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इस अध्याय में तुलसीदास कृत रामचरितमानस के बाल कांड से लिए गए राम, लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का वर्णन किया गया है। शिव धनुष तोड़े जाने पर परशुराम क्रोधित हो उठते हैं और उनके क्रोध से पूरी सभा भयभीत हो जाती है। श्रीराम अपने मधुर वचनों से परशुराम को शांत करने का प्रयास करते हैं, जबकि लक्ष्मण अपने व्यंग्यपूर्ण उत्तरों से परशुराम को और अधिक उकसाते हैं। लक्ष्मण के कठोर वचनों पर परशुराम बार-बार अपने फरसे का उल्लेख कर उन्हें चेतावनी देते हैं, परन्तु लक्ष्मण उनकी धमकियों को गंभीरता से नहीं लेते। इस संवाद में राम की शांति और विनम्रता, लक्ष्मण की व्यंग्यात्मकता और परशुराम के क्रोध का अद्भुत संतुलन देखने को मिलता है, जिससे पाठक को धर्म, वीरता, और संवाद की महत्ता का ज्ञान होता है।

MP Board Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2
| Subject | Hindi ( क्षितिज भाग 2 ) |
| Class | 10th |
| Chapter | 2. राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद |
| Author | तुलसीदास |
| Board | MP Board |
प्रश्न अभ्यास
प्रश्न 1. परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए ?
उत्तर- जब परशुराम धनुष टूटने के कारण क्रोधित हुए, तब लक्ष्मण ने बड़ी चतुराई से कई तर्क प्रस्तुत किए। सर्वप्रथम, उन्होंने कहा कि बचपन में वे और राम कई खिलौना धनुष तोड़ चुके हैं, परंतु परशुराम ने कभी विरोध नहीं किया – यह कहकर उन्होंने परशुराम के क्रोध को अनुचित ठहराया। दूसरा, उन्होंने व्यंग्यात्मक ढंग से पूछा कि इस जीर्ण-शीर्ण धनुष से परशुराम को इतना मोह क्यों है, क्योंकि उनकी दृष्टि में तो सभी धनुष एक समान हैं। तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण तर्क यह दिया कि श्रीराम ने तो धनुष को मात्र स्पर्श किया था और वह स्वयं ही टूट गया, इसमें राम का कोई दोष नहीं है। इन तर्कों के माध्यम से लक्ष्मण ने श्रीराम की निर्दोषता सिद्ध करने का प्रयास किया।
प्रश्न 2. परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- परशुराम के क्रोध के समय राम और लक्ष्मण की प्रतिक्रियाओं से उनके भिन्न स्वभाव का पता चलता है। राम शांत, संयमित और विनम्र स्वभाव के थे, जिन्होंने परशुराम के तीव्र क्रोध का भी धैर्यपूर्वक सामना किया। उन्होंने अपनी विनम्रता से परशुराम को शांत करने का प्रयास किया और स्वयं को उनका सेवक बताया। दूसरी ओर, लक्ष्मण तेजस्वी, आवेशपूर्ण और निर्भीक स्वभाव के थे। उन्होंने न केवल परशुराम के क्रोध का सामना किया, बल्कि अपनी व्यंग्यात्मक वाणी से उनके क्रोध को और भड़काया। यह भिन्नता दोनों भाइयों के व्यक्तित्व की पूरक विशेषताओं को दर्शाती है।
प्रश्न 3. लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
उत्तर- लक्ष्मण: (व्यंग्यपूर्ण मुस्कान के साथ) “हे मुनिवर, आप इस टूटे धनुष के लिए व्यर्थ ही क्रोध कर रहे हैं। हमारी दृष्टि में तो सभी धनुष समान हैं। यह पुराना धनुष तो राम के स्पर्श मात्र से ही टूट गया, इसमें उनका क्या अपराध है?”
