UP Board Class 9 History Chapter 3 Solutions – नात्सीवाद और हिटलर का उदय

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इस अध्याय में आप 20वीं सदी के एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद काल के बारे में जानेंगे – जर्मनी में नात्सीवाद का उदय और एडोल्फ हिटलर का सत्ता में आना। आप समझेंगे कि प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी की दयनीय स्थिति ने कैसे नात्सी विचारधारा के प्रसार में मदद की। इस अध्याय में आप हिटलर के जीवन, उसके राजनीतिक उत्थान, और नात्सी पार्टी की नीतियों के बारे में पढ़ेंगे। साथ ही, आप यह भी जानेंगे कि कैसे नात्सीवाद ने जर्मनी में लोकतंत्र को नष्ट किया और एक तानाशाही शासन स्थापित किया।

UP Board class 9 History chapter 3

UP Board Class 9 History Chapter 3 Solutions

SubjectHistory
Class9th
Chapter3. नात्सीवाद और हिटलर का उदय
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नात्सीवाद और हिटलर का उदय Question Answer

प्रश्न 1. वाइमर गणराज्य के सामने क्या समस्याएँ थीं?

उत्तर:- वाइमर गणराज्य के सामने अनेक गंभीर समस्याएँ थीं। यह गणराज्य, जो प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1918 में स्थापित हुआ था, शुरू से ही लोकप्रियता की कमी से जूझ रहा था। कई जर्मन इसे मित्र देशों द्वारा थोपा गया मानते थे। वर्साय की संधि ने इसकी मुश्किलें और बढ़ा दीं। इस कठोर संधि ने जर्मनी पर भारी जुर्माना और प्रतिबंध लगाए, जिससे लोगों में असंतोष बढ़ा। 6 अरब पाउंड का जुर्माना चुकाना जर्मनी के लिए लगभग असंभव था, जिससे देश गंभीर आर्थिक संकट में फँस गया।

इसके अलावा, जर्मनी में राष्ट्रवादी भावनाएँ बहुत प्रबल थीं। सैन्य गौरव और राष्ट्रीय प्रतिष्ठा की चाह लोकतांत्रिक मूल्यों से कहीं ज्यादा मजबूत थी। इसी बीच, रूसी क्रांति से प्रेरित होकर, जर्मनी के कुछ हिस्सों में साम्यवादी विचार भी फैल रहे थे। 1923 में जब जर्मनी ने भुगतान करने से इनकार किया, तो फ्रांस ने रूर औद्योगिक क्षेत्र पर कब्जा कर लिया, जिससे जर्मनी की प्रतिष्ठा को और धक्का लगा।

1929 की वैश्विक आर्थिक मंदी ने जर्मनी की स्थिति और बिगाड़ दी। महंगाई और बेरोजगारी चरम पर पहुँच गई। वाइमर सरकार इन समस्याओं से निपटने में पूरी तरह असमर्थ साबित हुई। ये सभी कारक मिलकर वाइमर गणराज्य को कमजोर करते गए, जिससे अंततः इसका पतन हो गया और जर्मनी में नए शासन का मार्ग प्रशस्त हुआ।

प्रश्न 2. इस बारे में चर्चा कीजिए कि 1930 ई. तक आते-आते जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता क्यों मिलने लगी?

उत्तर:- 1930 तक आते-आते जर्मनी में नात्सीवाद की लोकप्रियता कई कारणों से बढ़ी। इसकी जड़ें प्रथम विश्व युद्ध के बाद की परिस्थितियों में थीं।

सबसे पहले, जर्मनी गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा था। युद्ध ने देश की अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया था। महंगाई बेकाबू हो गई थी और मुद्रा का मूल्य तेजी से गिर रहा था। एक समय ऐसा आया जब एक डॉलर के लिए लाखों मार्क चाहिए थे। 1929 की वैश्विक आर्थिक मंदी ने स्थिति और भी बदतर कर दी। बेरोजगारी चरम पर थी और लोग भूखमरी का सामना कर रहे थे।

