UP Board class 9 Hindi gadya chapter 3 solutions are shared here. This is an expert’s written guide that presents you with the written question answer of chapter 3 – “गुरु नानकदेव” in hindi medium.
यूपी बोर्ड की कक्षा 9 की हिंदी पाठ्यपुस्तक का तीसरा अध्याय “गुरु नानकदेव” प्रख्यात साहित्यकार हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित एक मार्मिक निबंध है। यह पाठ सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानकदेव के जीवन, शिक्षाओं और समाज पर उनके प्रभाव का सजीव चित्रण प्रस्तुत करता है। द्विवेदी जी ने गुरु नानकदेव के प्रेम और मानवता के संदेश, सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध उनके संघर्ष, और उनकी वाणी की शक्ति को रेखांकित किया है। इस निबंध में कार्तिक पूर्णिमा पर मनाए जाने वाले गुरु नानकदेव के जन्मोत्सव का भी उल्लेख है।
UP Board Class 9 Hindi Gadya Chapter 3 Solution
Contents
Subject | Hindi (गद्य) |
Class | 9th |
Chapter | 3. गुरु नानकदेव |
Author | डॉ0 हजारीप्रसाद द्विवेदी |
Board | UP Board |
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. निम्नलिखित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिये-
(क) आकाश में जिस प्रकार षोडश कला से पूर्ण चन्द्रमा अपनी कोमल स्निग्ध किरणों से प्रकाशित होता है, उसी प्रकार मानव चित्त में भी किसी उज्ज्वल प्रसन्न ज्योतिपुंज का आविर्भाव होना स्वाभाविक है। गुरु नानकदेव ऐसे ही षोडश कला से पूर्ण स्निग्ध ज्योति महामानव थे । लोकमानस में अर्से से कार्तिकी पूर्णिमा के साथ गुरु के आविर्भाव को सम्बन्ध जोड़ दिया गया है। गुरु किसी एक ही दिन को पार्थिव शरीर में आविर्भूत हुए होंगे, पर भक्तों के चित्त में वे प्रतिक्षण प्रकट हो सकते हैं। पार्थिव रूप को महत्त्व दिया जाता है, परन्तु प्रतिक्षण आविर्भूत होने को आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक महत्त्व मिलना चाहिए। इतिहास के पण्डित गुरु के पार्थिव शरीर के आविर्भाव के विषय में वादविवाद करते रहें, इस देश का सामूहिक मानव चित्त उतना महत्त्व नहीं देता।
प्रश्न
(i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(ii) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(iii) लेखक की दृष्टि में गुरु के पार्थिव शरीर के आविर्भाव के स्थान पर किसको महत्त्व मिलना चाहिए?
(iv) चन्द्रमा कितनी कलाओं से परिपूर्ण होता है?
(v) कार्तिक पूर्णिमा का सम्बन्ध किस महामानव से है?
उत्तर-
(i) संदर्भ: यह गद्यांश आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘गुरु नानकदेव’ पाठ से लिया गया है। इसमें लेखक गुरु नानकदेव के महत्व और उनके प्रति भक्तों की श्रद्धा को दर्शाते हैं, साथ ही उनके आध्यात्मिक प्रभाव पर प्रकाश डालते हैं।
(ii) रेखांकित अंशों की व्याख्या: लेखक गुरु नानकदेव की तुलना पूर्ण चंद्रमा से करते हैं, जो अपनी सोलह कलाओं से प्रकाशित होता है। वे बताते हैं कि गुरु का भौतिक जन्म एक दिन हुआ, लेकिन उनका आध्यात्मिक प्रभाव भक्तों के हृदय में निरंतर बना रहता है। लेखक का मानना है कि गुरु के भौतिक जन्म से अधिक महत्वपूर्ण उनका आध्यात्मिक प्रभाव है।
(iii) लेखक की दृष्टि में गुरु के पार्थिव शरीर के आविर्भाव के स्थान पर उनके आध्यात्मिक प्रभाव को अधिक महत्व मिलना चाहिए। चंद्रमा सोलह (षोडश) कलाओं से परिपूर्ण होता है। कार्तिक पूर्णिमा का संबंध गुरु नानकदेव से जोड़ा जाता है।
