Solutions for Bihar Board Class 8 Sanskrit Chapter 10 are available here. This provides written answers for all questions of chapter 10 – “नीतिनवनीतम्”. You will also get hindi explanations for better understanding.
‘नीतिनवनीतम्’ बिहार बोर्ड कक्षा 8 के संस्कृत का एक महत्वपूर्ण पाठ है, जो मनुस्मृति के चुनिंदा श्लोकों पर आधारित है। यह पाठ आपको अच्छे आचरण और नैतिकता का पाठ पढ़ाता है। आप सीखेंगे कि माता-पिता और गुरुजनों की सेवा और सम्मान से जीवन में आयु, विद्या, यश और बल बढ़ता है। साथ ही, यह पाठ सुख-दुख में समान रहने और सत्य के मार्ग पर चलने की सीख देता है।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Chapter 10 Solutions
Contents
- 1 Bihar Board Class 8 Sanskrit Chapter 10 Solutions
- 1.1 1. अधोलिखितानि प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत-
- 1.2 2. अधोलिखितानि प्रश्नानाम् उत्तराणि पूर्णवाक्येन लिखत-
- 1.3 3. स्थूलपदान्यवलम्बय प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
- 1.4 4. संस्कृतभाषयां वाक्यप्रयोगं कुरुत-
- 1.5 5. शुद्धवाक्यानां समक्षम् ‘आम्’ अशुद्धवाक्यानां समक्षं च ‘नैव’ इति लिखत-
- 1.6 6. समुचितपदेन रिक्तस्थानानि पूरयत-
- 1.7 7. मञ्जूषातः चित्वा उचिताव्ययेन वाक्यपूर्ति कुरुत-
| Subject | Sanskrit (रुचिरा-3) |
| Chapter | 10. नीतिनवनीतम् |
| Class | 8th |
| Board | Bihar Board |
अभ्यासः
1. अधोलिखितानि प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत-
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में लिखिए)
(क) नृणां सम्भवे कौ क्लेशं सहेते? (मनुष्य के जन्म में कौन कष्ट सहते हैं?)
उत्तर: मातापितरौ (माता-पिता)
(ख) कीदृशं जलं पिबेत्? (कैसा जल पीना चाहिए?)
उत्तर: वस्त्रपूतम् (कपड़े से छाना हुआ)
(ग) नीतिनवनीतं पाठः कस्मात् ग्रन्थात् सङ्कलित? (नीतिनवनीतम् पाठ किस ग्रंथ से लिया गया है?)
उत्तर: मनुस्मृतेः (मनुस्मृति)
(घ) कीदृशीं वाचं वदेत्? (कैसी वाणी बोलनी चाहिए?)
उत्तर: सत्यपूताम् (सत्य और शुद्ध)
(ङ) दुःखं किं भवति? (दुख क्या होता है?)
उत्तर: परवशम् (दूसरों के अधीन होना)
(च) आत्मवशं किं भवति? (अपने वश में क्या होता है?)
उत्तर: सुखम् (सुख)
(छ) कीदृशं कर्म समाचरेत्? (कैसा कर्म करना चाहिए?)
उत्तर: मनःपूतम् (मन से शुद्ध)
2. अधोलिखितानि प्रश्नानाम् उत्तराणि पूर्णवाक्येन लिखत-
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर पूर्ण वाक्य में लिखिए)
(क) पाठेऽस्मिन् सुखदुःखयोः किं लक्षणम् उक्तम्? (इस पाठ में सुख और दुख का क्या लक्षण बताया गया है?)
उत्तर: पाठेऽस्मिन् सर्वं परवशं दुःखं भवति, सर्वं आत्मवशं सुखं भवति। (इस पाठ में बताया गया है कि जो दूसरों के अधीन है वह दुख है, और जो अपने वश में है वह सुख है।)
(ख) वर्षशतैः अपि कस्य निष्कृतिः कर्तुं न शक्या? (सौ वर्षों में भी किसका बदला नहीं चुकाया जा सकता?)
उत्तर: मातापितरौ नृणां सम्भवे यं क्लेशं सहेते, तस्य निष्कृतिः वर्षशतैरपि कर्तुं न शक्या। (माता-पिता मनुष्य के जन्म में जो कष्ट सहते हैं, उसका बदला सौ वर्षों में भी नहीं चुकाया जा सकता।)
(ग) “त्रिषु तुष्टेषु तपः समाप्यते” वाक्येऽस्मिन् त्रयः के सन्त? (इस वाक्य में तीन कौन हैं?)
