Here we have given free Bihar Board Class 6 Hindi Chapter 5 Solutions. This provides complete questions and answers of chapter 5 – “रहीम के दोहे” for free. It follows the new book of Bihar Board class 6 Hindi मल्हार (Malhar) (NCERT Based).
“रहीम के दोहे” हमें जीवन के बहुमूल्य सबक सिखाते हैं। महान कवि रहीमदास (अब्दुर्रहीम खानखाना) के ये दोहे बड़े ही सरल शब्दों में गहरी बातें कहते हैं – बड़ों-छोटों का सम्मान, प्रकृति से सीख, अच्छे संबंधों की अहमियत, विपत्ति में सच्चे मित्र की पहचान और वाणी पर संयम रखने की सीख। “रहीम के दोहे” के प्रश्न उत्तर नीचे दिए गए हैं जो आपको इन्हें बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे।

Bihar Board Class 6 Hindi Chapter 5 – मातृभूमि
Contents
| Class | 6 |
| Subject | Hindi – मल्हार (Malhar) |
| Chapter | 5. रहीम के दोहे |
| Board | Bihar Board |
पाठ से
मेरी समझ से
(क) नीचे दिए गए प्रश्नों का सबसे सही (सटीक) उत्तर कौन-सा है ? उसके सामने तारा (★) बनाइए—
1. “रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गइ सरग पताल। आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल।”
- तलवार सुई से बड़ी होती है।
- सुई का काम तलवार नहीं कर सकती।
- तलवार का महत्व सुई से ज्यादा है।
- हर छोटी-बड़ी चीज़ का अपना महत्व होता है।
उत्तर – सोच-समझकर बोलना चाहिए। (★)
2. “रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि । जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि।” इस दोहे का भाव क्या है?
- तलवार सुई से बड़ी होती है।
- सुई का काम तलवार नहीं कर सकती।
- तलवार का महत्व सुई से ज्यादा है।
- हर छोटी-बड़ी चीज़ का अपना महत्व होता है।
उत्तर – हर छोटी-बड़ी चीज़ का अपना महत्व होता है।(★)
(ख) अब अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए और कारण बताइए कि आपने यही उत्तर क्यों चुने?
उत्तर – विद्यार्थी इस प्रश्न का उत्तर स्वयं दे।
मिलकर करें मिलान
पाठ में से कुछ दोहे स्तंभ 1 में दिए गए हैं और उनके भाव स्तंभ 2 में दिए गए हैं। अपने समूह में इन पर चर्चा कीजिए और रेखा खींचकर सही भाव से मिलान कीजिए।
उत्तर –
| स्तंभ 1 | स्तंभ 2 |
|---|---|
| 1. रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय । टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय ।। | 3. प्रेम या रिश्तों को सहेजकर रखना चाहिए। |
| 2. कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत । बिपति कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत।। | 2. सच्चे मित्र विपत्ति या विपदा में भी साथ रहते हैं। |
| 3. तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहिं न पान। कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान।। | 1. सज्जन परहित के लिए ही संपत्ति संचित करते हैं। |
पंक्तियों पर चर्चा
नीच दिए गए दोहों पर समूह में चर्चा कीजिए और उनके अर्थ या भावार्थ अपनी लेखन पुस्तिका में लिखिए –
(क) “रहिमन बिपदाहू भली, जो थोरे दिन होय ।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय ।। ”
उत्तर – रहीमदास कहते हैं कि थोड़े समय की मुसीबत भी अच्छी होती है, क्योंकि इससे हमें पता चलता है कि संसार में कौन हमारा सच्चा मित्र है और कौन नहीं। मुसीबत के समय ही लोगों के असली व्यवहार का पता चलता है, जो हमें भविष्य में सही निर्णय लेने में मदद करता है।
(ख) “रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गइ सरग पताल।
आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल ।”
उत्तर – रहीमदास इस दोहे में बताते हैं कि जीभ बिना सोचे-समझे कभी स्वर्ग तो कभी पाताल की बातें कर देती है, पर स्वयं मुँह के अंदर सुरक्षित रहती है। अनुचित बोलने पर सिर (बुद्धि) को दंड भुगतना पड़ता है, अतः हमें अपनी वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए।
सोच-विचार के लिए
दोहों को एक बार फिर से पढ़िए और निम्नलिखित के बारे में पता लगाकर अपनी लेखन पुस्तिका में लिखिए-
- “रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।।”
(क) इस दोहे में ‘मिले’ के स्थान पर ‘जुड़े’ और ‘छिटकाय’ के स्थान पर ‘चटकाय’ शब्द का प्रयोग भी लोक में प्रचलित है। जैसे—
“रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाय ।।”
इसी प्रकार पहले दोहे में ‘डारि’ के स्थान पर ‘डार’, ‘तलवार’ के स्थान पर ‘तरवार’ और चौथे दोहे में ‘’मानुष’ के स्थान पर ‘मानस’ का उपयोग भी प्रचलित हैं। ऐसा क्यों होता है?
