MP Board Class 6 Hindi Bhasha Bharti Chapter 22 Solutions – मैं श्रीमद्भगवद्गीता हूँ

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मध्य प्रदेश बोर्ड की कक्षा 6 की हिंदी पाठ्यपुस्तक ‘भाषा भारती’ का बाईसवाँ अध्याय ‘मैं श्रीमद्भगवद्गीता हूँ’ डॉ. लता अग्रवाल द्वारा रचित एक अनूठा पाठ है। यह अध्याय छात्रों को भारतीय संस्कृति के महान ग्रंथ गीता से परिचित कराता है, वो भी एक रोचक तरीके से – गीता के स्वयं के दृष्टिकोण से। इस पाठ में छात्र जानेंगे कि कैसे गीता का जन्म महाभारत युद्ध के मैदान में हुआ, जहाँ अर्जुन मोहग्रस्त थे और श्रीकृष्ण ने उन्हें उपदेश दिया। गीता के माध्यम से छात्र समाज में फैली बुराइयों से बचने और नैतिक जीवन जीने की शिक्षा प्राप्त करेंगे। यह अध्याय न केवल गीता के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है, बल्कि उसकी वर्तमान प्रासंगिकता पर भी प्रकाश डालता है।

MP Board class 6 Hindi Bhasha Bharti chapter 22

MP Board Class 6 Hindi Bhasha Bharti Chapter 22

SubjectHindi ( Bhasha Bharti )
Class6th
Chapter22. मैं श्रीमद्भगवद्गीता हूँ
Authorडॉ लता अग्रवाल
BoardMP Board

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1. सही विकल्प चुनकर लिखिए

(क) गीता का जन्म हुआ

(i) ऋषि आश्रम में
(ii) राज परिवार में
(iii) युद्धभूमि में
(iv) अस्पताल में।

उत्तर – (iii) युद्धभूमि में

(ख) पाण्डवों-कौरवों के मध्य राज्य प्राप्ति के लिए युद्ध हुआ, लगभग

(i) पचास हजार वर्ष पूर्व
(ii) पाँच सौ वर्ष पूर्व
(iii) दो हजार वर्ष पूर्व
(iv) पाँच हजार वर्ष पूर्व

उत्तर – (ii) पाँच सौ वर्ष पूर्व

(ग) अपने सगे-सम्बन्धियों को देखकर मोह उत्पन्न हुआ

(i) श्रीकृष्ण के मन में
(ii) अर्जुन के मन में
(iii) गुरुओं के मन में
(iv) पितामह के मन में।

उत्तर – (ii) अर्जुन के मन में

(घ) श्रीमद्भगवद्गीता में अध्यायों की संख्या

(i) आठ
(ii) तेरह
(iii) अठारह
(iv) चौबीस

उत्तर – (iii) अठारह।

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

(क) कुरुक्षेत्र वर्तमान में हरियाणा राज्य में है।
(ख) अर्जुन के धनुष का नाम गाण्डीव था।
(ग) समर भूमि में धीर-गम्भीर योद्धा को विचलित हुए बिना युद्ध करना चाहिए।
(घ) अर्जुन के सारथी श्रीकृष्ण थे।
(ङ) मैं मनुष्य मात्र को स्वधर्म पालन का संदेश देती हूँ।

एक या दो वाक्यों में उत्तर दीजिए

(क) कौरव-पाण्डवों के बीच युद्ध क्यों हुआ?

उत्तर – महाभारत का युद्ध हस्तिनापुर के राज्य के लिए हुआ, जहाँ कौरवों ने पाण्डवों का न्यायसंगत अधिकार छीन लिया था। कौरवों की अन्यायपूर्ण और धोखेभरी नीतियों के कारण, सभी शांतिपूर्ण प्रयास विफल होने पर युद्ध अनिवार्य हो गया।

(ख) श्रीकृष्ण ने ज्ञान का उपदेश किसे दिया ?

उत्तर – श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया। अर्जुन अपने रिश्तेदारों से युद्ध करने में संकोच कर रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें कर्तव्य का ज्ञान दिया।

(ग) नाशवान कौन-कौन हैं?

