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‘सदैव पुरतो निधेहि चरणम्’ एक प्रेरणादायक पाठ है, जो हमें जीवन में हमेशा आगे बढ़ने की सीख देता है। यह कविता बताती है कि रास्ते में मुश्किलें और डर आएंगे, लेकिन हिम्मत और मेहनत से हर लक्ष्य को पाया जा सकता है। इस पाठ से आप सीखेंगे कि कैसे डर को छोड़कर, अपनी शक्ति और देशप्रेम के साथ अपने सपनों को पूरा करना है। यह आपको सिखाता है कि मुश्किल रास्तों पर भी हार न मानें और निरंतर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ें।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Chapter 4 Solutions
Contents
- 1 Bihar Board Class 8 Sanskrit Chapter 4 Solutions
- 1.1 1. पाठे दत्तं गीतं सस्वरं गायत ।
- 1.2 2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तरं एकपदेन लिखत-
- 1.3 3. मजूषातः क्रियापदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-
- 1.4 4. (अ) उचितकथनानां समक्षम् ‘आम्’, अनुचितकथनानां समक्षं ‘न’ इति लिखत-
- 1.5 4. (आ) वाक्यरचनया अर्थभेदं स्पष्टीकुरुत
- 1.6 5. मजूषातः अव्ययपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत।-
- 1.7 6. विलोमपदानि योजयत-
- 1.8 7. (अ) लट् लकारपदेषु लोट्-विधिलिङ् लकारपदानां निर्माणं कुरुत।
- 1.9 7. (आ) अधोलिखितानि पदानि निर्देशानुसारं परिवर्तयत-
| Subject | Sanskrit (रुचिरा-3) |
| Chapter | 4. सदैव पुरतो निधेहि चरणम् |
| Class | 8th |
| Board | Bihar Board |
अभ्यासः
1. पाठे दत्तं गीतं सस्वरं गायत ।
उत्तर: छात्राः स्वयमेव कुर्वन्ति।
2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तरं एकपदेन लिखत-
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में लिखें)
(क) स्वकीयं साधनं किं भवति?
(अपना साधन क्या होता है?)
उत्तर: बलम्
(शक्ति – ताकत)
(ख) पथि के विषमाः प्रखराः?
(पथ पर कठोर कौन होते हैं?)
उत्तर: पाषाणाः
(पत्थर – रास्ते में पड़े पत्थर)
(ग) सततं किं करणीयम्?
(लगातार क्या करना चाहिए?)
उत्तर: ध्येय-स्मरणम्
(लक्ष्य को याद रखना – अपने उद्देश्य को हमेशा मन में रखना)
(घ) एतस्य गीतस्य रचयिता कः?
(इस गीत का रचनाकार कौन है?)
उत्तर: श्रीधरभास्कर वर्णेकरः
(श्रीधर भास्कर वर्णेकर – इस गीत को लिखने वाले कवि का नाम)
(ङ) सः कीदृशः कविः मन्यते?
(वह किस प्रकार का कवि माना जाता है?)
उत्तर: राष्ट्रवादी
(देशभक्त – वह कवि जो अपने देश से बहुत प्यार करता है)
3. मजूषातः क्रियापदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-
(मजूषा से क्रिया-पद चुनकर रिक्त स्थान भरें)
मजूषा: निधेहि, विधेहि, जहीहि, देहि, भज, चल, कुरु
यथा: त्वं पुरतः चरणं निधेहि।
(क) त्वं विद्यालयं ……….
उत्तर: त्वं विद्यालयं चल।
(तुम विद्यालय जाओ – स्कूल जाओ।)
(ख) राष्ट्रे अनुरक्तिं ……….
उत्तर: राष्ट्रे अनुरक्तिं विधेहि।
(राष्ट्र के प्रति लगाव रखो – अपने देश से प्यार रखो।)
(ग) मह्यं जलं ……….
