Bihar Board class 10 Political Science chapter 1 solutions are available for free here. Our subject experts have provided written question answers of chapter 1 – “लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी” on this page.
लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी, बिहार बोर्ड कक्षा 10 की राजनीति विज्ञान पाठ्यपुस्तक का पहला अध्याय है। यह अध्याय छात्रों को लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में सत्ता के वितरण और साझेदारी के महत्वपूर्ण सिद्धांतों से परिचित कराता है। इसमें आप सीखेंगे कि एक स्वस्थ लोकतंत्र में सत्ता का केंद्रीकरण नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे विभिन्न स्तरों और समूहों के बीच बांटा जाना चाहिए। यह अध्याय सत्ता की साझेदारी के विभिन्न तरीकों, जैसे संघीय व्यवस्था, स्थानीय स्वशासन, और विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच शक्ति का बंटवारा, पर प्रकाश डालेगा।

Bihar Board Class 10 Political Science Chapter 1 Solutions
Contents
Subject | Political Science |
Class | 10th |
Chapter | 1. लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी |
Board | Bihar Board |
Bihar Board Class 10 Political Science Chapter 1 Question Answer
प्रश्न 1. ‘हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती’। कैसे?
उत्तर- प्रत्येक समाज में सामाजिक विभिन्नता पायी जाती है, जिसमें धर्म, जाति, भाषा, समुदाय, और लिंग शामिल हैं। हालांकि, यह आवश्यक नहीं है कि ये विभिन्नताएँ हमेशा सामाजिक विभाजन का कारण बनें। विभिन्न समुदायों के विचार अलग हो सकते हैं, लेकिन उनके हित समान हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, मुंबई में रहने वाले उत्तर भारतीयों के हित समान होते हैं, भले ही उनकी जाति, धर्म, या लिंग भिन्न हो। वे सभी अपने व्यवसाय और पेशे में संलग्न होते हैं। इसलिए, यह स्पष्ट होता है कि हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं ले पाती है।
प्रश्न 2. सामाजिक अन्तर कब और कैसे सामाजिक विभाजनों का रूप ले लेते हैं?
उत्तर- सामाजिक अन्तर और सामाजिक विभाजन में बहुत बड़ा अंतर होता है। जब कुछ सामाजिक अंतर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते हैं, तब सामाजिक विभाजन होता है। उदाहरण के लिए, सवर्ण और दलितों का अंतर एक सामाजिक विभाजन है, क्योंकि दलित आमतौर पर गरीब, वंचित और भेदभाव के शिकार होते हैं जबकि सवर्ण आमतौर पर सम्पन्न होते हैं। जब दलितों को यह महसूस होने लगता है कि वे दूसरे समुदाय के हैं, तो यह सामाजिक विभाजन की स्थिति बन जाती है। अमेरिका में श्वेत और अश्वेत का अंतर भी ऐसा ही एक सामाजिक विभाजन है। इसलिए, जब एक तरह का सामाजिक अंतर अन्य अंतर से ज्यादा महत्वपूर्ण बन जाता है, तब यह सामाजिक विभाजन बन जाता है।
प्रश्न 3. ‘सामाजिक विभाजनों की राजनीति के परिणामस्वरूप ही लोकतंत्र के व्यवहार में परिवर्तन होता है। भारतीय लोकतंत्र के संदर्भ में इसे स्पष्ट करें।
उत्तर- भारतीय लोकतंत्र में सामाजिक विभाजन का असर देश की राजनीति और सरकार की नीतियों पर बहुत हद तक पड़ता है। लोकतंत्र में विभिन्न समूहों से अलग-अलग वायदे करना राजनीतिक दलों के लिए स्वाभाविक है। अगर सरकार पिछड़े और दलितों के प्रति न्याय की मांग को अनदेखा करती, तो आज भारत विखंडन के कगार पर होता। लोकतंत्र में सामाजिक विभाजन की राजनीतिक अभिव्यक्ति एक सामान्य बात है और यह एक स्वस्थ राजनीति का लक्षण भी है। इससे सामाजिक विभाजन संतुलन में रहते हैं और लोकतंत्र मजबूत होता है। लोग शांतिपूर्ण और संवैधानिक तरीके से अपनी मांगों को उठाते हैं और चुनावों के माध्यम से दबाव बनाते हैं, जिससे उनके समाधान का प्रयास होता है।
प्रश्न 4. सत्तर के दशक से आधुनिक दशक के बीच भारतीय लोकतंत्र का सफर (सामाजिक न्याय के संदर्भ में) का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर- सत्तर के दशक से पहले भारतीय राजनीति में सवर्ण जातियों का वर्चस्व था। सत्तर से नब्बे के दशक के बीच, पिछड़ी जातियों और दलितों की जागरूकता बढ़ी और उनकी राजनीतिक भागीदारी बढ़ी। इन दशकों में दलितों और पिछड़ों का संघर्ष प्रभावी रहा और उनकी नीतियाँ सरकार द्वारा अपनाई गईं। आधुनिक दशकों में, दलित और महादलित (विशेषकर बिहार में) राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। सरकार की नीतियों में सामाजिक न्याय को महत्व दिया गया है और दलितों के अधिकारों की पहचान की गई है। इस प्रकार, भारतीय लोकतंत्र में सामाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है।
प्रश्न 5. सामाजिक विभाजनों की राजनीति का परिणाम किन-किन चीजों पर निर्भर करता है?
