On this page we have shared the written Solutions for Bihar Board Class 8 History Chapter 5 – “जब जनता बग़ावत करती है 1857 और उसके बाद”. These solutions are prepared by the subject experts and follows the new syllabus of Bihar Board. All question-answers are in Hindi medium.
यह अध्याय 1857 की क्रांति की कहानी बताता है, जब सिपाहियों, किसानों, नवाबों और रानियों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ बगावत की। हम जानेंगे कि कैसे कंपनी की नीतियों, जैसे भारी लगान, धार्मिक हस्तक्षेप और राजाओं की सत्ता छीनने, ने लोगों को विद्रोह के लिए उकसाया। यह भी समझ आएगा कि मेरठ से दिल्ली तक फैली यह बगावत कैसे पूरे देश में फैली और रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहेब जैसे नायकों ने इसमें हिस्सा लिया। इस अध्याय से आपको इस ऐतिहासिक विद्रोह के कारणों और परिणामों को समझने में मदद मिलेगी।

Bihar Board Class 8 History Chapter 5 Solutions
Contents
| Subject | History (हमारे अतीत-3) |
| Chapter | 5. जब जनता बग़ावत करती है 1857 और उसके बाद |
| Class | 8th |
| Board | Bihar Board |
फिर से याद करें
1. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की अंग्रेज़ों से ऐसी क्या माँग थी जिसे अंग्रेज़ों ने ठुकरा दिया?
उत्तर: रानी लक्ष्मीबाई चाहती थीं कि उनके पति की मृत्यु के बाद उनके गोद लिए हुए बेटे को झाँसी का उत्तराधिकारी माना जाए। लेकिन अंग्रेज़ों ने उनकी यह माँग ठुकरा दी और झाँसी को अपने कब्जे में लेने की कोशिश की।
2. ईसाई धर्म अपनाने वालों के हितों की रक्षा के लिए अंग्रेज़ों ने क्या किया?
उत्तर: अंग्रेज़ों ने 1850 में एक कानून बनाया। इस कानून के तहत, अगर कोई भारतीय ईसाई धर्म अपनाता है, तो उसे अपने परिवार की संपत्ति में हिस्सा मिलेगा। इससे ईसाई धर्म अपनाने वालों को सुरक्षा मिली।
3. सिपाहियों को नए कारतूसों पर क्यों ऐतराज़ था?
उत्तर: नए कारतूसों की वजह से सिपाहियों को गुस्सा आया, क्योंकि इन कारतूसों को बंदूक में डालने से पहले दाँतों से काटना पड़ता था। सिपाहियों को शक था कि कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी लगी है। यह हिंदू और मुस्लिम सिपाहियों की धार्मिक भावनाओं के खिलाफ था।
4. अंतिम मुग़ल बादशाह ने अपने आखिरी साल किस तरह बिताए?
उत्तर: अंग्रेज़ों ने 1857 के विद्रोह को दबाने के लिए पूरी ताकत लगा दी। उन्होंने दिल्ली पर फिर से कब्जा कर लिया। अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फर पर मुकदमा चला और उन्हें उम्रकैद की सजा दी गई। उनके बेटों को उनके सामने गोली मार दी गई। 1858 में उन्हें और उनकी पत्नी बेगम ज़ीनत महल को रंगून की जेल में भेज दिया गया। वहाँ 1862 में उनकी मृत्यु हो गई।
आइए विचार करें
5. मई 1857 से पहले भारत में अपनी स्थिति को लेकर अंग्रेज़ शासकों के आत्मविश्वास के क्या कारण थे?
उत्तर: मई 1857 से पहले अंग्रेज़ अपने शासन को लेकर बहुत आत्मविश्वास में थे। इसके कारण थे:
- उन्होंने भारतीय सिपाहियों की मदद से कई युद्ध जीते और विद्रोह दबाए थे।
- भारतीय सिपाही उनके प्रति वफादार थे।
- मुगल बादशाह का प्रांतों पर नियंत्रण खत्म हो चुका था।
- कई स्थानीय राजा और जमींदार अंग्रेजों का समर्थन करते थे, क्योंकि वे अपने हितों की रक्षा चाहते थे।
6. बहादुर शाह ज़फ़र द्वारा विद्रोहियों को समर्थन दे देने से जनता और राज-परिवारों पर क्या असर पड़ा?
उत्तर: जब बहादुर शाह ज़फर ने विद्रोहियों का साथ दिया, तो लोगों और राज-परिवारों में जोश और उम्मीद जागी। उन्हें लगा कि अब वे अंग्रेजों की सत्ता को हटा सकते हैं। गाँव और शहरों के लोग विद्रोह में शामिल हो गए। स्थानीय नेता, जमींदार और सरदार एकजुट होकर अंग्रेजों से लड़े। कई लोग सोचने लगे कि अगर मुगल बादशाह फिर से सत्ता में आए, तो वे अपने इलाकों में पहले की तरह शासन कर सकेंगे।
7. अवध के बागी भूस्वामियों से समर्पण करवाने के लिए अंग्रेज़ों ने क्या किया?