उत्तर: मह्यं जलं देहि।
(मुझे जल दो – मुझे पानी दो।)
(घ) मूढ! ………. धनागमतृष्णाम्।
उत्तर: मूढ! जहीहि धनागमतृष्णाम्।
(मूर्ख! धन की तृष्णा छोड़ दे – मूर्ख व्यक्ति, धन की लालसा छोड़ दे।)
(ङ) ………. गोविन्दम्।
उत्तर: भज गोविन्दम्।
(गोविन्द का भजन करो – भगवान गोविंद की पूजा करो।)
(च) सततं ध्येयस्मरणं ……….
उत्तर: सततं ध्येयस्मरणं कुरु।
(लगातार अपने लक्ष्य को याद करो – हमेशा अपने उद्देश्य को मन में रखो।)
4. (अ) उचितकथनानां समक्षम् ‘आम्’, अनुचितकथनानां समक्षं ‘न’ इति लिखत-
(उचित कथनों के सामने ‘आम्’ और अनुचित कथनों के सामने ‘न’ लिखें)
यथा: पुरतः चरणं निधेहि। – आम्
(आगे कदम रखो – सही)
(क) निजनिकेतनं गिरिशिखरे अस्ति।
(मेरा घर पर्वत की चोटी पर है।)
उत्तर: आम्
(सही – क्योंकि यह संभव हो सकता है।)
(ख) स्वकीयं बलं बाधकं भवति।
(अपनी शक्ति बाधा बनती है।)
उत्तर: न
(गलत – अपनी शक्ति मदद करती है, बाधा नहीं बनती।)
(ग) पथि हिंस्त्राः पशवः न सन्ति।
(रास्ते में हिंसक पशु नहीं हैं।)
उत्तर: न
(गलत – रास्ते में हिंसक पशु हो सकते हैं।)
(घ) गमनं सुकरम् अस्ति।
(रास्ता आसान है।)
उत्तर: न
(गलत – रास्ता कठिन हो सकता है।)
(ङ) सदैव अग्रे एव चलनीयम्।
(हमेशा आगे ही चलना चाहिए।)
उत्तर: आम्
(सही – हमें हमेशा अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए।)
4. (आ) वाक्यरचनया अर्थभेदं स्पष्टीकुरुत
(वाक्य रचना द्वारा अर्थ का अंतर स्पष्ट करें)
उत्तर:
परितः – पुरतः
परितः (चारों ओर): ग्रामं परितः वृक्षाः वसन्ति।
(गाँव के चारों ओर पेड़ हैं – पेड़ गाँव को हर तरफ से घेरे हुए हैं।)
पुरतः (आगे): रामः सीतायाः पुरतः चलति।
(राम सीता के आगे चलता है – राम सीता के सामने चल रहा है।)
नगः – नागः
नगः (पर्वत): हिमालयः एकः प्रसिद्धः नगः अस्ति।
(हिमालय एक प्रसिद्ध पर्वत है – हिमालय एक बड़ा पहाड़ है।)
नागः (सर्प): नागः वनस्य विषैकः सर्पः अस्ति।
(नाग जंगल का एक विषैला साँप है – नाग एक खतरनाक सर्प है।)
आरोहणम् – अवरोहणम्
आरोहणम् (चढ़ाई): पर्वतस्य आरोहणं कठिनं भवति।
(पर्वत पर चढ़ना कठिन होता है – पहाड़ पर ऊपर जाना मुश्किल है।)
अवरोहणम् (उतराई): पर्वतस्य अवरोहणं सावधानी सहितं करणीयम्।
(पर्वत से उतरना सावधानी से करना चाहिए – पहाड़ से नीचे आना सावधानी माँगता है।)
विषमाः – समाः
विषमाः (असमान): पर्वतस्य मार्गाः विषमाः भवन्ति।
(पर्वत के रास्ते असमान होते हैं – पहाड़ के रास्ते ऊबड़-खाबड़ होते हैं।)
समाः (समान): सर्वं समाः नृपेण संनादति।
(सभी लोग राजा के समान सम्मान पाते हैं – सभी को बराबर सम्मान मिलता है।)
5. मजूषातः अव्ययपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत।-
(मजूषा से अव्यय पद चुनकर रिक्त स्थान भरें)
मजूषा: एव, खलु, तथा, परितः, पुरतः, सदा, विना
(क) विद्यालयस्य ………. एकम् उद्यानम् अस्ति।
उत्तर: विद्यालयस्य पुरतः एकम् उद्यानम् अस्ति।
(विद्यालय के आगे एक उद्यान है – स्कूल के सामने एक बगीचा है।)
(ख) सत्यम् ………. जयते।
उत्तर: सत्यम् एव जयते।
(सत्य ही जय करता है – सच हमेशा जीतता है।)
(ग) किं भवान् स्नानं कृतवान् ……….?
