० प्रतापनारायण मिश्र को साहित्यिक परिचय एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – साहित्यिक सेवाएँ: पंडित प्रतापनारायण मिश्र एक प्रमुख लेखक, कवि, नाटककार और व्यंग्यकार थे। उन्होंने हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने में अहम भूमिका निभाई। वे हिंदी साहित्य में भारतेन्दु हरिश्चंद्र के विचारों से प्रभावित थे और भारतेन्दु मंडल के सदस्य भी रहे। मिश्र जी ने हिंदी में न केवल नाटक और लेख लिखे बल्कि व्यंग्य और सामाजिक समस्याओं पर भी अपनी कलम चलाई।

उन्होंने ‘ब्राह्मण’ नामक मासिक पत्रिका का संपादन किया, जो हिंदी भाषा और साहित्य के प्रचार में अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हुई। उनकी रचनाओं में हास्य और व्यंग्य का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों, अंधविश्वासों और अंग्रेज़ी शासन के दुष्प्रभावों पर तीखी टिप्पणी की।

प्रश्न 4. पं० प्रतापनारायण मिश्र का जीवन-परिचय बताते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – भाषा और शैली: पं. प्रतापनारायण मिश्र की भाषा सरल, सजीव और प्रभावी थी। उन्होंने अपनी रचनाओं में सरल हिंदी का प्रयोग किया, ताकि आम जनता भी उन्हें समझ सके। उनकी शैली में हास्य और व्यंग्य का अनूठा मेल था, जो पाठकों को गुदगुदाने के साथ-साथ सोचने पर भी मजबूर करता था। उनकी भाषा में हिंदी, उर्दू और संस्कृत का सुंदर मिश्रण देखने को मिलता है।

प्रश्न 5. पं० प्रतापनारायण मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
अथवा, पं० प्रतापनारायण मिश्र को संक्षिप्त साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर – प्रमुख कृतियाँ:

  1. उग्र चंडी: यह उनका प्रसिद्ध नाटक है, जिसमें समाज की कुरीतियों और अंधविश्वासों पर प्रहार किया गया है।
  2. मूलचंद: यह एक नाटक है, जिसमें समाज में फैली अज्ञानता और ढोंग को व्यंग्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
  3. तुलसीदास जी का जीवन चरित्र: इस पुस्तक में उन्होंने संत तुलसीदास के जीवन और काव्य पर चर्चा की है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. पं० प्रतापनारायण मिश्र की भाषा एवं शैली की दो-दो विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर- पं. प्रतापनारायण मिश्र की भाषा की विशेषताएँ:-

  1. सामान्य बोलचाल की सरल भाषा का प्रयोग
  2. प्रवाहपूर्ण और मुहावरेदार शैली

शैली की विशेषताएँ:-

  1. संयत और गंभीर लेखन शैली
  2. विनोदपूर्ण व्यंग्य और वक्रोक्ति का प्रयोग

प्रश्न 2. ‘‘बात के कारण ही मनुष्य सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।” इस तथ्य को लेखक ने किस प्रकार सिद्ध किया

उत्तर- लेखक ने राजा दशरथ का उदाहरण देकर यह सिद्ध किया कि मनुष्य की श्रेष्ठता उसके वचन में निहित है। दशरथ ने अपने वचन के लिए प्राण तक त्याग दिए, जो दर्शाता है कि वचन का पालन करने वाला व्यक्ति समाज में सम्मानित होता है।

प्रश्न 3. बातहि हाथी पाइये बातहि हाथीपाँव’ से लेखक का क्या तात्पर्य है?

उत्तर- इस कहावत का तात्पर्य है कि बात की शक्ति बहुत बड़ी है। अच्छी बात से बड़ी-से-बड़ी चीज (हाथी) भी प्राप्त की जा सकती है, जबकि बुरी बात व्यक्ति को बड़े संकट (हाथी के पैर तले कुचलना) में डाल सकती है।

प्रश्न 4. पं० प्रतापनारायण मिश्र ने किन पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया?