दूसरा महत्वपूर्ण कारण वर्साय की संधि थी। इस संधि ने जर्मनी पर बहुत कठोर शर्तें लगाई थीं, जिसमें भारी क्षतिपूर्ति और सैन्य प्रतिबंध शामिल थे। जर्मन लोग इसे अपमानजनक मानते थे और इससे उनमें गुस्सा और प्रतिशोध की भावना पैदा हुई।

वाइमर गणराज्य, जो युद्ध के बाद स्थापित किया गया था, इन समस्याओं से निपटने में पूरी तरह असफल रहा। लगातार बदलती सरकारों और राजनीतिक अस्थिरता ने लोकतंत्र में लोगों का विश्वास कम कर दिया। लोग एक मजबूत नेता की तलाश में थे जो उनकी समस्याओं का समाधान कर सके।

इस माहौल में एडोल्फ हिटलर और उसकी नात्सी पार्टी ने लोगों को एक नई आशा दी। हिटलर एक प्रभावशाली वक्ता था। वह जर्मनी की खोई हुई प्रतिष्ठा वापस लाने, आर्थिक समस्याओं को हल करने और एक मजबूत जर्मनी बनाने का वादा करता था। उसने बेरोजगारों को नौकरियाँ, युवाओं को सुरक्षित भविष्य और जर्मनी को फिर से विश्व शक्ति बनाने की बात कही।

नात्सी पार्टी ने अपने प्रचार में हिटलर को एक मसीहा के रूप में पेश किया। उन्होंने यहूदियों और कम्युनिस्टों को जर्मनी की समस्याओं का कारण बताया, जो कई लोगों को आकर्षक लगा। पार्टी ने युवाओं और बेरोजगारों को संगठित किया और बड़े पैमाने पर रैलियाँ आयोजित कीं।

इस तरह, आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता, राष्ट्रीय अपमान की भावना, और एक मजबूत नेता की चाह ने मिलकर नात्सीवाद के लिए अनुकूल माहौल बनाया। हिटलर ने इन परिस्थितियों का चतुराई से फायदा उठाया और धीरे-धीरे अपना समर्थन बढ़ाया। 1933 तक, नात्सी पार्टी जर्मनी की सबसे बड़ी राजनीतिक शक्ति बन गई और हिटलर चांसलर बन गया।

प्रश्न 3. नात्सी सोच के खास पहलू कौन-से थे?

उत्तर:- नात्सी विचारधारा, जिसे हिटलर और उसके अनुयायियों ने विकसित किया, कई विशिष्ट विचारों पर आधारित थी। ये विचार जर्मनी में 1930 के दशक में बहुत प्रभावशाली हो गए। नात्सी सोच के मुख्य पहलू इस प्रकार थे:-

  1. जर्मन श्रेष्ठता: नात्सी जर्मन लोगों को दुनिया की सबसे श्रेष्ठ नस्ल मानते थे। वे जर्मनी को विश्व का नेतृत्व करने योग्य देश समझते थे।
  2. नस्लवाद: वे ‘शुद्ध’ जर्मन नस्ल की रक्षा करना चाहते थे। उनका मानना था कि यहूदी, जिप्सी और अन्य समुदाय जर्मन समाज के लिए खतरा हैं।
  3. जीवन स्थान: नात्सी जर्मनी के विस्तार में विश्वास रखते थे। वे मानते थे कि जर्मनों को अधिक भूमि की आवश्यकता है।
  4. एकाधिकारवाद: वे लोकतंत्र के विरोधी थे। उनका मानना था कि एक मजबूत नेता (फ़ूहरर) के नेतृत्व में ही देश उन्नति कर सकता है।
  5. सैन्यवाद: नात्सी युद्ध और सैन्य शक्ति को महत्व देते थे। वे मानते थे कि एक मजबूत सेना जर्मनी को महान बनाएगी।
  6. राष्ट्रवाद: उनके लिए जर्मनी सर्वोपरि था। व्यक्तिगत स्वतंत्रता की तुलना में राष्ट्र का हित अधिक महत्वपूर्ण था।
  7. आर्थिक नियंत्रण: नात्सी अर्थव्यवस्था पर सरकार का पूरा नियंत्रण चाहते थे।
  8. विरोधी विचारों का दमन: वे समाजवाद, साम्यवाद और उदारवाद जैसे विचारों के खिलाफ थे।

प्रश्न 4. नासियों का प्रोपेगैंडा यहूदियों के खिलाफ नफ़रत पैदा करने में इतना असरदार कैसे रहा?

