Bihar Board Class 7 Civics Chapter 4 Solutions are available for free here. Written by subject experts, it provides complete question-answer of Chapter 4 – “लड़के और लड़कियों के रूप में बड़ा होना” from the New Civics Book of class 7 – सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन-2 (Samajik Evam Rajnitik Jeevan).
इस अध्याय में आप लिंग के आधार पर समाज में बने रूढ़िवादी विचारों और भेदभाव को समझेंगे। आप देखेंगे कि समाज लड़के और लड़कियों के पालन-पोषण, कार्यों और अवसरों को अलग-अलग तरीके से क्यों देखता है। यह अध्याय घर, स्कूल और नौकरी में होने वाले लैंगिक भेदभाव को उदाहरणों, जैसे सड़कों पर काम करने वाली महिलाओं की कहानी, के माध्यम से समझाता है।

Bihar Board Class 7 Civics Chapter 4 Solutions
| Subject | Civics (सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन-2) |
| Class | 7 |
| Chapter | 4. लड़के और लड़कियों के रूप में बड़ा होना |
| Board | Bihar Board |
अभ्यास
1. साथ में दिए गए कुछ कथनों पर विचार कीजिए और बताइए कि वे सत्य हैं या असत्य? अपने उत्तर के समर्थन में एक उदाहरण भी दीजिए।
(क) सभी समुदाय और समाजों में लड़कों और लड़कियों की भूमिकाओं के बारे में एक जैसे विचार नहीं पाए जाते।
उत्तर: सत्य
उदाहरण: कुछ परिवारों में लड़कियों को सिर्फ रसोई और घर संभालने के लिए तैयार किया जाता है, जबकि दूसरे परिवारों में उन्हें डॉक्टर, इंजीनियर या शिक्षक बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। एक ही देश के अलग-अलग हिस्सों में भी लड़के-लड़कियों की भूमिकाओं के बारे में अलग-अलग विचार होते हैं।
(ख) हमारा समाज बढ़ते हुए लड़कों और लड़कियों में कोई भेद नहीं करता।
उत्तर: असत्य
उदाहरण: अक्सर लड़कों को देर तक बाहर खेलने की इजाजत होती है, जबकि लड़कियों को शाम होते ही घर लौटने को कहा जाता है। स्कूलों में भी कई बार लड़कियों को कुछ खेल न खेलने की सलाह दी जाती है, जबकि लड़कों को ऐसी कोई रोक नहीं होती।
(ग) वे महिलाएँ जो घर पर रहती हैं, कोई काम नहीं करतीं।
उत्तर: असत्य
उदाहरण: घर पर रहने वाली महिलाएँ सुबह से शाम तक कई काम करती हैं – खाना बनाना, घर की सफाई, बच्चों की देखभाल, बुजुर्गों की सेवा, कपड़े धोना, और कई बार छोटे-मोटे व्यापार भी चलाती हैं। ये सभी महत्वपूर्ण काम हैं जो घर को सुचारू रूप से चलाने में मदद करते हैं।
(घ) महिलाओं के काम, पुरुषों के काम की तुलना में कम मूल्यवान समझे जाते हैं।
उत्तर: सत्य
उदाहरण: जब माँ घर पर खाना बनाती है तो उसे इसके लिए पैसे नहीं मिलते, लेकिन जब वही खाना कोई पुरुष होटल में बनाता है तो उसे “शेफ” कहा जाता है और अच्छे पैसे मिलते हैं। इसी तरह, घर की सफाई के लिए महिलाओं को कोई वेतन नहीं मिलता, जबकि ऑफिस की सफाई करने वाले व्यक्ति को पैसे मिलते हैं।
3. घर का काम अदृश्य होता है और इसका कोई मूल्य नहीं चुकाया जाता।
घर के काम शारीरिक रूप से थकाने वाले होते हैं।
घर के कामों में बहुत समय खप जाता है।
अपने शब्दों में लिखिए कि ‘अदृश्य होने ‘शारीरिक रूप से थकाने’ और ‘समय खप जाने’ जैसे वाक्यांशों से आप क्या समझते हैं? अपने घर की महिलाओं के काम के आधार पर हर बात को एक उदाहरण से समझाइए।
उत्तर:
अदृश्य होना: जब कोई काम दिखता नहीं है लेकिन हो रहा होता है। जैसे – मेरी माँ जब सुबह सबसे पहले उठकर सबके लिए नाश्ता तैयार करती हैं, तो हम सो रहे होते हैं। हम उनकी मेहनत नहीं देखते, सिर्फ तैयार नाश्ता देखते हैं। घर साफ रहता है, कपड़े धुले होते हैं, पर यह सब करते हुए माँ को कोई नहीं देखता। इसलिए ये काम “अदृश्य” हैं।
शारीरिक रूप से थकाने वाला: ऐसे काम जिनसे शरीर थक जाता है। मेरी दादी जब घर के फर्श पर पोछा लगाती हैं, तो उन्हें बार-बार झुकना पड़ता है। इससे उनकी कमर में दर्द होने लगता है। गर्मियों में चूल्हे के सामने खाना बनाते समय माँ के चेहरे पर पसीना आ जाता है और वे थक जाती हैं। ये काम शारीरिक रूप से बहुत थकाने वाले हैं।
समय खप जाना: जब किसी काम में बहुत सारा समय लग जाए। मेरी बहन जब स्कूल से आती है, तो वह अपना होमवर्क करने से पहले अपने छोटे भाई की देखभाल करती है, उसे खिलाती है और फिर रसोई में मदद करती है। इन सब कामों में उसका कई घंटे का समय लग जाता है, जिसे वह अपनी मनपसंद चीजें करने में लगा सकती थी। इसी तरह माँ सुबह 5 बजे से रात 10 बजे तक लगातार काम करती रहती हैं, कभी आराम नहीं कर पातीं।
4. ऐसे विशेष खिलौनों की सूची बनाइए, जिनसे लड़के खेलते हैं और ऐसे विशेष खिलौनों की भी सूची बनाइए, जिनसे केवल लड़कियाँ खेलती हैं। यदि दोनों सूचियों में कुछ अंतर है, तो सोचिए और बताइए कि ऐसा क्यों है? सोचिए कि क्या इसका कुछ संबंध इस बात से है कि आगे चलकर वयस्क के रूप में बच्चों को क्या भूमिका निभानी होगी?
