On this page we have shared the written Solutions for Bihar Board Class 8 History Chapter 7 – “महिलाएँ, जाति एवं सुधार”. These solutions are prepared by the subject experts and follows the new syllabus of Bihar Board. All question-answers are in Hindi medium.
यह अध्याय हमें 19वीं और 20वीं सदी में भारत में सामाजिक सुधारों की कहानी बताता है। हम जानेंगे कि कैसे राजा राममोहन रॉय, विद्यासागर और ज्योतिराव फुले जैसे सुधारकों ने सती प्रथा, जाति भेद और महिलाओं के दमन के खिलाफ आवाज़ उठाई। यह भी समझ आएगा कि कैसे महिलाओं ने शिक्षा और लेखन के ज़रिए अपनी स्थिति को बेहतर बनाने की कोशिश की। इस अध्याय से आपको सामाजिक बदलावों और समानता की लड़ाई को समझने में मदद मिलेगी।

Bihar Board Class 8 History Chapter 7 Solutions
| Subject | History (हमारे अतीत-3) |
| Chapter | 7. महिलाएँ, जाति एवं सुधार |
| Class | 8th |
| Board | Bihar Board |
फिर से याद करें
1. निम्नलिखित लोगों ने किन सामाजिक विचारों का समर्थन और प्रसार किया-
उत्तर:
- राममोहन रॉय: उन्होंने सती प्रथा को खत्म करने की लड़ाई लड़ी और औरतों के अधिकारों की बात की। वे चाहते थे कि समाज में औरतों को बराबरी का दर्जा मिले और शिक्षा का महत्व बढ़े।
- दयानंद सरस्वती: उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की और वेदों की शिक्षाओं को बढ़ावा दिया। वे जाति व्यवस्था और बाल विवाह के खिलाफ थे और औरतों की शिक्षा के समर्थक थे।
- वीरेशलिंगम पंतुलु: वे दक्षिण भारत में औरतों की शिक्षा और विधवा पुनर्विवाह के लिए काम करते थे। उन्होंने सामाजिक सुधारों के लिए कई लेख लिखे।
- ज्योतिराव फुले: उन्होंने निचली जातियों और औरतों के लिए शिक्षा की वकालत की। वे जाति व्यवस्था के खिलाफ थे और समाज में बराबरी लाना चाहते थे।
- पंडिता रमाबाई: वे औरतों की शिक्षा और विधवाओं के अधिकारों के लिए लड़ीं। उन्होंने विधवाओं के लिए आश्रम बनाया और उनकी मदद की।
- पेरियार: उन्होंने जाति व्यवस्था और औरतों पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई। वे चाहते थे कि समाज में सभी को बराबर सम्मान मिले।
- मुमताज अली: उन्होंने औरतों की शिक्षा और उनके अधिकारों के लिए लिखा। उनकी किताबें औरतों के हक की बात करती थीं।
- ईश्वरचंद्र विद्यासागर: वे विधवा पुनर्विवाह के लिए कानून बनाने में मददगार थे और औरतों की शिक्षा को बढ़ावा देते थे।
2. निम्नलिखित में से सही या गलत बताएँ-
(क) जब अंग्रेज़ों ने बंगाल पर कब्ज़ा किया तो उन्होंने विवाह, गोद लेने, संपत्ति उत्तराधिकार आदि के बारे में नए कानून बना दिए।
उत्तर: सही।
(ख) समाज सुधारकों को सामाजिक तौर-तरीकों में सुधार के लिए प्राचीन ग्रंथों से दूर रहना पड़ता था।
उत्तर: गलत।
सुधारक प्राचीन ग्रंथों का इस्तेमाल करते थे ताकि लोगों को उनके विचारों से जोड़ा जा सके, क्योंकि लोग इन ग्रंथों का बहुत सम्मान करते थे।
(ग) सुधारकों को देश के सभी लोगों का पूरा समर्थन मिलता था।
उत्तर: गलत।
सुधारकों को कई लोगों का विरोध भी झेलना पड़ता था, क्योंकि उनके विचार पुरानी परंपराओं के खिलाफ थे।
(घ) बाल विवाह निषेध अधिनियम 1829 में पारित किया गया था।
उत्तर: गलत।
बाल विवाह निषेध अधिनियम 1929 में पारित हुआ था, न कि 1829 में।
आइए विचार करें
3. प्राचीन ग्रंथों के ज्ञान से सुधारकों को नए कानून बनवाने में किस तरह मदद मिली?
उत्तर:
प्राचीन ग्रंथों का ज्ञान सुधारकों के लिए बहुत उपयोगी था। उस समय लोग प्राचीन ग्रंथों को बहुत मानते थे। सुधारक इन ग्रंथों की अच्छी बातों को सामने लाकर लोगों को समझाते थे कि उनके सुधार सही हैं। उदाहरण के लिए, वे ग्रंथों से उद्धरण लेकर बताते थे कि औरतों की शिक्षा और बराबरी का समर्थन पुराने समय में भी था। इससे लोग उनके विचारों को आसानी से स्वीकार करते थे। साथ ही, छपाई की नई तकनीक से किताबें और पर्चे सस्ते हो गए थे, जिससे सुधारकों के विचार ज्यादा लोगों तक पहुंचे।
4. लड़कियों को स्कूल न भेजने के पीछे लोगों के पास कौन-कौन से कारण होते थे?