(iv) चंद्रमा सोलह (षोडश) कलाओं से परिपूर्ण होता है।
(v) कार्तिक पूर्णिमा का संबंध गुरु नानकदेव से जोड़ा जाता है।
(ख) गुरु जिस किसी भी शुभ क्षण में चित्त में आविर्भूत हो जायँ, वही क्षण उत्सव का है, वही क्षण उल्लसित कर देने के लिएपर्याप्त है।
नवो नवो भवसि जायमानः- गुरु, तुम प्रतिक्षण चित्तभूमि में आविर्भूत होकर नित्य नवीन हो रहे हो। हजारों वर्षों से शरत्काल की यह सर्वाधिक प्रसन्न तिथि प्रभामण्डित पूर्णचन्द्र के साथ उतनी ही मीठी ज्योति के धनी महामानव का स्मरण कराती रही है। इस चन्द्रमा के साथ महामानवों का सम्बन्ध जोड़ने में इस देश का समष्टि चित्त, आह्लाद अनुभव करता है। हम ‘रामचन्द्र’, ‘कृष्णचन्द्र’ आदि कहकर इसी आह्लाद को प्रकट करते हैं। गुरु नानकदेव के साथ इस पूर्णचन्द्र का सम्बन्ध जोड़ना भारतीय जनता के मानस के अनुकूल है। आज वह अपना आह्लाद प्रकट करती है।
प्रश्न
(i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(ii) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(iii) शरदकाल की यह तिथि किसकी याद कराती रही है?
(iv) उत्सव का क्षण कौन-सा है?
(v) शरद पूर्णिमा किसका स्मरण कराती है?
उत्तर-
(i) संदर्भ: यह गद्यांश आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘गुरु नानकदेव’ नामक पाठ से लिया गया है। इसमें लेखक गुरु की महिमा और शरद पूर्णिमा के महत्व पर प्रकाश डालते हैं।
(ii) रेखांकित अंशों की व्याख्या:
“गुरु जिस किसी भी शुभ क्षण में चित्त में आविर्भूत हो जायँ, वही क्षण उत्सव का है”: यह पंक्ति गुरु के महत्व को दर्शाती है। जब भी हमें गुरु का स्मरण होता है, वह क्षण आनंद और उत्सव का बन जाता है।
“नवो नवो भवसि जायमानः”: इसका अर्थ है कि गुरु हमारे मन में हर बार नए रूप में प्रकट होते हैं। यह गुरु के ज्ञान की निरंतरता और नवीनता को दर्शाता है।
(iii) शरदकाल की यह तिथि गुरु नानकदेव जी की याद दिलाती है। यह तिथि पूर्णिमा के चांद के साथ उनके जीवन और शिक्षाओं का स्मरण कराती है।
(iv) उत्सव का क्षण वह है जब हमारे मन में गुरु का स्मरण होता है। यह क्षण हमें आनंद और प्रेरणा से भर देता है।
(v) शरद पूर्णिमा विशेष रूप से गुरु नानकदेव जी का स्मरण कराती है। यह तिथि उनके जीवन और शिक्षाओं के महत्व को याद दिलाती है, जो भारतीय संस्कृति में गहराई से जुड़ी हुई है।
(ग) विचार और आचार की दुनिया में इतनी बड़ी क्रान्ति ले आनेवाला यह सन्त इतने मधुर, इतने स्निग्ध, इतने मोहक वचनों को बोलनेवाला है। किसी का दिल दुखाये बिना, किसी पर आघात किये बिना, कुसंस्कारों को छिन्न करने की शक्ति रखनेवाला, नयी संजीवनी धारा से प्राणिमात्र को उल्लसित करनेवाला यह सन्त मध्यकाल की ज्योतिष्क मण्डली में अपनी निराली शोभा से शरत् पूर्णिमा के पूर्णचन्द्र की तरह ज्योतिष्मान् है। आज उसकी याद आये बिना नहीं रह सकती। वह सब प्रकार से लोकोत्तर है। उसका उपचार प्रेम और मैत्री है। उसका शास्त्र सहानुभूति और हित-चिन्ता है।
प्रश्न
(i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए। |
(ii) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(iii) गुरुनानक जी का उपचार क्या है?
(iv) क्रान्ति लाने वाले यहाँ किस सन्त का वर्णन है?
(v) शरद पूर्णिमा के पूर्ण चन्द्र की तरह कौन ज्योतिष्मान है?