उत्तर – शब्दों के इस प्रकार के बदलाव भाषा की क्षेत्रीय विविधता और बोलियों के कारण होते हैं। हिंदी भाषा विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रूपों में बोली जाती है, जिससे उच्चारण और शब्द प्रयोग में भिन्नता आ जाती है। रहीम के दोहे मौखिक रूप से भी प्रचलित थे, इसलिए विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय बोली के अनुसार शब्दों में परिवर्तन हो गया। इसके अतिरिक्त, काल क्रम में भी भाषा परिवर्तित होती रहती है।
(ख) इस दोहे में प्रेम के उदाहरण में धागे का प्रयोग ही क्यों किया गया है? क्या आप धागे के स्थान पर कोई अन्य उदाहरण सुझा सकते हैं? अपने सुझाव का कारण भी बताइए।
उत्तर – रहीम ने धागे का उदाहरण इसलिए दिया क्योंकि धागा टूटने पर गाँठ लगाकर जोड़ा जा सकता है, लेकिन गाँठ हमेशा दिखाई देती है, जैसे टूटे प्रेम में मन-मुटाव। अन्य उपयुक्त उदाहरण हो सकते हैं – काँच का गिलास, जिसे टूटने पर जोड़ा जा सकता है पर दरारें दिखती रहती हैं। फूल की पंखुड़ियाँ भी अच्छा उदाहरण हैं, क्योंकि एक बार मुरझाने के बाद, चाहे कितना भी पानी दें, वे पहले जैसी ताज़गी नहीं पा सकतीं। इसी तरह कागज़ की एक बार आई सिलवट कभी पूरी तरह नहीं मिटती।
- “तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहिँ न पान ।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान।।”
इस दोहे में प्रकृति के माध्यम से मनुष्य के किस मानवीय गुण की बात की गई है? प्रकृति से हम और क्या-क्या सीख सकते हैं?
उत्तर – इस दोहे में रहीम ने परोपकार और त्याग के गुणों की बात की है, जिसमें वृक्ष अपने फल नहीं खाते और सरोवर अपना जल नहीं पीते, बल्कि दूसरों के हित के लिए संचित करते हैं। प्रकृति से हम कई अन्य मूल्यवान गुण सीख सकते हैं – जैसे पेड़ों से धैर्य और दृढ़ता, जो कठिन परिस्थितियों में भी खड़े रहते हैं; नदियों से निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा, जो बाधाओं के बावजूद अपना रास्ता बना लेती हैं; मौसम के बदलाव से अनुकूलन की क्षमता; और पारिस्थितिक तंत्र से सहयोग और सामंजस्य का महत्व।
शब्दों की बात
हमने शब्दों के नए-नए रूप जाने और समझे। अब कुछ करके देखें-
- शब्द-संपदा
कविता में आए कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं। इन शब्दों को आपकी मातृभाषा में क्या कहते हैं? लिखिए।
उत्तर –
| कविता में आए शब्द | मातृभाषा में समानार्थक शब्द |
|---|---|
| तरुवर | पेड़, वृक्ष |
| बिपति | मुसीबत, संकट |
| छिटकाय | तोड़ना, खींचकर |
| सुजान | सज्जन, विद्वान |
| सरवर | तालाब, पोखर |
| साँचे | सच्चे, वास्तविक |
| कपाल | दिमाग, माथा |
शब्द एक अर्थ अनेक
“रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून।”
इस दोहे में ‘पानी’ शब्द के तीन अर्थ हैं— सम्मान, जल, चमक।
इसी प्रकार कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं। आप भी इन शब्दों के तीन-तीन अर्थ लिखिए। आप इस कार्य में शब्दकोश, इंटरनेट, शिक्षक या अभिभावकों की सहायता भी ले सकते हैं।