परशुराम: (क्रोध से फरसे की ओर देखते हुए) “अरे मूर्ख! तू मेरे स्वभाव से अनभिज्ञ है। मैं तुझे बालक समझकर ही जीवित छोड़ रहा हूँ। मैं साधारण मुनि नहीं, बल्कि बाल ब्रह्मचारी और अत्यंत क्रोधी स्वभाव का हूँ। मैंने अपने इसी फरसे से सहस्त्रबाहु जैसे महाबली राजाओं का वध किया है। मेरा फरसा इतना भयंकर है कि यह गर्भ में पल रहे शिशुओं को भी नहीं छोड़ता।”
प्रश्न 4. परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए-
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोक महीपकुमारा॥
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर
उत्तर- परशुराम ने सभा में अपना परिचय एक निर्भीक और क्रोधी बाल ब्रह्मचारी के रूप में दिया। उन्होंने घोषणा की कि वे क्षत्रिय कुल के प्रसिद्ध शत्रु हैं, जिनकी ख्याति पूरे विश्व में है। उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी भुजाओं के बल पर अनेक बार पृथ्वी को क्षत्रियों से मुक्त कर ब्राह्मणों को दान किया है। अपने फरसे की शक्ति का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि इससे उन्होंने सहस्त्रबाहु जैसे महाबली राजाओं का भी वध किया है। उन्होंने राजकुमार को चेतावनी दी कि उनका फरसा इतना भयंकर है कि यह गर्भस्थ शिशुओं तक को मार सकता है। इस प्रकार उन्होंने अपनी वीरता और क्रूरता का परिचय दिया।
प्रश्न 5. लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताई?
उत्तर- लक्ष्मण ने एक सच्चे वीर योद्धा की महत्वपूर्ण विशेषताएँ बताईं। उनके अनुसार, वीर योद्धा कभी गाली-गलौज नहीं करते, बल्कि अपने पराक्रम से शत्रु का सामना करते हैं। सच्चा वीर वह है जो रणभूमि में अपना शौर्य दिखाता है, न कि शब्दों से। वीर कभी अपनी वीरता का बखान नहीं करते, क्योंकि आत्मप्रशंसा कायरों का लक्षण है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वीर योद्धा कभी भी देवता, ब्राह्मण, भक्त और गाय पर अपना बल प्रयोग नहीं करते, क्योंकि यह धर्म के विरुद्ध है। इस प्रकार लक्ष्मण ने परशुराम को एक सच्चे वीर के गुणों से अवगत कराया।
प्रश्न 6. साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर- साहस और शक्ति महत्वपूर्ण गुण हैं, परंतु विनम्रता के साथ मिलकर ये और भी प्रभावशाली बन जाते हैं। जैसे श्रीराम ने अपनी विनम्रता से परशुराम के क्रोध को शांत किया, वैसे ही विनम्रता हमें कठिन परिस्थितियों से सफलतापूर्वक निकलने में सहायता करती है। शक्ति और साहस से व्यक्ति आगे बढ़ता है, परंतु विनम्रता उसे सामाजिक स्वीकृति और सम्मान दिलाती है। विनम्रता न केवल व्यक्तित्व को निखारती है, बल्कि दूसरों के दिलों को जीतने में भी सहायक होती है। यह एक ऐसा गुण है जो साहस और शक्ति को सार्थक बनाता है।
प्रश्न 7. भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी॥ पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूंकि पहारू॥
उत्तर- लक्ष्मण मुस्कुराते हुए व्यंग्यात्मक शब्दों में कहते हैं कि हे मुनिश्रेष्ठ, आप स्वयं को महान योद्धा मानते हैं। आप बार-बार अपना फरसा दिखाकर हमें डरा रहे हैं, यह वैसा ही है जैसे कोई फूँक मारकर पहाड़ को उड़ाना चाहे। इस प्रकार लक्ष्मण परशुराम के व्यर्थ के क्रोध और धमकियों का मजाक उड़ाते हैं।
(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥ देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।
उत्तर- लक्ष्मण दृढ़ता से कहते हैं कि हम कोई कमजोर व्यक्ति नहीं हैं जो आपकी उंगली देखकर ही मर जाएँगे (जैसे काशीफल सूख जाता है)। आपके पास फरसा और धनुष-बाण देखकर मैंने जो कुछ कहा, वह अभिमान में नहीं, बल्कि आपके सम्मान में कहा था। यहाँ लक्ष्मण अपनी वीरता और निर्भीकता प्रकट करते हैं।
प्रश्न 8. पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर- तुलसीदास की भाषा का सौंदर्य इस पाठ में निम्नलिखित रूपों में दिखाई देता है:-
- अवधी और ब्रज भाषा का सुंदर मिश्रण कथा को सहज और प्रभावशाली बनाता है।
- अनुप्रास अलंकार का कुशल प्रयोग जैसे “बिहसि लखनु बोले मृदु बानी” पंक्तियों को श्रुतिमधुर बनाता है।
- उपमा अलंकार द्वारा जटिल भावों को सरल बनाया गया है, जैसे “कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा”।