उत्तर-
(i) संदर्भ: यह गद्यांश आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘गुरु नानकदेव’ नामक पाठ से लिया गया है। इसमें लेखक गुरु नानकदेव के व्यक्तित्व और उनके समाज पर प्रभाव का वर्णन करते हैं।
(ii) रेखांकित अंशों की व्याख्या:
“विचार और आचार की दुनिया में इतनी बड़ी क्रान्ति ले आनेवाला”: यह वाक्य गुरु नानकदेव के समाज पर गहरे प्रभाव को दर्शाता है। उन्होंने लोगों के सोच और व्यवहार में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाया।
“नयी संजीवनी धारा से प्राणिमात्र को उल्लसित करनेवाला”: इसका अर्थ है कि गुरु नानकदेव के उपदेशों ने लोगों में नया जीवन और उत्साह भर दिया।
(iii) गुरु नानकदेव का उपचार प्रेम और मैत्री है। वे मानते थे कि प्यार और दोस्ती से ही समाज की बुराइयाँ दूर की जा सकती हैं।
(iv) यहाँ क्रांति लाने वाले संत गुरु नानकदेव का वर्णन है। उन्होंने अपने मधुर वचनों और आचरण से समाज में बड़ा परिवर्तन लाया।
(v) गुरु नानकदेव को शरद पूर्णिमा के पूर्ण चंद्र की तरह ज्योतिष्मान बताया गया है। यह उपमा उनके प्रकाशमान व्यक्तित्व और समाज पर उनके प्रभाव को दर्शाती है।
(घ) किसी लकीर को मिटाये बिना छोटी बना देने का उपाय है बड़ी लकीर खींच देना। क्षुद्र अहमिकाओं और अर्थहीन संकीर्णताओं की क्षुद्रता सिद्ध करने के लिए तर्क और शास्त्रार्थ का मार्ग कदाचित् ठीक नहीं है। सही उपाय है बड़े सत्य को प्रत्यक्ष कर देना। गुरु नानक ने यही किया। उन्होंने जनता को बड़े-से-बड़े सत्य के सम्मुखीन कर दिया, हजारों दीये उस महाज्योति के सामने स्वयं फीके पड़ गये।।
प्रश्न
(i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) हजारो दीये किसके सामने स्वयं फीके पड़ गये?
(iv) छोटी लकीर के सामने बड़ी लकीर खींच देने की क्या तात्पर्य है?
(v) अहमिकाओं और कार्यहीन संकीर्णताओं की क्षुद्रता सिद्ध करने का सही उपाय क्या है?
उत्तर-
(i) संदर्भ: यह गद्यांश आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘गुरु नानकदेव’ नामक निबंध से लिया गया है। इसमें लेखक गुरु नानकदेव के उपदेशों के प्रभाव और उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए महान सत्य का वर्णन करते हैं।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या: “किसी लकीर को मिटाये बिना छोटी बना देने का उपाय है बड़ी लकीर खींच देना” का अर्थ है कि किसी चीज को नकारात्मक रूप से खंडित किए बिना उसकी महत्ता कम करने का तरीका है उससे बड़ी और महत्वपूर्ण चीज प्रस्तुत करना। यह गुरु नानकदेव के उपदेश देने के तरीके को दर्शाता है।
(iii) हजारों दीये गुरु नानकदेव द्वारा प्रस्तुत किए गए महान सत्य की महाज्योति के सामने फीके पड़ गए। यह उपमा गुरु नानकदेव के उपदेशों की महानता और प्रभाव को दर्शाती है।
(iv) छोटी लकीर के सामने बड़ी लकीर खींचने का तात्पर्य है कि छोटी समस्याओं या विचारों को बड़े और महत्वपूर्ण विचारों या सत्य के माध्यम से नगण्य बना देना। गुरु नानकदेव ने यही किया – उन्होंने बड़े सत्य को प्रस्तुत करके लोगों की छोटी सोच को परिवर्तित किया।