उत्तर- पं. प्रतापनारायण मिश्र ने ‘ब्राह्मण’ और ‘हिंदुस्तान’ नामक दो प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया।

प्रश्न 5. ‘अपाणिपादो जवनो ग्रहीता’ सूक्ति का अर्थ बताइए।

उत्तर- ‘अपाणिपादो जवनो ग्रहीता’ का अर्थ है – बिना हाथ-पैर का होने पर भी तेज़ गति से चलने वाला और ग्रहण करने वाला। यह सूक्ति ईश्वर की सर्वव्यापकता और शक्तिमत्ता को दर्शाती है।

प्रश्न 6. आर्यगण अपनी बात का ध्यान रखते थे, इस बात को क्या प्रमाण है?

उत्तर- आर्यों द्वारा वचन पालन का प्रमाण राजा दशरथ का त्याग है। उन्होंने अपने वचन की रक्षा के लिए प्राण तक त्याग दिए, जो दर्शाता है कि आर्यगण अपनी बात का कितना ध्यान रखते थे।

प्रश्न 7. ‘बात’ पाठ से मुहावरों की सूची बनाइए।

उत्तर- ‘बात’ पाठ से प्राप्त मुहावरे:-

  1. गात माँहि बात करामात है
  2. बातहिं हाथी पाइये बातहिं हाथी पाँव
  3. मर्द की जबान
  4. बात-बात में बात

प्रश्न 8. ‘बात’ पाठ में बात और ईश्वर में क्या साम्य बताया गया है?

उत्तर- पाठ में बात और ईश्वर के बीच साम्य यह बताया गया है कि दोनों की शक्ति अपरिमेय है। जैसे वेद, कुरान और बाइबिल ईश्वर के वचन माने जाते हैं, वैसे ही बात भी ईश्वरीय शक्ति के समान महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 9. प्रथम अनुच्छेद में ‘बात’ शब्द का प्रयोग किन-किन अर्थों में किया गया है?

उत्तर- प्रथम अनुच्छेद में ‘बात’ शब्द का प्रयोग विभिन्न धर्मों के पवित्र ग्रंथों के संदर्भ में किया गया है। यहाँ ‘बात’ को वेद में ‘वचन’, कुरान में ‘कलाम’, और बाइबिल में ‘वर्ड’ के रूप में दर्शाया गया है। यह दिखाता है कि ‘बात’ का महत्व सभी धर्मों में समान है।

प्रश्न 10. किस प्रकार के व्यक्ति को हमें पाषाणखण्ड समझना चाहिए और क्यों?

उत्तर- जो व्यक्ति बच्चों की मासूम बातों, सुंदरियों की मधुर वाणी, कवियों की रसीली रचनाओं और वक्ताओं के प्रभावशाली शब्दों से प्रभावित नहीं होता, उसे पाषाणखंड समझना चाहिए। ऐसे व्यक्ति में संवेदनशीलता का अभाव होता है, जो मनुष्य के लिए आवश्यक गुण है। यहाँ तक कि पशु भी प्यार भरे शब्दों पर प्रतिक्रिया देते हैं।

प्रश्न 11. ‘बात’ शब्द की गूढ़ता पर तीस शब्द लिखिए।

उत्तर- ‘बात’ शब्द की गूढ़ता इसकी व्यापकता में निहित है। यह शास्त्र, पुराण, इतिहास, काव्य और कोश सभी में व्याप्त है। ‘बात’ का एक विशेष रूप मन, बुद्धि और चित्त को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। यद्यपि ‘बात’ का कोई निश्चित रूप नहीं है, फिर भी यह ईश्वर की तरह सर्वव्यापी और बहुरूपी है।