उत्तर – श्रीकृष्ण ने बताया कि इस संसार में हर वस्तु और प्राणी नाशवान (अस्थायी) है। केवल आत्मा अमर है, जो कभी नष्ट नहीं होती।

(घ) गीता ने किस स्वभाव के व्यक्ति को नापसन्द किया है?

उत्तर – गीता में आसुरी स्वभाव के लोगों को बुरा माना गया है, जो अहंकारी, क्रूर और दूसरों को दुख देने वाले होते हैं। ऐसे लोग समाज के लिए हानिकारक होते हैं।

तीन से पाँच वाक्यों में उत्तर दीजिए

(क) मोक्ष के योग्य व्यक्ति कौन होता है?

उत्तर – गीता के अनुसार, वह व्यक्ति मोक्ष का अधिकारी होता है जो धैर्यवान है और सुख-दुःख को समान मानता है। ऐसा व्यक्ति न तो सुख में अधिक खुश होता है और न ही दुःख में दुखी होता है। वह सांसारिक वस्तुओं के प्रति आसक्त नहीं होता और सदा शांत रहता है।

(ख) श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता के माध्यम से क्या उपदेश दिया?

उत्तर – श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि कर्तव्य से भागना कायरता है। उन्होंने बताया कि आत्मा अमर है, इसलिए मृत्यु से डरना व्यर्थ है। उन्होंने यह भी सिखाया कि बिना फल की इच्छा के कर्म करना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण उपदेश यह था कि धर्म की रक्षा के लिए युद्ध करना क्षत्रिय का परम कर्तव्य है।

(ग) गीता को परमात्मा की वाणी क्यों कहा गया है?

उत्तर – गीता को परमात्मा की वाणी इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह साक्षात भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकली है। यह उपदेश सार्वभौमिक सत्य है जो सभी मनुष्यों के लिए कल्याणकारी है। इसमें जीवन जीने की सम्पूर्ण शिक्षा दी गई है। गीता के उपदेश काल और समय की सीमाओं से परे हैं।

(घ) युद्धभूमि में अर्जुन के भ्रमित होने का क्या कारण था?

उत्तर – अर्जुन को युद्ध में अपने परिवार के लोगों को मारना था, जिससे उनका मन विचलित हो गया। उन्हें अपने गुरुजनों, भाइयों और रिश्तेदारों से युद्ध करने में संकोच हो रहा था। मोह के कारण वे अपने क्षत्रिय धर्म को भूल गए और युद्ध से पीछे हटना चाहते थे।

(ङ) आज भी श्रीमद्भगवद्गीता क्यों प्रासंगिक है?

उत्तर – गीता आज भी प्रासंगिक है क्योंकि यह जीवन की मूल समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करती है। यह हमें सिखाती है कि कैसे कर्तव्य का पालन करें और मोह-माया से दूर रहें। आज भी मनुष्य को सही-गलत, धर्म-अधर्म के बीच चुनाव करना पड़ता है, जिसमें गीता का ज्ञान मार्गदर्शक का काम करता है।

सोचिए और बताइए

(क) जब गीता नहीं थी तो लोगों को जीवन जीने की कला की शिक्षा कहाँ से प्राप्त होती होगी?

उत्तर – गीता से पहले लोगों को जीवन की शिक्षा वेदों और पुराणों से मिलती थी। धर्मगुरु, ऋषि-मुनि और साधु-संत लोगों को अच्छे जीवन की शिक्षा देते थे। लोग अपने माता-पिता और बुजुर्गों से भी जीवन के महत्वपूर्ण पाठ सीखते थे। इसके अलावा, लोग अपने पूर्वजों की अच्छी परंपराओं का पालन करके भी सीख प्राप्त करते थे।

(ख) गीता ने कहा है कि सात सौ श्लोक मेरे सन्देशवाहक हैं। कैसे?

उत्तर – गीता में कुल 18 अध्याय हैं, जिनमें 700 श्लोक हैं। प्रत्येक श्लोक जीवन का एक महत्वपूर्ण संदेश देता है। ये श्लोक हमें सही जीवन जीने का मार्ग दिखाते हैं। गीता का हर श्लोक एक विशेष शिक्षा देता है, जो मनुष्य के कल्याण के लिए अमृत के समान है। इसलिए इन श्लोकों को गीता का संदेशवाहक कहा जाता है।

(ग) कौरवों और पाण्डवों के बीच हुए युद्ध को न्याय-अन्याय के बीच युद्ध क्यों कहा गया है ?