(v) अहंकार और व्यर्थ की संकीर्णताओं की तुच्छता सिद्ध करने का सही उपाय है बड़े सत्य को प्रत्यक्ष रूप से प्रस्तुत करना। गुरु नानकदेव ने लोगों को सीधे महान सत्य से अवगत कराया, जिससे छोटी-छोटी बातें स्वतः ही महत्वहीन हो गईं।
(ङ) भगवान् जब अनुग्रह करते हैं तो अपनी दिव्य ज्योति ऐसे महान् सन्तों में उतार देते हैं। एक बार जब यह ज्योति मानव देह को आश्रय करके उतरती है तो चुपचाप नहीं बैठती। वह क्रियात्मक होती है, नीचे गिरे हुए अभाजन लोगों को वह प्रभावित करती है, ऊपर उठाती है। वह उतरती है और ऊपर उठाती है। इसे पुराने पारिभाषिक शब्दों में कहें तो कुछ इस प्रकार होगा कि एक ओर उसका ‘अवतार’ होता है, दूसरी ओर औरों का उद्धार होता है। अवतार और उद्धार की यह लीला भगवान् के प्रेम का सक्रिय रूप है, जिसे पुराने भक्तजन ‘अनुग्रह’ कहते हैं। आज से लगभग पाँच सौ वर्ष से पहले परम प्रेयान् हरि का यह ‘अनुग्रह’ सक्रिय हुआ था, वह आज भी क्रियाशील है। आज कदाचित् गुरु की वाणी र सबसे अधिक तीव्र आवश्यकता अनुभूत हो रही है।
प्रश्न
(i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) भगवान के प्रेम में क्या सक्रिय रूप है?
(iv) सन्तजन क्या कार्य करते हैं?
(v) अनुग्रह का क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
(i) संदर्भ: यह गद्यांश आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘गुरु नानकदेव’ नामक निबंध से लिया गया है। इसमें लेखक ईश्वरीय कृपा और महान संतों के माध्यम से उसके प्रकट होने की व्याख्या करते हैं।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या: “भगवान् जब अनुग्रह करते हैं तो अपनी दिव्य ज्योति ऐसे महान् सन्तों में उतार देते हैं” का अर्थ है कि जब ईश्वर किसी पर विशेष कृपा करता है, तो वह अपना दिव्य प्रकाश महान संतों के रूप में प्रकट करता है। यह संत फिर समाज के उत्थान के लिए कार्य करते हैं।
(iii) भगवान के प्रेम का सक्रिय रूप अवतार और उद्धार की लीला है। इसका अर्थ है कि ईश्वर का प्रेम किसी महान व्यक्ति के रूप में प्रकट होता है (अवतार), जो फिर दूसरों की मदद करता है (उद्धार)।
(iv) संतजन समाज में गिरे हुए लोगों को प्रभावित करते हैं और उन्हें ऊपर उठाते हैं। वे अपने ज्ञान और कर्मों से लोगों का मार्गदर्शन करते हैं और उनका उद्धार करते हैं।
(v) अनुग्रह का तात्पर्य है ईश्वर की विशेष कृपा। यह कृपा महान संतों के रूप में प्रकट होती है, जो अपने कार्यों और उपदेशों से समाज का कल्याण करते हैं। भक्तजन इसे ईश्वर का प्रेम मानते हैं।
(च) महागुरु, नयी आशा, नयी उमंग, नये उल्लास की आशा में आज इस देश की जनता तुम्हारे चरणों में प्रणति निवेदन कर रही है। आशा की ज्योति विकीर्ण करो, मैत्री और प्रीति की स्निग्ध धारा से आप्लावित करो। हम उलझ गये हैं, भटक गये हैं, पर कृतज्ञता अब भी हम में रह गयी है। आज भी हम तुम्हारी अमृतोपम वाणी को भूल नहीं गये हैं। कृतज्ञ भारत को प्रणाम अंगीकार करो।
प्रश्न
(i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) ‘कृतज्ञ भारत का प्रणाम अंगीकार करो’ का क्या मतलब है?
(iv) कृतज्ञता से आप क्या समझते हैं?
(v) लेखक गुरु से किस प्रकार की ज्योति विकीर्ण करने का निवेदन कर रहा है?