उत्तर- सामाजिक विभाजन की राजनीति तीन प्रमुख तत्वों पर निर्भर करती है:-
- लोगों की पहचान की भावना: यदि लोग अपनी पहचान को राष्ट्रीय पहचान का हिस्सा मानते हैं तो कोई समस्या नहीं होती। उदाहरण के लिए, बेल्जियम में लोग खुद को बेल्जियाई मानते हैं, भले ही वे डच और जर्मन बोलते हैं। भारत में भी, विभिन्नताओं के बावजूद, लोग अपने को पहले भारतीय मानते हैं।
- राजनीतिक दलों की भूमिका: यदि राजनीतिक दल संविधान के दायरे में रहकर और दूसरे समुदायों को नुकसान न पहुंचाकर मांगों को उठाते हैं, तो सामाजिक संतुलन बना रहता है। इसके विपरीत, युगोस्लाविया में नेताओं की अतिवादी मांगों ने देश को विभाजन की ओर धकेल दिया।
- सरकार की प्रतिक्रिया: सरकार की नीतियाँ और उनके कार्यान्वयन का तरीका भी महत्वपूर्ण है। यदि सरकार न्यायपूर्ण मांगों को मान लेती है, तो सामाजिक संतुलन बना रहता है। उदाहरण के लिए, भारत में सरकार ने दलितों और पिछड़ों की मांगों को मानते हुए उन्हें सत्ता में भागीदार बनाया, जिससे सामाजिक सामंजस्य स्थापित हुआ। वहीं, श्रीलंका में तमिलों की मांगों को दबाने से विभाजन की स्थिति उत्पन्न हुई।
प्रश्न 6. सामाजिक विभाजनों को संभालने के संदर्भ में इनमें से कौन-सा बयान लोकतांत्रिक व्यवस्था पर लागू नहीं होता?
(क) लोकतंत्र राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते सामाजिक विभाजनों की छाया (reflection) राजनीति पर भी पड़ता है।
(ख) लोकतंत्र में विभिन्न समुदायों के लिए शांतिपूर्ण ढंग से अपनी शिकायतें जाहिर करना संभव है।
(ग) लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों को हल (accomodate) करने का सबसे अच्छा तरीका है।
(घ) लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों के आधार पर (on the basis of social division) समाज विखण्डन (disintegration) की ओर ले जाता है।
उत्तर- (क) लोकतंत्र राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते सामाजिक विभाजनों की छाया (reflection) राजनीति पर भी पड़ता है।
प्रश्न 7. निम्नलिखित तीन बयानों पर विचार करें
(क) जहाँ सामाजिक अन्तर एक दूसरे से टकराते हैं (Social differences overlaps), वहाँ सामाजिक विभाजन होता है।
(ख) यह संभव है एक व्यक्ति की कई पहचान (multiple indentities) हो।
(ग) सिर्फ भारत जैसे बड़े देशों में ही सामाजिक विभाजन होते हैं।
इन बयानों में स कौन-कौन से बयान सही हैं?
(अ) क, ख और ग
(ब) क और ख
(स) ख और ग
(द) सिर्फ ग
उत्तर- (ब) क और ख
प्रश्न 8. निम्नलिखित व्यक्तियों में कौन लोकतंत्र में रंगभेद के विरोधी नहीं थे?