उत्तर: त्रिषु तुष्टेषु तपः समाप्यते इति वाक्ये त्रयः माता, पिता, आचार्यः च सन्त। (इस वाक्य में तीन माता, पिता और आचार्य हैं।)
(घ) अस्माभिः कीदृशं कर्म कर्तव्यम्? (हमें कैसा कर्म करना चाहिए?)
उत्तर: अस्माभिः तादृशं कर्म कर्तव्यम् येन आत्मा तुष्यति। (हमें वही कर्म करना चाहिए जिससे हमारा मन संतुष्ट हो।)
(ङ) अभिवादनशीलस्य कानि वर्धन्ते? (नम्र व्यक्ति के क्या बढ़ते हैं?)
उत्तर: अभिवादनशीलस्य आयुः, विद्या, यशः, बलं च वर्धन्ते। (नम्र व्यक्ति की आयु, विद्या, यश और बल बढ़ते हैं।)
(च) सर्वदा केषां प्रियं कुर्यात्? (हमेशा किनका प्रिय करना चाहिए?)
उत्तर: सर्वदा मातापितरौ आचार्यस्य च प्रियं कुर्यात्। (हमेशा माता-पिता और आचार्य का प्रिय करना चाहिए।)
3. स्थूलपदान्यवलम्बय प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
(स्थूल पद का उपयोग करके प्रश्न बनाइए)
(क) वृद्धोपसेविनः आयुर्विद्या यशो बलं न वर्धन्ते। (वृद्धों की सेवा करने वाले की आयु, विद्या, यश और बल नहीं बढ़ते।)
उत्तर: कस्य आयुर्विद्या यशो बलं न वर्धन्ते? (किसकी आयु, विद्या, यश और बल नहीं बढ़ते?)
(ख) मनुष्यः सत्यपूतां वाचं वदेत्। (मनुष्य को सत्य और शुद्ध वाणी बोलनी चाहिए।)
उत्तर: मनुष्यः कीदृशीं वाचं वदेत्? (मनुष्य को कैसी वाणी बोलनी चाहिए?)
(ग) त्रिषु तुष्टेषु सर्वं तपः समाप्यते। (तीनों के संतुष्ट होने पर सारा तप पूरा होता है।)
उत्तर: त्रिषु तुष्टेषु किं समाप्यते? (तीनों के संतुष्ट होने पर क्या पूरा होता है?)
(घ) मातापितरौ नृणां सम्भवे अकथनीयं क्लेशं सहेते। (माता-पिता मनुष्य के जन्म में अकथनीय कष्ट सहते हैं।)
उत्तर: कौ नृणां सम्भवे अकथनीयं क्लेशं सहेते? (कौन मनुष्य के जन्म में अकथनीय कष्ट सहते हैं?)
(ङ) तयोः नित्यं प्रियं कुर्यात्। (उनका हमेशा प्रिय करना चाहिए।)
उत्तर: कयोः नित्यं प्रियं कुर्यात्? (किनका हमेशा प्रिय करना चाहिए?)
4. संस्कृतभाषयां वाक्यप्रयोगं कुरुत-
(संस्कृत में वाक्य प्रयोग कीजिए)
(क) विद्या (विद्या)
उत्तर: अभिवादनशीलस्य विद्या नित्यं वर्धति। (नम्र व्यक्ति की विद्या हमेशा बढ़ती है।)
(ख) तपः (तप)
उत्तर: मातापितरौ पुत्रस्य पालने संन्यासिन इव तपः कुर्वन्ति। (माता-पिता पुत्र के पालन में सन्यासियों की तरह तप करते हैं।)
(ग) समाचरेत् (करना चाहिए)
उत्तर: मनुष्यः शुद्धं कर्म समाचरेत्। (मनुष्य को शुद्ध कर्म करना चाहिए।)
(घ) परितोषः (संतुष्टि)
उत्तर: शुद्धेन कर्मणा आत्मनः परितोषः भवति। (शुद्ध कर्म से आत्मा की संतुष्टि होती है।)
(ङ) नित्यम् (हमेशा)
उत्तर: मनुष्यः नित्यं सत्यं वदेत्। (मनुष्य को हमेशा सत्य बोलना चाहिए।)
5. शुद्धवाक्यानां समक्षम् ‘आम्’ अशुद्धवाक्यानां समक्षं च ‘नैव’ इति लिखत-
(शुद्ध वाक्य के सामने ‘आम्’ और अशुद्ध वाक्य के सामने ‘नैव’ लिखिए)
(क) अभिवादनशीलस्य किमपि न वर्धते। (नम्र व्यक्ति का कुछ भी नहीं बढ़ता।)