उत्तर-
(i) संदर्भ: यह गद्यांश आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘गुरु नानकदेव’ नामक निबंध से लिया गया है। इसमें लेखक गुरु नानकदेव के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए उनसे मार्गदर्शन की प्रार्थना करते हैं।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या: “महागुरु, नयी आशा, नयी उमंग, नये उल्लास की आशा में आज इस देश की जनता तुम्हारे चरणों में प्रणति निवेदन कर रही है” का अर्थ है कि लोग गुरु नानकदेव से नई आशा और उत्साह पाने की इच्छा से उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन कर रहे हैं। यह वाक्य गुरु के प्रति लोगों की आस्था और उनसे मार्गदर्शन पाने की आकांक्षा को दर्शाता है।
(iii) ‘कृतज्ञ भारत का प्रणाम अंगीकार करो’ का मतलब है कि गुरु नानकदेव से प्रार्थना की जा रही है कि वे भारत के आभारी लोगों के नमन को स्वीकार करें। यह वाक्य लोगों की गुरु के प्रति कृतज्ञता और उनके आशीर्वाद की कामना को व्यक्त करता है।
(iv) कृतज्ञता का अर्थ है किसी के उपकार या सहायता के लिए धन्यवाद और सम्मान का भाव रखना। यह एक गुण है जो किसी व्यक्ति की मदद या योगदान को पहचानने और उसकी सराहना करने की क्षमता दर्शाता है।
(v) लेखक गुरु से आशा की ज्योति विकीर्ण करने का निवेदन कर रहा है। वह चाहता है कि गुरु लोगों के मन में नई उम्मीद और सकारात्मक दृष्टिकोण का संचार करें, जो उन्हें जीवन की कठिनाइयों का सामना करने में मदद करेगा।
प्रश्न 2. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का जीवन-परिचय बताते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी हिंदी के महान साहित्यकार और विद्वान थे। उनका जन्म 19 अगस्त 1907 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के आरत दुबे का छपरा गाँव में हुआ था। उनका परिवार परंपरागत रूप से वैदिक अध्ययन और ज्योतिष शास्त्र से जुड़ा हुआ था, जिससे द्विवेदी जी का प्रारंभिक जीवन विद्या और ज्ञान के बीच बीता। उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की और बाद में हिंदी साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे एक प्रसिद्ध निबंधकार, आलोचक, उपन्यासकार और संस्कृत विद्वान थे। 19 मई 1979 को उनका निधन हो गया।
प्रश्न 3. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के जीवन एवं साहित्यिक परिचय का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं:-
- आलोक पर्व – इस निबंध संग्रह में भारतीय संस्कृति और साहित्य पर विचार प्रस्तुत किए गए हैं।
- बाणभट्ट की आत्मकथा – यह उनका प्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें प्राचीन भारत के साहित्यकार बाणभट्ट की जीवन गाथा प्रस्तुत की गई है।
- अनामदास का पोथा – यह एक गहरे सांस्कृतिक संदर्भों से भरा उपन्यास है।
- कुटज – इसमें भारतीय जीवन के विभिन्न पक्षों का चित्रण किया गया है।
- निबंध संग्रह – उन्होंने अनेक निबंधों की रचना की, जिनमें साहित्य, इतिहास और संस्कृति पर गहन चर्चा की गई है।
प्रश्न 4. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की साहित्यिक विशेषताएँ बताते हुए उनकी भाषा-शैली पर अपने विचार प्रकट कीजिए। अथवा डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का जीवन भारतीय साहित्य के महान व्यक्तित्वों में से एक है। वे न केवल एक विद्वान थे, बल्कि हिंदी साहित्य और भारतीय संस्कृति के मर्मज्ञ भी थे। उनका जन्म एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ था, लेकिन उनकी विद्वत्ता ने उन्हें हिंदी के शीर्ष साहित्यकारों में स्थान दिलाया।
द्विवेदी जी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की और बाद में हिंदी साहित्य के प्रोफेसर बने। उन्होंने अपनी रचनाओं में भारतीय समाज, संस्कृति और जीवन के विविध पहलुओं को प्रस्तुत किया। वे अपने विचारों में गहरे और भाषा में सरल थे। उनके उपन्यास, निबंध और आलोचनात्मक लेखन ने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है।
उनकी साहित्यिक विशेषताएँ यह थीं कि उन्होंने भारतीय समाज की समस्याओं, संस्कृति और जीवन के विभिन्न पहलुओं को सरल और सजीव भाषा में प्रस्तुत किया। उनकी भाषा शैली में एक प्रकार की सहजता और प्रवाह था, जिससे उनके विचार सीधे पाठकों के हृदय तक पहुँचते थे। उनकी प्रमुख रचनाओं में “बाणभट्ट की आत्मकथा”, “अनामदास का पोथा”, और “कुटज” शामिल हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. अपने समकालीन सन्तों से गुरु नानकदेव किस प्रकार भिन्न एवं विशिष्ट हैं?