उत्तर:
| लड़कों के खिलौने | लड़कियों के खिलौने |
|---|---|
| क्रिकेट बैट-बॉल | गुड़िया सेट |
| रिमोट कंट्रोल कार | किचन सेट |
| सुपरहीरो फिगर | मेकअप किट |
| रोबोट | स्टफ्ड टॉयज (भालू, गुड़िया) |
| पुलिस-चोर खेल | घर-घर खेल |
इन दोनों सूचियों में अंतर का मुख्य कारण है कि समाज ने ही तय कर दिया है कि लड़के और लड़कियाँ कैसे खेलें। बचपन से ही हम बच्चों को सिखाते हैं कि लड़कियों को “नाजुक” और “घरेलू” खिलौनों से खेलना चाहिए, जबकि लड़कों को “मजबूत” और “बाहरी दुनिया” वाले खिलौने दिए जाते हैं।
इसका सीधा संबंध है बड़े होकर उनकी भूमिकाओं से। जब लड़कियाँ गुड़ियों को नहलाती-धुलाती और खिलाती हैं, तो अनजाने में उन्हें सिखाया जा रहा होता है कि बड़ी होकर उन्हें माँ बनना है और बच्चों की देखभाल करनी है। लड़कों को कार और बंदूक जैसे खिलौने देकर यह संदेश दिया जाता है कि उन्हें बड़े होकर घर से बाहर जाकर काम करना है।
लेकिन आज के समय में यह परंपरा बदल रही है। अब कई परिवारों में लड़के-लड़कियों को अपनी पसंद के खिलौने से खेलने की आजादी मिल रही है। कई लड़कियाँ क्रिकेट और फुटबॉल खेलती हैं, जबकि कई लड़के रसोई के खिलौनों से खेलना पसंद करते हैं। इससे उनका सोचने का तरीका भी बदल रहा है और वे आगे चलकर कोई भी पेशा अपना सकते हैं।
4. अगर आपके घर में या आस-पास, घर के कामों में मदद करने वाली कोई महिला है तो उनसे बात कीजिए और उनके बारे में थोड़ा और जानने की कोशिश कीजिए कि उनके घर में और कौन-कौन हैं? वे क्या करते हैं? उनका घर कहाँ है? वे रोज़ कितने घंटे तक काम करती हैं? वे कितना कमा लेती हैं? इन सारे विवरणों को शामिल कर, एक छोटी-सी कहानी लिखिए।
उत्तर: सीमा दीदी की कहानी
हमारे घर में रोज सुबह पाँच बजे सीमा दीदी आती हैं। वे हमारे घर की सफाई करती हैं, बर्तन धोती हैं और कभी-कभी खाना भी बनाने में मदद करती हैं। मैंने एक दिन उनसे उनके जीवन के बारे में बात की।
सीमा दीदी का घर हमारे शहर के दूसरे छोर पर एक छोटी सी बस्ती में है। वहां वे अपने पति, दो बच्चों और सास के साथ रहती हैं। उनके पति एक कारखाने में मजदूरी करते हैं, जहां से उन्हें महीने के 8,000 रुपये मिलते हैं। सीमा दीदी रोज सुबह चार बजे उठती हैं, अपने परिवार के लिए खाना बनाती हैं और फिर काम पर निकल जाती हैं।
वे रोज सुबह पाँच बजे से शाम सात बजे तक पाँच अलग-अलग घरों में काम करती हैं। हर घर में वे लगभग दो घंटे बिताती हैं और हर जगह से 2,500 रुपये महीना कमाती हैं। कुल मिलाकर वे महीने के 12,500 रुपये कमाती हैं। इतनी मेहनत करने के बावजूद, उन्हें कभी छुट्टी नहीं मिलती, ना ही बीमार पड़ने पर कोई सहायता मिलती है।
जब मैंने उनसे पूछा कि वे इतनी मेहनत क्यों करती हैं, तो उन्होंने मुस्कुराकर कहा, “मेरे बच्चों को अच्छी शिक्ली मिले, इसलिए। मेरी बेटी डॉक्टर बनना चाहती है और बेटा इंजीनियर। मैं नहीं चाहती कि वे मेरी तरह दूसरों के घरों में काम करें।”
सीमा दीदी की कहानी सुनकर मुझे समझ आया कि हर माँ अपने बच्चों के भविष्य के लिए कितनी मेहनत करती है। अब मैं हमेशा उनका सम्मान करता हूँ और कभी-कभी उनकी मदद भी करता हूँ। मैंने अपनी माँ से कहा है कि सीमा दीदी को हर महीने एक दिन की छुट्टी जरूर दें।
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| 3. राज्य शासन कैसे काम करता है (New Book) |
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| 5. औरतों ने बदली दुनिया (New Book) |
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| 8. बाज़ार में एक कमीज़ (New Book) |