उत्तर – यह युद्ध इसलिए न्याय-अन्याय का युद्ध कहलाया क्योंकि पांडव सत्य और न्याय के पक्ष में थे। कौरवों ने पांडवों का राज्य छीन लिया था और उन्हें उनका हक नहीं दे रहे थे। श्रीकृष्ण ने शांति से मामला सुलझाने की कोशिश की, लेकिन कौरवों ने नहीं माना। पांडव अपना सही अधिकार माँग रहे थे, जबकि कौरव अन्याय पर अड़े थे। इसलिए यह युद्ध धर्म और अधर्म का युद्ध बन गया।

(घ) यदि हम आसक्ति भाव से कर्म करेंगे तो क्या होगा?

उत्तर – गीता के अनुसार, आसक्ति से किया गया कार्य हमारा ध्यान काम से हटाकर फल पर लगा देता है। इससे हम अपना काम ठीक से नहीं कर पाते और अच्छे परिणाम नहीं मिलते। जब हमें मनचाहा फल नहीं मिलता, तो हम दुखी हो जाते हैं। इसलिए गीता सिखाती है कि काम फल की चिंता किए बिना करना चाहिए। इससे हम बेहतर काम कर पाते हैं और मन भी शांत रहता है।

अनुमान और कल्पना के आधार पर उत्तर दीजिए

(क) यदि कौरव और पाण्डवों में युद्ध न हुआ होता तो क्या होता?

उत्तर – यदि महाभारत का युद्ध न हुआ होता तो लाखों लोगों की जान बच जाती और परिवार नहीं बिखरते। लेकिन साथ ही हमें गीता का महान ज्ञान भी नहीं मिलता। क्योंकि गीता का उपदेश श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के मैदान में ही दिया था। इस तरह युद्ध न होने से एक बड़ी क्षति तो टल जाती, पर एक महान ज्ञान से हम वंचित रह जाते।

(ख) यदि अर्जुन के मन में मोह उत्पन्न न हुआ होता तो क्या होता?

उत्तर – यदि अर्जुन के मन में मोह न होता, तो श्रीकृष्ण को गीता का ज्ञान देने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। अर्जुन सीधे युद्ध कर लेते और मानवता को गीता का अमूल्य ज्ञान नहीं मिलता। अर्जुन का मोह ही वह कारण बना जिससे श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश दिया। इसलिए अर्जुन का मोह भी एक तरह से मानवता के लिए वरदान साबित हुआ।

(ग) यदि अर्जुन की जगह तुम होते तो युद्ध करते या नहीं?

उत्तर – हाँ, मैं युद्ध करता क्योंकि यह धर्म और न्याय की लड़ाई थी। श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन में मैं अपना कर्तव्य निभाता। क्योंकि सत्य और न्याय की रक्षा के लिए लड़ना गलत नहीं है। धर्म की रक्षा के लिए युद्ध करना क्षत्रिय का कर्तव्य है।

(घ) यदि कृष्ण, अर्जुन के सखा एवं हितैषी न होते तो क्या होता?

उत्तर – यदि श्रीकृष्ण अर्जुन के मित्र न होते, तो अर्जुन को सही मार्ग दिखाने वाला कोई न होता। अर्जुन शायद युद्ध से भाग जाते और एक कायर कहलाते। उनकी वीर योद्धा की छवि धूमिल हो जाती। पांडवों की विजय भी संभव नहीं होती क्योंकि श्रीकृष्ण का मार्गदर्शन ही उनकी सबसे बड़ी शक्ति था।

(ङ) यदि दुर्योधन किसी तरह राज्य का उत्तराधिकारी बन गया होता तो क्या होता?