उत्तर- गुरु नानकदेव अपने समकालीन संतों से विशिष्ट थे क्योंकि उन्होंने प्रेम और एकता का संदेश दिया। उन्होंने जाति-पाति और धार्मिक भेदभाव को नकारा। गुरु नानकदेव ने गृहस्थ जीवन में रहकर भी आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग दिखाया, जो उस समय अनोखा था।
प्रश्न 2. अनुग्रह का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- अनुग्रह का अर्थ है ईश्वरीय कृपा। इसके अनुसार, ईश्वर अपनी दिव्य ज्योति महान संतों में प्रकट करता है। ये संत फिर समाज में सक्रिय होकर लोगों को ऊपर उठाते और प्रेरित करते हैं।
प्रश्न 3. ‘गुरु नानकदेव’ पाठ की भाषा-शैली पर तीन वाक्य लिखिए।
उत्तर- ‘गुरु नानकदेव’ पाठ की भाषा सरल और प्रवाहपूर्ण है। इसमें खड़ी बोली हिंदी का प्रयोग किया गया है, साथ ही उर्दू, फारसी और अंग्रेजी के शब्द भी मिलते हैं। लेखक की शैली भावपूर्ण और विचारोत्तेजक है।
प्रश्न 4. गुरु नानक की ‘सहज-साधना’ से सम्बन्धित लेखक के विचार संक्षेप में लिखिए।
उत्तर- गुरु नानक ‘सहज-साधना’ के समर्थक थे। उनका मानना था कि सरल जीवन जीना और बिना किसी आडंबर के ईश्वर की भक्ति करना ही सच्ची साधना है। उन्होंने दैनिक जीवन में ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण पर बल दिया।
प्रश्न 5. गुरु नानकदेव’ के आविर्भाव काल को दर्शाते हुए उनमें आनेवाली समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- गुरु नानकदेव का आविर्भाव लगभग 500 वर्ष पूर्व हुआ। उस समय समाज जातिवाद, धार्मिक कट्टरता, और अंधविश्वासों से ग्रस्त था। लोगों में एकता की कमी थी और समाज विभाजित था। इन परिस्थितियों में गुरु नानकदेव ने समाज सुधार का कार्य किया।
प्रश्न 6. किन तथ्यों के आधार पर लेखक ने कार्तिक पूर्णिमा को पवित्र तिथि बताया है?
उत्तर- लेखक ने कार्तिक पूर्णिमा को पवित्र तिथि इसलिए बताया है क्योंकि इस दिन पूरे भारत में विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ होती हैं। इस दिन प्रकृति भी अपने सर्वोत्तम रूप में होती है – आकाश निर्मल, वातावरण शांत, और चंद्रमा पूर्ण वैभव में होता है। यह दिन प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक महत्व का संगम है।
प्रश्न 7. गुरु नानकदेव द्वारा दिये गये जनता के सन्देश को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- गुरु नानकदेव ने प्रेम, समानता और सादगी का संदेश दिया। उन्होंने सिखाया कि ईश्वर के सामने सभी समान हैं, जाति या कुल का कोई महत्व नहीं है। उन्होंने बाह्य आडंबरों को त्यागने और अहंकार से दूर रहने पर जोर दिया। गुरु नानक ने सहज जीवन जीने और प्रेम को जीवन का मूल मंत्र बनाने का उपदेश दिया।
प्रश्न 8. कार्तिक पूर्णिमा क्यों प्रसिद्ध है? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
उत्तर- कार्तिक पूर्णिमा कई कारणों से प्रसिद्ध है। यह दिन गुरु नानकदेव का जन्म दिवस है, जो सिख धर्म के संस्थापक थे। इस दिन कई हिंदू तीर्थस्थलों पर स्नान का विशेष महत्व है। प्राकृतिक दृष्टि से यह शरद ऋतु का सबसे सुंदर दिन माना जाता है। इन सभी कारणों से यह तिथि भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान रखती है।
प्रश्न 9. गुरु नानकदेव पाठ से दस सुन्दर वाक्य लिखिए।
उत्तर-
- कार्तिक पूर्णिमा भारत की पवित्र तिथि है।