उत्तर –
कल – आने वाला कल, चैन या शांति, पुर्जा/मशीन
पत्र – पत्ता, चिट्ठी, दल
कर – हाथ, टैक्स, किरण
फल – परिणाम, एक खाने का फल (आम), हल का अग्र भाग
पाठ से आगे
आपकी बात
“रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि ।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि ॥”
इस दोहे का भाव है— न कोई बड़ा है और न ही कोई छोटा है। सबके अपने-अपने काम हैं, सबकी अपनी-अपनी उपयोगिता और महत्ता है। चाहे हाथी हो या चींटी, तलवार हो या सुई, सबके अपने-अपने आकार-प्रकार हैं और सबकी अपनी-अपनी उपयोगिता और महत्व है। सिलाई का काम सुई से ही किया जा सकता है, तलवार से नहीं। सुई जोड़ने का काम करती है जबकि तलवार काटने का। कोई वस्तु हो या व्यक्ति, छोटा हो या बड़ा, सबका सम्मान करना चाहिए।
अपने मनपसंद दोहे को इस तरह की शैली में अपने शब्दों में लिखिए | दोहा पाठ से या पाठ से बाहर का हो सकता है।
उत्तर –
“रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चिटकाय ।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।”
अर्थ – इस दोहे में रहीम हमें रिश्तों की नाजुकता के बारे में बताते हैं। वे कहते हैं कि प्रेम के बंधन को जल्दबाजी या क्रोध में कभी नहीं तोड़ना चाहिए। एक बार टूटे हुए संबंध पूरी तरह से पहले जैसे नहीं हो पाते, और अगर जुड़ भी जाएँ तो उनमें गाँठ (मन-मुटाव) रह जाती है। यह दोहा हमें सिखाता है कि रिश्तों को धैर्य और समझदारी से संभालना चाहिए, क्योंकि टूटा विश्वास और बिगड़े संबंध पूरी तरह से कभी नहीं सुधरते।
“बड़े बड़ाई न करै; बड़ो न बोले बोल।
रहिमन हीरा कब कहैं, लाख मेरो टकै का मोल।।”
अर्थ – रहीमदास जी इस दोहे में बताते हैं कि वास्तव में महान व्यक्ति कभी अपनी प्रशंसा स्वयं नहीं करते। जैसे कीमती हीरा कभी नहीं कहता कि मेरा मूल्य लाखों रुपये है, उसी प्रकार सच्चे गुणवान व्यक्ति के कार्य ही उनकी श्रेष्ठता प्रकट कर देते हैं। यह दोहा हमें सिखाता है कि अपने गुणों का प्रदर्शन करने की बजाय अपने कर्मों से अपनी योग्यता साबित करनी चाहिए। वास्तविक प्रतिभा स्वयं ही चमकती है, जैसे विद्वान अपने ज्ञान से और कलाकार अपनी कला से पहचाने जाते हैं।
सरगम
- रहीम, कबीर, तुलसी, वृंद आदि के दोहे आपने दृश्य-श्रव्य (टी.वी. रेडियो) माध्यमों से कई बार सुने होंगे। कक्षा में आपने दोहे भी बड़े मनोयोग से गाए होंगे। अब बारी है इन दोहों की रिकॉर्डिंग (ऑडियो या विजुअल) की। रिकॉर्डिंग सामान्य मोबाइल से की जा सकती है। इन्हें अपने दोस्तों के साथ समूह में या अकेले गा सकते हैं। यदि संभव हो तो वाद्ययंत्रों के साथ भी गायन करें। रिकॉर्डिंग के बाद दोहे स्वयं भी सुनें और लोगों को भी सुनाएँ ।