उत्तर: अवध के बागी भूस्वामियों को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर करने के लिए अंग्रेजों ने ये कदम उठाए:
- कुछ भूस्वामियों, राजाओं और नवाबों पर मुकदमे चलाए और उन्हें फाँसी दी।
- घोषणा की कि जो भूस्वामी अंग्रेजों के प्रति वफादार रहेंगे, उन्हें अपनी जमीन पर अधिकार मिलेगा।
- जिन बागियों ने किसी अंग्रेज की हत्या नहीं की थी, उन्हें आत्मसमर्पण करने पर सुरक्षा और जमीन का अधिकार देने का वादा किया।
8. 1857 की बग़ावत के फलस्वरूप अंग्रेज़ों ने अपनी नीतियाँ किस तरह बदलीं?
उत्तर: 1857 की बग़ावत के बाद अंग्रेजों ने अपनी नीतियों में ये बदलाव किए:
- 1858 में ब्रिटिश संसद ने एक कानून बनाया और ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन खत्म कर ब्रिटिश सरकार को सत्ता सौंप दी।
- भारतीय शासकों को भरोसा दिया कि उनकी रियासतें नहीं छीनी जाएंगी और वे अपने वंशजों या दत्तक पुत्रों को सत्ता सौंप सकते हैं, बशर्ते वे ब्रिटिश रानी को अपना मालिक मानें।
- सेना में भारतीय सिपाहियों की संख्या कम की और यूरोपीय सिपाहियों को बढ़ाया। गोरखा, सिख और पठानों को ज्यादा भर्ती करने का फैसला किया।
- मुसलमानों की जमीन और संपत्ति छीन ली गई, क्योंकि अंग्रेजों को लगता था कि विद्रोह में उनकी भूमिका थी।
- भारतीयों के धर्म और रीति-रिवाजों का सम्मान करने का वादा किया।
- भूस्वामियों और जमींदारों को उनकी जमीन पर अधिकार देने की नीतियाँ बनाईं।
आइए करके देखें
9. पता लगाएँ कि सन सत्तावन की लड़ाई के बारे में आपके इलाके या आपके परिवार के लोगों को किस तरह की कहानियाँ और गीत याद हैं? इस महान विद्रोह से संबंधित कौन-सी यादें अभी लोगों को उत्तेजित करती हैं?
उत्तर: 1857 का विद्रोह भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के रूप में जाना जाता है। आपके इलाके या परिवार में इस विद्रोह से जुड़ी कहानियाँ और गीत हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ इलाकों में लोग रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की कहानियाँ सुनाते हैं, जैसे कैसे उन्होंने अंग्रेजों से झाँसी की रक्षा की। कुछ गीतों में तात्या टोपे या नाना साहब की बहादुरी का बखान होता है।
यह जानने के लिए आप अपने दादा-दादी, नाना-नानी या गाँव के बुजुर्गों से बात कर सकते हैं। पूछें कि क्या उन्हें कोई कहानी या गीत याद है। उदाहरण के लिए, बिहार में मंगल पांडे की बहादुरी की कहानियाँ मशहूर हैं। लोग आज भी उनकी वीरता और बलिदान से प्रेरित होते हैं। यह विद्रोह लोगों को इसलिए उत्तेजित करता है, क्योंकि यह भारत की आजादी की पहली बड़ी लड़ाई थी, जिसमें हिंदू-मुस्लिम एकजुट होकर लड़े।
10. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के बारे में और पता लगाएँ। आप उन्हें अपने समय की एक विलक्षण महिला क्यों मानते हैं?
उत्तर: रानी लक्ष्मीबाई एक साहसी और प्रेरणादायक महिला थीं। उनका जन्म 1828 में वाराणसी में हुआ था। बचपन से ही वे घुड़सवारी, तलवारबाजी और युद्ध कला में माहिर थीं। उनके पति, झाँसी के राजा गंगाधर राव की मृत्यु के बाद, अंग्रेजों ने उनके गोद लिए बेटे को उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया और झाँसी को हड़पना चाहा।
रानी ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी सेना तैयार की और 1857 के विद्रोह में अंग्रेजों से डटकर मुकाबला किया। वे पुरुषों की तरह युद्ध के मैदान में लड़ीं और अपनी झाँसी की रक्षा की। 1858 में ग्वालियर में लड़ते हुए उन्होंने वीरगति पाई।
रानी लक्ष्मीबाई को अपने समय की विलक्षण महिला इसलिए माना जाता है, क्योंकि उस समय महिलाएँ युद्ध में हिस्सा नहीं लेती थीं, लेकिन उन्होंने न केवल सेना का नेतृत्व किया, बल्कि देश के लिए अपनी जान भी दी। उनकी बहादुरी आज भी हमें प्रेरित करती है।