- शरदकाल का पूर्ण चंद्रमा अपने पूरे वैभव पर होता है।
- गुरु नानकदेव षोडश कला से पूर्ण स्निग्ध ज्योति महामानव थे।
- भारतवर्ष की मिट्टी में युग के अनुरूप महापुरुषों को जन्म देने का अद्भुत गुण है।
- गुरु नानक ने प्रेम का संदेश दिया है।
- ईश्वर नाम के सम्मुख जाति और कुल का बंधन निरर्थक है।
- प्रेम मानव का स्वभाव है।
- सहज जीवन बड़ी कठिन साधना है।
- सहज भाषा बड़ी बलवती आस्था है।
- किसी लकीर को मिटाए बिना छोटी बना देने का उपाय है बड़ी लकीर खींच देना।
प्रश्न 10. गुरु नानकदेव के गुणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- गुरु नानकदेव प्रेम, समानता और सरलता के प्रतीक थे। वे जाति-पाँति में विश्वास नहीं करते थे और सभी मनुष्यों को समान मानते थे। उन्होंने बाह्य आडंबरों का विरोध किया और सहज जीवन जीने पर बल दिया। गुरु नानक ने अहंकार त्यागने और निस्वार्थ सेवा का संदेश दिया, जो उनके व्यक्तित्व की विशेषता थी।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के दो उपन्यासों के नाम लिखिए।
उत्तर- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के दो प्रसिद्ध उपन्यास हैं: ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’ और ‘अनामदास का पोथा’।
प्रश्न 2. निम्नलिखित में से सही वाक्य के सम्मुख सही (✔) का चिह्न लगाइए –
उत्तर-
(अ) कार्तिक पूर्णिमा के साथ गुरु के आविर्भाव का सम्बन्ध जोड़ दिया गया है। (✔)
(ब) गुरु नानक ने प्रेम का संदेश दिया है। (✔)
(स) आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी द्विवेदी युग के लेखक हैं। (✘)
(द) सीधी लकीर खींचना आसान काम है। (✘)
प्रश्न 3. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी किस युग के लेखक हैं?
उत्तर- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी छायावादोत्तर युग के प्रमुख लेखक और आलोचक थे।
प्रश्न 4. ‘कबीर’ नामक रचना पर हजारीप्रसाद द्विवेदी को कौन-सा पारितोषिक प्राप्त हुआ?
उत्तर- ‘कबीर’ पुस्तक पर आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी को साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ।
प्रश्न 5. गुरु नानकदेव का आविर्भाव कब हुआ था?
उत्तर- गुरु नानकदेव का जन्म 15 अप्रैल 1469 को हुआ था, जो आज से लगभग 555 वर्ष पूर्व की बात है।
व्याकरण-बोध
प्रश्न 1. निम्नलिखित में सन्धि-विच्छेद करते हुए सन्धि का नाम लिखिए –
कुलाभिमान, सर्वाधिक, अनायास, लोकोत्तर, अमृतोपम।
उत्तर-
- कुलाभिमान – कुल + अभिमान – दीर्घ सन्धि
- सर्वाधिक – सर्व + अधिक – दीर्घ सन्धि
- अनायास – अन + आयास – दीर्ध सन्धि
- लोकोत्तर – लोक + उत्तर – गुण सन्धि
- अमृतोपम – अमृत + उपम – गुण सन्धि
प्रश्न 2. निम्नलिखित समस्त पदों का समास-विग्रह कीजिए तथा समास का नाम लिखिए –
अर्थहीन, महापुरुष, स्वर्णकमल, चित्रभूमि, प्राणधारा।
उत्तर-
- अर्थहीन – अर्थ से हीन – करण तत्पुरुष
- महापुरुष – महान् है पुरुष जो – कर्मधारय
- स्वर्णकमल – स्वर्णरूपी कमल – कर्मधारय
- चित्रभूमि – चित्रों से युक्त भूमि – करण तत्पुरुष
- प्राणधारा – प्राणरूपी धारा – कर्मधारय
प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों का प्रत्यय अलग कीजिए –
उत्तर-
शब्द – प्रत्यय
अवतार – र
संजीवनी – अनी
स्वाभाविक – इक
महत्त्व – त्व
प्रहार – र
उल्लसित – इत