- रहीम, वृन्द, कबीर, तुलसी, बिहारी . आदि के दोहे आज भी जनजीवन में लोकप्रिय हैं। दोहे का प्रयोग लोग अपनी बात पर विशेष ध्यान दिलाने के लिए करते हैं। जब दोहे समाज में इतने लोकप्रिय हैं तो क्यों न इन दोहों को एकत्र करें और अंत्याक्षरी खेलें। अपने समूह मिलकर दोहे एकत्र कीजिए। इस कार्य में आप इंटरनेट, पुस्तकालय और अपने शिक्षकों या अभिभावकों की सहायता भी ले सकते हैं।
आज की पहेली
1. दो अक्षर का मेरा नाम, आता हूँ खाने के काम
उल्टा होकर नाच दिखाऊँ, मैं क्यों अपना नाम बताऊँ।
उत्तर – नट – जो खाने के काम आता है और उल्टा करने पर “टन” होता है, जो नाचने का संगीत सूचित करता है।
2. एक किले के दो ही द्वार, उनमें सैनिक लकड़ीदार
टकराएँ जब दीवारों से, जल उठे सारा संसार।
उत्तर – आँखें – जिनके दो पलक रूपी द्वार हैं और पलकों में लकड़ी जैसे पलक बाल हैं, जो अगर आँखों में चले जाएँ तो आँखें जलने लगती हैं।
खोजबीन के लिए
रहीम के कुछ अन्य दोहे पुस्तकालय या इंटरनेट की सहायता से पढ़ें, देखें व समझें।
उत्तर –
“रहिमन निज मन की विधा, मन ही राखो गोय |
सुनि अठिले हैं लोग सब, वाँटि न लैहैं कोय।। “
रहीम कहते हैं कि अपने मन की पीड़ा या दुःख को अपने ही मन में छिपाकर रखना चाहिए। लोग आपकी समस्या सुनकर मजाक बनाते हैं, लेकिन कोई आपका दुःख बाँटता नहीं है। यह दोहा हमें सिखाता है कि अपनी व्यक्तिगत परेशानियों को सबके सामने नहीं रखना चाहिए, क्योंकि हर कोई सहानुभूति नहीं रखता।
“जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंगा
चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।। “
रहीम कहते हैं कि अच्छे स्वभाव वाले व्यक्ति पर बुरी संगति का असर नहीं पड़ता। जैसे चंदन के पेड़ से सांप लिपटे रहते हैं, फिर भी चंदन अपनी सुगंध नहीं खोता और न ही विषैला होता है। यह दोहा हमें सिखाता है कि अच्छे चरित्र वाले व्यक्ति बुरे वातावरण में भी अपनी अच्छाई बनाए रखते हैं।
“रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय ।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय।।”
रहीम कहते हैं कि प्रेम के बंधन को जल्दबाजी में या गुस्से में कभी नहीं तोड़ना चाहिए। एक बार टूटा प्रेम-संबंध फिर से पूरी तरह नहीं जुड़ पाता, और अगर जुड़ भी जाए तो उसमें गाँठ (मन-मुटाव) रह जाती है। यह दोहा हमें रिश्तों की नाजुकता का महत्व समझाता है।
“खीरा मुख तें काटिये, मलिये नमक लगाय।
रहिमन करुआ कंद को, कौन मीठो करि खाय।”
रहीम कहते हैं कि खीरे को मुँह से काटकर, नमक लगाकर खाते हैं, लेकिन कड़वे कंद को कौन मीठा बनाकर खा सकता है? यह दोहा हमें सिखाता है कि अच्छे स्वभाव वाले व्यक्ति के थोड़े दोष सुधारे जा सकते हैं, लेकिन बुरे स्वभाव के व्यक्ति को पूरी तरह बदलना असंभव होता है।
“रहिमन ऐसी जग बसो, ज्यों दादुर पानी माहिं।
जहँ तहँ रहो सुखी सदा, काहे को फिरि जाहि ।।”
रहीम कहते हैं कि इस संसार में ऐसे रहो जैसे मेंढक पानी में रहता है – न बहुत अंदर और न बहुत बाहर। जहाँ हो, वहीं खुश रहो, भटकने की क्या आवश्यकता है? यह दोहा हमें संतोष और स्थिरता का महत्व सिखाता है, जिससे हम जीवन में सुखी रह सकते हैं।