(क) किग मार्टिन लूथर
(ख) महात्मा गांधी
(ग) ओलंपिक धावक टोमी स्मिथ एवं जॉन कॉलेंस
(घ) जेड गुडी
उत्तर- (ग) ओलंपिक धावक टोमी स्मिथ एवं जॉन कॉलेंस
Bihar Board Class 10 Political Science Chapter 1 मिलान करें
प्रश्न 9. निम्नलिखित का मिलान करें
उत्तर-
(क) पाकिस्तान | (ब) इस्लाम |
(ख) हिन्दुस्तान | (अ) धर्मनिरपेक्ष |
(ग) इंग्लैंड | (स) प्रोस्टेंट |
प्रश्न 10. भावी समाज में लोकतंत्र की जिम्मेवारी और उद्देश्य पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर: लोकतंत्र एक ऐसी शासन प्रणाली है जो जनता के द्वारा, जनता के लिए और जनता की होती है। भविष्य में लोकतंत्र की जिम्मेदारी है कि वह सभी नागरिकों को समान अधिकार, न्याय और अवसर प्रदान करे। इसका उद्देश्य सामाजिक समानता, आर्थिक न्याय और सांस्कृतिक को बढ़ावा देना है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोगों की भागीदारी से ही नीतियों का निर्माण होता है, जिससे समाज की भलाई होती है। भावी समाज में लोकतंत्र का उद्देश्य एक ऐसे समाज की स्थापना करना है जहां हर व्यक्ति स्वतंत्र, समान और सम्मानित जीवन जी सके।
प्रश्न 11. भारत में किस तरह जातिगत असमानताएँ जारी हैं?
उत्तर: भारत में जातिगत असमानताएँ आज भी समाज के विभिन्न क्षेत्रों में देखी जाती हैं। शिक्षा, रोजगार, और सामाजिक प्रतिष्ठा में जातिगत भेदभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। ऊँची जातियों को अक्सर अधिक अवसर और संसाधन मिलते हैं, जबकि दलित और पिछड़ी जातियाँ इससे वंचित रह जाती हैं। विवाह, खान-पान और अन्य सामाजिक व्यवहार में भी जातिगत बंटवारे मौजूद हैं। हालांकि, सरकार और समाज सुधारकों के प्रयास से इसमें कुछ सुधार हुआ है, लेकिन जातिगत असमानताएँ पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई हैं।
प्रश्न 12. क्यों सिर्फ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं हो सकते? इसके दो कारण बताएं।
उत्तर: (i) भारत में निर्वाचन क्षेत्रों का गठन इस प्रकार किया गया है कि उनमें विभिन्न जातियों के लोग रहते हैं। किसी एक जाति के मतदाता की संख्या अधिक हो सकती है, लेकिन दूसरे जातियों के मतदाता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए, हर राजनीतिक पार्टी को विभिन्न जातियों के लोगों का समर्थन चाहिए।
(ii) यदि जातिगत भावना स्थायी और अटूट होती, तो जातीय गोलबंदी पर सत्ता में आनेवाली पार्टी की कभी हार नहीं होती। क्षेत्रीय पार्टियाँ जातीय गुटों से संबंध बनाकर सत्ता में आ सकती हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन पाने के लिए जाति विहीन और समावेशी दृष्टिकोण आवश्यक है।
प्रश्न 13. विभिन्न तरह की साम्प्रदायिक राजनीति का ब्योरा दें और सबके साथ एक-एक उदाहरण दें।
उत्तर: साम्प्रदायिक राजनीति की तीन प्रमुख प्रकार हैं:
- धर्म आधारित साम्प्रदायिकता: इसमें एक धर्म को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ माना जाता है। उदाहरण: श्रीलंका में सिंहली बहुसंख्यकवाद, जहाँ सिंहलियों को प्राथमिकता दी जाती है।
- साम्प्रदायिक गोलबंदी: इसमें धार्मिक प्रतीकों और धर्मगुरुओं का सहारा लेकर एक धर्म के अनुयायियों को संगठित किया जाता है। उदाहरण: चुनावों के समय धार्मिक अपील करना।
- साम्प्रदायिक हिंसा: इसमें धर्म के आधार पर दंगे और हिंसा होती है। उदाहरण: भारत के विभाजन के समय हुए साम्प्रदायिक दंगे।
प्रश्न 14. जीवन के विभिन्न पहलुओं का जिक्र करें जिसमें भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव है या वे कमजोर स्थिति में हैं?
उत्तर: भारत में स्त्रियों के साथ विभिन्न क्षेत्रों में भेदभाव होता है:
- शिक्षा: महिलाओं की साक्षरता दर पुरुषों की तुलना में कम है और उच्च शिक्षा में भी उनका प्रतिशत कम है।
- रोजगार: उच्च पदों पर महिलाओं की संख्या कम है और उन्हें समान कार्य के लिए पुरुषों से कम वेतन मिलता है।
- घर के कामकाज: महिलाएं घर के कार्यों में अधिक समय व्यतीत करती हैं, लेकिन इसे श्रम के रूप में मान्यता नहीं मिलती।
- स्वास्थ्य: महिलाओं की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सीमित है और मातृ मृत्यु दर अधिक है।
- सामाजिक पूर्वाग्रह: कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह और दहेज प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियाँ आज भी जारी हैं।
प्रश्न 15. भारत की विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है?