उत्तर – यदि दुर्योधन राजा बन जाता तो राज्य में अन्याय और अत्याचार बढ़ जाता। सत्य और धर्म का पालन करने वालों को कष्ट उठाना पड़ता। लोगों को उनका उचित अधिकार नहीं मिलता। राज्य में अराजकता फैल जाती। क्योंकि दुर्योधन अहंकारी और अधर्मी था, इसलिए उसका राज्य प्रजा के लिए कष्टदायक होता।

भाषा की बात

प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों का शुद्ध उच्चारण कीजिए

भ्रमित, वितृष्णा, विरक्ति, हतप्रभ, किंकर्तव्यविमूढ़, अनासक्त, संन्यास, तात्विक, विश्वात्मा, व्याप्त, सम्मत, संघर्ष।

उत्तर – विद्यार्थी ऊपर दिए गए सब्दो का उच्चारण शिक्षक की सहायता से स्वयं करे।

प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों की वर्तनी शुद्ध कीजिए

अशुद्ध वर्तनीशुद्ध वर्तनी
भूमतिभ्रमित
वित्रष्णावितृष्णा
विरक्तीविरक्ति
किंकतळकिंकर्तव्य
हतपृभहतप्रभ
सन्याससंन्यास
तातविकतात्विक
सममतसम्मत
सनघर्षसंघर्ष
व्यापतव्याप्त

प्रश्न 3. ‘त्व’ प्रत्यय लगाकर निम्नलिखित शब्दों से नए शब्द बनाइए

गुरु, पुरुष, कृति।

उत्तर –

मूल शब्द प्रत्यय नया शब्द

(क) गुरु + त्व = गुरुत्व
(ख) पुरुष + त्व = पुरुषत्व
(ग) कृति + त्व = कृतित्व

प्रश्न 4. निम्नलिखित शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए

राज्य प्राप्ति, युद्धभूमि, कारागार, मोर्चा, शिथिल।

उत्तर –

(क) राज्य प्राप्ति – कौरवों को महाभारत के युद्ध में पराजित कर पाण्डवों को राज्य प्राप्ति हुई।
(ख) युद्धभूमि – कुरुक्षेत्र महाभारत काल की प्रसिद्ध युद्धभूमि है।
(ग) कारागार – श्रीकृष्ण का जन्म कारागार में हुआ था।
(घ) मोर्चा – रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के विरुद्ध स्वयं युद्ध का मोर्चा संभाला।
(छ) शिथिल – ठण्ड के कारण बुजुर्ग महिला के सभी अंग शिथिल पड़ गये थे।

प्रश्न 5. अपठित गद्यांश

‘गीता शास्त्रों का दोहन है। मैंने कहीं पढ़ा था कि सारे उपनिषदों का निचोड़ उसके सात सौ श्लोकों में आ जाता है। इसलिए मैंने निश्चय किया कि कुछ न हो सके तो भी गीता का ज्ञान प्राप्त कर लें। आज गीता मेरे लिए केवल बाइबिल नहीं है, केवल कुरान नहीं है, मेरे लिए वह माता हो गई है। मुझे जन्म देने वाली माता तो चली गई, पर संकट के समय गीता माता के पास जाना मैं सीख गया हूँ। मैंने देखा है जो कोई इस माता की शरण में जाता है, उसे ज्ञानामृत से वह तृप्त करती है।-मो. क. गाँधी उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिए

(1) गाँधीजी के अनुसार गीता क्या है ?

उत्तर – गाँधीजी गीता को अपनी माँ के समान मानते थे और इसे केवल एक धार्मिक पुस्तक नहीं मानते थे। उनके लिए गीता जीवन की समस्त समस्याओं का समाधान थी।

(2) गाँधीजी संकट के समय किसके पास जाते थे?

उत्तर – गाँधीजी हर संकट और कठिन समय में गीता का सहारा लेते थे। वे गीता के ज्ञान से अपनी समस्याओं का समाधान खोजते थे।

(3) अपनी शरण में आने वालों को गीता क्या लाभ पहुँचाती है?

उत्तर – गीता अपनी शरण में आने वालों को ज्ञान का अमृत देती है। यह उन्हें जीवन की सही राह दिखाती है और उनका मार्गदर्शन करती है।

(4) गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।

उत्तर – ‘गाँधीजी और गीता-माता’ या ‘गीता: गाँधीजी की मार्गदर्शक’ शीर्षक उचित रहेगा।

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