प्रश्न 12. ‘बात’ पाठ से 10 सुन्दर वाक्य लिखिए।

उत्तर-

  1. वेद ईश्वर का वचन है।
  2. बात के अनेक रूप हैं।
  3. बात का तत्त्व समझना आसान काम नहीं है।
  4. मर्द की जबान और गाड़ी का पहिया चलता-फिरता ही रहता है।
  5. बात से ही अपने-पराये और पराये अपने हो जाते हैं।
  6. कुरान शरीफ कलामुल्लाह है।
  7. होली बाइबिल वर्ड ऑफ गॉड है।
  8. निराकार शब्द का अर्थ शालिग्राम शिला है।
  9. बात ही से सब कुछ बनता-बिगड़ता है।
  10. बात का महत्व सभी धर्मों में समान है।

प्रश्न 13. ‘बात’ पाठ का मुख्य उद्देश्य बताइए।

उत्तर- ‘बात’ पाठ का मुख्य उद्देश्य वाणी के महत्व और शक्ति को समझाना है। यह बताता है कि कैसे बोली गई बात जीवन और समाज को प्रभावित कर सकती है। पाठ यह भी सिखाता है कि हमें अपने शब्दों का चयन सावधानी से करना चाहिए और दूसरों से विचारपूर्वक बात करनी चाहिए।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. लेखक ने भारत के कुपुत्रों द्वारा ‘मर्द की जबान’ का क्या अर्थ बताया है?

उत्तर- लेखक ने ‘मर्द की जबान’ के दुरुपयोग को भारत के कुपुत्रों द्वारा किए जाने वाले अर्थ के माध्यम से समझाया है। इन कुपुत्रों का मानना है कि जैसे गाड़ी का पहिया लगातार घूमता रहता है, वैसे ही मर्द की जबान भी बदलती रहनी चाहिए। वे अपने स्वार्थ के लिए वचन को आसानी से तोड़ देते हैं और मानते हैं कि परिस्थिति के अनुसार अपनी बात बदलना उचित है। यह व्याख्या वचनबद्धता के महत्व को कम करती है और अविश्वसनीयता को बढ़ावा देती है।

प्रश्न 2. निम्नलिखित में से सही वाक्य के सम्मुख सही (✔) का चिह्न लगाओ

उत्तर-

(अ) पं० प्रतापनारायण मिश्र भारतेन्दु युग के लेखक हैं। (✔)
(ब) निराकार शब्द का अर्थ शालिग्राम शिला है। (✔)
(स) पं० प्रतापनारायण मिश्र ने ब्राह्मण’ पत्रिका को सम्पादन नहीं किया। (✘)
(द) ‘बात’ के कई रूप हैं। (✔)

प्रश्न 3. पं० प्रतापनारायण मिश्र किस युग के लेखक हैं?

उत्तर- पं० प्रतापनारायण मिश्र भारतेन्दु युग के लेखक हैं।

प्रश्न 4. पं० प्रतापनारायण मिश्र किस महान् साहित्यकार को अपना गुरु मानते थे?

उत्तर- पं० प्रतापनारायण मिश्र भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को अपना गुरु मानते थे।

प्रश्न 5. पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित दो नाटकों के नाम लिखिए।

उत्तर- पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित दो नाटक-‘कलि-कौतुक’ और ‘हठी हम्मीर’ है।

प्रश्न 6. कलामुल्लाह का क्या अर्थ है?

उत्तर- कलामुल्लाह का अर्थ वचन है।

व्याकरण-बोध

प्रश्न 1. निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ स्पष्ट करते हुए उनका वाक्य प्रयोग कीजिए –

बात जाती रहना, बात जमना, बात बिगड़ना, बात का बतंगड़ बनाना, बात उखड़ना, बात की बात।

उत्तर –

बात जाती रहना (बात का महत्व न होना):

  • अर्थ: किसी की बात का कोई असर न होना।
  • वाक्य: माँ ने बच्चे को कई बार टीवी बंद करने को कहा, पर उसकी बात जाती रही।

बात जमना (बात का अच्छी तरह समझ में आना):