उत्तर: नैव
(ख) मातापितरौ नृणां सम्भवे कष्टं सहेते। (माता-पिता मनुष्य के जन्म में कष्ट सहते हैं।)
उत्तर: आम्
(ग) आत्मवशं तु सर्वमेव दुःखमस्ति। (अपने वश में सब कुछ दुख है।)
उत्तर: नैव
(घ) येन पितरौ आचार्यः च सन्तुष्टाः तस्य सर्वं तपः समाप्यते। (जिससे माता-पिता और आचार्य संतुष्ट हों, उसका सारा तप पूरा होता है।)
उत्तर: आम्
(ङ) मनुष्यः सदैव मनःपूतं समाचरेत्। (मनुष्य को हमेशा मन से शुद्ध कर्म करना चाहिए।)
उत्तर: आम्
(च) मनुष्यः सदैव तदेव कर्म कुर्यात् येनान्तरात्मा तुष्यते। (मनुष्य को हमेशा वही कर्म करना चाहिए जिससे उसका मन संतुष्ट हो।)
उत्तर: आम्
6. समुचितपदेन रिक्तस्थानानि पूरयत-
(उचित शब्दों से रिक्त स्थान भरिए)
(क) मातापित्रोः तपसः निष्कृतिः …………… कर्तुमशक्या। (दशवर्षेरपि/षष्टिः वर्षेरपि/वर्षशतैरपि)।
उत्तर: वर्षशतैरपि (सौ वर्षों में भी)
माता-पिता के तप (उपकारों) का प्रतिकार सौ वर्षों तक प्रयास करने पर भी नहीं किया जा सकता।
(ख) नित्यं वृद्धोपसेविनः …………… वर्धन्ते (चत्वारि/पञ्च/षट्)।
उत्तर: चत्वारि (चार)
जो व्यक्ति प्रतिदिन वृद्धों की सेवा करता है, उसकी चार बातें बढ़ती हैं – उम्र, बुद्धि, यश और बल।
(ग) त्रिषु तुष्टेषु …………… सर्वं समाप्यते (जपः तपः कर्म)।
उत्तर: तपः (तप)
जब तीन लोग (देवता, गुरु और ब्राह्मण) प्रसन्न होते हैं, तो तप (आध्यात्मिक साधना) पूर्ण माना जाता है।
(घ) एतत् विद्यात् …………… लक्षणं सुखदुःखयोः। (शरीरेण ! समासेन/विस्तारेण)
उत्तर: समासेन (संक्षेप में)
यह जान लेना चाहिए कि सुख और दुख का लक्षण संक्षेप में यही है ।
(ङ) दृष्टिपूतम् न्यसेत् ……………। (हस्तम्/पादम्/मुखम्)
उत्तर: पादम् (पैर)
जिस स्थान को आँखों से शुद्ध (पवित्र) कर लिया हो, वहीं पर पैर रखना चाहिए।
(च) मनुष्यः मातापित्रोः आचार्यस्य च सर्वदा …………… कुर्यात्। (प्रियम्/अप्रियम्/अकार्यम्)
उत्तर: प्रियम् (प्रिय)
मनुष्य को माता-पिता और आचार्य (गुरु) के लिए हमेशा प्रिय (अच्छे और मनभावन) कार्य ही करने चाहिए।
7. मञ्जूषातः चित्वा उचिताव्ययेन वाक्यपूर्ति कुरुत-
(मंजूषा से उचित अव्यय चुनकर वाक्य पूरा कीजिए)
तावत्, अपि, एव, यथा, नित्यं, यादृशम्
(क) तयोः …………… प्रियं कुर्यात्। (उनका …………… प्रिय करना चाहिए।)
उत्तर: नित्यं (हमेशा)
(ख) …………… कर्म करिष्यसि। तादृशं फलं प्राप्स्यसि। …………… कर्म करेगा, वैसा फल पाएगा।)
उत्तर: यादृशम् (जैसा)
(ग) वर्षशतैः …………… निष्कृतिः न कर्तुं शक्या। (सौ वर्षों …………… बदला नहीं चुकाया जा सकता।)
उत्तर: अपि (भी)
(घ) तेषु …………… त्रिषु तुष्टेषु तपः समाप्यते। (उन …………… तीनों के संतुष्ट होने पर तप पूरा होता है।)
उत्तर: एव (ही)
(ङ) …………… राजा तथा प्रजा। …………… राजा, वैसी प्रजा।)
उत्तर: यथा (जैसा)
(च) यावत् सफलः न भवति …………… परिश्रमं कुरु। (जब तक सफल न हो …………… मेहनत करो।)
उत्तर: तावत् (तब तक)