उत्तर:- नात्सी प्रचार यहूदियों के खिलाफ नफरत फैलाने में अत्यंत प्रभावी रहा। इसके पीछे कई कारण थे, जो इस प्रचार को इतना शक्तिशाली बनाते थे:-

  1. हिटलर का काररिश्मा: हिटलर एक असाधारण वक्ता था। उसने जर्मन लोगों के मन में गहरा प्रभाव डाला था। वह भावनात्मक भाषणों के माध्यम से लोगों को प्रभावित करता था। लोग उसकी बातों पर आंख मूंदकर विश्वास करते थे।
  2. मीडिया का व्यापक उपयोग: नात्सियों ने हर संभव माध्यम का इस्तेमाल किया – रेडियो, फिल्में, अखबार, पोस्टर, किताबें और यहां तक कि कार्टून भी। वे हर जगह यहूदी विरोधी संदेश फैलाते थे। जोसेफ गोएबल्स, नात्सी प्रचार मंत्री, इस अभियान का मुख्य आर्किटेक्ट था।
  3. शिक्षा व्यवस्था का दुरुपयोग: स्कूलों में पाठ्यक्रम बदल दिया गया। बच्चों को यहूदियों के खिलाफ पढ़ाया जाता था। यहूदी शिक्षकों और छात्रों को निकाल दिया गया। इससे नई पीढ़ी में यहूदी विरोधी भावनाएँ पैदा हुईं। हिटलर युवा संगठन जैसे समूहों ने भी इस विचारधारा को फैलाया।
  4. नस्लवादी सिद्धांत: नात्सियों ने एक पूरा वैज्ञानिक-सा दिखने वाला सिद्धांत विकसित किया जो यह दावा करता था कि यहूदी एक निम्न नस्ल हैं। उन्होंने इसे ‘नस्लीय विज्ञान’ कहा, हालांकि यह पूरी तरह से झूठा था।
  5. आर्थिक समस्याओं का दोषारोपण: जर्मनी की आर्थिक समस्याओं – जैसे महंगाई और बेरोजगारी – के लिए यहूदियों को जिम्मेदार ठहराया गया। यह एक आसान लक्ष्य था जिस पर लोग अपना गुस्सा निकाल सकते थे।
  6. नकारात्मक छवि का निर्माण: यहूदियों को फिल्मों और पोस्टरों में बुरे लोगों के रूप में दिखाया जाता था। उन्हें चूहों और कीड़ों जैसे जानवरों से तुलना की जाती थी। यह विषाक्त प्रचार लोगों के मन में गहराई तक बैठ गया।
  7. पारंपरिक पूर्वाग्रहों का उपयोग: नात्सियों ने यहूदियों के खिलाफ पहले से मौजूद धार्मिक पूर्वाग्रहों का फायदा उठाया। उन्होंने पुराने मध्ययुगीन मिथकों को फिर से जिंदा किया।
  8. भय का माहौल: यहूदियों के समर्थन करने वालों को भी दंडित किया जाता था। इससे लोग डर गए और चुप रहे। धीरे-धीरे, विरोध की आवाजें कम होती गईं।
  9. आर्थिक लाभ: यहूदियों की संपत्ति छीनकर दूसरों को दी जाती थी। इससे कुछ लोगों को फायदा हुआ और वे इस नीति के समर्थक बन गए।

इन सभी कारणों से नात्सी प्रचार बहुत प्रभावी रहा और यहूदियों के खिलाफ व्यापक नफरत पैदा हुई। यह इतिहास का एक दुखद अध्याय है जो दिखाता है कि कैसे सुनियोजित प्रचार पूरे समाज को प्रभावित कर सकता है और मानवता के खिलाफ अपराधों का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