  • अर्थ: किसी विचार या सुझाव का स्वीकार किया जाना।
  • वाक्य: शिक्षक ने गणित का सूत्र इतनी अच्छी तरह समझाया कि सभी छात्रों की बात जम गई।

बात बिगड़ना (बात न बनना, स्थिति खराब होना):

  • अर्थ: किसी मामले या संबंध में समस्या आना।
  • वाक्य: दोनों पक्षों के बीच समझौता होने ही वाला था, पर अंतिम क्षण में बात बिगड़ गई।

बात का बतंगड़ बनाना (छोटी बात को बड़ा बनाना):

  • अर्थ: सामान्य बात को अनावश्यक रूप से जटिल बनाना।
  • वाक्य: उसने एक साधारण टिप्पणी का ऐसा बतंगड़ बनाया कि पूरा ऑफिस उलझन में पड़ गया।

बात उखड़ना (बात का अच्छा प्रभाव न पड़ना):

  • अर्थ: किसी बातचीत या योजना का असफल होना।
  • वाक्य: नेता के भाषण में कुछ ऐसा कहा गया कि जनता के बीच उसकी बात उखड़ गई।

बात की बात (बिना गंभीरता के कही गई बात):

  • अर्थ: किसी विषय का सामान्य उल्लेख, जिसे गंभीरता से न लिया जाए।
  • वाक्य: “तुम्हें विदेश भेजने की बात मैंने बस ऐसे ही कह दी थी, वह तो बात की बात थी।”

प्रश्न 2. निम्नलिखित में सनियम सन्धि-विच्छेद कीजिए तथा सन्धि का नाम बताइए

निराकार, निरवयव, परमेश्वर, धर्मावलम्बी, विदग्धालाप, युद्धोत्साही, स्वार्थान्धता, कवीश्वर, योगाभ्यास।

उत्तर –

निराकार = निर + आकार = अ + आ = आ (दीर्घ सन्धि)
निरवयव = निरः + अवयव = : + अ = र (विसर्ग सन्धि)
परमेश्वर = परम + ईश्वर = अ + ई = ए (गुण सन्धि)
धर्मावलम्बी = धर्म + अवलम्बी = अ + अ = आ (दीर्घ सन्धि)
विदग्धालाप = विदग्ध + आलाप = अ + आ = आ (दीर्घ सन्धि)
युद्धोत्साही = युद्ध + उत्साही = अ + उ = ओ (गुण सन्धि)
स्वार्थान्धता = । स्वार्थ + अन्धता = अ + अ = आ (दीर्घ सन्धि)
कवीश्वर = कवि + ईश्वर = इ + ई = ई (दीर्घ सन्धि)
योगाभ्यास = योग + अभ्यास = अ + अ = आ (दीर्घ सन्धि)

प्रश्न 3. निम्नलिखित में समास-विग्रह करके समास का नाम भी लिखिए

कापुरुष, पाषाणखण्ड, सुपथ, यथासामर्थ्य, अपाणिपादो, कुमार्गी ।

उत्तर –

कापुरुष = कायर पुरुष = कर्मधारय
पाषाणखण्ड = पाषाण का खण्ड = सम्बन्ध तत्पुरुष
सुपथ = सुन्दर रास्ता = प्रादि तत्पुरुष
यथासामर्थ्य = सामर्थ्य के अनुसार = अव्यययीभाव
अपाणिपादो = नपाणिपादो = क् तत्पुरुष
कुमार्गी = कुत्सित मार्गी = कर्मधारय

Other Chapter Solutions
Chapter 1 Solution – बात
Chapter 2 Solution – मंत्र
Chapter 3 Solution – गुरु नानकदेव
Chapter 4 Solution – गिल्लू
Chapter 5 Solution – स्मृति
Chapter 6 Solution – निष्ठामूर्ति कस्तूरबा
Chapter 7 Solution – ठेले पर हिमालय
Chapter 8 Solution – तोता
Chapter 9 Solution – सड़क सुरक्षा एवं यातायात के नियम

Leave a Comment

WhatsApp Icon
X Icon