उत्तर:
उस समय लोग लड़कियों को स्कूल न भेजने के लिए ये कारण देते थे:
- घर से भागने का डर: लोगों को लगता था कि स्कूल जाने से लड़कियाँ घर से दूर चली जाएँगी और घर के काम नहीं करेंगी।
- सार्वजनिक स्थानों का डर: लोगों का मानना था कि स्कूल जाने के लिए लड़कियों को बाहर निकलना पड़ेगा, जिससे उनका व्यवहार खराब हो सकता है।
- परंपराएँ: कई लोग सोचते थे कि लड़कियों को घर पर ही रहना चाहिए, क्योंकि बाहर जाना उनके लिए ठीक नहीं है।
5. ईसाई प्रचारकों की बहुत सारे लोग क्यों आलोचना करते थे? क्या कुछ लोगों ने उनका समर्थन भी किया होगा? यदि हाँ तो किस कारण?
उत्तर:
बहुत सारे लोग ईसाई प्रचारकों की आलोचना करते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि ये प्रचारक जबरदस्ती आदिवासी और निचली जातियों के लोगों का धर्म परिवर्तन करा रहे हैं। कुछ जगहों पर प्रचारकों पर हमले भी हुए, क्योंकि लोग अपने धर्म और संस्कृति को बचाना चाहते थे।
हाँ, कुछ लोगों ने उनका समर्थन भी किया। इसका कारण था कि ईसाई प्रचारक आदिवासी और निचली जातियों के लिए स्कूल खोल रहे थे। इन स्कूलों से गरीब बच्चों को पढ़ाई का मौका मिलता था, जो पहले उनके लिए मुश्किल था।
6. अंग्रेज़ों के काल में ऐसे लोगों के लिए कौन-से नए अवसर पैदा हुए जो “निम्न” मानी जाने वाली जातियों से संबंधित थे?
उत्तर:
अंग्रेजों के समय में निचली जातियों के लोगों के लिए कई नए अवसर बने। शहरों में सड़कें, नालियाँ, और इमारतें बनाने का काम शुरू हुआ। इसके लिए मजदूरों, सफाईकर्मियों, और बोझा ढोने वालों की जरूरत थी। गाँवों के गरीब और निचली जातियों के लोग इन कामों के लिए शहरों में गए। कुछ लोग असम, मॉरिशस, और त्रिनिदाद जैसे स्थानों पर बागानों में काम करने भी गए। ये काम उनके लिए गाँवों में जमींदारों के दबाव और अपमान से बचने का एक रास्ता था।
7. ज्योतिराव और अन्य सुधारकों ने समाज में जातीय असमानताओं की आलोचनाओं को किस तरह सही ठहराया?
उत्तर:
ज्योतिराव फुले और अन्य सुधारकों ने जातीय असमानता को गलत बताया। वे कहते थे कि सभी लोग बराबर हैं और जाति के आधार पर भेदभाव गलत है। फुले ने महाराष्ट्र में और आर्य समाज ने पंजाब में निचली जातियों और औरतों के लिए स्कूल खोले। उनका मानना था कि शिक्षा से लोग अपने अधिकारों को समझ सकते हैं और समाज में बराबरी आ सकती है। उन्होंने यह भी दिखाया कि प्राचीन ग्रंथों में बराबरी की बातें थीं, जिससे उनके विचारों को लोगों का समर्थन मिला।
8. फुले ने अपनी पुस्तक ग़ुलामगीरी को ग़ुलामों की आज़ादी के लिए चल रहे अमेरिकी आंदोलन को समर्पित क्यों किया?
उत्तर:
ज्योतिराव फुले ने अपनी किताब ग़ुलामगीरी (1873) में भारत की निचली जातियों की दयनीय स्थिति को अमेरिका के काले गुलामों की स्थिति से जोड़ा। अमेरिका में गृह युद्ध के बाद दास प्रथा खत्म हुई थी। फुले ने इस जीत से प्रेरणा ली और अपनी किताब उन अमेरिकियों को समर्पित की जिन्होंने गुलामों को आजादी दिलाई। वे चाहते थे कि भारत में भी जाति व्यवस्था और निचली जातियों के साथ हो रहे अन्याय को खत्म किया जाए।
9. मंदिर प्रवेश आंदोलन के ज़रिए अम्बेडकर क्या हासिल करना चाहते थे?
उत्तर:
1927 में बी. आर. अम्बेडकर ने मंदिर प्रवेश आंदोलन शुरू किया। इसमें उनकी महार जाति के लोग शामिल हुए। जब दलितों ने मंदिर के तालाब का पानी इस्तेमाल किया, तो ब्राह्मण पुजारी नाराज हो गए। अम्बेडकर का मकसद था समाज को दिखाना कि जाति के आधार पर भेदभाव कितना गलत है। वे चाहते थे कि दलितों को भी मंदिरों में प्रवेश और बराबरी का अधिकार मिले।
10. ज्योतिराव फुले और रामास्वामी नायकर राष्ट्रीय आंदोलन की आलोचना क्यों करते थे? क्या उनकी आलोचना से राष्ट्रीय संघर्ष में किसी तरह की मदद मिली?
उत्तर:
ज्योतिराव फुले और रामास्वामी नायकर (पेरियार) राष्ट्रीय आंदोलन की आलोचना करते थे क्योंकि उनका मानना था कि यह आंदोलन सिर्फ ऊँची जातियों के हितों की बात करता है। वे चाहते थे कि आंदोलन में निचली जातियों और औरतों के अधिकारों पर भी ध्यान दिया जाए। उनकी आलोचना से राष्ट्रीय आंदोलन को फायदा हुआ, क्योंकि इसने नेताओं को जाति और लिंग के आधार पर भेदभाव को समझने और उसे कम करने की कोशिश करने के लिए प्रेरित किया।