उत्तर: किं भवान् स्नानं कृतवान् खलु?
(क्या तुमने सचमुच स्नान किया? – क्या तुमने वाकई नहाया?)
(घ) सः यथा चिन्तयति ………. आचरति।
उत्तर: सः यथा चिन्तयति तथा आचरति।
(वह जैसा सोचता है वैसा ही करता है – वह जैसा सोचता है, वैसा व्यवहार करता है।)
(ङ) ग्रामं ………. वृक्षाः छन्।
उत्तर: ग्रामं परितः वृक्षाः छन्।
(गाँव के चारों ओर पेड़ हैं – गाँव को पेड़ों ने घेर रखा है।)
(च) विद्यां ………. जीवनं वृथा।
उत्तर: विद्यां विना जीवनं वृथा।
(विद्या के बिना जीवन व्यर्थ है – बिना शिक्षा के जीवन बेकार है।)
(छ) ………. भगवन्तं भज।
उत्तर: सदा भगवन्तं भज।
(हमेशा भगवान की पूजा करो – सदा भगवान का भजन करो।)
6. विलोमपदानि योजयत-
(विलोम शब्दों को जोड़ें)
उत्तर:
- पुरतः – पृष्ठतः (आगे – पीछे)
- स्वकीयम् – परकीयम् (अपना – पराया)
- भीतिः – साहसः (डर – हिम्मत)
- अनुरक्तिः – विरक्तिः (लगाव – वैराग्य)
- गमनम् – आगमनम् (जाना – आना)
7. (अ) लट् लकारपदेषु लोट्-विधिलिङ् लकारपदानां निर्माणं कुरुत।
(लट् लकार के पदों से लोट् और विधिलिङ् लकार के पदों का निर्माण कीजिए-)
उत्तर:
| लट् लकारे | लोट् लकारे | विधिलिङ् लकारे |
|---|---|---|
| पठति | पठतु | पठेत् |
| खेलसि (त्वं) | खेल | खेलेः |
| खादति (सः) | खादन्तु | खादेयुः |
| पिबामि (अहम्) | पिबानि | पिबेयम् |
| हसति (सः) | हस्ताम् | हसेताम् |
| नमामः (वयम्) | नयाम | नयेम |
7. (आ) अधोलिखितानि पदानि निर्देशानुसारं परिवर्तयत-
(निम्नलिखित पदों को निर्देश के अनुसार बदलें)
यथा: गिरिशिखर (सप्तमी-एकवचन) – गिरिशिखरे
(पर्वत की चोटी – सप्तमी एकवचन में – पर्वत की चोटी पर)
(क) पथिन् (सप्तमी-एकवचने)
उत्तर: पथि
(रास्ते पर – रास्ते में)
(ख) राष्ट्र (चतुर्थी-एकवचने)
उत्तर: राष्ट्राय
(राष्ट्र के लिए)
(ग) पाषाण (सप्तमी-एकवचने)
उत्तर: पाषाणे
(पत्थर पर)
(घ) यान (द्वितीया-बहुवचने)
उत्तर: यानानि
(वाहनों को)
(ङ) शक्ति (प्रथमा-एकवचने)
उत्तर: शक्तिः
(शक्ति – ताकत)
(च) पशु (सप्तमी-बहुवचने)
उत्तर: पशुषु
(पशुओं में)