- लक्ष्मण और परशुराम के संवाद में व्यंग्य का सटीक प्रयोग भाषा को धारदार बनाता है।
- दोहा और चौपाई के उचित प्रयोग से कथा में गति और प्रवाह बना रहता है।
- लोकोक्तियों और मुहावरों का प्रयोग भाषा को जनसामान्य के करीब लाता है।
- संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग होते हुए भी भाषा सरल और बोधगम्य है।
- चाँदनी रात के वर्णन में सुंदर उपमानों का प्रयोग किया है:
प्रश्न 9. इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- इस पाठ में लक्ष्मण द्वारा किए गए व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य निम्नलिखित उदाहरणों में स्पष्ट होता है:-
- सबसे पहला व्यंग्य तब दिखता है जब लक्ष्मण कहते हैं “सेवक सो जो करे सेवकाई, अरि करनी करि करिअ लराई” – यहाँ वे परशुराम को उनकी भूमिका (मुनि या योद्धा) स्पष्ट करने का व्यंग्य करते हैं।
- धनुष टूटने पर लक्ष्मण का व्यंग्य “हमरे जाना सब धनुष समाना” – यहाँ वे शिव धनुष की विशेषता का मजाक उड़ाते हैं।
- सबसे तीखा व्यंग्य “पुनि-पुनि मोहि देखाव कुठारू, चहत उड़ावन फूँकि पहारू” में है – जहाँ वे परशुराम की धमकियों को व्यर्थ बताते हैं।
- “इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं, जे तरजनी देखि मरि जाहीं” में लक्ष्मण परशुराम के रौद्र रूप का मजाक उड़ाते हैं।
- “भृगुबर परसु देखावहु मोही, बिप्र बिचारि बचौं नृपद्रोही” में लक्ष्मण परशुराम के ब्राह्मण होने और क्षत्रियों से वैर रखने का व्यंग्य करते हैं।
प्रश्न 10. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचानकर लिखिए
(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।
(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
उत्तर-
(क) “बालकु बोलि बधौं नहि तोही” में ‘अनुप्रास अलंकार’ है, क्योंकि ‘ब’ वर्ण की आवृत्ति हुई है।
(ख) “कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा” में ‘उपमा अलंकार’ है, क्योंकि यहाँ वचन की तुलना करोड़ों वज्रों से की गई है। इसमें ‘सम’ उपमावाचक शब्द है, ‘बचन’ उपमेय है और ‘कोटि कुलिस’ (करोड़ों वज्र) उपमान है।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 11. “सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।” आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।
उत्तर- क्रोध का सकारात्मक पक्ष समाज में आवश्यक है। यह अन्याय का प्रतिकार करने में सहायक होता है, जैसा कि श्रीराम और समुद्र के प्रसंग से स्पष्ट है। परंतु क्रोध पर नियंत्रण भी आवश्यक है, क्योंकि अनियंत्रित क्रोध विनाशकारी हो सकता है। श्रीराम-परशुराम प्रसंग से यह स्पष्ट होता है कि धैर्य और विनम्रता क्रोध को शांत करने का सर्वोत्तम माध्यम है। अतः क्रोध का उचित समय पर, उचित मात्रा में प्रयोग ही लाभदायक होता है।
प्रश्न 12. अपने किसी परिचित या मित्र के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- मेरी मित्र सुधा एक संवेदनशील और जिम्मेदार व्यक्ति है। वह अपने कार्यों में कुशल और समय की पाबंद है। उसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि वह दूसरों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहती है। वह अपनी बात को स्पष्टता से रखती है और गलती होने पर उसे स्वीकार करने में संकोच नहीं करती। उसकी ये विशेषताएँ उसे एक अच्छा मित्र बनाती हैं।
प्रश्न 13. दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए-इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।
उत्तर- विद्यार्थी अपने शिक्षक की सहायता से इसे स्वयं करे।
प्रश्न 14. उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।
उत्तर- विद्यार्थी स्वयं करे।
प्रश्न 15. अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रों में बोली जाती है?
उत्तर- अवधी भाषा मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में बोली जाती है, जिसमें लखनऊ, अयोध्या, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, बाराबंकी और गोंडा जिले प्रमुख हैं। यह भाषा पूर्वी उत्तर प्रदेश के लगभग 10 जिलों में करीब 3.85 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाती है।