प्रश्न 5. नात्सी समाज में औरतों की क्या भूमिका थी? फ्रांसीसी क्रांति और नात्सी शासन में औरतों की भूमिका के बीच क्या फर्क था? एक पैराग्राफ में बताएँ।

उत्तर:- नात्सी जर्मनी में औरतों की भूमिका बहुत सीमित थी। उन्हें मुख्य रूप से घर संभालने और बच्चे पैदा करने के लिए माना जाता था। नात्सी विचारधारा के अनुसार, एक आदर्श जर्मन महिला का मुख्य काम था ‘शुद्ध आर्य’ बच्चों को जन्म देना और उन्हें नात्सी मूल्यों में पालना। उन्हें राजनीति या व्यवसाय से दूर रखा जाता था। नात्सी सरकार ने ऐसी महिलाओं को पुरस्कृत किया जो ज्यादा बच्चे पैदा करती थीं।

इसके विपरीत, फ्रांसीसी क्रांति ने महिलाओं को अधिक स्वतंत्रता दी। फ्रांस में महिलाएँ राजनीतिक क्लबों में शामिल होती थीं और अपने अधिकारों के लिए लड़ती थीं। उन्हें शिक्षा, विवाह और तलाक के अधिकार मिले। वे व्यवसाय कर सकती थीं और कला में भाग ले सकती थीं।

जहाँ फ्रांसीसी क्रांति ने महिलाओं को समानता की ओर बढ़ाया, वहीं नात्सी शासन ने उन्हें घर तक सीमित कर दिया। फ्रांस में महिलाओं को विकल्प दिए गए, जबकि नात्सी जर्मनी में उन पर कड़े नियम थोपे गए। यह अंतर दो अलग-अलग विचारधाराओं का परिणाम था – एक जो स्वतंत्रता और समानता पर आधारित थी, और दूसरी जो कट्टर राष्ट्रवाद और नस्लवाद पर।

प्रश्न 6. नात्सियों ने जनता पर पूरा नियंत्रण स्थापित करने के लिए कौन-कौन से तरीके अपनाए?

उत्तर:- नात्सियों ने जर्मनी में जनता पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए कई तरीके अपनाए। यहाँ कुछ प्रमुख तरीके बताए गए हैं:-

  1. मीडिया का उपयोग: नात्सियों ने अपने विचारों को फैलाने के लिए रेडियो, फिल्में, पोस्टर और अखबारों का इस्तेमाल किया। वे लोगों की भावनाओं को प्रभावित करने के लिए आकर्षक नारे और चित्र का उपयोग करते थे।
  2. युवाओं का प्रशिक्षण: 10 साल से बड़े बच्चों को ‘युंगफोक’ नामक संगठन में शामिल किया जाता था। यहाँ उन्हें नात्सी विचारधारा सिखाई जाती थी।
  3. विशेष पुलिस बल: नात्सियों ने कई विशेष पुलिस बल बनाए, जैसे गेस्टापो (गुप्त पुलिस) और एस.एस.। इन्हें बहुत अधिकार दिए गए थे और ये किसी को भी गिरफ्तार कर सकते थे।
  4. राजनीतिक दलों पर रोक: नात्सी पार्टी के अलावा सभी राजनीतिक दलों और मजदूर संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
  5. नागरिक अधिकारों का हनन: लोगों की बोलने और इकट्ठा होने की आजादी छीन ली गई। इसके लिए एक विशेष कानून बनाया गया।
  6. विरोधियों का दमन: कम्युनिस्टों और अन्य विरोधियों को जेलों में डाल दिया गया या मार दिया गया।
  7. नस्लवाद: यहूदियों और अन्य समुदायों के खिलाफ भेदभाव और हिंसा को बढ़ावा दिया गया।
  8. बड़ी रैलियाँ: नात्सी अपने समर्थन को दिखाने के लिए बड़ी-बड़ी रैलियाँ करते थे।
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