उत्तर: भारत की विधायिकाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व पुरुषों की तुलना में बहुत कम है। वर्तमान में लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 11 प्रतिशत से कम है। हालांकि, महिलाएं राजनीति में सक्रिय हो रही हैं और कुछ प्रमुख पदों पर भी आसीन हुई हैं। महिला आरक्षण बिल पारित करने के प्रयास हो रहे हैं, जिससे महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की कोशिशें की जा रही हैं। पंचायत स्तर पर 33 प्रतिशत आरक्षण के बावजूद उच्च स्तर की विधायिकाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अभी भी संतोषजनक नहीं है। महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाना लोकतंत्र की मजबूती और समावेशी विकास के लिए आवश्यक है।
प्रश्न 16. किन्हीं दो प्रावधानों का जिक्र करें जो भारत को धर्मनिरपेक्ष देश बनाते हैं
उत्तर- हमारे संविधान में धर्मनिरपेक्ष समाज की स्थापना के लिए अनेक प्रावधान किये गये हैं जिनमें दो इस प्रकार हैं
हमारे देश में किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है। . श्रीलंका में बौद्ध धर्म, पाकिस्तान में इस्लाम और इंगलैण्ड में ईसाई धर्म को जो दर्जा दिया गया ‘ है, उसके विपरीत भारत का संविधान किसी धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता।
हमारे संविधान के अनुसार धर्म के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव असंवैधानिक घोषित है।
प्रश्न 17. जब हम लगिक विभाजन की बात करते हैं तो हमारा अभिप्राय होता है
(क) स्त्री और पुरुष के बीच जैविक अन्तर।
(ख) समाज द्वारा स्त्रियों और पुरुषों को दी गयी असमान भूमिकाएँ।
(ग) बालक और बालिकाओं की संख्या का अनुपात।
(घ) लोकतांत्रिक व्यवस्था में महिलाओं को मतदान अधिकार न मिलना।
उत्तर- (क) स्त्री और पुरुष के बीच जैविक अन्तर।
प्रश्न 18. भारत में यहाँ औरतों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है-
(क) लोकसभा
(ख) विधानसभा
(ग) मंत्रीमण्डल
(घ) पंचायती राज्य संस्थाएँ
उत्तर- (घ) पंचायती राज्य संस्थाएँ
प्रश्न 19. साम्प्रदायिक राजनीतिक के अर्थ संबंधी निम्न कथनों पर गौर करें। साम्प्रदायिक राजनीति किस पर आधारित है?
(क) एक धर्म दूसरे धर्म से श्रेष्ठ है।
(ख) विभिन्न धर्मों के लोग समान नागरिक के रूप में खुशी-खुशी साथ रहते हैं।
(ग) एक धर्म के अनुयायी एक समुदाय बनाते हैं।
(घ) एक धार्मिक समूह का प्रभुत्व बाकी सभी धर्मों पर कायम रहने में शासन की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
उत्तर- (घ) एक धार्मिक समूह का प्रभुत्व बाकी सभी धर्मों पर कायम रहने में शासन की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
प्रश्न 20. भारतीय संविधान के बारे में इनमें से कौन-सा कथन सही है ?
(क) यह धर्म के आधार पर भेदभाव की मनाही करता है।
(ख) यह एक धर्म को राजकीय धर्म बनाता है।
(ग) सभी लोगों को कोई भी धर्म मानने की आजादी देता है।
(घ) किसी धार्मिक समुदाय में सभी नागरिकों को बराबरी का अधिकार देता है।
उत्तर- (क) यह धर्म के आधार पर भेदभाव की मनाही करता है।
प्रश्न 21. ……….पर आधारित विभाजन सिर्फ भारत में है।
उत्तर- जाति, धर्म और लिंग
Bihar Board Class 10 Political Science Chapter 1 मेल कराएं
प्रश्न 22. सूची I और सूची II का मेल कराएं
1. अधिकार और अवसरों के मामले में स्त्री और पुरुषों की बराबरी मानने वाला व्यक्ति । | (ख) नारीवाद व्यक्ति |
2. धर्म को समुदाय का मुख्य आधार माननेवाला व्यक्ति | (क) साम्प्रदायिक |
3. जाति को समुदाय का मुख्य आधार माननेवाला व्यक्ति | (घ) जातिवादी |
4. व्यक्तियों के बीच धार्मिक आस्था के आधार पर भेदभाव न करनेवाला व्यक्ति | (ग) धर्मनिरपेक्ष |
Other Chapter Solutions |
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Chapter 1 Solutions – लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी |
Chapter 2 Solutions – सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली |
Chapter 3 Solutions – लोकतंत्र में प्रतिस्पर्धा एवं संघर्ष |
Chapter 4 Solutions – लोकतंत्र की उपलब्धियाँ |
Chapter 5 Solutions – लोकतंत्र की चुनौतियाँ |